श्राद्ध का क्या प्रभाव है ? क्यों आवश्यक है श्राद्ध ? क्यों करें श्राद्ध ?

इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद आप अपने पुरखों / पितरों से जुड़ जाएंगे   

श्राद्ध अपने ही दिवंगत परिजनों, जिनके कारण आप उत्पन्न (पैदा) हुए उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक श्राद्ध देने की विधि है

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हिन्दू वर्ष के 12 महीनों के मध्य छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (अर्थात अंतिम दिन से) 7वें माह आश्विन के प्रथम 16 दिन में पितृ पक्ष का महापर्व मनाते है। सूर्य अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है, तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है। शास्त्रानुसार, आपको सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी यानी बैकबोन का मजूबत होना बहुत आवश्यक है, जो शरीर के लगभग मध्य भाग में स्थित है और जिसके चलते ही हमारे शरीर को एक पहचान मिलती है।

उसी तरह हम सभी जन उन पूर्वजों के अंश हैं अर्थात हमारी जो पहचान है यानी हमारी रीढ़ की हड्डी मजबूत बनी रहे उसके लिए हर वर्ष के मध्य में अपने पूर्वजों को अवश्य याद करें और हमें सामाजिक और पारिवारिक पहचान देने के लिए श्राद्ध कर्म के रूप में अपना धन्यवाद अर्थात अपनी श्रद्धाजंलि दें।


पितृ पक्ष अपने पितरों या पुरखों, के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का सबसे बड़ा सुअवसर है। उनकों स्मरण करते हुए उनके नाम से, उनकी तिथि पर श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध में श्रृद्धापूर्वक पितरों को उचित काल या स्थान पर तिथि के अनुसार किया जाता है। विद्वानों के अनुसार सर्वोत्तम काल दोपहर 12 से 2 बजे माना गया है, क्योकि इस समय पितर घर के ऊपर आसमान विचरण करते हुए अपने संतानों को देखते है। पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को उनकी तिथि के अनुसार भोजन कराकर दक्षिणा आदि (जो भी सामर्थ्य हो) सम्मान एवं श्रद्धापूर्वक देते है। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण में है। श्राद्ध एक ऐसा माध्यम है, जिससे पितरों को तृप्ति के लिए भोजन दिया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा माना जाता है।

कब करें श्राद्ध- 
श्राद्ध-कर्म शास्त्रोक्त विधि से ही करें। वैसे, पितृ कार्य कार्तिक या चैत्र मास मे भी किया जा सकता है। कहते हैं,
मातृदेवो भव पितृदेवो भव। श्राद्ध करने का सभी का अपना दिन होता है। श्राद्ध अपने परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक श्राद्ध देने की विधि हैउदाहरण के रूप में,  अगर किसी परिजन की मृत्यु एकादशी को हुई है, तो उनका श्राद्ध एकादशी के दिन ही किया जाएगा। इसी प्रकार अन्य तिथियों के अनुसार किया जाता है।
- यदि पिता और माता दोनों ही नहीं हैं, तो पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाएगा।
- जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई, अर्थात दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो, तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन होता है।
- जो व्यक्ति अपने जीवन-काल में साधु और संन्यासी रहा हो, उनका श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है।
- जिन लोगों को अपने पितरों के मरने की तिथि स्मरण नहीं रहती, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है। इसे सर्वपितृ-श्राद्ध कहा जाता है।

