भगवान शिव के 11वें अवतार का जन्मोत्सव
श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव-
कर्क राशि से-दक्षिण के वासी चैत्र पूर्णिमा को
उत्तर के वासी कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को
(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110
वर्ष में दो बार हनुमान जयंती-
हनुमान जी का जन्मोत्सव पर्व उत्तर भारतीय भक्तों के द्वारा आज यानी कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी 13 नवंबर को मनाया जा रहा है. हनुमानजी का जन्मदिन एक सौर वर्ष में दो बार मनाया जाता है. कर्क राशि से दक्षिण के वासी इनका जन्मदिन चैत्र पूर्णिमा को मानते हैं, जबकि कर्क राशि से उत्तर के वासी हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मानते हैं।
हनुमान जयंती का महत्व-
भक्तों के लिए हनुमान जयंती का खास महत्व है. संकटमोचन हनुमान को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. मान्यता है कि इस दिन पांच या 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने से पवन पुत्र हनुमान प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इस मौके पर मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन होते हैं. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर चढ़ाया जाता है और सुंदर कांड का पाठ करने का भी प्रावधान है. सायंकाल आरती के बाद भक्तों में प्रसाद वितरित करते हुए सभी के लिए मंगल कामना की जाती है. श्री हनुमान जयंती में कई जगहों पर मेला भी लगता है।
हनुमान जयंती की पूजा विधि-
- हनुमान जयंती के दिन सुबह-सवेरे उठकर सीता-राम और हनुमान जी का स्मरण करें.
- स्नान करने के बाद ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा में हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करें. मान्यता है कि हनुमान जी मूर्ति खड़ी अवस्था में होनी चाहिए.
- पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें: 'ॐ श्री हनुमंते नम:'.
- इस दिन हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं.
- हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं.
- मंगल कामना करते हुए इमरती का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है.
- हनुमान जयंती के दिन रामचरितमानस के सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.
- आरती के बाद गुड़-चने का प्रसाद बांटें।
हनुमान जयंती के दिन इनका विशेष ध्यान रखें-
हनुमान जी की आरती-
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनिपुत्र महा बलदायी, संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे, सियारामजी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित परे सकारे, आनि संजीवन प्रान उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे, अहिरावन की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे, दहिने भुजा सन्तजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारे, जय जय जय हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई, आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरति गावै, बसि बैकुण्ठ परम पद पावै॥
उत्तर के वासी कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को
(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110
कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को हनुमान जयंती है. हिन्दू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के परम भक्त हनुमान को संकट मोचक माना गया है. हनुमान जी के जन्मोत्सव को देशभर में हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है।
मान्यता है, रामभक्त हनुमानजी का नाम लेते ही सारे संकट दूर हो जाते हैं और भक्त को किसी बात का भय नहीं सताता है. उनके नाम मात्र से आसुरी शक्तियां गायब हो जाती हैं. हनुमानजी के जन्मोत्सव को देश भर में हनुमान जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है, श्री हनुमान ने शिव के 11वें अवतार के रूप में माता अंजना की कोख से जन्म लिया था. हिन्दुओ में हनुमान जयंती की विशेष मान्यता है. हिन्दू मान्यताओ में श्री हनुमान को परम बलशाली और मंगलकारी माना गया है।वर्ष में दो बार हनुमान जयंती-
हनुमान जी का जन्मोत्सव पर्व उत्तर भारतीय भक्तों के द्वारा आज यानी कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी 13 नवंबर को मनाया जा रहा है. हनुमानजी का जन्मदिन एक सौर वर्ष में दो बार मनाया जाता है. कर्क राशि से दक्षिण के वासी इनका जन्मदिन चैत्र पूर्णिमा को मानते हैं, जबकि कर्क राशि से उत्तर के वासी हनुमान जी का जन्म कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी को मानते हैं।
हनुमान जयंती का महत्व-
भक्तों के लिए हनुमान जयंती का खास महत्व है. संकटमोचन हनुमान को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं. मान्यता है कि इस दिन पांच या 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने से पवन पुत्र हनुमान प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. इस मौके पर मंदिरों में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. घरों और मंदिरों में भजन-कीर्तन होते हैं. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सिंदूर चढ़ाया जाता है और सुंदर कांड का पाठ करने का भी प्रावधान है. सायंकाल आरती के बाद भक्तों में प्रसाद वितरित करते हुए सभी के लिए मंगल कामना की जाती है. श्री हनुमान जयंती में कई जगहों पर मेला भी लगता है।
हनुमान जयंती की पूजा विधि-
- हनुमान जयंती के दिन सुबह-सवेरे उठकर सीता-राम और हनुमान जी का स्मरण करें.
- स्नान करने के बाद ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें.
- इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा में हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करें. मान्यता है कि हनुमान जी मूर्ति खड़ी अवस्था में होनी चाहिए.
- पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें: 'ॐ श्री हनुमंते नम:'.
- इस दिन हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं.
- हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं.
- मंगल कामना करते हुए इमरती का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है.
- हनुमान जयंती के दिन रामचरितमानस के सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए.
- आरती के बाद गुड़-चने का प्रसाद बांटें।
हनुमान जयंती के दिन इनका विशेष ध्यान रखें-
- हनुमान जी की पूजा में शुद्धता का बड़ा महत्व है. ऐसे में नहाने के बाद साफ-धुले कपड़े ही पहनें.
- मांस या मदिरा का कदापि सेवन न करें.
- अगर व्रत रख रहे हैं, तो नमक का सेवन न करें.
- हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे और स्त्रियों के स्पर्श से दूर रहते थे. ऐसे में महिलाएं हनुमन जी के चरणों में दीपक प्रज्ज्वलित कर सकती हैं.
- पूजा करते समय महिलाएं हनुमानजी मूर्ति का स्पर्श न करें। न ही वस्त्र अर्पित करें।
- मांस या मदिरा का कदापि सेवन न करें.
- अगर व्रत रख रहे हैं, तो नमक का सेवन न करें.
- हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे और स्त्रियों के स्पर्श से दूर रहते थे. ऐसे में महिलाएं हनुमन जी के चरणों में दीपक प्रज्ज्वलित कर सकती हैं.
- पूजा करते समय महिलाएं हनुमानजी मूर्ति का स्पर्श न करें। न ही वस्त्र अर्पित करें।
हनुमान जी की आरती-
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥
अंजनिपुत्र महा बलदायी, संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये॥
लंका-सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे, सियारामजी के काज संवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित परे सकारे, आनि संजीवन प्रान उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम-कारे, अहिरावन की भुजा उखारे॥
बाएं भुजा असुरदल मारे, दहिने भुजा सन्तजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारे, जय जय जय हनुमान उचारे॥
कंचन थार कपूर लौ छाई, आरति करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरति गावै, बसि बैकुण्ठ परम पद पावै॥
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