कालभैरव अष्टमी : तंत्र के देव, जिनकी कृपा के बिना अधूरी रहती है तंत्र साधना

इस दिन पूजन से-
रोगों से दूर रहता है व्यक्ति
घर से दूर होती है सभी नकारात्मकता  
प्रेत और बुरी शक्तियां दूर भागती है
-भगवान शिव ने इसी दिन लिया कालभैरव का अवतार 

बाबा कालभैरव, उज्जैन जिनको मदिरा चढ़ाते हैं और बाबा साक्षात ग्रहण करते हैं  

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राजेश पाठक*
मार्गशीर्ष (अगहन) माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस तिथि को कालभैरव जयंती को रूप में मनाते हैं। इस बार कालभैरव अष्टमी 7 दिसम्बर (सोमवार) 2020 को है।

शतरुद्र संहिता के अनुसार, भैरव को साक्षात शंकर ही मानना चाहिए। भगवान कालभैरव को तंत्र का देवता माना गया है। तंत्र शास्त्र के अनुसार, किसी भी सिद्धि के लिए भैरव की पूजा अनिवार्य है। इनकी कृपा के बिना तंत्र साधना अधूरी रहती है। इनके 52 रूप (52 भैरव) माने जाते हैं। इनकी कृपा प्राप्त करके भक्त निर्भय और सभी कष्टों से मुक्त हो जाते हैं। कालभैरव जयंती पर कुछ आसान ज्योतिष शास्त्र के उपाय कर आप भगवान कालभैरव को प्रसन्न कर सकते हैं।

कृष्णपक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी या भैरवाष्टमी के भगवान भैरव की पूजा और व्रत करते हैं। इस व्रत में भगवान काल भैरव की उपासना की जाती है। कालअष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा की जाती है। इस दिन पूजा करने से घर में फैली हर प्रकार की नकारात्मकता दूर हो जाती है। भगवान शिव ने बुरी शक्तियों को मार भागने के लिए रौद्र रुप धारण किया था। कालभैरव इन्हीं का स्वरुप है।

नारद पुराण में बताया गया है, कि कालभैरव की पूजा करने से मनुष्‍य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मनुष्‍य किसी रोग से लम्बे समय से पीड़‍ि‍त है तो वह रोग, पीड़ा और दुख भी दूर होती हैं।

काल भैरव की पूजा विधि-
इस दिन भगवान शिव के स्‍वरूप काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। कालाष्टमी के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ हो जाएं। संभव हो तो गंगा जल से शुद्धि करें। व्रत का संकल्‍प लें। पितरों को याद करें और उनका श्राद्ध करें। ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः का जाप करें। इसके उपरान्त काल भैरव की आराधना करें। अर्धरात्रि में धूप, काले तिल, दीपक, उड़द और सरसों के तेल से काल भैरव की पूजा करें। व्रत के सम्पूर्ण होने के बाद काले कुत्‍ते को मीठी रोटियां खिलाएं।

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रोगों से दूर रहता है व्यक्ति-
कालअष्टमी के दिन भैरव पूजन से प्रेत और बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं। मान्यता के अनुसार भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है। इस दिन काले कुत्ते को रोटी अवश्य खिलानी चाहिए। कालाष्टमी पर किसी पास के मंदिर जाकर कालभैरव को दीपक जरूर लगाना चाहिए।

कालाष्टमी, कालभैरव व्रत- 
कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखते हुए भगवान भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती की कथा और भजन करने से भी घर में सुख और समृद्धि आती हैं। साथ ही काल भैरव की कथा सुननी चाहिए। इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं। काल उससे दूर हो जाता है। व्रत को करने से व्यक्ति के रोग दूर होने लगते हैं और उसे हर काम में सफलता भी प्राप्त होती है।

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इसे भी पढ़ें-
6000 वर्ष प्राचीन मन्दिर जहाँ भैरव करते है मदिरापान
(मूर्ति में छिद्र नहीं, प्रतिमा कैसे करती है मदिरापान, कोई जान नहीं सका) 
http://www.dharmnagari.com/2020/12/Kal-Bhairav-Ujjain-6000-Year-Old-Temple.html
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कालभैरव को प्रसन्न करने के उपाय (कोई एक करें)-
1- कालभैरव अष्टमी को प्रातःकाल शीघ्र उठकर स्नान आदि करने के बाद कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठ जाएं। सामने भगवान कालभैरव की चित्र स्थापित करें व पंचोपचार से विधिवत पूजा करें। इसके बाद रूद्राक्ष की माला से नीचे लिखे मंत्र की कम से कम पांच माला जाप करें तथा भैरव महाराज से सुख-संपत्ति के लिए प्रार्थना करें। मंत्र- 
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:

