राम का अस्तित्व नकारने वाले "राम" स्वयं राम में ही समाहित हो गए

आखिरकार "राम" चले ही गए... 
जो प्रभु राम के सबसे बड़े विरोधी थे ! 
(धर्म नगरी / डीएन न्यूज़, ट्वीटर- @DharmNagari

जी हां, मैं बात कर रहा हूं सुप्रसिद्ध अधिवक्ता राम जेठमलानी का, जिनका 94 वर्ष की उम्र में निधन हो गयाराम जेठमलानी का जीवन पूरी तरह से विवादग्रस्त रहा कभी अपने राम-द्रोही वाले बयान पर अपनी छीछालेदर करवाते हुए प्रभु श्रीराम को उन्होंने यह कहते हुए आलोचना की थी, कि राम एक बुरे पति थे, मैं उन्हें कतई पसंद नहीं करता हूं, क्योंकि उन्होंने एक एक धोबी के कहने पर अपनी पत्नी सीता को घर से बाहर निकाल दिया था 

जेठमलानी ने यह भी कहा था, कि उन्हें शक है कि राम हैं भी अथवा नहीं उस समय अधिवक्ता राम जेठमलानी यह कहते हुए शायद भूल चुके थे, कि उनके नाम के आगे खुद राम लगा हुआ है जिसे वे मरते दम तक अपने जीवन से बाहर नहीं निकाल सकें अधिवक्ता राम जेठमलानी शायद उस समय यह भी भूल चुके थे, कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम एक पत्नीधारी थे, राम जेठमलानी की तरह नहीं जिन्होंने दो-दो शादियां की थी। राम जेठमलानी ने अपनी सेकुलरवादी, सड़ी हुई सोच का नमूना दिखाते हुए कभी यह भी कहा, कि वे इस्लाम के और नबी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं और वे कुरान शरीफ के छात्र भी रह चुके हैं 

राम जेठमलानी ने कुरान को कोड करते हुए कहा था, कि जब तुम इल्म की तलाश में जा रहे हो तो तुम अल्लाह के रास्ते पर जा रहे हो यह बात कहते हुए वे शायद यह बाद भूल गए, कि इल्म अर्थात ज्ञान का अथाह भंडार तो हिंदू सनातन धर्म मैं तो हजारों लाखो वर्ष पहले से ही मौजूद है वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत जैसे महान 
ग्रंथों को अगर राम जेठमलानी एक बार भी पढ़ लेते तो, उन्हें इस तरह इस्लाम और नबी में भटकना ना पड़ता 

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ बताते हुए राम जेठमलानी ने कहा था, कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ "धर्म की अधीनता का कारण होता है" जो की पूरी तरह से गलत है वास्तव में अगर अधिवक्ता राम जेठमलानी ने भारतीय संस्कृति और सभ्यता से नाता जोड़ा होता, उन्हें वास्तविक रूप में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ समझ में आ जाताधर्मनिरपेक्षता का अर्थ होता है धर्म से निरपेक्ष अर्थात धर्म से अलग बाहर खैर, अब जब रावण जेठमलानी का अस्तित्व राम में समाहित हो चुका है, तो कुछ भी बुरा नहीं बोलना चाहिए, किंतु जब ऐसा प्रसंग आ गया तो बोलना भी आवश्यक हो जाता है 

मित्रों फिलहाल मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं, कि अधिवक्ता राम जेठमलानी को मैं श्रद्धांजलि उनके में किस रूप पर दूं ! किंतु यह मानते हुए कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी भी है और अपनी इसी सामाजिकता को दिखाने के लिए कभी-कभी व्यक्ति ना चाहते हुए भी कुछ औपचारिकताओं को पूर्ण करना होता है इसमें कोई शक नहीं कि एक अधिवक्ता के रूप में उनका जीवन बेमिसाल था यह बात अलग है, कि वह भी विवादों से घिरा हुआ था और इसके लिए भी उन पर काफी उंगलियां उठाई गई थी एक अधिवक्ता के रूप में उनका जीवन बेहद सफल रहा अपनी ओर उठती हुई हर उंगली का जवाब देते हुए उन्होंने यह कहा था- किसी वकील के लिए एक बदनाम व्यक्ति की पैरवी करना अनैतिक नहीं है, बल्कि बदनामी के डर से किसी व्यक्ति की पैरवी करने से इंकार कर देना अनैतिक है 
स्व. राम जेठमलानी 


अंत में यह कहते हुए, कि  अगर राम जेठमलानी इस्लाम से ज्यादा प्रभु श्रीराम की पैरवी करते, तो आज पूरे विश्व में उनको बेहद सम्मान की दृष्टि से देखने वालों का एक अलग ही दृष्टिकोण होता यद्यपि, प्रभु श्रीराम के विषय में अपमानजनक टिप्पणी वाले और एक आतंकी अफजल गुरु की पैरवी करने वाले एक विशुद्ध या अशुद्ध विचारधारा से ग्रसित अधिवक्ता के रूप मैं उन्हें बेहद अनमने भाव से भावभीनी श्रद्धांजलि प्रदान करता हूं, परंतु एक यक्ष प्रश्न अभी भी बाकी और वह यह कि, 
क्या अधिवक्ता-धर्म राम से द्रोह करने की अनुमति प्रदान करता है ? 
क्या अधिवक्ता-धर्म हमें यह कहता है कि मात्र धन के लिए हम देश को खोखला करने वाले और भारतवर्ष के टुकड़े-टुकड़े करने का दिवास्वप्न पाल बैठे "टुकड़े-टुकड़े गैंग" के सर्वे-सर्वाओं को बचाकर हम अपने कौन से अधिवक्ता धर्म का पालन करते हैं ? 
ये प्रश्न मैं आप जनता*जनार्दन के विवेक पर छोड़ता हूं आप जैसा चाहे उत्तर दें 
जय श्रीराम ! वंदे मातरम ! हर-हर महादेव !
-मनीष पांडेय (अधिवक्ता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता हिंदू महासभा)
#उक्त विचार व् लेख श्री मनीष पांडेय के हैं 

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