"शास्त्रार्थ परम्परा" भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व : राज्यपाल लालजी टण्डन

विद्वानों का "शास्त्र कला निधि" अंग-वस्त्र, श्रीफल एवं स्मृति-चिन्ह से हुआ सम्मान

भोपाल (धर्म नगरी / DN News W.app- 8109107075) : सोमवार,  13 जनवरी, 2020 

राजधानी स्थित राजभवन में पहली बार अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा किया गया। सभा में देशभर से पधारे विद्वान सम्मिलित हुए। सभा चार सत्रों में राज्यपाल लालजी टंडन की परमाध्यक्षता में आयोजित हुई। शास्त्रार्थ चार सत्र में क्रमशः - साहित्य, न्याय, ज्योतिष और व्याकरण पर आयोजित सम्पन्न हुआ, जिसमे पूर्व-पीठ एवं उत्तर-पीठ पर विराजित विद्वानों ने संस्कृत में शास्त्रार्थ किया। इन चार सत्रों की अध्यक्षता कर रहे चार अध्यक्षों ने संबंधित सत्र के पश्चात अपना मत व्यक्त किया एवं सत्र के निष्कर्ष को बताया।

अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा, राजभवन भोपाल -@DharmNagari   
 

अ.भा. शास्त्रार्थ सभा में राज्यपाल लालजी टंडन के साथ "ग्रुप फोटो" में विद्वतजन -(धर्म नगरी)

संस्कृति की निरंतरता का यही आधार है शास्त्रार्थ- 
शास्त्रार्थ सभा के उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल लालजी टंडन ने कहा,  शास्त्रार्थ की परपंरा भारतीय संस्कृति का विलक्षण तत्व है। सनातन काल से संस्कृति की निरंतरता का यही आधार है। इसी कारण भारत में बड़े से बड़े सामाजिक और वैचारिक बदलाव बिना रक्तपात के हो गए, जबकि समकालीन संस्कृतियों में रक्तपात से बदलाव होने के कारण आज उनका नामो-निशान नहीं बचा है।

भोपाल स्थित राजभवन में पहली बार अखिल भारतीय शास्त्रार्थ सभा में बोलते हुए राज्यपाल। 

शास्त्रार्थ के कारण आज भी जीवित हैं भारतीय संस्कृति सारी परपंराएँ- 
राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि भारतीय संस्कृति में अनेक संस्कृतियाँ समाहित हुई हैं। सभी के अपने-अपने दर्शन भी हैं। ये सारी परपंराएँ आज भी जीवित हैं, क्योंकि शास्त्रार्थ के द्वारा इनमें समय-समय पर तर्क की कसौटी पर सामाजिक और धार्मिक परिवर्तन होते रहे। शास्त्रार्थ हमारी संस्कृति की अद्भुत धरोहर है। इसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है। राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संस्कृति में ब्रम्हांड में शांति और ज्ञान की प्रार्थना की जाती है। यह पूर्णत: तार्किक आधार पर है। ज्ञान होगा, तभी शांति होगी। यह तभी होगा जब सम्पूर्ण ब्रम्हांड में ज्ञान और शांति हो।

महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन  के कुलपति डॉ. पंकज लक्ष्मण जानी।

शिक्षा प्रणाली के विशिष्ट गुणों का स्मरण कराता है गुरूकुल-
कार्यक्रम में प्रवेश ऑन-लाइन दिया गया था, जिससे प्राप्त प्रविष्टियों का चयन किया गया। राज्यपाल ने कार्यक्रम की सूचना पर स्व-प्रेरणा से उपस्थित दर्शकों की बड़ी संख्या को शुभ-संकेत बताया। उन्होंने कहा,  भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ें हमारे अंदर रची-बसी हैं। उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि का गुरूकुल भारतीय शिक्षा प्रणाली के विशिष्ट गुणों का स्मरण कराता है। अनेक विद्याओं और कलाओं के विशेषज्ञ कृष्ण ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी, जो बताता है कि प्राचीन शिक्षा प्रणाली में समग्र शिक्षा की व्यवस्था थी। समान रूप से राजपरिवार और सामान्य निर्धन परिवार के विद्यार्थी एक-साथ एक समान शिक्षा ग्रहण करते थे। सभा के अंत में महामहिम ने शास्त्रार्थ सभा में विद्वानों को 'शास्त्र कला निधि' से सम्मानित किया और उन्हें अंग वस्त्र, श्रीफल एवं स्मृति-चिन्ह भेंट किये।

महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के रजिस्ट्रार प्रो तुलसी दास परौहा

शास्त्रार्थ सभा पर अपना मत व्यक्त करते ज्योतिषाचार्य पं. विनोद गौतम (ज्योतिष मठ संस्थान भोपाल) 

सभा में न्याय, ज्योतिष, साहित्य और व्याकरण पर चिंतन- 
शास्त्रार्थ सभा में साहित्य, न्याय, ज्योतिष और व्याकरण विषय के अंतर्गत नित्य और अनित्य के स्वरूप पर चिंतन किया गया। व्याकरण विषय के शास्त्रार्थ में शब्द की नित्य और अनित्य पर पूर्व और उत्तर पक्ष द्वारा तर्कसम्मत विचार प्रस्तुत किये गए। ध्वनि को अनित्य और शब्द को नित्य का भेद शास्त्रार्थ में प्रतिपादित किया गया। शास्त्रार्थ सभा में न्याय, ज्योतिष, साहित्य और व्याकरण के अंतर्गत नित्य और अनित्य के स्वरूप पर चिंतन किया गया। साहित्य विषय के शास्त्रार्थ में काव्य लक्षणा पर पूर्व पक्ष और उत्तर पक्ष द्वारा तर्क-सम्मत विचार प्रस्तुत किये गये।

विमर्श में, शब्द काव्य है अथवा  गुण काव्य है, इस पर विद्वानों द्वारा कारण सहित विचार प्रस्तुत किये गये। ज्योतिष शास्त्रार्थ में काल तत्व पर विचार किया गया। काल के स्वरूप की व्याख्या पर विद्वतजन ने विमर्श किया। न्याय विषय के शास्त्रार्थ में परमाणुवाद पर विमर्श किया गया। तर्क के आधार पर पूर्व पक्ष द्वारा बताया गया कि परमाणु के बाद विभाजन नहीं हो सकता इसलिए वह नित्य है। उत्तर पक्ष द्वारा कहा गया कि जो अदृश्य और अविभाज्य है, वह अणु नहीं हो सकता।

कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति डॉ. पंकज लक्ष्मण जानी ने दिया। उन्होंने कार्यक्रम और शास्त्रार्थ की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो तुलसी दास परौहा  ने विद्वतजनों का आभार माना।
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