वर्ष 2019 में श्राद्ध पक्ष महत्वपूर्ण तिथियां-
पूर्णिमा श्राद्ध- 13 सितंबर 2019
प्रतिपदा श्राद्ध- 14 सितंबर 2019
द्वितीया श्राद्ध- 15 सितंबर 2019
तृतीया श्राद्ध- 17 सितंबर 2019
महा भरणी - 18 सितंबर 2019
पंचमी श्राद्ध- 19 सितंबर 2019
षष्ठी  श्राद्ध- 20 सितंबर 2019
सप्तमी श्राद्ध- 21 सितंबर 2019
अष्टमी श्राद्ध- 22 सितंबर 2019
नवमी श्राद्ध- 23 सितंबर 2019
दशमी  श्राद्ध- 24 सितंबर 2019
एकादशी श्राद्ध- 25 सितंबर 2019
मघा श्राद्ध- 26 सितंबर 2019
चतुर्दशी श्राद्ध- 27 सितंबर 2019
सर्वपितृ अमावस्या- 28 सितंबर 2019
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संगम क्षेत्र, प्रयागराज में माघ मेले के समय पितरों के निमित्त दान (सेझिया) करते हुए -धर्म नगरी 6261868110 
श्राद्ध या पिंड दान क्यों करना चाहिए ? 
श्राद्ध या पिन्डदान के महत्व को  प्रत्येक हिन्दू को जानना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध पितरों के आशीर्वाद, परिवार के सुख-समृद्धि एवं  वंश-वृद्धि  से सीधे है। इसके हमने अनेक प्रमाण देखें है, जब विवाह नहीं हो रहा हो, घर में कोई मंगल-कार्य न हो रहा हो, बच्चों के विवाह में लगातार बाधा हो, संतान नहीं हो रही हो, ये मुख्य लक्षण या प्रभाव है पितृ-दोष के या पुरखों के विधिवत श्रद्धापूर्वक श्राद्ध न करने के। जिनकों विषय, श्रद्धा नहीं है, जिनकों अपने पुरखों (जिनके कारण उनका अस्तित्व है) से कोई लगाव, प्रेम नहीं, उनको लेकर कुछ भी कहना या लिखना "भैंस के आगे बीन बजाने वाली बात है" इसलिए, ये पूरा लेख ऐसे लोग पढ़ें, ऐसी अपेक्षा भी हम नहीं करते। हाँ, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एवं आज दिनांक तक जितने भी कर्मकांड पर PhD करने वाले विद्वानों, ज्योतिर्विद एवं ज्योतिषार्यों (जो पीढ़ियों से हैं), वास्तुविदों से हम मिले हैं, बात / इंटरव्यू किया या सम्मेलन / Conference में उनकों सुना है, उस आधार पर हम विश्वाश के साध लिख रहे हैं, कि श्राद्ध-कर्म का प्रभाव होता ही है, ये अंध-विश्वाश नहीं विश्वास एवं श्रद्धा से जुड़ा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रमाणित कर्म है, सनातन परंपरा है... -सम्पादक "धर्म नगरी"  +916261868110 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com  (केवल धर्म नगरी के सदस्य एवं हिंदुत्व पर गर्व करने वालों के लिए  
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पितरों की संतुष्टि के उद्देश्य से श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले तर्पर्ण, ब्राह्मण भोजन, दान आदि कर्मों को श्राद्ध कहा जाता है. इसे पितृयज्ञ भी कहते हैं. श्राद्ध के द्वारा व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है और पितरों को संतुष्ट करके स्वयं की मुक्ति के मार्ग पर बढ़ता है.

श्राद्ध या पिन्डदान दोनो एक ही शब्द के दो पहलू है पिन्डदान शब्द का अर्थ है अन्न को पिन्डाकार मे बनाकार पितर को श्रद्धा पूर्वक अर्पण करना इसी को पिन्डदान कहते है दझिण भारतीय पिन्डदान को श्राद्ध कहते है

श्राद्ध के प्रकार-
शास्त्रों में श्राद्ध के निम्नलिखित प्रकार बताये गए हैं-
1. नित्य श्राद्ध : वे श्राद्ध जो नित्य-प्रतिदिन किये जाते हैं, उन्हें नित्य श्राद्ध कहते हैं. इसमें विश्वदेव नहीं होते हैं.
2. नैमित्तिक या एकोदिष्ट श्राद्ध : वह श्राद्ध जो केवल एक व्यक्ति के उद्देश्य से किया जाता है. यह भी विश्वदेव रहित होता है. इसमें आवाहन तथा अग्रौकरण की क्रिया नहीं होती है. एक पिण्ड, एक अर्ध्य, एक पवित्रक होता है.
3. काम्य श्राद्ध : वह श्राद्ध जो किसी कामना की पूर्ती के उद्देश्य से किया जाए, काम्य श्राद्ध कहलाता है.
4. वृद्धि (नान्दी) श्राद्ध : मांगलिक कार्यों ( पुत्रजन्म, विवाह आदि कार्य) में जो श्राद्ध किया जाता है, उसे वृद्धि श्राद्ध या नान्दी श्राद्ध कहते हैं.
5. पावर्ण श्राद्ध : पावर्ण श्राद्ध वे हैं जो भाद्रपद कृष्ण पक्ष के पितृपक्ष, प्रत्येक मास की अमावस्या आदि पर किये जाते हैं. ये विश्वदेव सहित श्राद्ध हैं.
6. सपिण्डन श्राद्ध : वह श्राद्ध जिसमें प्रेत-पिंड का पितृ पिंडों में सम्मलेन किया जाता है, उसे सपिण्डन श्राद्ध कहा जाता है.
7. गोष्ठी श्राद्ध : सामूहिक रूप से जो श्राद्ध किया जाता है, उसे गोष्ठीश्राद्ध कहते हैं
8.  शुद्धयर्थ श्राद्ध : शुद्धयर्थ श्राद्ध वे हैं, जो शुद्धि के उद्देश्य से किये जाते हैं
9.   कर्मांग श्राद्ध : कर्मांग श्राद्ध वे हैं, जो षोडश संस्कारों में किये जाते हैं
10. दैविक श्राद्ध : देवताओं की संतुष्टि की संतुष्टि के उद्देश्य से जो श्राद्ध किये जाते हैं
11. यात्रार्थ श्राद्ध : यात्रा के उद्देश्य से जो श्राद्ध किया जाता है
12. पुष्टयर्थ श्राद्ध : शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक पुष्टता हेतु किये जाते हैं
13. श्रौत-स्मार्त श्राद्ध : पिण्डपितृयाग को श्रौत श्राद्ध कहते हैं। जबकि एकोदिष्ट, पावर्ण, यात्रार्थ, कर्मांग आदि श्राद्ध स्मार्त श्राद्ध कहलाते हैं।

