इन पांच राशियों के लिए आज का दिन विशेष है...

साढ़े साती, ढैय्या के प्रभाव को दूर करने का दिन : शनि प्रदोष   

- मकर, धनु, कुंभ, मिथुन और तुला के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण 
- शनि प्रदोष व्रत आज, भगवान शिव के साथ करें शनिदेव की पूजा  
न्यायाधिपति शनिदेव  
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शनिवार को जब भी प्रदोष पड़ता है, तब शनि प्रदोष होता है। पंचांग के अनुसार हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत होता है। शनिवार (18 जुलाई) को श्रावण महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि होने से शनि प्रदोष का योग बन रहा है। इसलिए पूरे दिन व्रत रखा जाएगा और शाम को भगवान शिव की पूजा की जाएगी। 
शनि प्रदोष के शुभ-योग में भगवान शिव की पूजा के साथ उनके शिष्य और न्यायाधिपति शनिदेव की पूजा-व्रत करने से समस्या से मुक्ति मिलती है और मनोकाना पूरी होती है। इसबार श्रावण में दो प्रदोष हैं। मान्यता है, प्रदोष तिथि को भगवान शिव ने सृष्टि की उत्पत्ति की और सृष्टि का विलय भी इसी दिन करेंगे। इस दिन पीपल के कुछ उपाय करने से शनि सहित अन्य अशुभ ग्रहों के कुप्रभाव को दूर किया जा सकता है। खोया हुआ मान-सम्मान, धन-वैभव प्राप्ति हेतु इस दिन व व्रत-पूजा का बहुत महत्व है। शनिवार को श्रावण महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि होने से शनि प्रदोष का योग है, इसलिए पूरे दिन व्रत रखा जाएगा और सायंकाल भगवान शिव की पूजा की जाएगी।
पीपल का वृक्ष / पत्ते  (धर्म नगरी 9752404020) 
साढ़े साती, ढैय्या का प्रभाव व पीपल की पूजा- 
वर्तमान में शनि की साढ़े साती मकर, धनु और कुंभ पर चल रही है। जबकि मिथुन और तुला पर ढैय्या का प्रभाव है। इस प्रकार ये पांच राशियों के लोग शनि से प्रभावित हैं। इसलिए शनि प्रदोष का दिन इन पांच राशियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं फलदायी है

शनि प्रदोष का महत्व-
वैसे तो प्रत्येक मास की दोनों त्रयोदशी के व्रत पुण्य फलदायी माने जाते हैं, परन्तु भगवान शिव के भक्त शनिदेव के दिन त्रयोदशी का व्रत समस्त दोषों से मुक्ति देने वाला माना जाता है। संतान प्राप्ति की कामना के लिये शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से सौभाग्यशाली माना जाता है।

शनि प्रदोष व्रत कथा-
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक बहुत ही समृद्धशाली सेठ रहता था। उसके घर में धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। कारोबार से लेकर व्यवहार में सेठ का आचरण सच्चा था। वह बहुत ही दयालु प्रवृति का था। धर्म-कर्म के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेता। इतनी ही धर्मात्मा पत्नी भी सेठ को मिली थी जो हर कदम पर पुण्य कार्यों में सेठ जी का साथ देती थी, लेकिन कहते हैं भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं। 

उनके घर में एक ऐसा दुख था जिसका निदान दांपत्य जीवन के कई बसंत बीतने के बाद भी नहीं हो रहा था। दंपति को इस बात का दुख था कि विवाह के कई साल बीतने पर भी उनकी कोई संतान नहीं है। इसी दुख से पीड़ित दंपति ने तीर्थ यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। दोनों गांव की सीमा से बाहर निकले ही थे की मार्ग में बहुत बड़े प्राचीन बरगद के नीचे एक साधु को समाधि में लीन हुआ देखते हैं। अब दोनों के मन में साधु का आशीर्वाद पाने की कामना जाग उठी और साधु के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गये। धीरे-धीरे समय ढ़लता गया पूरा दिन और पूरी रात सर पर से गुजर गई पर दोनों यथावत हाथ जोड़े बैठे रहे। 

प्रात:काल जब साधु समाधि से उठे और आंखे खोली तो दंपति को देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगे और बोले तुम्हारी पीड़ा को मैनें जान लिया है। साधु ने कहा कि एक वर्ष तक शनिवार के दिन आने वाली त्रयोदशी का उपवास रखो। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। तीर्थ यात्रा से लौटने पर सेठ दंपति ने साधु की बतायी विधिनुसार शनि प्रदोष व्रत का पालन करना शुरु किया जिसके प्रताप से कालांतर में सेठानी की गोद हरी हो गई और समय आने पर सेठानी ने एक सुंदर संतान को जन्म दिया और वे सुखी और संपन्न जीवन जीने लगे

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