#Dev Diwali: देव दीपावाली : कैसे करें पूजा, पूजन सामग्री और समय

 इस दिन देवताओं ने मनाई दीपावाली   

देव दीपावली पर वाराणसी के घाट पर दीपोत्सव (फाइल फोटो)

(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप- 6261868110)
दीपावाली के 15 दिन बाद देव दीपावली मनाते हैं। यह कार्तिक मास की  शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा का दिन होता है। इस दिन महादेव शिव की त्रिमूर्ति को त्रिपुरासुर के रूप में जाना जाता है। मान्यतानुसार, देवों ने इसी दिन दीपावाली मनाई थी। इसी कारण इसे देव दीपावाली के नाम से जाना जाता है। देव दीपावली का, इस दिन पूजा का अत्यधिक महत्व है। पूजा हेतु इन वस्तुओं की आवश्यकता है-

देव दीपावाली की पूजा समाग्री-
एक चौकी, भगवान गणेश और शिवजी की मूर्ति और शिवलिंग, पीतल या मिट्टी का दीपक, 
तेल और घी के लिए दीपक और कपास की डिबिया, कपड़े का एक पीला टुकड़ा
मौली- दो, जनेऊ-दो, बेल पत्र, दूर्वा, फूल, इत्र, 
धूप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल- नारियल, पान, सुपारी, दक्षिणा, फल / केला (दो सेट)
हल्दी, कुमकुम / रोली, चंदन
कपड़े का ताजा टुकड़ा या अप्रयुक्त तौलिया
अभिषेक के लिए- जल, कच्चा दूध, शहद, दही, पंचामृत, घी, गंगाजल, कपूर (कपूर)

तिथि और पूजा मुहूर्त-
कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 29 नवंबर, रविवार दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से हो रहा है। यह तिथि 30 नवंबर, सोमवार को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक है। ऐसे में देव दीपावली का त्यौहार 29 नवंबर दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का समय 2 घंटे 40 मिनट का है। 29 नवंबर को शाम 05 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट के बीच देव दीपावली की पूजा संपन्न कर लेनी चाहिए।

पूजा विधि-
सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनें।
सूर्योदय के समय सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।
शाम को प्रदोष काल में पूजा करें, लेकिन इससे पहले एक बार स्नान दोबारा करें और फिर साफ कपड़ें पहनें।
एक चौकी लें। इस पर पीले फूल बिछाएं। इस पर गणेश जी, शिव जी और शिवलिंग स्थापित करें।
इनके सामने तेल या घी का दीपक जलाएं।
गणेश जी की पूजा करें और उन्हें हल्दी, चंदन कुमकुम, अक्षत, मौली, जनेऊ, दुर्वा घास के बाद गंडम (इत्र) पुष्पक) फूल और दूर्वा घास, दीपम (दीपक), धुप (धूप) और नैवेद्य (भोजन) चढ़ाएं।
दो पान के पत्तों पर ताम्बूलम रख, सुपारी, दक्षिणा और फलों को अर्पित करें।
फिर शिव जी की पूजा करें। शिव जी का अभिषेक करें। शिव लिंग/मूर्ति को पानी, कच्चे दूध, शहद, दही, घी और पंचामृत से अभिषेक करें। फिर इन्हें पोंछ लें।
फिर इन्हें चंदन, मौली, जनेऊ, गंधम (इत्र) पुष्पक) फूल और बेल पत्र (विल्व), दीपम (दीपक), धुप (धूप) और नैवेद्य (भोजन) अर्पित करें।
दो पान के पत्तों पर ताम्बूलम रख, सुपारी, दक्षिणा और फलों को अर्पित करें।
भगवान शिव की आरती कपूर से कर पूजा का समापन करें।
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आवश्यकता है-
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देव दीपावाली की कथा-
त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया था। देवतागण इससे बेहद ही उद्विग्न हो गए। इसके बाद देवताओं ने स्वर्ग से त्रिशंकु को भगा दिया। इससे शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। स्वर्ग से निकाले जाने के बाद क्षुब्ध विश्वामित्र ने एक नई सृष्टि बनाई जो पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त थी। इसकी रचना उन्होंने अपने तपोबल से की। उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊँट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम शुरू किया। साथ ही विश्वामित्र ने ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतिमा भी बनाई। इन प्रतिमाओं को अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया। इससे पूरी सृष्टि डांवाडोल हो उठी। हर तरफ कोहराम की स्थिति बन गई।
 
हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की। इससे महर्षि बेहद प्रसन्न हो गए। उन्होंने एक अलग और नई सृष्टि की रचना का संकल्प वापस ले लिया। इससे देवताओं और ऋषि-मुनियों को अत्यंत प्रसन्नता हुई। इसी आनन्द में पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह दीपावली मनाई गई। इसी को हर वर्ष देव दीपावली के रूप में मनाते है।
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देव इन मंत्रों का करें जाप-
भगवान शिव के मंत्र (जाप हेतु)- 
ऊं नम: शिवाय
ॐ हौं जूं सः
ॐ भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्
ॐ स्वः भुवः भूः
ॐ सः जूं हौं ॐ

भगवान विष्णु मंत्र-
 नमो नारायण नम:
- नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। 
सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युगधारिणे नम:।।

विष्णु जी की आरती-
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

शिव जी की आरती-
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥



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