... उसे ही जीवात्मा कहते हैं

जीव भाव में बद्ध आत्मा ही है जीवात्मा 
जीव भाव में जो आत्मा बद्ध है, उसे ही जीवात्मा कहते हैं
और 
जो आत्मा त्रिगुणातीत है, प्रकृति से पर में है, परमभाव में स्थित है निर्गुण निराकार निराधार है,परमस्वतंत्र है ! उसे ही परमात्मा कहते हैं
अर्थात, आत्मा व परमात्मा एक ही तत्व के भिन्न भिन्न स्थितियों का भिन्न भिन्न नामकरण मात्र है। न कि ये दोनों भिन्न-भिन्न हैं। 
जैसे सागर में जलस्वरुप ही जल है, लहरें हैं, बुलबुले हैं, पर उनके भिन्न-भिन्न स्थितियों के कारण भिन्न-भिन्न नामकरण कर देने से सबमें भिन्नता का बोध होता है ...ऊँ
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