क्या-क्या करें देवउठनी एकादशी को

चार महीने बाद देवउठनी एकादशी को निद्रा से जागेंगे भगवान विष्‍णु

➨ सायंकाल व्रत खोलते हुए सबसे पहले भगवान विष्णु को भोग में लगाए। तुलसी पत्ते का सेवन करें। इसके बाद ही कुछ मुंह में डालें।

धर्म नगरी /DN News (वाट्सएप-6261868110)। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है, जो इस वर्ष 8 नवंबर दिन शुक्रवार को है। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से निवृत हो जाते हैं और स्वयं को लोक कल्याण लिए समर्पित करते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इसके बाद से ही विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ होते हैं। इस दिन सभी देवता योग निद्रा से जग जाते हैं।

देवउठनी एकादशी मुहूर्त-
एकादशी तिथि का प्रारंभ: 07 नवंबर को सुबह 09 बजकर 55 मिनट से।
एकादशी तिथि का समापन: 08 नवंबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक।
देवउठनी के दिन करें भगवान विष्णु की आराधना
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवता योग निद्रा से बाहर आते हैं, ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु समेत अन्य देवों की पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह भी कराने का विधान है। इस दिन दान, पुण्य आदि का भी विशेष फल प्राप्त होता है।
देवउठनी एकादशी मंत्र-
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”


अर्थात,
“देव उठो, देव उठो! कुंआरे बियहे जाएं; बीहउती के गोद भरै।।”
देवशयनी से देवउठनी एकादशी तक नहीं होते मांगलिक कार्य

ज्ञातव्य है, कि 12 जुलाई दिन शुक्रवार को देवशयनी एकादशी थी, इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योग निद्रा में चले गए थे। देवशयनी एकादशी से चतुर्मास का प्रारंभ हो गया था, जो देवउठनी एकादशी तक रहता है। चतुर्मास में भगवान शिव सृष्टि के पालक होते हैं। इस दौरान विवाह, उपनयन संस्कार जैसे मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। साल भर में चौबीस एकादशी आती हैं, जिसमें देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी को प्रमुख एकादशी माना जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए। 


देवउठनी एकादशी की पूजा विधि- 
प्रातःकल उठकर सबसे पहले नहा लें।
फिर भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें।
घर के आंगन में भगवान के चरणों की आकृति बनाएं।
मान्यता है कि भगवान इसी रास्ते आएंगे।
फल, फूल, मिठाई इत्यादि को एक डलिया में रखें।
रात्रि में पूरे परिवार के साथ भगवान विष्णु का पूजन करें।
सायंकाल श्री_विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ कर शंख बाजाकर भगवान को आमंत्रण दें।
पूरी रात्रि श्रद्धानुसार भगवान के विभिन्न नामों का जप करें।
भगवान का संकीर्तन करें।


श्री विष्णुसहस्त्रनाम-
मंत्र विद्या सनातन हिन्दू धर्म की अलौकिक खोज एवं दुनिया को (सनातन धर्म में आस्था रखने वाले) अलौकिक देन है। पंच तत्व का सबसे सूक्ष्म तत्व आकाश है, जो परम शक्तिशाली तत्व है। हमारे मंत्रों का संबंध भी आकाश तत्व से होता है। मंत्र आकाश तत्व से निकट का संबंध रखते हैं और शरीर में स्थित शक्ति केन्द्रों को जागृत करते हैं। 
श्री हरि विष्णु की सबसे बड़ी स्तुति श्री विष्णु सहस्त्रनाम मानी जाती है, जिसमें भगवान के 1,000 नामों का वर्णन है। यह 
भगवान विष्णु के हजार नामों से युक्त एक प्रमुख स्तोत्र है। इसके अलग अलग संस्करण महाभारत, पद्म पुराण व मत्स्य पुराण में उपलब्ध हैं। 

महाभारत में अनुशासन पर्व के 149 वें अध्याय के अनुसार, कुरुक्षेत्र मे बाणों की शय्या पर लेटे हुए पितामह भीष्म ने उस समय जब युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है? तब उन्होंने बताया कि एेसे महापुरुष भगवान विष्णु हैं आैर उनके एक हजार नामों की जानकारी दी। भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यदि प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप करने से सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं। वैसे वैदिक परंपरा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना गया है, और सही रूप से मंत्रों का उच्चारण जीवन की दिशा ही बदल सकते हैं। विष्णु सहस्रनाम को अन्य नामों से जाना जाता है जैसे, शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र, इससे ये भी प्रमाणित होता है कि शिव और विष्णु में कोई अंतर नहीं है ये एक समान हैं।

स्तोत्र में दिया गया प्रत्येक नाम श्री विष्णु के अनगिनत गुणों में से कुछ को सूचित करता है। विष्णु जी के भक्त प्रात: पूजन में इसका पठन करते है। मान्यता है कि इसके सुनने या पाठ करने से मनुष्य की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

शास्त्रानुसार, उनकी उपासना से जीवन का निर्वाह सहज हो जाता है, वृहस्पति ग्रह मजबूत होता हैं एवं इसके श्लोक से प्रत्येक ग्रह एवं नक्षत्र को नियंत्रित किया जा सकता है। ज्योतिर्विदों के अनुसार, वृहस्पति दुर्बल (कमजोर) होने से पेट से संबंधित समस्या होती है। संतान उत्पत्ति में बाधा आ रही हो, तो इसका पाठ करना शुभ होता है। वैवाहिक जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए भी इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। प्रत्येक गुरुवार को पाठ आरंभ में (यदि आप प्रतिदिन करते हों तो भी) एवं पाठ के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु का ध्यान करें। मंत्र सभी को पता है- 
शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, 
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम। 
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिध्र्यानगम्यम्, 
वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।
यथासंभव पीले वस्त्र पहनकर या पीली चादर ओढ़कर श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
भोग में गुड़ एवं चने या पीली मिठाई का प्रयोग करें। वैसे श्री विष्णु सस्त्रनाम का पाठ वृहस्पतिवार को शुभ है एवं सायंकाल नमक का सेवर नहीं करना चाहिए। 


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