गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई

...प्रकाश की ओर ले जाए, वही है गुरु 
गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से नहीं है कोई महत्व 

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गुरु पूर्णिमा : आषाढ़ पूर्णिमा (5 जुलाई 2020)

सनातन संस्कृति में गुरु को सर्वोपरि माना है। ईश्वर से भी ऊपर, क्योंकि धर्मनिष्ठ गुरु ही मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाता है। हमारी संस्कृति में मां को सबसे पहली गुरु माना गया है, उसके बाद पिता, शिक्षक और तत्पश्चात अन्य गुरुओं का स्थान आता है। मनुष्य को सही मार्ग दिखाकर गुरु ही उसके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। गुरु का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन एक दिन ऐसा होता है जिस दिन गुरु के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। यह दिन होता है गुरु पूर्णिमा का दिन।
गुरु पूर्णिमा : महर्षि  वेदव्यास 
आषाढ़ माह की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने की प्राचीन परम्परा है। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई 2020 रविवार को है। इस दिन अपने गुरु का पूजन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। गुरु पूजा का यह दिन इसलिए निर्धारित है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेद व्यास का प्राकट्य दिवस (जन्म-दिवस) भी होता है। महर्षि वेद व्यास महान ग्रंथ महाभारत के रचयिता हैं। उन्होंने सभी 18 पुराणों का रचना की। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है, इसलिए उनके नाम से इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।


गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का दिन-
गुरु भक्ति को समर्पित आषाढ़ पूर्णिमा "गुरु-पूर्णिमा" का पवित्र दिन भी है। वास्तव में यह दिन गुरु के रूप में ज्ञान की पूजा का है। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का। माता-पिता के कारण इस संसार में हमारा अस्तित्व होता है। किंतु जन्म के बाद एक सद्गुरु ही व्यक्ति को ज्ञान और अनुशासन का ऐसा महत्व सिखाता है, जिससे व्यक्ति अपने सतकर्मों और सद्विचारों से जीवन के साथ-साथ मृत्यु के बाद भी अमर हो जाता है। यह अमरत्व गुरु ही दे सकता है। सदगुरु ने ही श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया, इसलिए गुरु पूर्णिमा को अनुशासन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस प्रकार व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास गुरु ही करता है। जिससे जीवन की कठिन राह को आसान हो जाती है। निष्कर्ष यह है, कि गुरु शिष्य के बुरे गुणों को नष्ट कर उसके चरित्र, व्यवहार और जीवन को ऐसे सद्गुणों से भर देता है। जिससे शिष्य का जीवन संसार के लिए एक आदर्श बन जाता है। ऐसे गुरु को ही साक्षात ईश्वर कहा गया है इसलिए जीवन में गुरु का होना जरूरी है।

गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण-
गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण आषाढ़ पूर्णिमा पर 5 जुलाई को मांद्य चंद्र ग्रहण होगा। यह ग्रहण भारत, ऑस्ट्रेलिया, ईराक, ईरान, रूस, चीन को छोड़कर अन्य देशों में नजर आएगा। इस ग्रहण का धार्मिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है। इसमें किसी प्रकार का नियम, सूतक आदि मान्य नहीं होगा। भारतीय समय के अनुसार इसका स्पर्श सुबह 8.37 बजे और मोक्ष दिन में 11.22 बजे होगा। इस ग्रहण की कुल अवधि 2 घंटे 45 मिनट होगी। 

गुरु क्यों बनाएं  ?
गुरु शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है। 'गु" का अर्थ है अंधकार और 'रु" का अर्थ है प्रकाश। जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए, मूढ़ता से बुद्धि की ओर ले जाए, जड़ता से चैतन्यता की ओर ले जाए, गलत से सही की ओर ले जाए वही गुरु है। गुरु एक जीवंत ज्योति है, फिर वह चाहे कोई इंसान हो या प्रकृति। भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवन में 24 गुरु बनाए थे, जिनमें पृथ्वी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे को भी थे। गुरु क्यों बनाए, इसका उत्तर ब्रह्मलीन स्वामी अखंडानंद महाराज ने दिया, कि जब तक तुम्हें जरूरत नहीं है तब तक गुरु बनाना आवश्यक नहीं है। जब भीतर से आवाज आए कि कोई गुरु होना चाहिए, तभी गुरु बनाएं। वहीं, कुछ शास्त्रों में कहा गया है जो साधक मंत्र सिद्धि या अन्य साधनाएं करने की कामना रखता है, उन्हें गुरु दीक्षा अवश्य लेना चाहिए। बिना गुरु दीक्षा के साधना में सफलता नहीं मिलती। 

गुरु पूजन कैसे करें-  
यदि आपके गुरु जीवित हैं तो गुरु पूर्णिमा के दिन उनके पास जाकर जल से उनके चरण पखारें
 कुमकुम, चावल, चंदन, पुष्प आदि से पाद पूजन करें। गुरु के पास कोई भेंट अवश्य लेकर जाएं। सामान्य दिनों में भी यदि आप गुरु से मिलने जा रहे हैं, तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। गुरु को अपनी क्षमतानुसार वस्त्र, उनकी आवश्यकता का सामान, मिष्ठान्न्, फल आदि भेंट करें। यह भेंट गुरु दक्षिणा के रूप में होती है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। यदि आपके गुरु जीवित नहीं हैं, तो उनकी चरण पादुका या फोटो, प्रतिमा की पूजा करें। उनके नाम से गरीबों को वस्त्र-अन्न् आदि भेंट करें।

