राजनीति में कभी ग्लानि, द्वेष, दुर्भावना रखनी नही चाहिए

'अतीत में जो बीत चुका है, उसको कुरेदने से कोई फायदा नहीं' -सचिन पायलट
(धर्म नगरी / DN News M./W.app 6261868110)   

राजेश पाठक* 
कांग्रेस के युवा नेता एवं राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिव पायलट वापस कांग्रेस में लौट आए। दिल्ली में सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका से मिलने के बाद एक उन्होंने एक सुलझे हुए, परिपक्व राजनेता की भांति न्यूज चैनल आजतक को बेबाकी से सारे प्रश्नों के उत्तर दिए। इंटरव्यू में पार्टी से विवाद व आरोपों पर ये कहकर- ''...लड़ाई किस बात की। गुरुर हो सकता है, संघर्ष हो सकता है। लड़ाई और संघर्ष दो अलग-अलग शब्द हैं... अतीत में जो बीत चुका है, उसको कुरेदने से कोई फायदा नहीं..."  टाल गए। वहीं, बहुत संतुलित जवाब देते हुए अपने, पार्टी कार्यकर्ताओं, विधायकों आदि के संघर्ष, पक्ष को भी उठाया। उन्होंने कहा- ''कल जो हमारी मीटिंग हुई प्रियंका जी, राहुलजी के साथ हुई, सोनियाजी ने कमेटी बनाकर बहुत जल्द इश्यूज को टेक-अप करने का जो काम किया है, उससे लोग संतुष्ट भी हैं। मुझे लगता है इससे सरकार और संगठन दोनों को लाभ मिलेगा। 
सचिन पायलट, पूर्व उप-मुख्यमंत्री, राजस्थान  @DharmNagari  
प्रस्तुत हैं सचिव पायलट के इंटरव्यू का शब्दश: अंश...
लोगों ने कहा, सचिन नई पार्टी बना लेगें !  
देखिए, पाटीटिक्स में विकल्प बहुत से लोग बताते हैं, लेकिन मुझे मालूम है सोच क्या है, विचारधारा क्या है, कमिटमेंट क्या? ...ठीक है, उतार-चढ़ाव आते हैं राजनीति में। मैंने अपने 20 साल के राजनीतिक अनुभव में सीखा है, कि पद आएंगे, जाएंगे, कुछ लोग अच्छा कहेंगे, कुछ बुरा कहेंगे... 

सचिन पायलट ने आज (Aug 11, 2020, 1:00 AM ) ये ट्वीट करते हुए लिखा- I thank Smt Sonia Ji, leaders for noting & addressing our grievances.I stand firm in my belief & will continue working for a better India, to deliver on promises made to the people of Rajasthan & protect democratic values we cherish
...सबसे महत्वपूर्ण क्या है, हमने 20 साल मं जनता से जो संवाद स्थापित किया, वो टूटे नहीं। बाकी बहुत सारे विकल्प लोग बताते हैं। आज बता रहे हैं, कल भी बताएंगे। लेकिन ...पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया है, से पद दिए हैं, लेकिन पद देने का मतलब नहीं है, कि मैं अपनी आत्मा की आवाज न सुनूं। 
@SachinPilot - धर्म नगरी 

अगर मुझे कहीं, कुछ मन में बात है, तो बोलू नहीं। ऐसा नहीं है। और ये पद रहे न रहे, मैं सच्चाई बोलता रहूंगा। मुझे कुछ गलत लगेगा, तो मुझे बोलना चाहिए और ये लोकतांत्रिक व्यवस्था में होना बहुत जरूरी है, हर पार्टी के लिए कि कोई एक लाईन पकड़ ले तो सभी उसके पीछे भेंड-बकरी की तरह चलें। ऐसा नहीं होना चाहिए। और बात किसलिए रख रहे हैं ? व्यक्तिगत लाभ नहीं है। हम तो पदों पर थे। पद छोड़ दिए हैं न ! 

