भाई दूज : तिथि, शुभ मुहूर्त, कथा, पूजा-विधि, इतिहास और महत्‍व

भाईदूज की पौराणिक मान्यता-
इस दिन यमराज ने प्रसन्न होकर अपनी बहन यमुना को दिया था वरदान


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कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया या भैया दूज कहते हैं। पांच पर्वों (दिनों) तक चलने वाले महापर्व दीपावाली का अंतिम पर्व (दिन) भाई-दूज के रूप में मनाया जाता है। भाई-बहन के स्नेह के पर्व भाई-दूज 16 नवंबर (सोमवार) को मनाया जाएगा। द्वितीया तिथि सुबह 8.27 बजे लगेगी, जो दिनभर रहेगी। शुभ मुहूर्त में बहन भाई का तिलककर मंगलजीवन की कामना करेगी। भाई भी बहन को उपहार देंगे। 

भाई दूज को "अष्टदल कमल" पर गणेश आदि की स्थापना करके यम, यमुना, चित्रगुप्त की पूजन किया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया या भैया दूज कहते हैं। इसे अपरान्ह व्यापनी पर्व माना जाता है । इस दिन यमुना स्नान यम पूजन और बहन के घर भाई का भोजन करना चाहिए। भोजन करने का विशेष महत्व है। भाई दूज की कथा के अनुसार, यम और यमुना भगवान सूर्य की संतान है। दोनों भाई- बहनों में बहुत स्नेह है।

अपनी व्यस्तता के कारण यम-यमुना बहुत कम मिलते थे। एक बार यमुना अपने भाई यम से मिलने पहुंची तब यमराज ने कहा- बहन मैं बहुत प्रसन्न हूं इसलिए तुम मुझ से को वरदान मांगो। इस पर यमुना ने कहा कि भैया आप एक दिन मेरे घर पर आकर भोजन करें। यमराज कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना के घर पहुंचे तो यमुना ने अपनी भाई यम को भोजन कराया। उस समय यमलोक में बड़ा उत्सव हुआ, इसलिए इस तिथि को यमद्वितीया कहते हैं। बहन यमुना ने अपने भाई यमराज को तिलक किया और वर मांगा कि इस दिन जो यमुना स्नान करेगा और जो भाई बहन के घर भोजन करेगा उसे कभी यम यातना नहीं सहना पड़ेगी। यम देव ने बहन को वरदान दिया और स्वर्णालंकार, वस्त्र, द्रव्य आदि प्रदान किए। उस दिन से यम द्वितीया पर्व मनाया जाने लगा जो भाईदूज के दिन बहन के हाथ भोजन करता है, उसे धन,यश, आयु, धर्म, अर्थ और असीम सुख की प्राप्ति होती है।
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भाई दूज : तिथि,  शुभ मुहूर्त-
भाई दूज को बहनें अपने भाई के माथे पर टीका लगाकर लंबी आयु का कामना करती हैं। भाईदूज का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 26 मिनट से आरंभ होकर 10 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। शुभ मुहूर्त 16 नवंबर को दोपहर 1.10 बजे से शुरू होगा और उसी दिन 3.00 बजे तक रहेगा।
चौघडियों में भाई का तिलक करने हेतु मुहूर्त-
शुभ- सुबह 9:28 बजे से 10:50 बजे तक।
लाभ- दोपहर 2:56 से शाम 4:18 बजे तक।
अमृत- शाम 4:18 से 5:40 बजे तक।

भाई दूज : कथा, पूजा-विधि, इतिहास और महत्‍व
भाई-बहन के स्नेह, त्याग और समर्पण का प्रतीक है भाईदूज का पर्व। इस दिन भाई-बहन अपने रिश्ते को और प्रगाढ़ करते हैं। बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और उनकी समृद्धि की कामना करती है। भाई दूज, जिसे 'भाई टीका' भी कहते है, एक विशेष त्योहार है जिसे भारत में भाई और बहन के बीच बंधन मनाने के लिए मनाया जाता है। कार्तिक के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, भाई दूज रक्षा बंधन के समान है जब एक भाई और बहन एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, लंबे जीवन और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। भाई दूज एक ऐसा त्योहार है जो एक भाई और बहन के बीच के बंधन का जश्न मनाता है। इस त्यौहार को भाबीज, भाई फोंटा, भाई टीका के नाम से भी जाना जाता है। यह दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन, भाई-बहन पल को मनाते हैं और एक साथ उपवास का आनंद लेते हैं। और इस भाई दूज त्यौहार के साथ, पांच दिवसीय दिवाली उत्सव समाप्त हो जाता है, भैया दूज कार्तिक महीने की द्वितीया तिथि, शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है।

भाई दूज की पूजन विधि-
इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भाई को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करें। सुबह जल्दी उठें, नहाएं और इसके बाद नए या नए कपड़े पहनें जिससे पूजा की व्यवस्था हो। शुभ मुहूर्त में अनुष्ठान करना चाहिए। पूजा की शुरुआत भगवान गणेश का आह्वान करने से करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेकर देवताओं से प्रार्थना करने के बाद अपने भाई को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह करके दूसरी चौकी पर बैठाना चाहिए। अब, अपने भाई को रूमाल से अपना सिर ढँक दें। अब अपने भाई के माथे पर टीका लगाएं और उन्हें नारियल दें। फिर आरती करें, अक्षत को अपने सिर पर रखें, और उन्हें मिठाई खिलाकर अनुष्ठान का समापन करें। भाई को एक पाट पर बैठाकर तिलक करें। इसके साथ भाई की लंबी आयु, आरोग्य और सुखी जीवन की कामना करें। भाई की आरती उतारें और भोजन करवाएं।
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भाई दूज तिलक विधि-
भाईदूज के विधि-विधान के अनुसार सबसे पहले एक पाट बिछाकर उसके ऊपर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाएं। आकृतियों के बीचोबीच सिंदूर लगा दें। पाट के आग स्वच्छ जल से भरा हुआ कलश, 
6 कुम्हरे के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रखें। कुम्हरे के फूल के स्थान पर गेंदे का फूल प्रयोग में लाया जा सकता है। बहन भाई को आदरपूर्वक पाट पर बिठाती है। भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगाती है। इसके बाद भाई के हाथ में शहद, गाय का घी और चंदन लगाती है। 

भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे या गेंदे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है- "यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को, जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।" यह कहकर अंजलि में सारी सामग्री डाल देती है। इस तरह इसका तीन बार उच्चारण करती है, अब भाई के जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। बहन भाई का तिलक करती है। भुना हुआ मखाना खिलाती है। भाई बहन को उपहार देता है। अब बहन घर आए भाई को भोजन करवाती है।

भाई दूज : विभिन्न नाम-
भाई दूज के कई क्षेत्रीय नाम हैं। उत्तर भारत में, इसे आमतौर पर 'भैया दूज' के रूप में जाना जाता है और दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। नेपाल में, इसे 'भाई टीका' कहा जाता है, जबकि इसे पश्चिम बंगाल में 'भाई फोंटा' के नाम से जाना जाता है। दक्षिण में, जहां इसे 'यम द्वितीया' के रूप में मनाया जाता है, इसे 'भाई बीज', 'भतरु द्वितीया', 'भृत्य दैत्य' या 'भोगिनी हस्त भोजमुम' के नाम से जाना जाता है।

भाई दूज : इतिहास और महत्व-
ऐसा माना जाता है कि इस खास दिन पर हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए। यमुना ने कई बार यमराज को बुलाया था लेकिन वह उन्हें दर्शन देने में असमर्थ थे। हालांकि, एक बार जब यमराज ने यमुना का दौरा किया, तो उनका बहुत प्यार और सम्मान के साथ स्वागत किया गया। यमुना ने अपने माथे पर तिलक भी लगाया। इतना प्यार पाने के बाद यमराज ने यमुना से वरदान मांगने को कहा। उसकी बहन ने यमराज को हर साल एक दिन चिह्नित करने के लिए कहा जहां वह उसे देखने जाएंगे। इस प्रकार, हम भाई दूज को भाई और बहन के बीच के बंधन को मनाने के लिए मनाते हैं।

भाईदूज की कथा-
भाईदूज की शास्त्रोक्त कथा का वर्णन वैदिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि इस दिन बहन यमुना ने अपने भाई यम से वर मांगा था कि जो भाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद अपनी बहन के घर भोजन करेगा उसको मृत्यु का भय नही रहेगा। भगवान सूर्य देव की पत्नी का नाम छाया था। यमराज और यमुना उनके पुत्र और पुत्री थे। यमुना हमेशा अपने भाई यमराज को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करती थी, लेकिन व्यस्तता का हवाला देते हुए यमराज हमेशा उनके निवेदन को विनम्रतापूर्वक टाल देते थे। एक दिन देवी यमुना ने भाई यम को भोजन के लिए राजी कर लिया।

बहन यमुना के आमंत्रण पर भाई यम ने सोचा कि मैं लोगों के प्राण लेने वाला हूं इसलिए मुझे कोई भी अपने घर आमंत्रित नहीं करता है। मेरी बहन मुझे बड़े आदरभाव से आमंत्रित कर रही हैं इसलिए मुझे बहन के घर भोजन करने के लिए जाना चाहिए। यमराज ने बहन यमुना के घर रवाना होने से पहले उन्होंने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। जैसे ही यमराज बहन यमुना के घर पहुंचे यमुना बहुत खुश हुई। यमुना ने स्नान कर भाई यमराज को भोजन परोसा। बहन यमुना के आदर-सत्कार और स्नेह से प्रसन्न होकर यमदेव ने उससे वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि इस दिन जो बहन अपने भाई को अपने घर पर भोजन करवाए और सत्कार करे, उसको आपका भय ना रहे। यमराज ने तथास्तु कहा। इस तरह उस दिन से भाईदूज के पर्व की शुरूआत हुई।

भाईदूज : पौराणिक मान्यता-
कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बहन यमुना ने अपने भाई यमदेव को घर पर आमंत्रित किया था और सत्कारपूर्वक भोजन करवाया था। इस आयोजन से नारकीय जीवन जी रहे जीवों को यातना से छुटकारा मिला था और वे तृप्त हो गए थे। शास्त्रानुसार, पाप मुक्त होने के साथ ही वह सभी सांसारिक बंधनों से भी मुक्त हो गए थे| उन सभी जीवों ने मिलकर एक महोत्सव का आयोजन किया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इस कारण यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हुई।

भाईदूज को बहन यमुना ने भाई यम को अपने घर पर भोजन करवाया था। इसलिए मान्यता है कि इस दिन यदि भाई अपनी बहन के हाथों से बना भोजन ग्रहण करे तो उसको स्वादिष्ट और उत्तम भोजन के साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को यम पूजा करके यमुना स्नान करने से मानव को यमलोक की नारकीय यातनाएं नहीं भोगना पड़ती है और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। 
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