आज गणपति का विशेष दिन - संकष्टी चतुर्थी : क्या करें आज, पूजन व उपाय


संकष्टी चतुर्थी या संकट चौथ या माघ कृष्ण चतुर्थी आज


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आज (31 जनवरी) रविवार को संकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी है। इस चतुर्थी को 'माघी कृष्ण चतुर्थी', 'तिलचौथ', ‘वक्रतुण्डी चतुर्थी’ भी कहा जाता है। इस दिन गणेश भगवान तथा संकट माता की पूजा का विधान है। 
संकष्ट का अर्थ है 'कष्ट या विपत्ति', 'कष्ट' का अर्थ है 'क्लेश', सम् उसके आधिक्य का द्योतक है। आज किसी भी प्रकार के संकट, कष्ट का निवारण संभव है। आज के दिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत का आरम्भ 'गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये' - इस प्रकार संकल्प करके करें। सायंकाल  गणेशजी का और चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके अर्घ्य दें
'गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धि प्रदायक।
संकष्टहर में देव गृहाणर्धं नमोस्तुते।
कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये।
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहार्धं नमोस्तुते।

नारदपुराण, पूर्वभाग अध्याय 113 में संकष्टीचतुर्थी व्रत का वर्णन इस प्रकार मिलता है-

माघकृष्णचतुर्थ्यां तु संकष्टव्रतमुच्यते । तत्रोपवासं संकल्प्य व्रती नियमपूर्वकम् ।। ११३-७२ ।।
चंद्रोदयमभिव्याप्य तिष्ठेत्प्रयतमानसः । ततश्चंद्रोदये प्राप्ते मृन्मयं गणनायकम् ।। ११३-७३ ।।
विधाय विन्यसेत्पीठे सायुधं च सवाहनम् । उपचारैः षोडशभिः समभ्यर्च्य विधानतः ।। ११३-७४ ।।
मोदकं चापि नैवेद्यं सगुडं तिलकुट्टकम् । ततोऽर्घ्यं ताम्रजे पात्रे रक्तचंदनमिश्रितम् ।। ११३-७५ ।।
सकुशं च सदूर्वं च पुष्पाक्षतसमन्वितम् । सशमीपत्रदधि च कृत्वा चंद्राय दापयेत् ।। ११३-७६ ।।
गगनार्णवमाणिक्य चंद्र दाक्षायणीपते । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक ।। ११३-७७ ।।
एवं दत्त्वा गणेशाय दिव्यार्घ्यं पापनाशनम् । शक्त्या संभोज्य विप्राग्र्यान्स्वयं भुंजीत चाज्ञया ।। ११३-७८ ।।
एवं कृत्वा व्रतं विप्र संकष्टाख्यं शूभावहम् । समृद्धो धनधान्यैः स्यान्न च संकष्टमाप्नुयात् ।। ११३-७९ ।।
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माघ कृष्ण चतुर्थी को ‘संकष्टवव्रत’ बतलाया जाता है। उसमें उपवास का संकल्प लेकर व्रती सबेरे से चंद्रोदय-काल तक नियमपूर्वक रहे। मन को काबू में रखे। चंद्रोदय होने पर मिट्टी की गणेशजी की मूर्ति बनाकर उसे पीढ़े पर स्थापित करे। गणेशजी के साथ उनके आयुध और वाहन भी होने चाहिए। मिटटी में गणेशजी की स्थापना करके षोडशोपचार से विधिपूर्वक उनका पूजन करें । फिर मोदक तथा गुड़ से बने हुए तिल के लडडू का नैवेद्य अर्पण करें।
तत्पश्चात्‌ तांबे के पात्र में लाल चन्दन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र, दधि और जल एकत्र करके निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें चन्द्रमा को अर्घ्य दें-
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
'गगन रूपी समुद्र के माणिक्य, दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम और गणेश के प्रतिरूप चन्द्रमा! आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए।’

इस प्रकार गणेश जी को यह दिव्य तथा पापनाशन अर्घ्य देकर यथाशक्ति उत्तम ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्च्यात स्वयं भी उनकी आज्ञा लेकर भोजन करें। ब्रह्मन ! इस प्रकार कल्याणकारी ‘संकष्टवव्रत’ का पालन करके मनुष्य धन-धान्य से संपन्न होता है। वह कभी कष्ट में नहीं पड़ता।