गुरु पूजन-
गुरुर्ब्रह्मा  गुरुर्विष्णुः  गुरुर्देवो   महेश्वरः |
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम् |
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ||
अखंडमंडलाकारं  व्याप्तं येन  चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव देव ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम् ||
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
ऐसे महिमावान श्री सदगुरुदेव के पावन चरणकमलों का षोड़शोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है | मानसपूजा इस प्रकार कर सकते हैं |
मन ही मन भावना करें, कि हम गुरुदेव के श्री चरण धो रहे है सर्वतीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं | आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर… श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं… उनके तेजोमय ललाट में शुद्ध चन्दन से तिलक कर रहे हैं… अक्षत चढ़ा रहे हैं… अपने हाथों से बनाई हुई गुलाब के सुन्दर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं… पाँच कर्मेन्द्रियों की, पाँच ज्ञानेन्द्रियों की एवं ग्यारहवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित कर रहे हैं…

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैवा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् |
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ||
शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो जो करते  हैं वह सब समर्पित करते हैं | हमारे जो कुछ कर्म हैं, हे गुरुदेव, वे सब आपके श्री चरणों में समर्पित हैं … हमारा कर्त्तापन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है |
इस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सदगुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को, हृदय में भरते हुए, उनके अमृत वचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख हो जाए 
गुरु कृपा (दीक्षा) के चार प्रकार- 
स्मरण, दृष्टि, शब्द एवं स्पर्श से
1- जैसे कछुवी रेत के भीतर अंडा देती है पर खुद पानी के भीतर रहती हुई उस अंडे को याद करती रहती है तो उसके स्मरण से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु की याद करने मात्र से शिष्य को ज्ञान हो जाता है, यह है स्मरण दीक्षा।
2- दूसरा जैसे मछली जल में अपने अंडे को थोड़ी थोड़ी देर में देखती रहती है तो देखने मात्र से अंडा पक जाता है ऐसे ही गुरु की कृपा दृष्टि से शिष्य को ज्ञान हो जाता है, यह दृष्टि दीक्षा है।
3- तीसरा जैसे कुररी पृथ्वी पर अंडा देती है और आकाश में शब्द करती हुई घूमती है तो उसके शब्द से अंडा पक जाता है । ऐसे ही गुरु अपने शब्दों से शिष्य को ज्ञान करा देता है। यह शब्द दीक्षा है।
4- चौथा जैसे मयूरी अपने अंडे पर बैठी रहती है, तो उसके स्पर्श से अंडा पक जाता है। ऐसे ही गुरु के हाथ के स्पर्श से शिष्य को ज्ञान हो जाता है। यह स्पर्श दीक्षा है।
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Gurudev is Inspiration 
Gurudev is Aspiration 
Gurucharan is The Aim 
and 
Gurusevak is The only Way
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🔥गुरु महिमा🔥

गुरु की उर्जा सूर्य-सी, अम्बर-सा विस्तार
गुरु की गरिमा से बड़ा, नहीं कहीं आकार
गुरु का सद्सान्निध्य ही,जग में हैं उपहार
प्रस्तर को क्षण-क्षण गढ़े, मूरत हो तैयार
गुरु वशिष्ठ होते नहीं, और न विश्वामित्र
तुम्हीं बताओ राम का, होता प्रखर चरित्र?
गुरुवर पर श्रद्धा रखें, हृदय रखें विश्वास
निर्मल होगी बुद्धि तब, जैसे रुई- कपास
गुरु की करके वंदना, बदल भाग्य के लेख
बिना आँख के सूर ने, कृष्ण लिए थे देख
गुरु से गुरुता ग्रहणकर, लघुता रख भरपूर
लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूर
गुरु ब्रह्मा-गुरु विष्णु है, गुरु ही मान महेश
गुरु से अन्तर-पट खुलें, गुरु ही हैं परमेश
गुरु की कर आराधना, अहंकार को त्याग
गुरु ने बदले जगत में, कितने ही हतभाग
गुरु की पारस दृष्टि से , लोह बदलता रूप
स्वर्ण कांति-सी बुद्धि हो,ऐसी शक्ति अनूप
गुरु ने ही लव-कुश गढ़े , बने प्रतापी वीर
अश्व रोक कर राम का, चला दिए थे तीर
गुरु ने साधे जगत के, साधन सभी असाध्य
गुरु-पूजन, गुरु-वंदना, गुरु ही है आराध्य
गुरु से नाता शिष्य का, श्रद्धा भाव अनन्य
शिष्य सीखकर धन्य हो, गुरु भी होते धन्य
गुरु के अंदर ज्ञान का, कल-कल करे निनाद
जिसने अवगाहन किया, उसे मिला मधु-स्वाद
गुरु के जीवन मूल्य ही, जग में दें संतोष
अहम मिटा दें बुद्धि के, मिटें लोभ के दोष
गुरु चरणों की वंदना, दे आनन्द अपार
गुरु की पदरज तार दे, खुलें मुक्ति के द्वार
गुरु की दैविक दृष्टि ने, हरे जगत के क्लेश
पुण्य -कर्म- सद्कर्म से, बदल दिए परिवेश
गुरु से लेकर प्रेरणा, मन में रख विश्वास
अविचल श्रद्धा भक्ति ने, बदले हैं इतिहास
गुरु में अन्तर ज्ञान का, धक-धक करे प्रकाश
ज्ञान-ज्योति जाग्रत करे, करे पाप का नाश
गुरु ही सींचे बुद्धि को, उत्तम करे विचार
जिससे जीवन शिष्य का, बने स्वयं उपहार
गुरु गुरुता को बाँटते, कर लघुता का नाश

गुरु की भक्ति-युक्ति ही, काट रही भवपाश
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