क्या लड़ाई एक पद के लिए थी ?
ये बहुत संकीर्ण व्यू प्वाइंट है, क्योंकि आप पद किसी को दें और मान-सम्मान न दिया जाए। आप काम करने में बिल्कुल कामयाब न हो सके, और आप असहाय का अनुभव करें। घर और गाड़ी ले ले, तो मैं उस प्रकार का इंसान हूं नहीं। जब मैं केन्द्र में था, तो मुझे पूरी छूट थी काम करने की। जितना मुझे काम दिया गया, उससे ज्यादा मैं काम करता था। और अभी भी जो मंत्रालय था, उसमें कोई कमी रखी नहीं। लेकिन पोलिटिकली जो बिगाड़, जो सम्मान, जो होना चाहिए, हर कार्यकर्ता का वो पूरी तरह मिल नहीं रहा था। अकेले मेरी बात नहीं है, अनेकों साथी है, कुछ विधायक हैं, कुछ विधायक नहीं हैं। ठीक है, लोग बोलते हैं। मैंने भी 20 साल राजनीति की है। संघर्ष भी किया है। मैंने कई पदों पर काम किया है, विपक्ष में भी रहा हूं, जीता हूं, हारा भी हूं, लेकिन पब्लिक का मन जीतने की कोशिश की है, कामयाब हूं या नहीं, मुझे नहीं पता। लेकिन अपनी बात बेबाकी से बोलता रहा हूं, बोलता रहूंगा। 

मैं आज भी अपनी कोई डिमांड नहीं रखी है। इसमें कोई कमी नहीं होने वाली है। हमने आज भी डिमांड रखी है, कि जिन लोगों के कंधों पर खड़े होकर हम सत्ता में पहुंचे हैं, जिनका खून-पसीना बहाकर हम सत्ता में आए हैं, उनका मान-सम्मान, वो उनका साथ हो, पब्लिक साथ हो, लोग उम्मीद करते हैं कि हमारे गरीबों के, नौजवानों के काम हो रहे हो। जिनके कारण हम सत्ता में आए, उनका ध्यान रखना ही चाहिए। 

आज काम करने के तरीके में अगर बदलाव होना चाहिए, तो करना चाहिए। भगवत गीता में नहीं लिखा है कि इस प्रकार काम करना चाहिए। जो पब्लिक डिमांड करती है, जो वर्कर डिमांड करता है, उसको आपको समय के साथ चेन्ज करना पड़ता है। वही घिसी-पिटी कार्यप्रणाली जो 1980 के दशक की है... आज दुनिया बदल गई है, एक्सपेक्टेशन बद गए हैं, संसाधन बदल गए है, उसके अनुरूप हमें काम करना पड़ेगा। ये तमाम इश्यू रखे हैं हमने पार्टी के सामने। मुझे लगता है, इसका ्रअच्छा परिणाम मिलेगा।  

अदालती लड़ाई है, उसका क्या ?
कौन छोड़ रहा था, कौन छुड़वाना चाह रहा था (पार्टी) ये नहीं पता। अपनी बात रख रहे थे, आज भी रख रहे हैं। भविष्य में क्या होगा, ये मैं नहीं जानता, लेकिन आज जो वस्तुस्थिति है, वो ये कि हमारी बात को सुना है। लिमिटेड टाइम के अन्दर इश्यूज को रिजॉल्व करेगे। बाकी सरकार और पार्टी को मजबूती देने का काम आज से नहीं, मैं दो दशक से कर रहा हूं और करता करुंगा। भविष्य में क्या होगा, ये मुझे नहीं पता। ... तो हम लोग काम करेंगे, लोगों को साथ रखेंगे। मैं हमेशा अपने को जोडऩे वाला व्यक्ति बनाना चाहता हूं। क्योंकि, तोडऩा और फूट पैदा कर देना और फिर अलग-अलग रास्ता बना देना, मैं समझता हूं, वो लांग टर्म सल्यूशन नहीं है। मिलकर काम करना चाहिए, लेकिन अपनी बात रखने से कोई हिचकिचाए नहीं। 