कब किया जाता  है श्राद्ध ? 
श्राद्ध की महत्ता को स्पष्ट करने से पूर्व यह जानना भी आवश्यक है, कि श्राद्ध कब किया जाता है ? इस संबंध में शास्त्रों में श्राद्ध किये जाने के निम्नलिखित अवसर बताये गए हैं-

1.   भाद्रपद कृष्ण पक्ष (पितृपक्ष) के 16 दिन-
2.   वर्ष की 12 अमावास्याएं तथा अधिक मास की अमावस्या.
3.   वर्ष की 12 संक्रांतियां.
4.   वर्ष में 4 युगादी तिथियाँ.
5.   वर्ष में 14 मन्वादी तिथियाँ.
6.   वर्ष में 12 वैध्रति योग
7.   वर्ष में 12 व्यतिपात योग.
8.   पांच अष्टका.
9.   पांच अन्वष्टका
10.  पांच पूर्वेघु.
11.  तीन नक्षत्र: रोहिणी, आर्द्रा, मघा.
12.  एक कारण : विष्टि.
13.  दो तिथियाँ : अष्टमी और सप्तमी.
14.  ग्रहण : सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण.
15.  मृत्यु या क्षय तिथि.

क्यों आवश्यक है श्राद्ध  ?श्राद्धकर्म क्यों आवश्यक है, इस संबंध में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
1.    श्राद्ध पितृ ऋण से मुक्ति का माध्यम है.
2.    श्राद्ध पितरों की संतुष्टि के लिये आवश्यक है.
3.    महर्षि सुमन्तु के अनुसार श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता का कल्याण होता है.
4.    मार्कंडेय पुराण के अनुसार श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, संतति, धन, विघ्या, सभी प्रकार के सुख और मरणोपरांत स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करते हैं.
5.    अत्री संहिता के अनुसार श्राद्धकर्ता परमगति को प्राप्त होता है.
6.    यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितरों को बड़ा ही दुःख होता है.
7.    ब्रह्मपुराण में उल्लेख है की यदि श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो पितर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को शाप देते हैं और उसका रक्त चूसते हैं. शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता अर्थात वह पुत्र रहित हो जाता है, उसे जीवनभर कष्ट झेलना पड़ता है, घर में बीमारी बनी रहती है।

   
पितरो की शांति के लिए क्या करे ?
पितरो की शांति हेतु त्रिपिण्डी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, महामृत्युंजय मंत्र जाप और श्रीमद् भागवत कथा कराये।

1- त्रिपिण्डी श्राद्ध- यदि किसी मृतात्मा की लगातार तीन वर्षों तक श्राद्ध नहीं किया जाए तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में चली जाती है। ऐसी प्रेतात्माओं की शांति के लिए त्रिपिण्डी श्राद्ध कराया जाता है।

2- नारायण बलि कर्म- यदि किसी जातक की कुण्डली में पित्रृदोष है एवं परिवार मे किसी की असामयिक या अकाल मृत्यु हुई हो तो वह जीवात्मा प्रेत योनी में चला जाता है एवं परिवार में अशांति का वातावरण उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में नारायण बलि कर्म कराना आवश्यक हो जाता है।

