श्रीराम मंदिर निर्माण स्थल के नीचे सरयू की धारा, केवल पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार उठाने...


700 टन वजन डाला तो 4 इंच नीचे धंस गई भूमि 
- भूकंप का झटका दिया तो उन पर क्रेक भी आ गए
- 200 फीट नीचे जांच में मिली बलुआ मिट्टी 
धर्म नगरी / DN News 
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धर्म नगरी अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण स्थल के ठीक नीचे सरयू जी की एक धारा मिली है।एलएंडटी द्वारा खोदी गई नींव के ऊपर लगाए गए पिलरों पर पांच मंजिला मंदिर के बराबर का लगभग 700 टन वजन डाला, तो वह चार इंच नीचे धंस गए। पाइलिंग टेस्ट के समय पिलर थोड़ा खिसक गया, तो पता चला कि इस कारण जमीन के नीचे सरयू नदी की परत मिली। तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है, कभी इसके पास से सरयू नदी गुजरती रही होगी। वहीं, जब भूकंप का झटका दिया गया तो उन पर क्रेक भी आ गए। 

उल्लेखनीय  है, पिछले एक महीने से अधिक समय से श्रीराम जन्मभूमि पर पाइलिंग की खुदाई कर मिट्टी की जांच का काम चल रहा था। जब मंदिर निर्माण में लगी कंपनी लॉर्सन एंड टूब्रो को अनुकूल मिट्टी की पर्त नहीं मिली, तो राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सामने समस्या आईं। इंजीनियरों के सामने आ रही तकनीकी चुनौतियों के बीच जब 200 फीट नीचे के मिट्टी की जांच की गई, पता चला वहां की मिट्टी बलुआ है। अर्थात केवल पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार को उठाने के लिए जिस तरह की मिट्टी की आवश्यकता थी, वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही है

जन्मस्थान तीर्थ स्थल न्यास की बैठक
सरयूजी की एक धारा मिलने के बाद कल (29 दिसंबर) को श्रीराम मंदिर जन्मस्थान तीर्थस्थल न्यास की बैठक हुई। बैठक में अनेक विशेषज्ञों ने सुझाव दिए। न्यास के महामंत्री चंपत राय ने बताया, विशेषज्ञों की राय के बाद नींव का काम नए सिरे से किया जाएगा। बैठक में नेशनल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) के तकनीशियन और अक्षरधाम मंदिर निर्माण करने वाले लोग सम्मिलित थे। एनबीआरआई के 14 तकनीशियन आठ दिनों तक जन्मभूमि निर्माण स्थल का अध्ययन करेंगे। जमीन के नीचे की तस्वीरें लेकर और अन्य तकनीकी पहलुओं का अध्ययन कर ट्रस्ट को बताएंगे। उसके बाद नींव रखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।

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अब नींव की डिजाइन और तकनीक बदली जाएगी। विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने बताया, नेशनल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, आईआईटी-मुंबई और आईआईटी-दिल्ली को इस काम में लगाया गया है। टाटा कंस्ट्रक्शन का भी सहयोग लिया जा रहा है। उन्होंने बताया, क्योंकि मंदिर की आयु 1000 वर्ष से अधिक होगी, इसलिए मंदिर की नींव की डिजाइन भी उतना ही अच्छी और शक्तिशाली होनी चाहिए। चूँकि, जन्मभूमि के नीचे दलदली भूमि निकल आई है, तो तकनीकी विशेषज्ञ और वैज्ञानिक बताएंगे कि नींव के लिए क्या तकनीक अपनानी है, क्योंकि जन्मभूमि का स्थान तो बदला नहीं जा सकता है।

