व्यंग्य चित्रकारी के धनी थे कार्टूनिस्ट प्राण

कार्टून बनाने से लेकर स्वयं करते थे कहानी लिखने, कलर करने का काम 
अंग्रेजी हिंदी समेत कुल 10 भाषाओ में 25000 से अधिक उनके कॉमिक्स छपे 

कार्टून बनाते हुए प्राण कुमार शर्मा "प्राण"
अयोध्या (धर्म नगरी / DN News मो. 6261868110)   
व्यंग्य चित्रकारी भी बहुत महत्वपूर्ण होती हैं अपने भावो को हास्य की शैली में उकेरना ही कार्टूनिस्ट का कार्य होता हैं। ऐसे अनेकों चित्रकार हुए जिन्होंने व्यंग्य शैली में चित्र लेखन किया उनमे एक थे। गैर-विभाजित भारत में लाहौर के पास कासूर में सन 1938 में जन्मे प्राण कुमार शर्मा हुआ जिन्होंने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1960 में एक कार्टूनिस्ट के तौर पर दिल्ली के अखबार ‘मिलाप’ की कॉमिक पट्टी ‘दब्बू’ से की थी औऱ 1969 में प्राण ने हिंदी पत्रिका ‘लोटपोट’ के लिए चाचा चौधरी का स्केच बनाया, जिसने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।
उनके 25000 से ज्यादा कॉमिक्स अंग्रेजी हिंदी समेत कुल 10 भाषाओ में छपे थे। उन्होंने फाइन आर्ट्स में चार वर्षीय डिग्री मुम्बई से ली थी। दो हजार चौदह में पचास साल का वैवाहिक जीवन बिताकर ,कैंसर से जूझ कर अपनी यादें इस नश्वर संसार में अपने परिवार को देकर अंतिम सफर पर निकल गये। कॉमिक पात्रों के साथ सुकून पाते हुए ,कहानियाँ गढ़ते हुए कब देश की सीमा पार कर प्रसिद्धि को पाते गये स्वयं उनको ही नहीं पता। आज भी तीन दशक से पचास दशक की आयु वाली जैनरेशन को याद होंगे चाचा चौधरी, साबू, श्रीमती जी, पिंकी, रमन, चन्नी चाची, बिल्लू जैसे पात्र। समय के इतने पाबंद की घड़ी की सुइयाँ भी शर्मसार हो जातीं। बच्चों के लिए वन मेन आर्मी थे प्राण। क्यों कि कार्टून बनाने से लेकर कहानी लिखने और कलर करने तक का काम भी वो खुद ही करते थे।

देश-विदेश के कार्टूनिस्टों से मिलने के शौक ने दुनियाँ की यात्रा करवाई। जानना चाहते थे कि बेहतरीन कार्टूनिस्टों में खास क्या है? पता लगा कि वेशभूषा,रहन सहन ,खानपान आदि में पर्याप्त अंतर होते हुए भी एक गुण समान था--सेंस ऑफ ह्यूमर। उनको कान्फ्रेंस में भारतीय कॉमिक्स पर भाषण देते हुए गर्व की अनुभूति होती थी। सादा जीवन उच्च विचार के समर्थक होते हुए भी प्राचीन और आधुनिकता के फ्यूजन को मानने वाले व्यक्तित्व थे आप। गलत बातों के लिए नो कॉम्प्रोमाइज प्लीज कहने में हिचकते नहीं थे। पर दूसरों की भावनाओं की भी कद्र थी इसी कारण स्पष्टवादी और पारदर्शी थे।
बच्चों को अपने आचरण से सबल बनाया । जब गलत नहीं तो डरना क्यूँ उनकी निडरता का उद्घोष था। पर गलती होती तो अपने पोते तक से सॉरी बोलने में हिचक नहीं थी। बेटा बेटी का कोई भेद नहीं था। बहू को भी हर निर्णय में भागीदार बनाकर मिसाल रखी कि बहू भी बेटी की तरह होती है। बहू को अपना परिवार सँभालने की शिक्षा दी तो बेटी को उसकी ससुराल को उसका घर ही मानने की सलाह।

एक तरफ अपनी मेहनत के बल पर प्रधानमंत्री बने मोदी के वो प्रशंसक थे तो दूसरी तरफ अटल बिहारी बाजपेयी की उदारता प्राण की नजर में उनको सच्चा स्टेट्समैन बनाती थी। अभिनय के लिए दिलीप कुमार के प्रशंसक थे तो गजल गायकी के लिए मेहंदी हसन और जगजीत सिंह प्राण के दिल के करीब थे। कबीर और प्रेमचंद बहुत पसंद थे। जीवन के अंतिम दिनों में अस्पताल में कुछ नए कॉमिक्स देख कर बहुत खुश हुए।अपने कॉमिक्स को अच्छे रंग ढंग में सजा धजा देख बहुत खुशी होती थी।
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