3- मृतात्मा की शांति के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाया जा सकता है। इसके प्रभाव से पूर्व जन्मों के सभी पाप नष्ट हो जाते है।

4- पितरो की आत्मा की शांति के  लिए श्रीमद्भागवत का पाठ कराना चाहिए।श्रीमद् भागवत कथा सुनने से प्रेत योनि से मुक्ति हो जाती है।और परिवार के लिए सुख शांति प्राप्त होती है।

कैसे करें श्राद्ध-
हर साल पितरों की शांति और तर्पण करने के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में किया जाता है। इसे किसी सरोवर, नदी या फिर अपने घर पर भी किया जा सकता है। परंपरा अनुसार, अपने पितरों के आवाहन के लिए भात, काले तिल व घी का मिश्रण करके पिंड दान व तर्पण किया जाता है। इसके पश्चात विष्णु भगवान व यमराज की पूजा-अर्चना के साथ-साथ अपने पितरों की पूजा भी की जाती है। अपनी तीन पीढ़ी पूर्व तक के पूर्वजों की पूजा करने की मान्यता है।

पूर्वजों का तपर्ण करना सनातन हिन्दू धर्म में बहुत ही पुण्य का काम माना जाता है। पुण्य के साथ तर्पण हिन्दू धर्म में बहुत अहम काम माना जाता है। हिन्दू मान्यता के हिसाब से किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है। मान्यता है,  अगर मृत मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना हो पाए तो उसे इस लोक (पृथ्वी लोक) से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत बनकर इस पृथ्वी पर भटकता रहता है, जिसे अन्य शब्दों में कहते हैं कि मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

तर्पण का महत्व-
पुराणों में एक पुराण है ब्रह्म वैवर्त, जिसके अनुसार भगवान को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना अति आवश्यक है। ज्योतिष के अनुसार भी कुंडली में पितृ-दोष पाया जाता है, जिसे अब तक का सबसे बड़ा दोष माना गया है। यह दोष यदि एकबार लग जाए तो पीढ़ी दर पीढ़ी कुंडली में दिखता है। जब तक की कोई इसकी शांति न करवाए। हर साल पितरों की शांति और तर्पण करने के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में किया जाता है। इसे ही पितृ पक्ष श्राद्ध कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इन पितृ पक्ष के दिनों में कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
 
पितृ-दोष शांति के कुछ उपाय -

प्रत्येक अमावस्या को पितरों की पूजा करनी चाहिए
सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) अगर सोमवार न हो तो भी अमावस्या को पीपल के पेड़ के पास जाइये। उस पीपल के पेड़ को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये। पीपल के पेड़ की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये
और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये। हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई या बतासे या चीनी जो भी आपके स्वच्छ रूप से उपलब्ध हो पीपल को अर्पित कीजिये।

कौओं को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दें
रविवार का व्रत करें। सूर्य देव को ज़ल दे गुरुजनों की सेवा करें, शाकाहार रहें। सूर्य को पवित्रता प्रिय हैं।
शिव अराधना करें।
घर में पितरो के चित्र के सामने सरसो के तेल का दिया जलाये व उनका चित्र घर की दक्षिण दीवार पर लगाये।
माता-पिता एवं पत्नी को सम्मान दें।
अमावस्या का व्रत करें। प्रतिदिन रविवार को छोड़ कर पीपल के पेड़ पर जल में  काले तिल, जौ, चावल चीनी, गंगाज़ल ,मिलाकर जल चढाये श्राद्ध पक्ष में तो  प्रतिदिन  कर लेना चाहिए।
पूर्वजों की पुण्य तिथि मनाएं। दक्षिण दिशा में पैर रख कर नहीं सोए।
संभव हो अमावस्या को श्रद्धापूर्वक  सत्यनारायण व्रत की कथा सुनें।
यथासंभव एकादशी व्रत एवं गीता पाठ करें।
पितृ शांति के लिये आप पितरो के नाम का संकल्प लेकर अखण्ड रामायण (श्रीरामचरित मानस) का पाठ भी एकबार करवा सकते है।

पिंड दान क्यों कराएं ?
समय पर पितृ-दोष की शांति अगर पिंडदान नहीं करे है, तो पिंडदान कराये। सत्य, अहिंसा और ईमानदारी का व्रत लें. ऐसा करने से सभी दोष अपने आप मिट जाते हैं। अपने बड़े-बुजुर्गों, गरीब और जरूरतमंदों सनातनधर्मी हिन्दुओ की सेवा व सहायता करने से भी पितृ-दोष का निवारण होता है।

