नेपाल में हमारी विदेश नीति असफल क्यों ?

नेपाल में हमारी विदेश नीति असफल क्यों ?

...बड़ी संख्या में भारत आने वाले नेपाली भारत में प्रापर्टी खरीद सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं, ऊंचे पदों पर पहुंच सकते हैं, लेकिन वे आईएएस, आईएफएस नहीं बन सकते और चुनाव नहीं लड़ सकते। संधि में कहा गया था, कि जो हक नेपालियों को भारत में मिला है, वहीं भारतीयों को नेपाल में मिले। लेकिन नेपाल में ये हक भारतीयों को नहीं मिला। इसलिए संधि में जो समानता की बात होती है, वो एकतरफा है।

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जिस नेपाल में स्टील का एक कारखाना तक नहीं है, वहां गोली-बारुद, हथियार, बंदूकें कहां से आ रही है, ये किसी को बताने की जरूरत नहीं है। हजारों की संख्या में नेपाली भारत में रहकर काम करते हैं और नेपाली परिवारों को समृद्ध बनाते हैं। भारत-नेपाल तनाव उन बेरोजगारों और गरीब नेपाली परिवारों के जीवन-यापन में भी संकट उत्पन्न करेगा। नेपाल को गलतफहमी है, कि चाइना उसके देश में बेरोजगारी खत्म कर देगा। चीन तो ये सब कर ही इसलिए रहा है, कि उसकी अपनी 35 प्रतिशत आबादी भीषण बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रही है। घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए चीन ने सीमा पर विवाद खड़े करके चीनी नागरिकों का ध्यान मुख्य मुद्दों से भटकाने की कोशिश की है। वो क्या नेपाल की मदद करेगा ?
नेपाल एवं भारत के प्रधानमंत्री -(फाइल फोटो)
नेपाल की परंपरा रही है, कि वहां के प्रधानमंत्री का विदेशी दौरा हमेशा भारत से ही शुरू होता है। इन दिनों चीन की शह पर नाच रहे नेपाल की जमीन को ड्रेगन उसी तरह कब्जाने में जुटा है, जिसे लिए वह कुख्यात रहा है। नेपाल की संविधान सभा के चुनावों को जो परिणाम आया, उसमें नेपाल के अंदर और तराई के पास बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। माओवादी तूफान की तरह निर्वाचित होकर भारी संख्या में सत्ता में आ गए। इसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई। ये भारत के लिए चिन्ता का विषय है। 

नेपाल भारत का निकटतम पड़ोसी है और भारत के साथ सैकड़ों वर्ष पुराने सांस्कृतिक संबंध हैं। नेपाल और भारत की सीमा खुली हुई है। हजारों लोग नेपाल से भारत और भारत से नेपाल आ-जा सकते हैं। शादी-विवाह के रिश्ते भी नेपाल और भारत के बीच हैं। हाल की घटनाओं ने भारत-नेपाल संबंधों ने तनाव पैदा किया है। पर्दे के पीछे से चीन माओवादियों की पीठ ठोंक रहा है। चीन का उद्देश्य त्रिभुवन से तिरुपति तक को लाल बनाना है। नेपाल का जो त्रिभुवन राजपथ है, उससे लेकर बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र के कोरीडोर में माओवादियों का ही राज रहेगा। 

नेपाल की कुल आबादी का 40 प्रतिशत तराई क्षेत्र है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को मधेसी कहते हैं। ये मधेसी शत प्रतिशत भारत के मूल निवासी हैंये लोग सैकड़ों वर्ष पहले बिहार तथा उत्तर प्रदेश से नेपाल गए और फिर वहीं बस गए। माओवादी मधेसियों को तरह-तरह से तंग करके नेपाल से भगाना चाहते हैं। 

