बेटी को भार समझकर अयोग्य वर से विवाह करना महा अपराध है !
बेटी को भार कभी न समझें
काममामरणात् तिष्ठेत् गृहे कन्यर्तृमत्यपि।
न चैवैनां प्रयच्छेत्तु गुणहीनाय कर्हिचित्।।
धर्म नगरी / DNNews
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प्रायः देखा जा रहा है, कि लोग संतान सुख चाहते हैं लेकिन पुत्री नहीं चाहते। यदि लड़की हुई तो लड़के की अपेक्षा कम शिक्षा देते हैं, और जल्दी विवाह करके अपना बोझ हल्का कर लेते हैं। अर्थात् लड़की पराई तथा बोझ हैं।आप बताएं, जब बेटी पराई और बोझ है तो इस संसार में अपना कौन है ? यदि कुछ स्थाई होगा तो मुझसे कहने की कृपा करेंगे तो हम आपके आभारी रहेंगे ! वास्तव में बेटी तो एक अद्वितीय संतान है, जो पिता कुल और पति कुल दोनों को कल्याण करती हैं। जनक जी सीता जी के त्याग, संस्कार पर गर्वित होकर कहते हैं-
पुत्री पवित्र किए कुल दोऊ।
सुजस धवल जस कह सब कोऊ।।
माता सीता जी अपने संस्कार से जनकपुर वासियों का सिर ऊँचा कर देती हैं और राजा दशरथ समेत अयोध्या कृत कृत्य है ही।
गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं-
सती शिरोमणि सिय गुन गाथा।
सोइ गुण अमल अनूपम पाथा।।
नारद जी माता पार्वती जी के हस्त रेखा देखकर हिमाचल और मैना जी से कहते हैं कि-
एहि ते जसु पैहहिं पितु माता ।
कन्या को अच्छे संस्कार से युक्त शिक्षा देकर, उसके योग्य वर से ही विवाह करना चाहिए...
न त कन्या बरु रहै कुमारी।
कुअँरि कुआरि रहिहि का करऊँ।
बेटी अविवाहित रह जाय वह ठीक है लेकिन अयोग्य वर से विवाह नहीं करनी चाहिए। अयोग्य वर से विवाह कर माता पिता उपहास के पात्र भी बन जाते हैं-
जौं न मिलिहि बरु गिरिजहि जोगू।
गिरि जड़ सहज कहिहि सब लोगू।
यश और अपयश पर भी विचार आवश्यक है।
कन्या वरयते रूपं माता वित्तं पिता श्रुतं।
बान्धवाः कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नमितरे जनाः।।
हर लड़की की इच्छा होती है कि उसका पति सुंदर हो, हर लड़की की माता चाहती हैं कि मेरा दामाद सुखी संपन्न हो, हर लड़की के पिता चाहते हैं कि उसका दामाद पढ़ा -लिखा विद्वान् हो। लड़की के संबंधी चाहते हैं कि लड़का अच्छे वंश का हो तथा मित्र,स्वजन विवाह में बढ़िया भोजन की अपेक्षा करते हैं।
लेकिन लड़की के माता पिता को केवल इच्छा नहीं बल्कि समुचित प्रयास करना चाहिए। अतः सनातन संस्कृति के पूजनीय जन ! लड़की को न तो कम शिक्षा दें और न अयोग्य वर से विवाह करें।(कृपया इसे उपदेश नहीं, बल्कि विनती समझने की कृपा करें)। आजकल के कन्याभ्रूण हत्या करने वाले गोहत्या करने वाले से भी बड़े पापी हैं।
अतः गो समान कन्या को,वर भले धनाढ्य हो लेकिन उससे विवाह न करें।
जिअत विवाह न हौं करौं..।
भोजपुरी में सुंदर गीत है...
बेटी बोझ नाहीं होवेली,
शृंगार अँगना के।
जेकरा बेटी नइखन,
उ बाटे बेकार अँगना के।।
बेटी बोझ नहीं बल्कि आँगन की शृंगार हैं, और बेटी विहीन माता पिता का आँगन बेकार है! मन का भाव है,
त्रुटि हेतु क्षम्यताम् ?
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