एकादशी : उत्पन्ना एकादशी को हजार एकादशी के समान फलदायी "त्रिस्पृशा महायोग"

 एकादशी दशमी युक्त होने से कल होगी एकादशी 



(धर्म नगरी / DN News
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आज गुरुवार (10 दिसम्बर 2020) दोपहर 12:52 से उत्पत्तिका, उत्पन्ना या वैतरणी एकादशी लगेगी, जो कल (11 दिसम्बर) सुबह 10:04 तक उत्पन्ना एकादशी है। अर्थात उत्पन्ना एकादशी दशमी युक्त है। अतः 
उदयातिथि के अनुसार, कल 11 दिसम्बर (शुक्रवार) को एकादशी का व्रत (उपवास) होगा। इस एकादशी को त्रिस्पृशा के महायोग बन रहा है, जो अत्यंत महत्पूर्ण एवं पुण्यदायी है।


उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि-
पद्म पुराण के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत में भगवान विष्णु समेत देवी एकादशी की पूजा का भी विधान है। इसके अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातुन करना चाहिए ताकि अन्न का अंश मुंह में न रहे। 

उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन, तथा रात को दीपदान करना चाहिए। 

उत्पन्ना एकादशी की सारी रात भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। 
श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। 
अगली सुबह पुनः भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमता के अनुसार दान देकर विदा करना चाहिए।

त्रिस्पृशा का महायोग-
त्रिस्पृशा के महायोग का महत्व हजार एकादशियों का फल देने वाले व्रत के समान बताया गया है। 11 दिसम्बर 2020 शुक्रवार को त्रिस्पृशा-उत्पत्ति एकादशी है। शास्त्रानुसार, एक त्रिस्पृशा-एकादशी के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी को रात में जागरण करने वाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है।

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एकादशी व्रत का महत्व-
- एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है।
- जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
- जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
- एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं।इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है।
- धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है।
- कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है।
- परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है। पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि, जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। भगवान शिव ने नारदजी से कहा है-  एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन किये व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है।

एकादशी के दिन करने योग्य-
एकादशी को दिया जला के विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें 
विष्णु सहस्त्रनाम न हो, तो 10 माला गुरुमंत्र का जप कर लें।
अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे।

एकादशी के दिन रखें ये सावधानी-
माह के प्रत्येक पक्ष (15-15 दिन में)  एकादशी आती है. एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है, लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके, तब भी उनको चावल का त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है... तो एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है, ऐसा सुविख्यात कथावाचक डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा है।

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त्रिस्पृशा की कथा-   
शास्त्रानुसार, एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी' के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी को रात में जागरण करने वाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है।

"पद्म पुराण" के अनुसार,  देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से कहा- ‘‘सर्वेश्वर ! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिये, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं।"

महादेव बोले- ‘‘विद्वान् ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है, इसीलिए इसे ‘वैष्णवी तिथि कहते हैं। भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में पूछने पर बताया ‘‘जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा' समझना चाहिए। यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करोड़ तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस दिन भगवान के साथ सदगुरु की पूजा करनी चाहिए।"

यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है। इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। हजार अश्वमेघ एवं सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है। इस व्रत को करने वाला पुरुष पितृ कुल, मातृ-कुल तथा पत्नी-कुल के सहित विष्णु-लोक में प्रतिष्ठित होता है। इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए। जिसने इसका व्रत कर लिया, उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया।

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