क्या कांग्रेस में पुरानी बनान नई पीढ़ी है-
ये बात बेवजह पैदा किया है, ये क्रिएट किया गया है, कि एक्स वर्सेस वाई है... क्योंकि पार्टी में सब तरह के लोग हैं, हर आयु के लोग हैं। और किसी पार्टी में नहीं होते? बहुत से लोग कम उम्र में बहुत कुछ नहीं कर पाते हैं, बहुत से लोग बहुत आयु में कुछ नहीं कर पाते। तो ये विवाद बेवजह पैदा किया गया है, कि आयु, उम्र को लेकर लोगों में टकराव पैदा होता है।  जिस ताले में जो चाभी फिट हो जाए, वही लगानी चाहिए।
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http://www.dharmnagari.com/2020/07/SachinPilotAshokGehlotdispute.html
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वापस पहले की तरह राजस्थान जाकर काम कर पाएंगे !
मैंने कोई जिम्मेदारी नहीं मांगी है। पार्टी पर निर्भर करता है। ...लड़ाई किस बात की। गुरुर हो सकता है, संघर्ष हो सकता है। लड़ाई और संघर्ष दो अलग-अलग शब्द हैं। मुद्दों पर राय प्रकट करना, इसे कोई लड़ाई नहीं कह सकता। विरोध हो सकता है... लड़ाई करना मेरी फितरत में नहीं है। ...मैं अपने विरोधियों के साथ भी संवाद करता हूं। अगर मेरे में गलती है, तो उसका सुधार भी करता हूं। ...चुनव में लोग लड़ते हैं,लेकिन वो लड़ाई नहीं होती है, वो आपस में कंपटीशन होता है। राजस्थान के लोगों को बहुत उम्मीदें है। चुनाव में कई वायदे होते हैं ...डेढ़ साल पहले जब मैं राजस्थान गया था, तब लोगों से वायदे किए थे। पद हो या न हो, लेकिन मुद्दे, वायदे, जनता की अपेक्षा, ये मेरा सबसे प्रिय आबजेक्टिव रहेगा। क्या है, क्या नहीं है, ये बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। बहुत कुछ मिला है पार्टी से। एमएलए हूं मैं राजस्थान से। अपने क्षेत्र की जनता की सेवा करुंगा। बाकी जो पार्टी निर्णय करे, वो सर आंखों पर। 

कोई गुरेज नहीं राजस्थान जाने पर ? 
उस मिट्टी (राजस्थान) ने पैदा किया है, वहां के लोगों ने मुझे मान-सम्मान दिया, वहां से कैसे गुरेज हो सकता है। ...पब्लिक तो सबकी है। उनके साथ होना पड़ेगा, उनका काम करना पड़ेगा। मैं कोई इगो रखने वाला इंसान भी नहीं हूं। न मैं समझता हूं, किसी को रखना चाहिए। अल्टीमेटली नेता हो, पार्टी हो, सरकार हो, हमारी जवाबदेही मतदाताओं के प्रति है। जनता खुश, तो सब ठीक। पब्लिक को खुश करने के लिए जो-करना होगा, उसे पूरा करना पड़ेगा। भविष्य में क्या होगा, नहीं होगा, मिलेगा, नहीं मिलेगा, इसका निर्णय पार्टी करना है। 

पार्टी में आ नहीं रहे, ये आपकी ओर से था ! 
भविष्य के गर्भ में क्या है, हमको नहीं मालूम। पर अतीत में जो बीत चुका है, उसको कुरेदने से कोई फायदा नहीं है। और मैं मेरे किसी भी साथी, उसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता। क्योंकि उसका कोई मतलब भी नहीं है। रात गई, बात गई। मैं उसका काउंटर करुं या स्पष्टीकरण दूं, या उसका उल्लेख करुं, मैं समझता हूं शोभा नहीं देता। सब मेरे साथी है, किसी ने अगर बुरा-भला कहा होगा, तो ये उनकी मांग हो सकती है, ये उनकी सोच हो सकती है। कोई दुर्भावना नहीं है। सबने जो कहा, वो सुना। 

जैसे वाक्य मेरे खिलाफ बोले गए, जिनको सुनकर बहुत पीड़ा हुई, जैसे मैंने शुरू में कहा, बहुत सी ऐसी बात कही गई, जिसे सुनकर बहतु पीड़ा हुई। किसने दरवाजे खोले, किसने बंद किए, क्या हुआ, क्या नहीं हुआ, इस चैप्टर को बंद कर देना चाहिए। इसको खोलने से कोई फायदा नहीं। 

पार्टी हाईकमान से आश्वासन- 
मामला सुलझने की ओर बढ़ चुका है और आश्वासन कांग्रेस अध्यक्षा के लेवल से दिया गया है कि बहुत बहुत जल्द सारे इश्यूज को सुनकर टेक-अप करके रिजॉल्व किया जाएगा। मैंने तो ये भी कहा, कमेटियां पहले भी बहुत बन चुकी हैं, लेकिन जो कमिटमेंट पार्टी का है तमाम इश्यूज जो न सिर्फ में हैं, बल्कि मेरे साथियों को लेकर हैं, उन्हें सुलझाया जाएगा। मुझे पूरा विश्वास है, कि जो डिमांड हमने रखी है, जो बातें रखी हैं, उसका साल्यूशन निकलेगा। एक बेहतर कल की तरफ हम लोग बढ़ सकेगे, सरकार की तरफ से भी और संगठन की तरफ से भी। 
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