तकनीक का उपयोग-
यह भी संभव है, जिस तरह से नदियों को रोकने के लिए बांध बनाए जाते हैं, उसी तकनीक का उपयोग राममंदिर की नींव बनाने में किया जा सकता है। पूरे क्षेत्र को कृत्रिम चट्टान में परिवर्तित किया जाए। फिर उसके ऊपर नींव के पिलर लगाए जाएं। नींव के पिलर की गहराई 140 से 190 फुट तक होंगे। पिलर से लेकर भवन तक संपूर्ण निर्माण पत्थर का होगा, क्योंकि सीमेंट की उम्र कम होती है और पत्थर की आयु 1000 वर्ष तक हो सकती है।

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गोस्वामी तुसलीदास के समय धारा-
श्रीरामचरित मानस की जब गोस्वामी तुलसीदास ने रचना की, उस समय सरयू नदी राम जन्मभूमि के और निकट बहती थी। इसीलिए यहां जल-स्तर (वाटर लेवल का स्टेटस) अन्य स्थानों के अपेक्षा ऊपर है। इसी कारण यहाँ जमीन के नीचे रेत की पर्त है। राम मंदिर का निर्माण ईट से नहीं, तराशे से पत्थर की शिलाओं से हो रहा है, जिसका वजन निश्चित रूप से अधिक होगा। राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट चाहता है, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की अवधि 1000 साल से कम ना हो।इसीलिए राम मंदिर की बुनियाद के पिलर में लोहे की सरिया का प्रयोग ना किया जाए, क्योंकि लोहे में जंग जल्दी लगता है।

केमिकल के मिश्रण से बढाएंगें बढ़ाई-
जिस तरह नदी में निर्माण के लिए पिलर हेतु बोरिंग की जाती है, उसी प्रकार राम मंदिर निर्माण के लिए भी अत्याधुनिक मशीनों द्वारा बुनियाद के पिलर को जमीन में बोर किया जाएगा। इसमें परीक्षण के बाद चुनी गई पत्थर की गिट्टी और मोरंग के साथ उच्च क्षमता वाली सीमेंट में अलग से केमिकल का मिश्रण कर उसकी क्षमता बढ़ाई जाएगी
 इसके बाद इन तीनों के मिश्रण को मशीन के द्वारा पिलर के लिए खोदे गए गहरे होल में सांचे के माध्यम से डाला जाएगा, जिससे सूखने के बाद वह पिलर शिला में बदल जाए

टेस्टिंग हेतु 12 पिलर के निर्माण में खिसके पिलर-
राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए 1,200 स्तभों का निर्माण किया जाना है। इसके पहले टेस्टिंग के लिए 12 पिलर का निर्माण किया गया है, लेकिन टेस्टिंग के दौरान जब इस पर भार डाला गया तो कुछ पिलर जमीन के निचले हिस्से में खिसक से गए। टेस्टिंग का यह कार्य आईआईटी चेन्नई के विशेषज्ञों ने किया. इसी के बाद राम मंदिर की बुनियाद की मजबूती को लेकर विशेषज्ञों ने रिसर्च शुरू कर दी, यह रिसर्च रिपोर्ट जल्द आने वाली है


ऐसे जोड़े जाएंगे पिलर-
विशेषज्ञों के मुताबिक पिलर्स को आपस में जोड़कर बुनियाद का फाउंडेशन तैयार किया जाएगा. बुनियाद का फाउंडेशन तैयार होने के बाद तराशे गए पत्थरों की शिलाओं को क्रमबद्ध तरीके से जोड़ा जाएगा
 पत्थर की शिलाएं इस तरह तैयार की गई है, कि वह एक दूसरे के खांचों में फिट हो जाए।  इसीलिए इनको जोड़ने के लिए अन्य किसी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ेगी केवल चांदी की पत्तियों का ही प्रयोग होगा इन शिलाओं को व्यवस्थित तरीके से एक दूसरे के ऊपर स्थापित करने के लिए अत्याधुनिक क्रेन का प्रयोग किया जाएगा एक अनुमान के अनुसार, श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण लगभग दो वर्षों में पूरा हो जाएगा
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