धनतेरस : पूजन-काल, मुहूर्त, महत्व

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी : सुख-समृद्धि स्वास्थ्य का आगमन  


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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस या धन-त्रयोदशी पांच पर्वों के राष्ट्रीय त्यौहार- दीपावली का पहला पर्व है. धनतेरस पर्व का सनातन हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन लोग सोना, चांदी, आभूषण, बर्तन आदि की खरीदारी करना शुभ मानते हैं। ऐसा करने से घर में सुख, समृद्धि आती व अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस पूजा को धन-त्रयोदशी के नाम से भी जानते हैं। 

धनतेरस को धन्वन्तरि त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती, जो कि आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस है, के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक है और भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माने जाते हैं।

लक्ष्मी-कुबेर पूजा हेतु महत्वपूर्ण-
धनतेरस इस वर्ष 13 नवंबर शुक्रवार को है। यह दिन धन और समृद्धि से सम्बन्धित है और लक्ष्मी-कुबेर पूजा के लिए यह दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान कुबेर जिन्हें धन-सम्पत्ति का कोषाध्यक्ष माना जाता है और श्री लक्ष्मी जिन्हें धन-सम्पत्ति की देवी माना जाता है, की पूजा साथ में की जाती है। धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजा काे प्रदोष काल के दौरान किया जाना चाहिए। यह सूर्यास्त के बाद प्रारम्भ होता है और लगभग 2 घण्टे 24 मिनट तक रहता है। मान्यता है कि धनतेरस पर जलाए जाने वाले तेल और बाती के दीपकों के जरिए घर से नकारात्मक ऊर्जा पूरी तरह से खत्म की जाती है।
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धनतेरस : प्रचलित कथा-
एक राजकुमार की कुंडली में लिखा हुआ था कि उसके विवाह के चौथे दिन सांप के डसने से उसकी माैत हो जाएगी। ऐसे में उसके विवाह के बाद उसकी पत्नी ने निर्धारित दिन पर अपने सोने चांदी के बने आभूषण एक ढेर में एकत्र कर शयनकक्ष के दरवाजे पर रख दिए और चारो तरफ दिए जला दिए। वहीं अपने अपने पति को जगाए रखने के लिए वह उन्हें कहानियां व गीत सुनाती रही। 
इस बीच यमराज सांप के रूप में जब आए तो सोने-चांदी के आभूषणों की चमक से उनकी आंखें चकाचौंध हो उठीं। इसके चलते वह राजकुमार के कक्ष में प्रवेश नहीं कर सके, तो वह सोने-चांदी के ढेर पर ही बैठ गए और कहानियां व गीत सुनते रहे। सुबह होते ही वह वहां से चले गए। इस तरह से राजकुमार की पत्नी ने अपने पति की जान बचाई।                                    ----------------------------
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