चंद्रशेखर वेंकट रामन : जिन्होंने विश्व को,प्राचीन भारत में विज्ञान की उपलब्धियाँ जैसे-

शून्य व दशमलव प्रणाली की खोज, पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने, आयुर्वेद के फार्मूले इत्यादि से परिचय कराया 


(धर्म नगरी / डीएन न्यूज) वाट्सएप- 6261868110
भारत के ऐसे पहले व्यक्ति की आज (21 नवंबर) पुण्यतिथि है, जिन्होंने वैज्ञानिक संसार में भारत को ख्याति दिलाई। आज चंद्रशेखर वेंकट रामन की पुण्यतिथि है। उन्होंने विश्व को,प्राचीन भारत में विज्ञान की उपलब्धियाँ जैसे- शून्य और दशमलव प्रणाली की खोज, पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के बारे में तथा आयुर्वेद के फ़ारमूले इत्यादि से परिचय करवाया। 

रामन ने उस खोए रास्ते की खोज की, उन नियमों का प्रतिपादन किया जिनसे स्वतंत्र भारत के विकास और प्रगति का रास्ता खुल गया। उनके रामन इफेक्ट "रामन प्रभाव" की लोकप्रियता और उपयोगिता का अनुमान इसी से लगा सकते हैं. कि खोज के दस वर्ष के भीतर ही सारे विश्व में इस पर लगभग 2,000 शोध-पत्र प्रकाशित हुए।

"रामन प्रभाव" की खोज 28 फ़रवरी 1928 को हुई। इस महान खोज की स्मृति में 28 फ़रवरी का दिन हम "राष्ट्रीय विज्ञान दिवस" के रूप में मनाते हैं। भारत में 28 फ़रवरी का दिन 'राष्ट्रीय विज्ञान दिवस" के रूप में मनाया जाता है। डॉ. रमन की संगीत में भी गहरी रुचि थी। उन्होंने संगीत का भी गहरा अध्ययन किया था। संगीत वाद्य यंत्रों की ध्वनियों के बारे में डॉ. रामन ने अनुसंधान किया, जिसका एक लेख जर्मनी के एक 'विश्वकोश' में भी प्रकाशित हुआ था। डॉ.रामन को उनके योगदान के लिए भारत के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार, लेनिन पुरस्कार जैसे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।  


प्रसिद्ध राजस्थानी कवि, स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहट

आज (21 नवंबर) प्रसिद्ध राजस्थानी कवि और स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह बारहट की जयंती है। केसरी सिंह बारहट का जन्म 21 नवम्बर, 1872 ई. में देवपुरा रियासत, शाहपुरा, राजस्थान में हुआ था। उन्होंने प्रसिद्ध 'चेतावनी रा चुंग्ट्या' नामक सोरठे रचे, जिन्हें पढ़कर मेवाड़ के महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और वे 1903 ई. में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित 'दिल्ली दरबार' में शामिल नहीं हुए थे। 

वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित 'दिल्ली दरबार' में सभी राजाओं के साथ मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियों को उचित नहीं लग रहा था। अतः उन्हें रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करण सिंह जोबनेर व राव गोपाल सिंह खरवा के साथ मिलकर महाराणा फ़तेह सिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहट को दी। केसरी सिंह ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या" नामक सोरठे रचे, जिन्हें पढ़कर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए।


केसरी सिंह बारहठ का देश के शीर्ष क्रांतिकारियों- रासबिहारी बोस, मास्टर अमीरचन्द, लाला हरदयाल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, अर्जुनलाल सेठी, राव गोपाल सिंह, खरवा आदि के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था। सन् 1912 में राजपूताना में ब्रिटिश CID द्वारा जिन व्यक्तियों की निगरानी रखी जानी थी उनमें केसरी सिंह का नाम राष्ट्रीय-अभिलेखागार की सूची में सबसे ऊपर था।
केसरी सिंह को शाहपुरा में ब्रिटिश सरकार द्वारा दिल्ली-लाहौर षड्यन्त्र केस में राजद्रोह, षड्यन्त्र व कत्ल आदि के जुर्म लगा कर 21 मार्च 1914 को गिरफ्तार किया गया। जिस दिन केसरी सिंह को गिरफ्तार किया गया उसी दिन से उन्होंने अन्न-त्याग दिया। उन्हें भय था कि गुप्त बातें उगलवाने के लिए पुलिस कोई ऐसी चीज न खिला दे जिससे उनका मस्तिष्क विकृत हो जाय। इस प्रण को उन्होंने पाँच वर्ष तक जेल-जीवन में निभाया। उन्हें कई-कई दिन, रात-रात भर सोने नहीं दिया जाता था। 

सरकार किसी प्रकार केसर सिंह के विरुद्ध राजनीतिक उद्धेश्य से की गयी हत्या का जुर्म साबित कर उन्हें फाँसी देना चाहती थी। अन्त में केसरी सिंह को 20 साल के आजीवन कारावास की कठोर सजा हुई। इस प्रकार केसरी सिंह को केवल २० वर्ष का आजन्म कारावास ही नहीं हुआ, उसके समूचे परिवार पर विपत्ती की दुहरी मार पड़ी। शाहपुरा राजाधिराज नाहर सिंह ने ब्रिटिश सरकार को खुश रखने के लिए उनकी पैतृक जागीर का गांव, विशाल हवेली एवं चल-अचल सम्पत्ति भी जब्त कर ली। घर के बर्तन तक नीलाम कर दिये गये। सारा परिवार बेघर-बार होकर कण-कण की तरह बिखर गया।

देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले क्रान्तिकारी कवि केसरी सिंह बारहठ ने 'हरिओम तत् सत्' के उच्चारण के साथ 14 अगस्त, 1941 को देह त्याग दी।

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