पाकिस्तान, चीन और नेपाल के साथ अक्सर भारत का सीमा विवाद सामने आता रहा है, लेकिन इस समय भारत का तीनों पड़ोसियों से एकसाथ सीमा पर उलझना बड़ी चुनौती बन गया है। ताजा मामला चीन का है, जहां गलवान घाटी में विवाद बातचीत से होते-होते झड़प तक पहुंच गया। फलस्वरूप, दोनों सेनाएं आमने-सामने खड़ी तैयार है। अक्साई चीन में दोनों देशों के बीच लंबे समय से टकराव की स्थिति बनी हुई है। पिछले कुछ महीनों में भारत की ओर से नेपाल की सीमा के पास सड़क निर्माण के काम की वजह से तनाव बढ़ा है। यहां काला पानी, लिपिया धुरा और लिपुलेक को लेकर दोनों देशों के बीच टकराव है। 

नेपाल का कहना है, अनुच्छेद-370 हटाने के बाद भारत की ओर से जारी किए गए नक्शे में विवादित जगहों को भारत के हिस्से में दिखाया गया है। इसके बाद नेपाल ने इन तीनों इलाकों को अपने हिस्से में दिखाते हुए देश का नया नक्शा प्रकाशित किया। इस नक्शे को नेपाली संसद ने मंजूरी दी। 
भारत और पाकिस्तान में भी कश्मीर को लेकर हमेशा तनाव रहा है। कश्मीर से 370 हटाए जाने के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ा है। इस तरह तीनों पड़ोसियों के साथ भारत सीमा-विवाद को लेकर जूझ रहा है। बांग्लादेश से भी सीएए और एनआरसी के मसले पर संबंधों में खटास आ गई थी। नागरिकता कानून को लेकर हो रहे विरोध-प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन और गृहमंत्री असद उज्जमान खान ने भारत का दौरा रद्द कर दिया था। 

पूरा विश्व चीनी वायरस कोरोना से जूझ रहा है। कोरोना वायरस से लड़ाई और गिरती अर्थव्यस्था के बीच सीमा पर पड़ोसियों से तनाव भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है। ये भारत की विदेश-नीति की परीक्षा का समय है। पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा पर जो स्थिति है, वो पिछड़े 30-31 वर्षों से चल रही है। चीन के साथ वर्तमान में भारत का जो विवाद है, वो बहुत व्यापक है। करीब 2-3 सौ किलोमीटर के दायरे में है। चीन जहां पर बैठा हुआ है, वह जगह उसने हथियाई है। वहां वह पहले नहीं था। नेपाल की बात करें, तो भारत और नेपाल के रिश्तों में खटास 2015 में ही आई गई थी, जब भारत में ब्लॉकेड किया था। लेकिन नेपाल की अकड़ के पीछे चीन का प्रोत्साहन एक बड़ी वजह है। नेपाल में एक नया राष्ट्रवाद पैदा हुआ है, जिसमें एक बड़ा अंश भारत-विरोधी है। नेपाल के राजनीतिक कारण भी हैं।

नेपाल के प्रधानमंत्री का चीन की तरफ झुकाव और भारत विरोधी लहर है। भारत को तीनों देशों से अलग-अलग तरीकों से बातचीत शुरू करनी पड़ेगी। नेपाल के मामले में भारत के पास जो प्रमाण हैं, वो काफी पुख्ता और मजबूत हैं। इससे नेपाल का पक्ष कमजोर लगता है। 

भारत और नेपाल के बीच 1950 ई. की द्वि-पक्षीय संधि की समीक्षा की मांग नेपाल की ओर से उठाई गई। ये नेपाल ही बताएगा, कि वह संधि में क्या बदलाव चाहता है। इस संधि में दो पहलू हैं। एक में भारत के हित और सुरक्षा ख्याल रखा गया है। दूसरा पहलू, नेपाल के हितों का है। इसका प्रमाण ये है, कि बड़ी संख्या में भारत आने वाले नेपाली भारत में प्रापर्टी खरीद सकते हैं, नौकरी कर सकते हैं, व्यापार कर सकते हैं, ऊंचे पदों पर पहुंच सकते हैं, लेकिन वे आईएएस, आईएफएस नहीं बन सकते और चुनाव नहीं लड़ सकते। संधि में कहा गया था- जो हक नेपालियों को भारत में मिला है, वहीं भारतीयों को नेपाल में मिले, लेकिन नेपाल में ये हक भारतीयों को नहीं मिला। इसलिए संधि में जो समानता की बात होती है, वो एकतरफा है। 

