वह अधिकारी जिसने इंदिराजी का विश्वास जीता, उतना ही है मोदीजी को उनपर है विश्वास

"इंडियन जेम्स" जिससे कांपते हैं दुश्मन देश 

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार  (NSA) अजित डोभाल ने जितना विश्वास इंदिराजी का जीता, उतना ही विश्वास उन्हें मोदीजी का प्राप्त है। अजित डोभाल भारत के एकमात्र ऐसे नौकरशाह हैं, जिन्हें "कीर्ति चक्र" (जिसे केवल सेना को दिया जाता है) और "गैलेंट्री अवार्ड" से सम्मानित किया गया है। डोभाल ऐसे कई खतरनाक कारमानों को अंजाम दे चुके हैं, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के कारनामें भी फीके लगते हैं। पीओके में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। 
#PM नरेंद्र मोदी, NSA अजित डोभाल परस्पर चर्चा करते हुए @DharmNagari  
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भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के पद पर 30 मई 2014 से कार्यरत अजित कुमार डोभाल का जन्म 20 जनवरी 1945 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ। केरल कैडर के 1968 बैच में आईपीएस चुने गए अजित डोभाल की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर के मिलिट्री स्कूल से और उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए के साथ पूरी हुई। अजित डोभाल की जब बात होती है, तो देश के संकट के समय संकट-मोचक के रूप में होती है। एक बहुत शक्तिशाली, कूटनीतिज्ञ और दुश्मन को परास्त करने के तमाम हथकंडों से लैस व्यक्तित्व की छवि बरबस ही सामने आ जाती है।
PM नरेंद्र मोदी एवं NSA अजित डोभाल  
भारत के प्रधानमंत्री का अजित डोभाल पर अटूट विश्वास है। डोभाल की पहचान मुख्य रूप से एक तेज-तर्रार जासूस और रक्षा विशेष की रही है। बात 1988 की है, जब स्वर्ण मंदिर की है, जब एक जमाने में जनरैल सिंह भिंडरावाले की तूती बोलती है। वहां अमृतसर के लोगों और अलगाववादियों ने एक रिक्शा वाले को बहुत तन्मयता से रिक्शा चलाते देखा। वो इस इलाके में नया था। वैसा ही लग रहा था, जैसा अन्य रिक्शे वाले लगते हैं। फिर भी खालिस्तानियों को उसपर कुछ-कुछ शक हो चला था। स्वर्ण मंदिर की पवित्र दीवारों के आसपास खुफियातंत्र के पैतरों और जवाब पैतरों के बीच उस रिक्शा वाले को खालिस्तानियों को ये विश्वास दिलाने में 10 दिन लग गए, कि उसे ISI ने उनकी मदद के लिए भेजा है।
केंद्रीय मंत्री एस.जयशंकर, NSA अजित डोभाल PM मोदी के संग। यह फोटो
सोशल मीडिया में "देश के तीन शेर" के शीर्षक से बहुत वायरल हुई @DharmNagari 
  
