गांधी परिवार के इकलौते बीज राहुल, जिन्हें भारतीय राजनीति में वृक्ष बनाने हो रही हैं कोशिशें

सोनिया ने गांधी परिवार के पुराने वफादार पर जताया भरोसा !

कांग्रेस कार्य समिति की बैठक (फाइल फोटो)
-अनुराधा त्रिवेदी
(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110)
गुरु द्रोणाचार्य का अश्वस्थामा के प्रति पुत्रमोह अंत में विनाशकारी सिद्ध हुआ और अर्जुन एक कुशल योद्धा साबित हुए। हालांकि, गुरु द्रोण ने शिक्षा देते समय अपने बेटे के लिए चालाकियां की थीं। पिछले लगभग एक दशक से आधुनिक भारत की राजनीति में हम एक और ऐसा उदाहरण देखते हैं सोनिया गांधी और राहुल गांधी के रूप में। बीते दस साल के अनुभव से ये साबित हो गया, कि राहुल गांधी राजनीति के लिए नहीं बने हैं। वह आजकल की राजनति में फिट नहीं बैठते। चूंकि, वह गांधी परिवार के इकलौते बीज हैं, जिन्हें भारतीय राजनीति में वृक्ष बनाए जाने की कोशिशें की जा रही हैं।

बताया जाता है, कि अब तक अध्यक्ष पद पर बिराजने के लिए राहुल गांधी ने भी अपनी स्वीकृति दे दी। सोनिया गांधी ने अहमद पटेल के निधन के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और गांधी परिवार के वफादार कमलनाथ पर भरोसा जताते हुए उन्हें नए संकटमोचक की भूमिका सौंपी गई है। सोनिया चाहती हैं, कमलनाथ जल्द ही कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों दोबारे सौंपे जाने का रास्ता तैयार करें। सोनिया गांधी और उनके वफादार चाहते हैं, कि राहुल गांधी के नाम पर उसी तरह सहमति बन जाए, जिस तरह कई बार सोनिया गांधी के लिए बनाई गई। 

CWC मीटिंग में सोनिआ एवं राहुल गाँधी (फाइल फोटो) 

पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर सवाल उठाते हुए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले पार्टी के 23 नेताओं ने पार्टी के भविष्य को लेकर चिन्ता जताई है। कमलनाथ को इन नेताओं को भी साधने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन राहुल के नाम पर कई वरिष्ठ नेता कई तरह के किन्तु, परन्तु लगा रहे हैं। इससे सोनिया की परेशानी बढ़ गई है। सोनिया का संकट इसलिए भी बढ़ गया है, कि पिछले बीस साल से अहमद पटेल सोनिया गांधी के संकटमोचक माने जाते रहे हैं और अब वो इस दुनिया में नहीं हैं। 

फिलहाल, सोनिया परिवार के पास ऐसा कोई सेनापति नहीं दिख रहा है, जो राहुल गांधी को बिना किसी विवाद के निर्बाध रूप से पार्टी की कमान सौंपे जाने का माहौल बना सके। इसलिए सोनिया गांधी ने परिवार के पुराने वफादार और वरिष्ठ नेता कमलनाथ पर भरोसा जताया है।
दिग्विजय  सिंह,कमलनाथ (फाइल फोटो)
वहीं, मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खुलकर बयान दिया, कि राहुल गांधी फिर से पार्टी अध्यक्ष बनें। दिग्विजय सिंह के करीबी सूत्र कहते हैं, कि राहुल, प्रियंका और सोनिया के सामने वह अपना दावा पेश नहीं करेंगे, लेकिन यदि इन तीनों के अतिरिक्त किसी और को पार्टी अध्यक्ष बनाने की बात की गई, तो वह खुद अपना दावा पेश कर देंगे। कमलनाथ खुद को तटस्थ दिखाते हुए 10 जनपथ परिवार के वफादारों और गुट-23 के बीच पुल बने हुए हैं और दोनों खेमों की स्वीकार्यता प्राप्त करने की कोशिश में हैं। आगे-आगे देखिए होता है क्या ? ये तो वक्त बताएगा कि ऊँट किस करवट बैठता है।


किसी समय देश की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक पार्टी कांग्रेस आज अंतर्कलह और नेतृत्व के संकट से जूझ रही है। पार्टी की 2014 से 2019 तक की हार के बाद पार्टी नेताओं ने न तो कोई सबक सीखा है, न ही पार्टी को उबारने के लिए कोई सार्थक प्रयास किए। कांग्रेस की राजनीति गांधी परिक्रमा से शुरू होकर गांधी परिवार की परिक्रमा पर ही समाप्त हो जाती है। पार्टी की लोकप्रियता के गिरते ग्राफ से न तो शीर्ष नेतृत्व कोई अन्तर हो रहा है, न ही नेताओं को।

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शीर्ष नेतृत्व के विरोध में कोई भी कांग्रेस नेता मुखर होकर यदि कुछ कहता है, तो देश निकाला की तरह कांग्रेस में उसे अछूत मान लिया जाता है। कांग्रेस गांधी परिवार पर आश्रित है, लेकिन कांग्रेस को कामचलाऊ तरीके से चलाया जा रहा है। राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद जब सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था, तब ये माना गया था, कि अब कांग्रेस जल्द ही पूर्णकालिक अध्यक्ष का चयन करेगी। संभावना ये भी थी, कि अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर का सदस्य हो सकता है। लेकिन बरस बीत जाने के बाद भी कुछ भी नहीं हुआ। संदेश ये गया, कि गांधी परिवार यथास्थिति कायम रखना चाहता है। जबकि बिना किसी पद पर रहते हुए पार्टी के सारे निर्णय ले रहे हैं। 

राहुल गांधी को दिशा दिखाने की हिम्मत किसी में नहीं है और राहुल में पार्टी को दिशा देने की सामर्थ्य। ज्योतिरादित्य सिंधिया और अन्य नेताओं द्वारा कांग्रेस छोडऩे से इस बात की पुष्टि हुई। कांग्रेस के कुछ नेता राहुल को फिल से पार्टी अध्यक्ष बनाना चाहते हैं और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इस बात से सहमत नहीं हैं। असल में पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल के नेतृत्व में पार्टी का भविष्य उज्जवल नहीं देख रहे हैं। 

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राहुल की राजनीति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लांछन लगाने तक सिमट कर रह गई है। राहुल के तमाम बयान प्रधानमंत्री मोदी को नीचा दिखाने पर केन्द्रित रहते हैं। जिसका परिणाम राफेल सौदे को लेकर राहुल द्वारा प्रधानमंत्री पर अमर्यादित हमले के रूप में करारी हार मिलने के बाद भी उन तौर-तरीकों को नहीं छोड़ा, जो उनकी छवि के साथ-साथ कांग्रेस पर भी भारी पड़ रहा है। 

वरिष्ठ नेता राहुल के अपरिपक्व राजनीति के सहमत नहीं हैं। कांग्रेस सरीखे दल का संचालन करना राहुल के बस के बात नहीं है। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस में पूर्णकालिक अध्यक्ष की कमी को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था, जिसपर विचार करने के बजाय उन नेताओं के रवैये की निन्दा की गई, उन्हें अपनी सीमा में रहने का संदेश देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में उन नेताओं को जिम्मेदारी दी गई, जो राहुल गांधी के नजदीक हैं।
*सलाहकार सम्पादक, धर्म नगरी, DN News हैं

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