मंगलफेरा : वर-वधू अग्नि के चारों ओर चार फेरे

क्या हैं सप्त वचन ?

(धर्म नगरी / DN News
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परिग्रहण-संस्कार (विवाह) के समय मंगलफेरा, जिसे वर-वधू अग्नि के चारों ओर चार फेरे लेते हैं, उसमें पहले तीन फेरे में वधू वर के आगे रहती है।चौथे में वर, वधू के आगे आ जाता है। पहले फेरे में धर्म एवं जीवन का उद्देश्य, दूसरे में अर्थ धन—धान्य का सृजन, तीसरे में काम इच्छाओं की प्राप्ति, तथा चौथे में मुक्ति की प्राप्ति की प्रतिज्ञा करते हुए वर-वधू अग्नि के चारों तरफ परिक्रमा करते हैं। 

सप्त वचन- 
दूल्हा, जो कि अपने संबधियों (रिश्तेदारों) के साथ उसको ब्याहने आया है, उसको वधू कहती है-
१. आप मेरे व्यक्तिगत कार्यों में साथ देंगे तथा उत्सवों एवं पार्टियों में मुझे साथ रखेंगे।
२.आप मेरे जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे।
३.आप मुझे मेरे धार्मिक कार्यों के लिये पूर्ण स्वतंत्रता देंगे।
आप मुझे अपनी आर्थिक स्थिति एवं बाहर आने-जाने के विषय में सूचित करते रहेंगे।
४. 
आप मेरी बातें दूसरों को नहीं कहेंगे और मेरी सहेलियों के बीच कभी अपमानित नहीं करेंगे।
५. आप मेरे नारीत्व की रक्षा करेंगे, जिसे मैं आपको समर्पित कर रही हूँ। 
६.आप बीमारी एवं समस्याओं के समय मेरी सहायता करेंगे और मुझे अकेला नहीं छोड़ेंगे।
७.आप मेरे साथ ही संबंध बनाए रखेंगे और अन्य स्त्रियों को माता, बहन व पुत्री के समान समझेंगे।

वर वचन- 
१ .वर मुस्कराता है एवं शर्तों को स्वीकार करता है प्रत्युत्तर में, वह भी वधू से वचन मांगता है।
२. आप पतिव्रत धर्म का पालन करती हुई मेरी सेवा करेंगी एवं अन्य पुरुषों को पिता, भाई व पुत्र की तरह यथा—उचित सम्मान देंगी।
३. स्त्री स्वभाव वश जिद करके, रोते हुये, नाराज होते हुये, अनुचित लाभ नहीं उठाँएगी, ऐसी कार्य करने की जिद नहीं करेंगी जो गलत हो।
४. मेरे परिवार को उचित सम्मान देंगी एवं मेरे धार्मिक व सामाजिक कार्यों में सहयोग करेंगी।
५. मेरे परिवार की बातें किसी दूसरे से नहीं कहेंगी।
अपना खर्च मेरी आर्थिक स्थिति के अनुरूप ही करेंगी। बिना बताये गृह कार्यों व अन्य विषयों में तथा फालतू कार्यो में खर्च नहीं करेंगी।
६. मेरी बीमारी व अन्य समस्याओं के समय सेवा व सहयोग करेंगी।
७. मेरे व्यक्तिगत कार्यो में, पारिवारिक उत्सवों में पूर्ण सहयोग करेंगी। दुल्हन भी इन शुभ वचनों को स्वीकार करती है एवं मुस्कराती है।
वर-वधू एक दूसरे का सुस्वागत करते हैं एवं अब वे वास्तविक रूप में पति पत्नी के अधिकारों को प्राप्त करते हैं। इसके बाद वधू को वर के सामने से निकाल कर, वर के वाम भाग में बैठाते हैं। वधू को समझाया जाता है कि इसके बाद वह कभी भी पति के आगे से नहीं निकले अर्थात् पति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करे। वधू के वामांगी होने के उपरान्त बचे हुए फेरे पूरे कर सप्तपदी पूरी की जाती है।
-शशांक शेखर शुल्ब, त्रिस्कन्धज्योतिर्विद् 
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