आप्रेशन ब्लैक-थंडर से दो दिन पहले वो रिक्शा वाला स्वर्ण मंदिर के अहाते में घुसा और अलगाववादियों की असली पोजीशन, संख्या और तैयारियों की असली पोजीशन के बारे में महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी लेकर बाहर आया। वो रिक्शावाला और कोई नहीं, भारत सरकार के वर्तमान सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल थे। नाम न बताने की शर्त पर इंटेलीजेंट ब्यूरो के पूर्व अधिकारी बताते हैं, इस आप्रेशन में बहुत बड़ा जोखिम था, लेकिन हमारे सुरक्षा बलों को खालिस्तानियों की योजना का पूरा खाका अजित डोभाल ने ही उपलब्ध कराया। हथियारों और लड़ाकों के छिपे होने की सटीक जानकारी डोभाल ही निकालकर लाए थे। 
PM के साथ चर्चा...
डोभाल के मातहत काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, हम लोगों पर कोई ड्रेस कोड लागू नहीं था। हम लोग कुर्ता-पैजामा, लुंगी और साधारण चप्पल पहनकर घूमा करते थे। सीमा पार जासूसी के लिए जाने से पहले हम लोग डाढ़ी बढ़ाते हैं। उन्होंने बताया, अंडर कवर रहना सीखने के लिए हम लोग जूते की मरम्मत का काम भी सीखते थे, ताकि हम टारगेटेड इलाके में मोची का काम करते हुए खुफिया जानकारी जमा कर सकें। डोभाल ने विदर्भ मैनेजमेंट एसोशिसन के समारोह में भाषण देते हुए एक कहानी सुनाई थी। लाहौर में औलिया की एक मजार है, जहां बहुत लोग आते-जाते हैं। मैं वहां एक मुस्लिम शख्स के साथ रहता था। मैं मजार के सामने से गुजर रहा था और उस मजार में चला गया। वहां कोने में एक शख्स बैठा था, जिसकी लंबी सफेद दाढ़ी थी। उसने मुझसे छूटते ही सवाल किया, क्या तुम हिन्दू हो ? डोभाल ने उन्हें बताया, कि नहीं। डोभाल के मुताबिक उसने कहा, मेरे साथ आओ। फिर वो मुझे मजार के पीछे की तरफ एक छोटे से कमरे में ले गया और दरवाजा बंद करके कहा, देखो तुम हिन्दू हो। डोभाल ने उनसे पूंछा, कि आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ? तब उसने कहा, आपके कान छिदे हुए हैं। अजित ने कहा, हां बचपन में मेरे कान छेदे गए थे, लेकिन बाद में मैं कनवर्ट हो गया। उस व्यक्ति ने कहा, तुम बाद में भी कनवर्ट नहीं हुए। तुम इसकी प्लास्टिक सर्जरी करवा लो, नहीं तो लोगों को शक हो जाएगा।
NSA अजित डोभाल 
डोभाल आगे बताते हैं, उसने मुझसे कहा, तुम्हें पता है, मैंने कैसे तुम्हें पहचाना ? उसने कहा, मैं भी हिन्दू हूं। उसने एक अलमारी खोली जिसमें शिव और दुर्गा की एक प्रतिमा रखी थी। उसने कहा, देखो मैं इनकी पूजा करता हूं, लेकिन बाहर लोग मुझे एक मुस्लिम धार्मिक शख्स के रूप में देखते हैं। डोभाल के एक और साथी सीआईएसएफ के पूर्व महानिदेशक केएन सिंह कहते हैं, इंटेलीजेंट ब्यूरो में मेरे ख्याल से आपे्रशन के मामले में अजित डोभाल से अच्छा अफसर कोई नहीं था। अजित डोभाल 1972 में आईबी में काम करने दिल्ली आ गए थे और दो साल बाद ही वो मिजोरम चले गए। वहां वह पांच साल रहे। इन पांच सालों में मिजोरम में जो भी राजनीतिक परिवर्तन आया, उसके श्रेय अजित डोभाल को मिला। डोभाल को जानने वालों का मानना है, 2005 में रिटायर्ड होने के बावजूद भी खुफिया हलको में बहुत सक्रिय थे।
NSA अजित डोभाल विवेकानंद जयंती पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 
2005 में डोभाल ने दाऊद इब्राहिम पर हमला करवाने की योजना बनाई थी, लेकिन मुंबई पुलिस के कुछ अधिकारियों की वजह से इसे अंतिम समय पर अंजाम नहीं दिया जा सका था। अस्सी के दशक में डोभाल की वजह से भारतीय खुफिया एजेंसी मिजोरम में पृथकतावादियों के शीर्ष नेतृत्व को भेदने में सफल रही और चोटी के चार अलगाववादी नेताओं ने भारतीय सुरक्षा एजेंसी के सामने हथियार डाल दिए थे। पाकिस्तान में सात साल तक धर्म बदलकर रहे अजित डोभाल ऐसे भारतीय खुफिया अधिकारी हैं, जो खुलेआम पाकिस्तान को एक और मुंबई के बदले बलूचिस्तान छीन लेने से परहेज नहीं करते। जम्मू-कश्मीर में घुसपैठियों और शांति के पक्षधर लोगों के बीच काम करते हुए कई आतंकवादियों को सरेंडर करवाया। पुलवामा के बाद सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान वे सबसे अधिक चर्चा में रहे।
NSA अजित डोभाल
NSA अजित डोभाल ने जितना विश्वास इंदिराजी का जीता, उतना ही विश्वास उन्हें मोदीजी का प्राप्त है। अजित डोभाल भारत के एकमात्र ऐसे नौकरशाह हैं, जिन्हें कीर्ति चक्र, जिसे केवल सेना को दिया जाता है और गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है। डोभाल ऐसे कई खतरनाक कारमानों को अंजाम दे चुके हैं, जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के कारनामें भी फीके लगते हैं। पीओके में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही। 

वर्तमान में गलवान घाटी में 62 दिन बाद चीनी सेना (पीएलए) ने गलवान को तब छोड़ा, जब एनएसए डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से सीधी बात की। इसके पहले डोकलाम, देनपांग में भी चीन को अजित डोभाल के कारण पीछे हटना पड़ा। पिछले 62 दिनों से तमाम प्रयासों के बावजूद चीन की सेना भारत की जमीन पर जबरन कब्जा जमाने की चेष्टा कर रही थी। अजित डोभाल से चीनी विदेश मंत्री ने माना, कि दोनों सेनाओं को पूरी तरह हटाकर शांति की बात हो। ये भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है, जिसका सेहरा भारतीय जेम्स बांड अजित डोभाल के सिर बंधा।
-अनुराधा त्रिवेदी, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल 
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