बैकुण्ठ चतुर्दशी : जब विष्णु ने अपने नयन चढ़ाए शिव पर

बैकुण्ठ चतुर्दशी आज : व्रत, कथा का श्रवण
 

(धर्म नगरी / DN News
 वाट्सएप- 6261868110) 
बैकुण्ठ चतुर्दशी का व्रत व पूजा आज (28 नवम्बर) को श्रद्धालु करेंगे। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस शुभ दिन भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है। व्रत का पारण किया जाता है। यह बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है। इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं। यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है।

बैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा-
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत रूप से पूजा - अर्चना की जाती है. धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती कि जाती है. भगवत गीता व श्रीसूक्त का पाठ किया जाता है तथा भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा करते हैं. श्री विष्णु का ध्यान व कथा श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है। विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

बैकुण्ठ चतुर्दशी पौराणिक महत्व-
एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते हैं। नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है। 

बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विशेष महात्म्य है इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुण्ठ धाम पाते हैं. मान्यता है कि कमल से पूजन करने पर भगवान को समग्र आनंद प्राप्त होता है तथा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. बैकुण्ठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए. बैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि-विधान से भगवान विष्णु पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा उन्हें तुलसी पत्ते अर्पित करते हुए भोग लगाना चाहिए।
------------------------------------------------
"धर्म नगरी" की सदस्यता, अपनी शुभकामना के साथ अपनों को "अपने नाम से" धर्म नगरी भिजवाने 6261868110 पर सम्पर्क करें। ईमेल- dharm.nagari@gmail.com 
----------------------------
--------------------
बैकुण्ठ चौदस का महत्व-
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिवजी की एकता का प्रतीक है। प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढाऩे का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने कमलनयन नाम और पुण्डरीकाक्ष नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढाऩे को तैयार होते हैं। भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी बैकुण्ठ चौदस के नाम से जानी जाएगी। भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णुजी को प्रदान करते हैं। इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं।

वैकुंठ चतुर्दशी की कथा-
प्राचीन मतानुसार, एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। 

भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आंखें भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे कमल नयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव, इसी वैकुण्ठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं।

इसी दिन शिव जी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहेंगे। मृत्युलोक में रहना वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है, वह अपना स्थान वैकुण्ठ धाम में सुनिश्चित करेगा। 
------------------------------------------------
आवश्यकता है-
आर्थिक रूप से सम्पन्न राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यक्ति की "धर्म नगरी" के हर जिले में विस्तार के लिए तुरंत आवश्यकता है. विस्तार के अंतर्गत शहरी (वार्ड, कालोनी तक) व ग्रामीण (पंचायत, ब्लॉक स्तर तक) क्षेत्रों में स्थानीय प्रतिनिधि, अंशकालीन रिपोर्टर की नियुक्ति के साथ प्रत्येक जिले में  वर्षभर में एक से तीन सेमिनार/गोष्ठी/सार्वजनिक आयोजन आयोजित किए जाने हैं. सम्पर्क- वाट्सएप- 6261868110 ईमेल- dharm.nagari@gmail.com

No comments