2- कालभैरव अष्टमी पर किसी ऐसे भैरव मंदिर में जाएं, जहां कम ही लोग जाते हों। वहां जाकर सिंदूर व तेल से भैरव प्रतिमा को चोला चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, पुए, जलेबी आदि का भोग लगाएं। मन लगाकर पूजा करें। बाद में जलेबी आदि का प्रसाद बांट दें। याद रखिए अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।

3- कालभैरव अष्टमी को भगवान कालभैरव की विधि-विधान से पूजा करें और नीचे लिखे किसी भी एक मंत्र का जाप करें। कम से कम 11 माला जाप अवश्य करें। मंत्र- 

ॐ कालभैरवाय नम:।
ॐ भयहरणं च भैरव:।
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं।
ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्

4- कालभैरव अष्टमी की सुबह भगवान कालभैरव की उपासना करें सायंकाल सरसों के तेल का दीपक लगाकर समस्याओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।

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काशी के कोतवाल : कालभैरव-  
अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरव अष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। शिव पुराण के अनुसार कालभैरव को भगवान शिव का अवतार माना जाता है, ये भगवान शंकर के दूसरे रूप हैं। इस बार काल भैरव अष्टमी 10 नवंबर, शुक्रवार के दिन है। इनकी पूजा से घर में नकारत्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि का भय नहीं रहता। कालभैरव के जन्म को लेकर पुराणों में एक कथा है। 
बाबा कालभैरव : काशी के कोतवाल 
शिव पुराण के अनुसार, एक बार सभी देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है तब दोनों ने अपने को श्रेष्ठ बताया आपस में इसके लिए एक दूसरे युद्ध करने लगे। इसके बाद सभी देवताओं ने वेदशास्त्रों से पूछा तो उत्तर आया, जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, अनादि अंनत और अविनाशी तो भगवान रूद्र ही हैं।

वेद शास्त्रों से शिव के बारे में यह सब सुनकर ब्रह्मा ने अपने पांचवें मुख से शिव के बारे में भला-बुरा कहा। इससे वेद दु:खी हुए। इसी समय एक दिव्य ज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम 'रूद्र' रखा है, अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ।

ब्रह्मा के इस आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया और उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। उस दिव्य शक्ति संपन्न भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से शिव के प्रति अपमानजनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा के पांचवे सर को ही काट दिया।  शिव के कहने पर भैरव काशी प्रस्थान किये जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है।

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कालभैरव को प्रसन्न करने के कुछ टोटके-
साधकों के अनुसार, बाबा कालभैरव को प्रसन्न करना अत्यंत सरल है, परन्तु अगर वे रूठ जाएं तो मनाना भी कठिन होता है। कालभैरव अष्टमी पर प्रस्तुत हैं कुछ सरल उपाय, जो निश्चित रूप श्रद्धा-विश्वास से करने से बाबा कालभैरव प्रसन्न होंगे-

रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दें। अगर कुत्ता यह रोटी खा ले, तो समझिए आपको कालभैरव का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें, परन्तु सप्ताह में केवल इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार) ये उपाय करें। यही तीन दिन कालभैरव के माने गए हैं।
 
उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6-7 के बजे के मध्य बिना किसी से कुछ बोलें, घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग केवल रविवार के लिए हैं।

शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे कालभैरव जी का मंदिर खोजें, जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। वहां उनका पूजन करें। बाद में 5 से 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटें। याद रखिए कि अपूज्य कालभैरव की पूजा से कालभैरव विशेष प्रसन्न होते हैं।

हर गुरुवार को कुत्ते को गुड़ खिलाएं। रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कुष्ठ पीड़ित (कोढ़ी), भिक्षुक को मदिरा की बोतल दान करें। सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन कालभैरव को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें

रविवार या शुक्रवार को किसी भी कालभैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गुगल की सुगंधित 33 अगरबत्ती जलाएं। पांच नींबू, पांच गुरुवार तक कालभैरव जी को चढ़ाएं।

सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर कालभैरव के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।

... Article being updated 

(*संपादक "धर्म नगरी", DN News)
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