गंगा सप्तमी : पित्तरों के तर्पण से मुक्ति का दिन

गंगा सप्तमी अर्थात गंगोत्पत्ति दिवस

शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, कथा, मंत्र और मां गंगा की आरती


धर्म नगरी / DN News 
गंगा सप्तमी के दिन स्नान और दान का विशेष महत्व  है। बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को पड़ने वाली गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने के बाद पित्तरों का तर्पण करने से उन्हें भी मुक्ति की प्राप्ति होती है। आप भी जाने वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी को पड़ने वाले "गंगा सप्तमी" का शुभ मुहूर्त, गंगा सप्तमी का महत्व, गंगा सप्तमी की पूजा विधि, गंगा सप्तमी की कथा, गंगा सप्तमी के मंत्र और मां गंगा की आरती।
संगम, प्र
यागराज में स्नान करते श्रद्धालु (फाइल फोटो-.धर्म नगरी) 
 

गंगा सप्तमी 2020 शुभ मुहूर्त-
गंगा सप्तमी मध्याह्न मूहूर्त - सुबह 10 बजकर 51 मिनट से दोपहर 2 बजकर 38 मिनट तक

गंगा सप्तमी का महत्व-
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार बैसाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थी। इसी कारण इस दिन को गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई वह दिन गंगा जयंती और जिस दिन गंगा जी पृथ्वीं पर अवतरित हुई वह दिन गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य के जीवन के सभी पाप धूल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ज्योतिर्विद पं. रामपाल भट्ट के अनुसार, गंगा स्नान का शास्त्रों में बहुत अधिक महत्व बताया गया है, लेकिन इस दिन गंगा जी में डुबकी लगाने से मनुष्य अपने जीवन के सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है। गंगा सप्तमी के दिन गंगा मंदिरों के अलावा अन्य मंदिरों में भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि गंगा जी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है। इस दिन दान पुण्य को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन किया दान कई जन्मों के पुण्य के रूप में मनुष्य को प्राप्त होता है।

गंगा सप्तमी पूजा विधि-
1.गंगा सप्तमी के दिन साधक को सुबह प्रात:काल गंगा तट पर जाकर गंगा नदी में स्नान करने का विधान है।
2. इसके बाद उसे मां गंगा को पुष्प अर्पित कर गंगा नदी के तट पर दीपक प्रजवल्लित करना चाहिए।
3. दीपक प्रज्वल्लित करने के बाद गंगा सप्तमी की कथा सुने या पढ़ें।
4. किसी योग्य पुरोहित के माध्यम से गंगा नदी के घाट पर अपने पितरों का तर्पण करना चाहिए।
5. इसके बाद किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को अपने पितरों के नाम से दान अवश्य देना चाहिए।
6. दान देने के बाद गाय को भोजन अवश्य कराएं। क्योंकि गाय में सभी देवी देवताओं का वास माना जाता है।
7. इसके बाद शाम के समय फिर से गंगा घाट पर जाए।
8 गंगा घाट पर जाने के बाद फिर से गंगा जी का विधिवत पूजन करें।
9.पूजन करने के बाद मां गंगा की आरती उतारें।
10. इसके बाद मां गंगा से अपने पापों के लिए श्रमा अवश्य मांगे।

गंगा सप्तमी की कथा-
गंगा सप्‍तमी के विषय में जो कथा प्रचलित है वह इस प्रकार है। एक बार गंगा जी तीव्र गति से बह रही थी। उस समय जह्नु भगवान के ध्यान में लिन थे। उस समय गंगा जी भी अपनी गति से वह रही थी । उस समय जह्नु ऋषि के कमंडल और अन्य सामान भी वहीं पर रखा था । जिस समय गंगा जी जह्नु ऋषि के पास से गुजरी तो वह उनका कमंडल और अन्य सामान भी अपने साथ बहा कर ले गई जब जह्नु ऋृषि की आंख खुली तो अपना सामान न देख वह क्रोधित हो गए।
उनका क्रोध इतना गहरा था कि अपने गुस्से में वे पूरी गंगा को पी गए। जिसके बाद भागीरथ ऋृषि ने जह्नु ऋृषि से आग्रह किया कि वह गंगा को मुक्त कर दें।जह्नु ऋृषि ने भागीरथ ऋृषि का आग्रह स्वीकार किया और गंगा को अपने कान से बाहर निकाला। जिस समय घटना घटी थी । उस समय वैशाख पक्ष की सप्तमी थी । इसलिए इस दिन से गंगा सप्तमी मनाई जाती है। इसे गंगा का दूसरा जन्म भी कहा जाता है।अत: जह्नु की कन्या होने की कारण ही गंगाजी को 'जाह्नवी' कहते हैं।

गंगा सप्तमी के मंत्र-
1. गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
    नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।
2. गंगागंगेति योब्रूयाद् योजनानां शतैरपि ।
    मुच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णुलोकं सगच्छति। तीर्थराजाय नमः
3. गांगं वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतम् ।
   त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ।।
4. ॐ नमो गंगायै विश्वरुपिणी नारायणी नमो नम: ||

मां गंगा की आरती-
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
चंद्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता।
यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।
आरति मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता।
सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता।
ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता।।

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