कार्तिक में दीपदान : सूर्य, चन्द्रग्रहण के समय तुलादान के समान है पुण्य

सूर्य-ग्रहण के समय, नर्मदाजी में चन्द्र-ग्रहण के समय किए तुलादान जितना पुण्य मिलता है दीपदान से 


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कार्तिक मास का आज तीसरा दिन दिन है। हिन्दूओं के आठवां माह कार्तिक 30 नवम्बर तक रहेगा। वहीं, गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी अश्विन मास है। कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। शास्त्रों में, कार्तिक में दीपदान को महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक माना गया है। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए।
कार्तिक मास में व्रत, त्यौहार पूजा पाठ आदि के साथ दीप दान का भी विशेष महत्व है। चार महीने बाद जब भगवान विष्णु जागते है, तो मांगलिक कार्यक्रमों, आयोजनों का शुभारम्भ होता है। कार्तिक मास की समाप्ति पर कार्तिक पूर्णिमा होती है। 

कार्तिक में दीपदान का महत्व-
कार्तिक में दीप-दान को लेकर महत्व है, कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है। कार्तिक माह में पहले पंद्रह दिन की रातें वर्ष की अंधेरी रातों में से होती हैं। माता लक्ष्मी पति विष्णु के जागने के ठीक पूर्व के इन दिनों में दीप जलाने से जीवन का अंधकार छंटता है। जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त होकर विष्णुलोक में विहार करता है। 
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कार्तिक मास में श्रीहरि के मन्दिर में दूसरों के द्वारा रक्खे गये दीपों को प्रज्वलित करते हैं, उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि एक चूहे ने कार्तिक एकादशी में दूसरों के द्वारा रक्खे दीप को प्रज्वलित करके दुर्लभ मनुष्य जन्म लाभ लिया था। समुद्र सहित पृथ्वी दान और बछड़ों सहित दुग्धवती करोड़ों गायों के दान का फल विष्णु मंदिर के ऊपर शिखर दीपदान करने के सोलहवें अंश के एक अंश के बराबर भी नहीं है। 
शिखर या हरि मन्दिर में दीपदान करने से शत-कुल का उद्धार होता है। वहीं, भक्तिकपूर्वक कार्तिक मास में केवल मात्र ज्योति -दीप्ति विष्णु मन्दिर के दर्शन करते हैं, उनके कुल में कोई नारकी नहीं होता। 
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देवगण भी विष्णु के गृह में दीपदान करने वाले मनुष्य के संग की कामना करते हैं। कार्तिक-मास में, खेल खेल में ही सही विष्णु के मन्दिर को दीपों से आलोकित करने पर उसे धन, यश, कीर्ति लाभ होती है और सात कुल पवित्र हो जाते हैं। मिट्टी के दीपक में घी / तिल तेल डालकर कार्तिक पूर्णिमा तक दीप प्रज्वलित करें, इससे अवश्य लाभ होगा।

➡ पुराणों में वर्णन-  
"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । 
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।" (पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय 115)

“स्नानं  च  दीपदानं  च  तुलसीवनपालनम् । 
भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम् ।।
विष्णु संकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा। 
कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि।।” 
(स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03)

पद्मपुराण (उत्तरखंड) के अध्याय-121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है-
घृतेन  दीपको  यस्य  तिलतैलेन  वा  पुनः। 
ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्।
अर्थात, कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।

अग्निपुराण के 200 वे अध्याय के अनुसार-
दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति
दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही

स्कंदपुराण (वैष्णवखण्ड) के अनुसार-
सूर्यग्रहे  कुरुक्षेत्रे  नर्मदायां  शशिग्रहे ।
तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः।।
कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय, नर्मदाजी में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।

कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है-
"तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयोः
उल्का हस्ता नराः कुर्युः पितृणाम् मार्ग दर्शनम्।।"
पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें। 

पद्मपुराण के उत्तरखंड के अध्याय-123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं।
शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन। 
पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृताः।।
भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः। 
कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्।।
अर्थात, “मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके।”

कार्तिक मास में ये करें-
- कार्तिक मास में घर के उत्तर-पूर्व में तुलसी के पौधे के चारों ओर चार केले के पत्तों से सुंदर मंडप बनाएं. तुलसी को लाल चुनरी चढ़ाएं. साथ ही सुहाग का सामान जैसे- चूड़ी, बिंदी, आलता, सिंदूर, बिछिया आदि तुलसी को चढ़ाएं. फिर घी का दीपक जलाएं।
- अक्षत, रोली और द्रव्य से विष्णु जी की पूजा करें. साथ में बताशे का भोग लगाएं. इससे दाम्पत्य जीवन में सुख रहेगा।
- कार्तिक मास में आंवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठें। इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेंटे. महिलाएं आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमाएं करें. ऐसे करने से सुख-समृद्धि एवं आनंद प्राप्त होती है।
- कार्तिक मास में घर के उत्तर पूर्व की दिशा में केले का पौधा लगाकर उसकी नियमित रूप से पूजा करें।
- कार्तिक मास में घर की चारों दिशाओं में दीपक लगाकर मंदिर में भी दीपदान करें।
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