भारत को अपना हित देखना है, तो वो कहेगा, कि जो हम आपके लिए करते हैं, आप भी हमारे नागरिकों के लिए करिए। ये नेपाल के लिए संभव नहीं। भारत चाहेगा, नेपाल ऐसा कोई काम न करे, जिससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो, क्योंकि नेपाली आसानी से भारत में आ सकते हैं। अगर आतंकवादियों ने फर्जी नेपाली पहचान-पत्र हासिल कर लिया, तो निश्चित ही भारत की सुरक्षा को खतरा होगा। भारत को दोनों देशों के विकास को साथ लेकर पहल करनी चाहिए। इसके स्पष्ट संकेत प्रधानमंत्री मोदी ने दिए हैं। 

नेपाल में बढ़ते विरोध-प्रदर्शन के बीच नेपाली प्रधानमंत्री ओली ने कहा, कि काला पानी, नेपाल-भारत और तिब्बत के बीच का ट्री-जंक्शन है। भारत को तत्काल अपने सैनिक वहां से हटा लेना चाहिए। ओली ने कहा, हम लोग अपनी एक इंच जमीन भी किसी के कब्जे में नहीं रहने देंगे। भारत यहां से तत्काल हटे। इसको लेकर हफ्तों से नेपाल में भारत विरोधी प्रदर्शन हुए। काला पानी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में 35 वर्ग किमी. जमीन है। यहां इंडो-तिब्बत बार्डर पुलिस बल के जवान तैनात हैं। काली नदी का उद्गम स्थल काला पानी ही है। भारत ने इस नदी को भी नए नक्शे में शामिल किया है। नेपाल का मानना है, कि भारत की मौजूदगी सुगौली-संधि का उल्लंघन है। 

भारत और नेपाल को एक मैत्रीपूर्ण तरीके सेए आपसी वार्ता से इस विवाद से हल कर लेना चाहिए। भारत-नेपाल के रिश्ते के बारे में सीमा विवाद को वार्ता के जरिए हल किए जाने की जनमानस में मांग है। रोटी-बेटी के रिश्तों वाला नेपाल और भारत क्या चीन के कहने से आपस में लड़ लेंगे ? नेपाल के प्रधानमंत्री चीन की गोद में बैठकर चीन की भारत-विरोधी साजिश को पनपने के लिए माहौल दे रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में लगातार यूनीफाइड नेशनल फ्रंट के बड़े नेताओं ने काठमांडु स्थित पाकिस्तान दूतावास के साथ-साथ चीनी दूतावास के साथ लंबी बैठकें और मुलाकात कीं। जब भारत चीन के साथ लद्दाख को लेकर बातचीत कर रहा है, उसी दौरान नेपाल का भारत के साथ सीमा-विवाद को उठाना एक बड़ी साजिश का पर्दाफास करता है। नेपाल ने जबसे भारत के साथ सीमा-विवाद खड़ा किया है, तबसे चाइना के हौसला बुलंद हो गए हैं। 

भारत सरकार को पारंपरिक पड़ोसी नेपाल से वार्ता के जरिए तमाम विवाद सुलझाने चाहिए, लेकिन चीन हमारा विरोधी देश है। उससे उसी भाषा में बात की जानी चाहिए, जिसके लायक हम उसे समझते हैं। नेपाल भारतीय आराध्य गौतम बुद्ध की जन्मस्थली है। सीता की जन्मभूमि जनकपुर भी नेपाल में है। सैकड़ों-हजारों साल के संबंध किसी तीसरे देश के भड़काने के कारण समाप्त न होने पाएं बल्कि इन रिश्तों को इनकी पुरानी गरिमा की याद दिलाते हुए वार्ता के जरिए पुनर्जीवित किया जाए। नेपाल की आपातकाल में, भूकंप के दौरान खुले दिल से भारत ने मदद उपलब्ध कराई थी। आज भी भारत नेपाल के लिए सहायक देश है। पर नेपाल की आंखों में चीन का चश्मा चढ़ा हुआ है। 
लेखक- अनुराधा त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल।
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