आंवला (अक्षय) नवमी : ऐसे करें पूजा प्रसन्न होंगे विष्णु और लक्ष्मी
आँवला (अक्षय) या धात्री-नवमी, कूष्माण्डा-नवमी : 23 नवंबर सोमवार
पूजन से महिलाए अखंड सौभाग्य, घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि
कार्तिके शुक्लनवमी याऽक्षया सा प्रकीर्तता ।
तस्यामश्वत्थमूले वै तर्प्पणं सम्यगाचरेत् ।। ११८-२३ ।।
देवानां च ऋषीणां च पितॄणां चापि नारद ।
स्वशाखोक्तैस्तथा मंत्रैः सूर्यायार्घ्यं ततोऽर्पयेत् ।। ११८-२४ ।।
ततो द्विजान्भोजयित्वा मिष्टान्नेन मुनीश्वर ।
स्वयं भुक्त्वा च विहरेद्द्विजेभ्यो दत्तदक्षिणः ।। ११८-२५ ।।
एवं यः कुरुते भक्त्या जपदानं द्विजार्चनम् ।
होमं च सर्वमक्षय्यं भवेदिति विधेर्वयः ।। ११८-२६ ।। -नारद पुराण
कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में जो नवमी आती है, उसे अक्षयनवमी कहते हैं। उस दिन पीपलवृक्ष की जड़ के समीप देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का विधिपूर्वक तर्पण करें और सूर्यदेवता को अर्घ्य दे। तत्पश्च्यात ब्राह्मणों को मिष्ठान्न भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दे और स्वयं भोजन करे। इस प्रकार जो भक्तिपूर्वक अक्षय नवमी को जप, दान, ब्राह्मण पूजन और होम करता है, उसका वह सब कुछ अक्षय होता है, ऐसा ब्रह्माजी का कथन है।
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कार्तिक शुक्ल नवमी को दिया हुआ दान अक्षय होता है अतः इसको अक्षय नवमी कहते हैं। स्कन्दपुराण, नारदपुराण आदि सभी पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी युगादि तिथि है। इसमें किया हुआ दान और होम अक्षय जानना चाहिये । प्रत्येक युग में सौ वर्षों तक दान करने से जो फल होता है, वह युगादि-काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है-*एतश्चतस्रस्तिथयो युगाद्या दत्तं हुतं चाक्षयमासु विद्यात् ।
देवीपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमीको व्रत, पूजा, तर्पण और अन्नादिका दान करनेसे अनन्त फल होता है। सनातन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और शिवजी वास करते हैं। इसलिए इस दिन आंवले की पूजा करने से आरोग्यता और सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है। आंवले का फल पौराणिक दृष्टिकोण से रत्नों के समान मूल्यवान माना जाता है। भगवान शिव के अवतार आदि शंकराचार्य ने इसी फल को स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया था। इस फल का प्रयोग कार्तिक मास से आरम्भ करना अनुकूल माना जाता है। फल के सटीक प्रयोग से आयु, सौन्दर्य और अच्छे स्वस्थ्य की प्राप्ति होती है। मात्र यही ऐसा फल है, जो सामान्यतः हानि नहीं करता है।
कार्तिक शुक्ल नवमी को ‘धात्री नवमी’ (आँवला नवमी) और ‘कूष्माण्ड नवमी’ (पेठा नवमी अथवा सीताफल नवमी) भी कहते है। स्कन्दपुराण के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला पूजन से स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है।
आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है। अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है। चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी यानी नवयौवन प्राप्त हुआ था।
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आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, आरोग्यता और सुख-समृद्धि बनी रहती है। आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ के नीचे पूजा और भोजन करने की प्रथा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी पृथ्वी पर घूमने के लिए आईं। धरती पर आकर मां लक्ष्मी सोचने लगीं कि भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा एकसाथ कैसे की जा सकती है। तभी उन्हें स्मरण हुआ कि तुलसी और बेल के गुण आंवले में पाए जाते हैं। तुलसी भगवान विष्णु को और बेल शिवजी को प्रिय है।
उसके बाद मां लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ की पूजा करने का निश्चय किया। मां लक्ष्मी की भक्ति और पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिवजी साक्षात प्रकट हुए। माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर भगवान विष्णु व शिवजी को भोजन कराया और उसके बाद उन्होंने स्वयं भी वहीं भोजन ग्रहण किया।
मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन अगर कोई महिला आंवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण करती है, तो भगवान विष्णु और शिवजी उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु तथा अच्छे स्वास्थ्य लेकर कामना करती हैं।
आंवला नवमी पर विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और यह कथा सुनी जाती है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से व्रत रखने वाली महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। माता लक्ष्मी भी उनके परिवार पर प्रस्नन होती है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने की भी परंपरा है। महिलाओं सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के आंवले पेड़ की पूजा करती हैं। इसके बाद पूरा परिवार आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है।
आंवले का विशेष प्रयोग-
अगर धन का अभाव हो तो हर बुधवार को भगवान को आंवला अर्पित करें।उत्तम स्वास्थ्य चाहिए तो कार्तिक माह में आंवले के रस का नियमित प्रयोग करें। आंवले के वृक्ष के नीचे शयन, विश्राम और भोजन करने गोपनीय से गोपनीय बीमारियां और चिंताएं दूर हो जाती हैं। आंवले के फल को दान देने से मानसिक चिंताएं दूर होती हैं। आंवले का चूर्ण खाने से वृद्धावास्था का प्रकोप नहीं होता है।कार्तिक मैं कैसे करें आंवले का विशेष प्रयोग ?
कार्तिक मास में आंवले को भोजन में शामिल करें अथवा आंवले के रस में तुलसी मिलाकर सेवन करें। कार्तिक में आंवले का पौधा लगाने से संतान और धन की कामनाएं पूर्ण होती हैं। आंवले के फल को सामने रखकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से दरिद्रता दूर होती है। अगर कर्ज से समस्याग्रस्त हों तो घर में आंवले का पौधा लगाएं। इसमें रोज सुबह जल डालें।
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