कार्तिक स्नान आज से आरम्भ, जानिए महत्व और विधि

अत्यधिक पवित्र कार्तिक माह का महत्व 

- कार्तिक मास के महत्व का उल्लेख स्कन्द, नारद एवं पद्म पुराण सहित अन्य प्राचीन ग्रंथों में है



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कार्तिक माह अत्यधिक पवित्र माना जाता है। कार्तिक मास का स्नान शनिवार (31 अक्तूबर) से आरंभ हो रहा है। इस माह में की पूजा तथा व्रत से ही तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है। इस माह के महत्व के बारे में स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कार्तिक माह में किए स्नान का फल, एक सहस्र बार किए गंगा स्नान के समान, सौ बार माघ स्नान के समान है। भारत के सभी तीर्थों के समान पुण्य फलों की प्राप्ति एक इस माह- कार्तिक में मिलती है। 

हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष का आठवां महीना कार्तिक है पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। पूरे कार्तिक माह स्नान, दान, दीपदान, तुलसी विवाह, कार्तिक कथा का माहात्म्य आदि सुनते हैं। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है व पापों का शमन होता है। पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति इस माह में स्नान, दान तथा व्रत करते हैं, उनके पापों का अन्त हो जाता है।

ये करें पूरे कार्तिक मास में-
शास्त्रानुसार, जो फल कुम्भ में प्रयाग में स्नान करने पर मिलता है, वही फल कार्तिक माह में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान करने से मिलता है। कार्तिक में अधिक से अधिक जप करना चाहिए । भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए। जो व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।
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कार्तिक में स्नान व दान का महत्व-
धार्मिक कार्यों के लिए यह माह सर्वश्रेष्ठ माना गया है। आश्विन शुक्ल पक्ष से कार्तिक शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है। श्रद्धालु गंगा तथा यमुना में सुबह- सवेरे स्नान करते हैं। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर पाते हैं, वह सुबह अपने घर में स्नान व पूजा पाठ करते हैं। कार्तिक माह में शिव, चण्डी, सूर्य तथा अन्य देवों के मंदिरों में दीप जलाने तथा प्रकाश करने का अत्यधिक महत्व माना गया है। इस माह में भगवान विष्णु का पुष्पों से अभिनन्दन करना चाहिए।
 
कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए। कार्तिक माह की षष्ठी को कार्तिकेय व्रतका अनुष्ठान किया जाता है स्वामी कार्तिकेय इसके देवता हैं। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान भी करना चाहिए। यह दान किसी भी जरूरतमंद व्यक्ति को दिया जा सकता है। कार्तिक माह में पुष्कर, कुरुक्षेत्र तथा वाराणसी तीर्थ स्थान स्नान तथा दान के लिए अति महत्वपूर्ण माने गए हैं।

कार्तिक स्नान पूजा-
प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात राधा-कृष्ण का तुलसी, पीपल, आंवले आदि से पूजन करना चाहिए। सभी देवताओं की परिक्रमा करने का महत्व मान गया है। सांयकाल में भगवान विष्णु की पूजा तथा तुलसी की पूजा करें। संध्या समय में दीपदान भी करना चाहिए। माना जाता है कि कार्तिक माह में सूर्य तथा चन्द्रमा की किरणोंका प्रभाव मनुष्य पर अनुकूल पडता है। यह किरणें मनुष्य के मन तथा मस्तिष्कको सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है। कार्तिक मास में राधा-कृष्ण, विष्णु भगवान तथा तुलसी पूजा का अत्यंत महत्व है। जो मनुष्य इस माह में इनकी पूजा करता है, उसे पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।
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श्रद्धालु व्यक्ति कार्तिक माह में तारा भोजन भी करते हैं। पूरे दिन भर व्रती निराहार रहकर रात्रि में तारों को अर्ध्य देकर भोजन करते हैं। व्रतके अंतिम दिन उद्यापन किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ होते ही पवित्र स्नान का भी शुभारम्भ हो जाता है। इस माह तड़के उठकर स्त्री तथा पुरुष पवित्र स्नान के लिए जाते हैं। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान आदिका अत्यधिक महत्व है। व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार भी दानादि कर सकता है। त्रिदेवों ने इस दिनको महापुनीत पर्व कहा है। इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में स्थित हो और सूर्य विशाखा नक्षत्र में स्थित हो तब "पद्म योग" बनता है। इस योग अपना विशेष महत्व है।
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