भगवान राम के समय का यह मंदिर क़ुतुबमिनार से ऊँचा है

त्रेता काल है ये दिव्य प्राचीन शिवालय  मुरूदेश्वर मंदिर 
  •  दशकों तक इतिहास से वामपंथी छल का उदाहरण है मंदिर 
  •  सैकड़ों प्राचीन मंदिर है, जिनके सामने तेजोमहल (ताजमहल) कुछ नहीं 
  • कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले में स्थित मंदिर (हिन्दू जैन मन्दिरों पर बना) क़ुतुबमिनार से 11 फीट ऊँचा है  
 
मुरुदेश्वर मंदिर का गोपुरम्, भटकल तहसील, उत्तर कन्नड जिला (कर्नाटक)

(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110 
राजेश पाठक* 
सदियों पुराना मुरूदेश्वर मंदिर भगवान राम के समय का है. इसकी प्राचीनता का अनुमान इस एक तथ्य से हो जाता है कि इसके निर्माण का वर्ष अज्ञात है. इसकी ऊंचाई 249 फीट है. अर्थात्‌ सदियों तक यह मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा भवन रहा. लेकिन चाहे जितना ध्यान दें, अपने दिमाग पर जितना भी जोर लगा लें आप, लेकिन आपको याद नहीं आएगा कि किसी भी पाठ्य पुस्तक में इस मंदिर का कोई उल्लेख भी आपने देखा सुना या पढ़ा हो !

जिस कुतुबमीनार की ऊंचाई 238 फीट है, उसके उल्लेख से हमारी पाठ्य पुस्तकें पटी रहीं. इतिहास में जब भी ऊंची इमारतों की बात आयी तो केवल कुतुबमीनार का ही महिमामंडन देखने सुनने पढ़ने को मिला,‌ लेकिन मुरूदेश्वर मंदिर का कोई जिक्र तक नहीं किया गया ? क्यों ? क्यों हमें बचपन से ही धूर्त और कुटिल वामपंथियों द्वारा गढ़ा गया मनगढ़ंत वामपंथी इतिहास ही पढ़ाया और परोसा जाता रहा है.

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आज सोशल मीडिया की कृपा से हमारी प्राचीन संस्कृति के ऐसे गौरवशाली स्वर्णिम पृष्ठ और अध्याय अब लोगों तक पहुंचना शुरू हुए हैं.

कर्नाटक में उत्तर कन्नड जिले की भटकल तहसील स्थित एक कस्बा है मुरूदेश्वर. यह कस्बा अरब सागर के तट पर स्थित है और मंगलुरु से 165 किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर है. मुरुदेश्वर सागरतट, भारत के सब से सुन्दर तटों में से एक है. उल्लेखनीय है कि भगवान शिव का ही एक नाम मुरुदेश्वर भी है। कन्दुका पहाड़ी पर, तीन ओर से पानी से घिरा यह मुरुदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. यहाँ भगवान शिव का आत्म लिंग स्थापित है, जिस की कथा रामायण काल से है। 

अमरता पाने हेतु रावण जब शिव जी को प्रसन्न करके उनका आत्मलिंग अपने साथ लंका ले जा रहा था। तब रास्ते में इस स्थान पर आत्मलिंग धरती पर रख दिए जाने के कारण स्थापित हो गया था. गुस्से में रावण ने इसे नष्ट करने का प्रयास किया उस प्रक्रिया में, जिस वस्त्र से आत्म लिंग ढका हुआ था वह म्रिदेश्वर जिसे अब मुरुदेश्वर कहते हैं में जा गिरा. इस की पूरी कथा शिव पुराण में मिलती है.

यहां भगवान शंकर की विश्व की दूसरी सबसे ऊंची मूर्ति स्थित है. इस मूर्ति का निर्माण बाद में किया गया है.

