हिन्दू धर्म की प्रमाणिकता पर सोशल मीडिया में प्रश्नचिन्ह क्यों ?

हिन्दू धर्म की वैज्ञानिकता प्रमाणिकता पर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रश्नचिन्ह क्यों  !

शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की, तो रावण के 10 सिर और कृष्ण की 11 अक्षोणी सेना कैसे ?

उत्तर- शून्य की खोज किसने की तो वो है वेद वेदों में 1 से लेकर 18 अंको तक (इकाई से परार्ध) तक की गणना कि गई है,1 के अंक में 0 लगाने पर ये गणना क्रमशः बढ़ती जाती है। इसका स्पष्ट उल्लेख वेद करते है

इमा मेड्अग्नडईष्टकम धेनवः सन्तवेका च 
दश च शतं च शतं च शहस्त्रं च सहस्त्रं चायुतं, 
चायुतं च नियुतं व नियुतं च प्रयुतं चार्वुदं च 
न्युर्बुदं च समुद्रश्च मध्यं चान्तश्चपरार्धश्चैता 
मेडअग्नडईष्टका धेनवः सन्त्वमुत्रामुष मिंल्लोके (शुक्ल यजुर्वेद-17/2) 

अर्थात हे अग्ने ! ये इष्टकायें हमारे लिए अभिष्ट फलदायक कामधेनु गौ के समान हो ये इषंटकाऐं परार्ध संड्ख्यक (100000000000000000) 
एक से दस, दस से सौ, सौ से हजार, हजार से 10 हजार, 10 हजार से लाख, लाख से दस लाख, दस लाख से करोड़, करोड से दस  करोड़, दस करोड़ से अरब, अरब से दस अरब, दस अरब से खरब, खरब से दस खरब, दस खरब से नील, नील से दस नील, दस नील से संख, शंख से दस शंख, दस शंख से परार्ध ( लक्षकोटी ) है
में  
यहां स्पष्ट एक-एक शून्य जोड़ते हुए काल गणना की गई है

अब फिर प्रश्न उठता है, आर्यभट्ट ने शून्य की खोज कैसे की ?

इसका उत्तर है विज्ञान दो क्रियाएं हैं  एक खोज उसे कहते है, जो पहले से विद्यमान हो, बाद मे खो गई हो और फिर उसे ढूंढा जाए, उसे खोज कहते है
आविष्कार उसे कहते है, जो विद्यमान नही है और उसे अलग-अलग पदार्थो से बनाया जाए वो आविष्कार है शून्य और अंको की खोज आर्यभट्ट ने की न की आविष्कार

हिन्दू-विरोधी, वामपंथियों, भ्रमित हिन्दुओं ने सनातन (हिन्दू) धर्म की वैज्ञानिकता और प्रमाणिकता पर अब सोशल मीडिया के माध्यम से प्रश्नचिन्ह लगाने लगे हैं, जबकि उसको अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड जैसे विकासशील देश न केवल स्वीकार चुके हैं, बल्कि सनातन धर्म के ज्ञान पर सतत शोध कर रहे हैं। इसलिए सारी फर्जी शोषण की कहानियों और कुतर्क, किसी भी शोषण की कहानी मे कोई दम नही है। अब व्यावहारिक रूप से आप भी इन बिंदुओं पर विचार करें-

1- पुराने जमाने मे जब हॉस्पिटल नही होते थे, तो बच्चे की नाभि भी कौन काटता मतलब पिता से भी पहले कौन सी जाति बच्चे को पहले स्पर्श करती थी ?

2- आपका मंडन करने वक्त कौन स्पर्श करता था ?

3- विवाह के मंडप मे नाई और धोबन भी होती थी लड़की का पिता लड़के के पिता से इन दोनों  के लिए दक्षिणा की मांग करता था

4-  वाल्मीकियों के बनाये हुए सूप से ही छठ व्रत होता है घर के सिल, चाकर को गढ़ने वाले वाल्मीकि ही हुआ करते थे

5- मंदिर की मूर्तियां और मंदिर बनाने वाला कौन होता था ?

6- मंदिर के लिए फूल और देवो के लिए माला लाने के लिए कौन होता था ?

7- कपड़ा सीने वाला कौन लोग होते थे ?

8- शादी विवाह में भोजन बनाने वाले, परोसने वाले और मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोग कौन थे ?

9- यज्ञ कि लिपाई और कुशा लाने वाले और सिर मुंडन करने वाले कौन लोग थे ?

10- आपके घर मे कुंए से पानी कौन लाता था ? भोजन के लिए पत्तल कौन सी जाति बनाती थी ?

11- डोली अपने कंधो पर कौन मिलों दूर तक ले आता था ?

12- कौन आपकी झोपडियां बनाता था ?

कौन आपकी चिता जलाने मे सहायक सिद्ध होता है ?


जीवन से लेकर मरन तक सबने मुझे स्पर्श किया है, कभी ना कभी और कहते है कि छूआछूत था ! होगा पर इसके मध्य एक प्रेम की धारा भी बहती थी, जिसका ये सेक्युलर वामपंभी और भ्रमित अम्बेडकरवादी वाले कभी उल्लेख नही करेंगे
...और कान खोलकर सुनो- जो तुम आरक्षण के लिए समाज मे जहर घोलते तब तक हम चुप थे, अब जब तुमने हमारे देव योगेश्वर कृष्ण और पुरुषोत्तम राम पर आक्षेप करना शुरु कर दिया है, तो तुम्हे भी नही छोडेंगे

तुम्हारा अस्तित्व (वजूद) तो धर्मांतरित होकर भारतवर्ष में नारा-ऐ-तकबीर गुंजवा कर मिटा सकते थें, लेकिन सनातन वैदिक धर्म की रक्षा मे हमारे पूर्वजो ने प्राणों की आहुति, श्रेष्ठ ऋषियों और महापुरुषों की संतान होने के कारण धर्मांतरित नही हो सकता

स्वार्थ और वेश्यावृति के लिए धर्मांतरित नही हो सकता, तुम्हारी तरह, नहीं तो जिसे तुम अधिकार समझते हो उसे पैरों की धुल भी नही समझते हैं हम ! मुझे पता है कि तुम्हारा कथित अधिकार केवल गजवा- ऐ- हिन्द तक है और सनातन धर्म मुझे युगों युगों तक का साथी

मुझे गर्व है वैदिक सनातनी होने पर, हमारे पूर्वजों ने भले ही भिक्षा मांगकर भोजन किया हो, सुख-दुख मे समान रह कर, चार आश्रमों का पालन किया, दुनियां के ज्ञान विज्ञान के प्रकाश से अलौकिक किया

तुमने क्या सोचा की ब्राह्मणवाद फर्जीवाडे खडे करके तुम सभी को परास्त कर लिए हो ये तुम्हारी भूल है
क्योंकि, 
अहमिन्द्रो न पराजिग्ये ( ऋग्वेद3i 10-48-5 /वेद 
मै सामर्थ्यशाली हूँ, कभी नही हारेंगे !
ऊँ कृष्वन्तो विश्वमार्यम !  -आचार्य नितिन कांत भारद्वाज  

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