इस बार 148 दिन का होगा चातुर्मास

इस बार पांच माह का चार्तुमास एक जुलाई से 
- अधिक मास और लीप इयर एक ही साल में
- 160 साल बाद बना योग 


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चातुर्मास का आरंभ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देवशयनी एकादशी भी कहते है, एक जुलाई से होगा एवं 25 नवंबर तक रहेगा। इस प्रकार एक जुलाई से 25 नवम्बर तक इस बार चातुर्मास 148 दिन तक का होगा। लगभग 5 माह तक। 


इस वर्ष आश्विन मास के बाद 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिकमास रहेगा, जिसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। वहीं 25 नवंबर कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को चातुर्मास की समाप्ति होगी। देवशयनी एकादशी को पद्मा एकादश और पद्मनाभा एकादशी नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता एवं पद्मपुराण के अनुसार, आषाढ़ महीने की एकादशी से कार्तिक महीने की एकादशी तक भगवान विष्णु (4 माह तक) योग निंद्रा में चले जाते हैं। 

एक जुलाई 2020 (बुधवार) से गृहस्थ लोगों के लिए चातुर्मास नियम प्रारंभ हो रहे हैं। पद्मपुराण के अनुसार ये नियम इस प्रकार हैं-
- चातुर्मास की अवधि में भूमि पर शयन करना 
- पलाश के पत्तों पर भोजन करना 
- ब्रम्हचर्य का पालन करना 
- श्रावण (सावन) मास में साग, भाद्रपद (भादौ) में दही, आश्विन में दूध एवं कार्तिक में दाल नहीं खाता, वह भक्त पापमुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है 


चातुर्मास के नियम पद्मपुराण में
चातुर्मास के नियम पद्मपुराण में
देवशयनी से देव उठनी तक- 
देवशयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी के बीच का समय चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान पृथ्वी का भार देवाधिदेव महादेव के पास रहता है। मान्यता है कि इन चातुर्मास में देवताओं के साथ श्री हरि विष्णु शयन कालांश में संत, ऋषि, मुनि एक ही जगह पर ठहर कर साधना करते हैं। यह समय साधना के साथ पुण्य अर्जन करने का होता है। इस दौरान धार्मिक कार्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। चातुर्मास में श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना हजारों गुना फल प्रदान करता है। चातुर्मास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। वहीं धार्मिक कार्यों का हवन पूजन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

अधिक मास की गणना-
पंचाग का 13वां माह पुरुषोत्तम मास कहलाता है। धर्म नगरी के सलाहकार एवं ज्योतिष मठ संस्थान भोपाल के पंचांगकर्ता व् ज्योतिषाचार्य पं. विनोद गौतम के अनुसार, आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक सूर्य की संक्रांति नहीं होगी । मान्यता है कि जिस महीने में सूर्य की संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता है। भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। यह मास सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के मध्य लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन साल में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पूरा करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र माह अस्तित्व में आता है और इसे (अतिरिक्त माह) होने के कारण अधिकमास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। भारत में अधिक मास की अवधि में पूजा-पाठ, भगवत कथा व्रत-उपवास, जप जैसे धार्मिक कार्य किए जाने का विधान है।

5 महीने का चातुर्मास क्यों-
पंचांग के अनुसार इस साल 2020 में दो आश्विन महीने हैं। आश्विन महीना 3 सितंबर से 31 अक्टूबर तक रहेगा। इन दो महीनों में 18 सिंतबर से 16 अक्टूबर का महीना अधिक मास होगा। पितृमोक्ष अमावस्या के बाद 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक पुरुषोत्तम मास रहेगा। यही वजह है कि इस साल 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि मनाई जाएगी।