मुरुदेश्वर मंदिर के बाहर बनी शिव भगवान की इस मूर्ति की ऊंचाई 123 फीट है.अरब सागर में बहुत दूर से इसे देखा जा सकता है. इसे बनाने में दो साल लगे थे और शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने इसे बनाया था. इसका निर्माण भी श्री आर एन शेट्टी ने करवाया और लगभग 5 करोड़ रुपयों की लागत आई थी.मूर्ति को इस तरह बनवाया गया है कि सूरज की किरणे इस पर पड़ती रहें और यह चमकती रहे. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इस मूर्ति की सुंदरता और दिव्यता कई गुना बढ़ जाती है.
*अवैतनिक संपादक
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मुरुदेश्वर मंदिर का शिखर


Wikipedia से... 

मुरुदेश्वर (कन्नड : ಮುರುಡೇಶ್ವರ) दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में उत्तर कन्नड जिले के भटकल तहसील स्थित एक कस्बा है। 'मुरुदेश्वर' भगवान शिव का एक नाम है। यहाँ भगवान शंकर की विश्व की दूसरी सबसे ऊँची मूर्ति स्थित है। यह कस्बा अरब सागर के तट पर स्थित है और मंगलुरु से १६५ किलोमीटर दूर अरब सागर के किनारे बहुत ही सुन्दर एवं शांत स्थान पर बना हुआ है। मुरुदेश्वर सागरतट, कर्णाटक के सब से सुन्दर तटों में से एक है। पर्यटकों के लिए यहाँ आना दोगुना लाभप्रद रहता है, जहां एक ओर इस धार्मिक स्थल के दर्शन होते हैं, वहीं दूसरी तरफ प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द भी मिलता है।

मुरुदेश्वर मंगलुरु-मुम्बई रेलपथ पर स्थित एक रेलवे स्टेशन भी है।

मुरुदेश्वर मन्दिर परिसर के पीछे एक दुर्ग है जो विजयनगर साम्राज्य के काल का है।

पौराणिक सन्दर्भ[संपादित करें]

कन्दुका पहाड़ी पर, तीन ओर से पानी से घिरा यह मुरुदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ भगवान शिव का आत्म लिंग स्थापित है, जिस की कथा रामायण काल से है। अमरता पाने हेतु रावण जब शिव जी को प्रसन्न करके उनका आत्मलिंग अपने साथ लंका ले जा रहा था। तब रास्ते में इस स्थान पर आत्मलिंग धरती पर रख दिए जाने के कारण स्थापित हो गया था। गुस्से में रावण ने इसे नष्ट करने का प्रयास किया उस प्रक्रिया में, जिस वस्त्र से आत्म लिंग ढका हुआ था वह म्रिदेश्वर जिसे अब मुरुदेश्वर कहते हैं में जा गिरा। इस की पूरी कथा शिव पुराण में मिलती है। राजा गोपुरा या राज गोपुरम विश्व में सब से ऊँचा गोपुरा माना जाता है। यह २४९ फीट ऊँचा है। इसे एक स्थानीय व्यवसायी ने बनवाया था। द्वार पर दोनों तरफ सजीव हाथी के बराबर ऊँची हाथी की मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।[1]

मुरुदेश्वर मंदिर के बाहर बनी शिव भगवान की मूर्ति विश्व की दूसरी सबसे ऊँची शिव मूर्ति है और इसकी ऊँचाई १२३ फीट है। अरब सागर में बहुत दूर से इसे देखा जा सकता है। इसे बनाने में दो साल लगे थे और शिवमोग्गा के काशीनाथ और अन्य मूर्तिकारों ने इसे बनाया था। इसका निर्माण उसी स्थानीय श्री आर एन शेट्टी ने करवाया और लगभग ५ करोड़ भारतीय रुपयों की लागत आई थी। मूर्ति को इस तरह बनवाया गया है कि सूरज की किरणे इस पर पड़ती रहें और यह चमकती रहे।



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