दक्षिण व उत्तरी धु्रव में गायन करने वाले एकलौते गायक...

पंडित जसराज के नाम से नासा ने रखा ग्रह का नाम
सातों महाद्वीप कर चुके थे परफार्म



(धर्म नगरी / DN News M./W.app 6261868110)   
(अनुराधा त्रिवेदी)
दुनिया के सातों महाद्वीप में संगीत के रसराज पंडित जसराज ने अपना भव्य प्रदर्शन किया था। हरियाणा के हिसार में जन्में पंडित जसराज गायकी के रसराज कहलाते थे। मेवाती घराने से संबंध रखने वाले पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हुआ था। पंडित जसराज ऐसे कुल में जन्मे थे, जिसमें हिन्दुस्तान के शास्त्रीय संगीत जगत को लगातार चार पीढिय़ों तक एक से बढ़कर एक शास्त्रीय गायक देने का सौभाग्य प्राप्त है। पंडित जसराज के पिता का नाम मोतीरामजी था, जो स्वयं भी मेवाती घराने के विशिष्ट संगीतज्ञ थे। 


अपनी अनूठी गायन शैली के कारण संगीत जगत में जसराज जी का अपना अलग स्थान था। सारी दुनिया पंडित जसराज को सुनना चाहती थी, उनको देखना चाहती थी। यही कारण था, कि 82 साल की आयु में अंटार्टिका के दक्षिणी धु्रव पर पंडित जसराज ने अपनी प्रस्तुति देकर नई उपलब्धि हासिल की थी। उन्होंने 8 जनवरी 2012 को अंटार्टिका के किनारे 'सी स्प्रिटÓ नामक क्रूज में अपनी प्रस्तुति दी थी। वहीं, 2010 में अपनी पत्नी मधुरा के साथ उत्तरी धु्रव में गायन प्रस्तुत किया था।

विश्व प्रसिद्ध अंतरिक्ष एजेंसी- नासा ने 13 साल पुराने ग्रह को खोजकर उसका नाम "पंडित जसराज" रखा। इस ग्रह की खोज नासा और इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया था। ग्रह का नामकरण करते समय नासा ने कहा था- पंडित जसराज ग्रह हमारे सौर-मण्डल में गुरु और मंगल के बीच रहकर सूर्य की परिक्रमा कर रहा है। पंडित जसराज ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को विश्व फलक पर स्थान दिलाने पर महत्वपूर्ण भूमिका दिलाई। उनको संगीत विरासत में मिली।


चार साल की आयु में ही पंडित जसराज के सिर से पिता का साया उठ गया था। बड़े भाई पंडित मणिराम की देखरेख में उनका पालन-पोषण हुआ। कभी पंडित जसराज कभी तबला वादक थे। कुमार गंधर्व की एक डॉट ने उन्हें गायक बना दिया। कुमार गंधर्व ने पंडित जसराज को डॉटते हुए कहा, जसराज तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो। तुम्हे रागदारी के बारे में कुछ नहीं पता। उसके बाद पंडित जसराज ने तबले को कभी हाथ नहीं लगाया।


पंडित जसराज ने एक अनोखी जुगलबंदी की रचना की, जिसमें महिला और पुरुष गायक अलग-अलग रागों में एकसाथ गाते हैं। इस जुगलबंदी को जसरंगी नाम दिया गया। खयाल शैली की गायकी पंडित जसराज की विशेषता थी। उन्होंने साढ़े तीन सप्तक तक शुद्ध उच्चारण और स्पष्टता रखने की मेवाती घराने की विशेषता को आगे बढ़ाया। उनका विवाह जाने-माने फिल्म निदेशक वी.शांताराम की बेटी मधुरा शांताराम से हुई।  
भारत के संगीत मार्तण्ड और शास्त्रीय गायक, पद्विभूषण पंडित जसराज का अमेरिका के न्यू जर्सी में निधन हुआ। संगीत की यात्रा में उनको अनेक अवार्ड मिले। 


भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और समर्पण उनके संगीत में झलकता था। उनके जाने से भारतीय संस्कृति जगत में बहुत बड़ा रिक्त स्थान उत्पन्न हो गया है। एक गुरु के रूप में पंडित जसराज अद्वितीय थे। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत से भारत की संगीत संपदा को बहुत समृद्ध किया। अपने अद्वितीय संगीत के कारण पूरे विश्व में पंडित जसराज जैसा अबतक कोई नहीं हुआ है।

पंडित जसराज पद्मविभूषण, पद्भूषण, पद्श्री, संगीत नाटक अकादमी पुरुस्कार, मारवाड़ संगीत रत्न, जैसी शीर्षस्थ उपाधियों से शुसोभित हुए। उनका गाया हुआ- ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय, व्यक्ति को आध्यात्मिक अनन्त की ओर ले जाता है। आज उसी कृष्ण वन्दना के साथ पंडितजी अपने ईष्ट श्रीकृष्ण के साथ एकाकार हो गए। इस वर्ष जनवरी में अपनी 90वां जन्मदिन मनाने वाले पंडित जसराज ने अंतिम प्रस्तुति नौ अप्रैल को हनुमान जयन्ती पर फेसबुक लाइव के माध्यम से वाराणसी के संकट मोचन हनुमान मंदिर के लिए दिया था।  


पंडित जसराज की भावनात्मक और मधुर स्वर सभी चार और आधे सुरों पर चलती है। इससे संगीत एक तीव्र भावनात्मक अभिव्यक्ति बन जाता है। एक गायक के रूप में उन्होंने एकबार बताया था, कि जब मैं युवा था, भगवान श्रीकृष्ण एकबार रात मेरे स्वप्न में आए। उन्होंने मुझे बताया, कि जो तुम हृदय से गाते हो वह सीधे मेरे हृदय को छूता है। ये वही समय था, जब मैंने गाना आरंभ किया था। उस रात के बाद से भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव मेरे गायन पर सदैव बना रहा। 


श्री वल्लभाचार्यजी द्वारा रचित "मधुराष्टकम्" भगवान श्रीकृष्ण की बहुत मधुर स्तुति है। पंडित जसराज ने उस स्तुति को अपने स्वर से घर-घर तक पहुंचा दिया।  
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