2020 ने तुमने हमें बहुत कुछ सिखाया...


अनुराधा त्रिवेदी* 
(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110 

बीतता हुआ 2020 संपूर्ण मानव जाति के लिए संकट का काल रहा। 2020 ने लोगों के आर्थिक संसाधनों की व्यवस्था खराब कर दी। लोगों ने भूख और बेरोजगारी से संघर्ष किया। हजारों-हजार लोग चिलकती धूप में, अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ अपने कार्यस्थल से सैकड़ों मील दूर, भूख-प्यास, धूप सहते हुए , 2020 तुमने लोगों को भूख का अनुभव कराया। 2020 भय का वातावरण बनाया। 2020 तुमने लोगों से रोजगार छीन लिया। 2020 तुमने ऐसी महामारी देश-दुनिया को दिया, जिसकी न तो दवाई है, न ही इस बीमारी को जानता था। 2020 तुमने सीमा पार आतंकवाद और सीमा पार अतिक्रमणवाद दोनों से हमारा सामना कराया। जाने कितने हमसे बिछड़ गए। 2020 तुमने हमारी हमारी अंतिम-यात्रा में भी हमारे अपने लोगों को हमसे दूर कर दिया।

इस तमाम विपदाओं के बाद 2020 तुमने कुछ अनमोल चीजें भी हमको दी। हमने जाना, कि परिवार क्या होता है। हमने जाना कि पारिवारिक पे्रम क्या होता है। हमने जाना, कि दीनों की सेवा कैसे की जाती है। तुमने हमको सिखाया, कि अनुशासन जीवन के लिए कितना आवश्यक है। देश एक ओर कोरोना से लड़ रहा था, दूसरी ओर सीमा पर चीन और पाकिस्तान से। 2020 ने हमको सिखाया, कि आपत-काल में मजबूती से कैसे खड़ा हुआ जाता है। जब सब तरफ रोजगार-धंधे बंद हो गए, तब लोगों ने अपने पारंपरिक हुनर के माध्यम से अपने परिवार का पालन-पोषण किया। जब लोगों के घरों में भोजन की व्यवस्था नहीं थी, तब सरकार और समाजसेवी संगठनों और समाज ने सामने आकर सारे देश भर में गरीबों के भोजन की व्यवस्था की। प्रयास रहा, कि कोई भूखा न रहे। चारों ओर लंगर और भोजन की रौनक छा गई।

ये हिन्दुस्थान है, जिसने भारी विषम स्थितियों में अपने नैसर्गिक गुणों को संभालते हुए देश को मजबूती। 2020 का कैलेण्डर बदलने जा रहा है। हम 2021 में प्रवेश करने जा रहे हैं। हमारी भारतीय संस्कृति दया, क्षमा, पे्रम, सद्भाव की संस्कृति सदैव जीवंत रहे, क्योंकि ये काल संस्कृति के संक्रमण का काल भी है। सारे आनन्दोत्सव मनाए जाएं, पर अपनी संस्कृति के संरक्षण में रहते हुए। वैसे तो संस्कृतियों ने संचरण का गुण होता है। जब एक संस्कृति दूसरी संस्कृति के संपर्क में आती है, तो उससे कुछ न कुछ ग्रहण करते हुए आगे चलती है, लेकिन उसकी मौलिकता, उसकी प्राचीनता बनाए रखते हुए।

कोरोना का संकट अभी मिटा नहीं है। वो खतरा हमारे सिर पर लगातार बना हुआ है। उसके साथ ही संस्कृतियों के टकराव का भी अंदेशा बना हुआ है। धर्म और आस्था के विवाद भी कहीं न कहीं प्रभावी हैं। इन सबके बीच एक आशा उपजती है, कि जो हुआ सो हुआ, कम से कम 2021 हमारे लिए राहत का साल होगा, हम बीमारी पर विजय पाएंगे। नए वर्ष में भारत विश्व में और अधिक मजबूती से खड़ा होगा। भारत का नागरिक स्वस्थ, सुखी और संपन्न होगा। भारत में नव-वर्ष चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा को मनाया जाता है। तब प्रकृति भी वसंत के आगमन के लिए अपनी पूरी सुंदरता के साथ सारे जगत में हरियाली फैलाती है।

चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा से भी शक्ति उपासना का पर्व आरंभ होता है। सारा समाज एक सात्विक मानसिकता के साथ शक्ति की उपासना में लीन होता है। शक्ति की सामूहिक उपासना ही इस देश को शक्ति और संबल देती है। यहीं से भारतीय नववर्ष आरंभ होता है। भारतीय नववर्ष शक्ति उल्लास और उमंग के साथ, प्रकृति के साथ मिलकर नववर्ष मनाता है। नई फसलों की ऋतु, नए सात्विक भाव और प्रकृति से मिल्ला उल्लास, यही भारतीयता की पहचान है। पर, चूंकि पूरी दुनिया अंग्रेजी नववर्ष से आकर्षित है, पारसी अपना नववर्ष नवरोज के रूप में मनाते हैं और कश्मीरी हिन्दू भी। वोहरा और शिया संप्रदाय मोहर्रम की पहली तारीख को नववर्ष मनाता है और ईसाई फस्ट जनवरी को न्यू इयर मनाता है। मेरा देशवासियों से विनम्र आग्रह है, कैलेंडर बदलें, संस्कृति नहीं।
*प्रबंध सम्पादक - धर्म नगरी, DN News  
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