#देवउठनी_एकादशी 2020 : चार माह पश्चात शयन से उठते हैं श्रीहरि
भगवान विष्णु के उठने के साथ मांगलिक कार्यों का शुभारंभ
उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव॥
(धर्म नगरी / DN News वा.एप- 6261868110-केवल सदस्यों हेतु)
सनातन हिंदू धर्म में दीपावाली के पश्चात बाद देवउठनी एकादशी का बहुत महत्व है। जब भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए शयन को जाते हैं, फिर पुनः कार्तिक शुक्ल की एकादशी को निद्रा से जागते हैं।
गन्ना और सूप का महत्व-
भगवान विष्णु की देवउठनी एकादशी के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस दिन गन्ने और सूप का भी विशेष महत्व होता है और इस दिन से किसान गन्ने की फसल की कटाई आरम्भ करने से पहले गन्ने की विधिवत पूजा करते हैं, फिर इसे विष्णु भगवान को चढ़ाया जाता है।भगवान विष्णु को अर्पित करने के बाद गन्ने को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
सूप पीटने की परंपरा-
परिग्रहंण संस्कार (विवाह) जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ देवउठनी एकादशी के दिन से होता है। इस दिन पूजा के बाद सूप पीटने की परंपरा है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं। महिलाएं उनके घर में आने की कामना करती हैं और सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं. आज भी यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
देवउठनी एकादशी का महत्व-
चार माह तक देव के शयन में होने के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब देव (भगवान विष्णु ) जागते हैं, तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है। देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है. कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उदितष्ठोतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते,
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्।
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव॥
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देवउठनी एकादशी, हरिप्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाते है. देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास समाप्त या पूर्ण होता है और शुभ काम का आरम्भ होता है. इस बार देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को मनाई जा रही है।
सनातन हिंदू धर्म में दीपावाली के पश्चात बाद देवउठनी एकादशी का बहुत महत्व है। जब भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए शयन को जाते हैं, फिर पुनः कार्तिक शुक्ल की एकादशी को निद्रा से जागते हैं।
गन्ना और सूप का महत्व-
भगवान विष्णु की देवउठनी एकादशी के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. इस दिन गन्ने और सूप का भी विशेष महत्व होता है और इस दिन से किसान गन्ने की फसल की कटाई आरम्भ करने से पहले गन्ने की विधिवत पूजा करते हैं, फिर इसे विष्णु भगवान को चढ़ाया जाता है।भगवान विष्णु को अर्पित करने के बाद गन्ने को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।
सूप पीटने की परंपरा-
परिग्रहंण संस्कार (विवाह) जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारम्भ देवउठनी एकादशी के दिन से होता है। इस दिन पूजा के बाद सूप पीटने की परंपरा है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु नींद से जागते हैं। महिलाएं उनके घर में आने की कामना करती हैं और सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं. आज भी यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है।
देवउठनी एकादशी का महत्व-
चार माह तक देव के शयन में होने के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब देव (भगवान विष्णु ) जागते हैं, तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है। देव जागरण या उत्थान होने के कारण इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है. कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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