पिंड दान का महत्व-
पितृ पक्ष में पिंड दान अवश्य करना चाहिए ताकि देवों व पितरों का आशीर्वाद मिल सके। अपने पितरों के पसंदीदा भोजन बनाना अच्छा माना जाता है। सामान्यत: पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए कद्दू की सब्जी, दाल-भात, पूरी व खीर बनाना शुभ माना जाता है।

पूजा के बाद पूरी व खीर सहित अन्य सब्जियां एक थाली में सजाकर गाय, कुत्ता, कौवा और चींटियों को देना अति आवश्यक माना जाता है। कहा जाता है कि कौवे व अन्य पक्षियों द्वारा भोजन ग्रहण करने पर ही पितरों को सही मायने में भोजन प्राप्त होता है, क्योंकि पक्षियों को पितरों का दूत व विशेष रूप से कौवे को उनका प्रतिनिधि माना जाता है। पीपल के पेड़ के नीचे शु्द्ध घी का दिया जलाकर गंगा जल, दूध, घी, अक्षत व पुष्प चढ़ाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
                     

पितृ-पक्ष 14 सितम्बर 2019 से-

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इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है, जैसे: रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं।
✓ सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है, दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है, दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता, ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं।
मित्रों, पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है।
✓ सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है, वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
✓ पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है, इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है, श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए।
✓ पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं, धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।
✓ श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे, इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं, यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।
✓ श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं, मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भीदेते हैं। 

श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें- 
1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। ध्यान रखें, कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हों, क्योंकि  दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए।
2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही, राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में केवल पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है।
3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं।
4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बिना करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें
5- जो पितर शस्त्र आदि से मारे गए हों, उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंड-दान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पड़ने से वह पितरों को नहीं पहुंचता।
6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है। शास्त्रानुसार, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण-हीन श्राद्ध से मनुष्य निश्राभावी होता है।
7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर, सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं, कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं।
8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते, क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है, अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है।
9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है।
10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।
11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदर-पूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है, उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है।
12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म-ग्रंथों के अनुसार, सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है। यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है, अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए।
13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं, श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है।
14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए, दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए, दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है।
15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं: गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल, केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है।
16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं, ऐसी धार्मिक मान्यता है, कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु-लोक को चले जाते हैं, तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं, आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।
18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।
19- सनातन धर्म के भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ
20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार-
तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है, श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है।
भोजन व पिण्ड दान- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है, श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं।
वस्त्रदान- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है।
दक्षिणा दान- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता।
21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है, इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें, इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं, पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
25- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, मित्रों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।
26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए, पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है, पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए, एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा ।
15 सितम्बर प्रतिपदा (रविवार) पहला श्राद्ध। लगातार श्राद्ध के बाद 26 सितंबर (गुरुवार) 2019  को द्वादशी व त्रयोदशी का श्राद्ध है। 28 सितम्बर (शनिवार) 2019 २८-९  पितृ-विसर्जन अमावस्या, व शनिश्चरी अमावस्या है।सभी पर पितर / पुरखे / देवता अपना आशीर्वाद सभी श्रद्धावान सनातनी, हिन्दुओ पर बनाए रखें, यही कामना है
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पितर को पुष्पांजलि
🙏पितर चरण में नमन करें,
        ध्यान धरें दिन रात ।
कृपा दृष्टि हम पर करें,
        सिर पर धर दें हाथ ॥

🙏ये कुटुम्ब है आपका,
        आपका है परिवार ।
आपके आशिर्वाद से,
        फले - फूले संसार ॥

🙏भूल -चूक सब क्षमा करें,
        करें महर भरपूर ।
सुख सम्पति से घर भरें,
        कष्ट करें सब दूर ॥

🙏आप हमारे हृदय में,
         आपकी हम संतान ।
आपके नाम से हैं जुड़ी,
         मेरी हर पहचान ॥

🙏आपका ऋण भारी सदा,
        नहीं चुकाया जाय ।
सात जनम भी कम पड़े,
       वेद पुराण बताय;॥

🙏हर दिन हर पल आपसे,
       माँगे ये वरदान ।
वंश बेलि बढती रहे,
       बढ़े मान सम्मान ॥

🙏घर पैण्डे में आप बिराजें,
      ये ही अरज करें ।
कहत भक्त हम शरण आपके,
      निशदिन मेहर करें ॥
~ पितर को नमन ~

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