विलंब से आएंगे त्यौहार-
इस वर्ष 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक आश्विन अधिक मास भी रहेगा, याने दो आश्विन मास। यही कारण है कि श्राद्ध पक्ष के बाद मनाए जाने वाली नवरात्रि, दशहरा ,दीपावली जैसे त्यौहार 20 से 25 दिन देरी से मनाए जाएंगे। श्राद्ध पक्ष और नवरात्रि में लगभग एक महीने का अंतर होगा। दशहरा 26 अक्टूबर और दीपावली का त्योहार 14 नवंबर को मनाया जाएगा। वहीं देव प्रबोधिनी एकादशी (देव उठनी ग्यारस) 25 नवंबर को मनाई जाएगी । ये संयोग 19 साल बाद आया है जिसमें आश्विन मास पुरुषोत्तम मास के रूप में आया है। अगला आश्विन मास में आने वाले पुरुषोत्तम मास 19 साल बाद 2039 में में आएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 19 साल पहले साल 2001 में आश्विन माह का पुरुषोत्तम मास पड़ा था। अंग्रेजी कैलेंडर का लीप ईयर और आश्विन के अधिकमास का योग 160 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 1860 में ऐसा पुरुषोत्तम मास आया था, जब उसी साल लीप ईयर भी था।

क्या करें अधिक मास में- 
सभी शुभ कार्यों का सनातन हिन्दू धर्म में निर्धारण ग्रहों की चाल एवं उनकी स्थिति देखकर करने का विधान है, जिससे ग्रहों का शुभ फल जातक को मिले तथा काम भी बिना किसा बाधा के पूरा हो सके। इस कारण अधिकमास में मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, मलमास के बाद से विवाह आदि मांगलिक कार्य प्रारंभ किए जा सकते हैं। अधिक मास में देवप्रतिष्ठा, तीर्थ यात्रा, गृह निर्माण आरंभ, विवाह, जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार,अन्नप्राशन नहीं किए जाते हैं। अधिकमास या पुरुषोत्तम मास साधना का समय होता है। मान्यता है कि आत्मा के कारक ग्रह सूर्य इस दौरान मुक्ति के कारक ग्रह गुरु की राशि में होते हैं। इसलिए इसे आत्मशोधन का समय कहा गया है। 

अधिक मास में शुभ फल की प्राप्ति हेतु क्या करें- 
पुरुषोत्तम मास या अधिकमास में जो भी धार्मिक कार्यों किए जाते हैं, वो अन्य किसी महीने में किए गए पूजा-पाठ से 10 गुना अधिक फल देते हैं। अधिकमास में विशेष कर रोग निवृत्ति के अनुष्ठान, ऋण चुकाने का कार्य, शल्य क्रिया, संतान के जन्म संबंधी कर्म, सूरज पूजा,गर्भाधान, पुंसवन, सीमांत संस्कार किए जा सकते हैं। पुरुषोत्तम माह में यात्रा करना, साझेदारी के कार्य करना, मुकदमा लगाना, बीज बोना, वृक्ष लगाना, दान देना, सार्वजनिक हित के काम, सेवा कार्य करने में किसी प्रकार का दोष नहीं है। इस माह में व्रत, दान, जप करने का अवश्य फल प्राप्त होता है।

क्या करें, क्या ना करें-
चातुर्मास की अवधि में सावन माह में साग, हरी सब्जियां, भादों में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दालें खाना वर्जित है। वहीं दूसरों की निंदा, धोखा देना वर्जित है। चातुर्मास में शरीर पर तेल नहीं लगाना चाहिए। इस दौरान कांसे के बर्तन में भोजन नही करना चाहिए। पलंग पर न सोकर, जमीन पर बिस्तर लगाकर सोएं। चातुर्मास में मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज का प्रयोग वर्जित है। सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करने का विधान है। 
चातुर्मास में भगवान की आराधना करें,ब्रह्मचर्य का पालन करें, ब्राह्मणों को स्वर्ण या पीले रंग की वस्तुओं का दान करें, दीपदान करें, भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करें, कमल पुष्प से उनका पूजन करने का विधान है। मान्यता है कि चातुर्मास के चार महीनों में व्यक्ति जिस चीज का त्याग करता है, वह वस्तु उसे अक्षय रूप में दोबारा प्राप्त होती है। चातुर्मास व्रत धारण करने वाले लोग केवल एक समय ही भोजन करते हैं। 


ये भी पढ़ें-
संबंधित समाचार ( चातुर्मास का अंतिम दिन देवउठनी एकादशी) 

http://www.dharmnagari.com/2019/11/DevUthniEkadashiDevotthanEkadashi.html


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