लक्ष्मीनारायण संहिता में भी कुछ इसी प्रकार वर्णन मिलता है-
माघकृष्णचतुर्थ्यां तु संकष्टहारकं व्रतम् ।
उपवासं प्रकुर्वीत वीक्ष्य चन्द्रोदयं ततः ।। १२८ ।।
मृदा कृत्वा गणेशं सायुधं सवाहनं शुभम् ।
पीठे न्यस्य च तं षोडशोपचारैः प्रपूजयेत् ।। १२९ ।।
मोदकाँस्तिलचूर्णं च सशर्करं निवेदयेत् ।
अर्घ्यं दद्यात्ताम्रपात्रे रक्तचन्दनमिश्रितम् ।। १३० ।।
कुशान् दूर्वाः कुसुमान्यक्षतान् शमीदलान् दधि ।
दद्यादर्घ्यं ततो विसर्जनं कुर्यादथ व्रती ।। १३१ ।।
भोजयेद् भूसुरान् साधून् साध्वीश्च बालबालिकाः ।
व्रती च पारणां कुर्याद् दद्याद्दानानि भावतः ।। १३२ ।।
एवं कृत्वा व्रतं स्मृद्धः संकटं नैव चाप्नुयात् ।
धनधान्यसुतापुत्रप्रपौत्रादियुतो भवेत् ।। १३३ ।।

भविष्य पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है

व्रत को लेकर मान्यताएं-
माघ मास की संकष्टी चतुर्थी को तिलकुटा या माही चौथ व वक्रतुंडी चतुर्थी भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि जबतक चंद्र देव को अर्घ्य नहीं दें तो व्रत पूरा नहीं होता।
- इस व्रत को रखने वालों के संतान दीर्घायु होते हैं
- संतान को लंबी उम्र की प्राप्ति होती है साथ ही साथ वे निरोग जीवन व्यतित करते हैं
- व्रत को करने वालों के ग्रह-नक्षत्र प्रबल (मजबूत) में होते है
- व्रत को करके आप अपने कुंडली में अशुभ प्रभावों को कम कर सकते हैं
- व्रत के प्रभाव से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और मांगलिक कार्य भी होते हैं
- ज्योतिर्विदों के अनुसरा, इस व्रत-पूजा से केतु के बुरे प्रभाव को कम किया जा सकता है.

शुभ मुहूर्त-
रविवार (31 जनवरी, 2021) रात के 8:24 बजे से
अर्घ्य देने का शुभ समय-  रात 8:40 बजे पर
शुभ मुहूर्त का अंतिम समय: सोमवार (1 फरवरी) सायं 6:24 बजे तक

आज क्या करें ?
➡ गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यन्त शुभकारी होगा ।
➡ गणेश भगवान को दूध (कच्चा), पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराकर, पुष्प, वस्त्र आदि समर्पित करके तिल तथा गुड़ के लड्डू, दूर्वा का भोग जरूर लगायें। लड्डू की संख्या 11 या 21 रखें। गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं । गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है "यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति" अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। "यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति" अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।
➡ आज गणपति के 12 नाम या 21 नाम या 101 नाम से पूजा करें।
➡ शिवपुराण के अनुसार- “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्ष के। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा॥ “ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्ष तक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है।
➡ किसी भी समस्या के समाधान के लिए आज संकट नाशन गणेश स्तोत्र के 11 पाठ करें।
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पढ़ें (संबंधित लेख)-
गणपति के "अथर्वशीर्ष स्त्रोत" का पाठ  से जीवन के सभी कष्ट होंगे दूर भगवान गणेश के नाम से 
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http://www.dharmnagari.com/2020/12/Ganpati-Atharvashirsha-kare-dukho-ka-nash.html
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संकष्टी / संकट चतुर्थी पर न करें ये कार्य 
- भगवान गणेश पर गलती से भी तुलसी न चढ़ाएं. भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का प्रयोग अशुभ माना जाता है
-  आज के दिन मांस का सेवन न स्वयं करें,  न ही परिवार के किसी सदस्य को करने दें
- घर में लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए
- भगवान गणेश के इस पवित्र दिन पर शारीरिक संबंध बनाना वर्जित माना जाता है
- शराब का सेवन नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान गणेश की कृपा आप पर रुक जाएगी
- संकष्टी चतुर्थी के दिन किसी भी पशु या पक्षी को न तो सताना चाहिए और न ही मारना चाहिए. इस दिन पशु और पक्षियों को पानी पिलाना शुभ होता है.
किसी बुजुर्ग का अपमान नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान गणेश क्रोधित होते हैं.
संकष्टी चतुर्थी के दिन किसी ब्राह्मण का अपमान नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान गणेश आपसे रुष्ट हो जाते हैं
- संकष्टी चतुर्थी के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए
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केवल प्रयागराज में है माघ मास में कल्पवास का विधान... (पूरे माघ मास पर्यन्त चलेगा, 27 फरवरी को पूर्ण) 
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