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राम मंदिर को 11 करोड़ देने वाले कौन हैं ढोलकिया
राम मंदिर निर्माण के लिए सूरत के व्यापारी गोविंदभाई ढोलकिया ने 11 करोड़ रुपये का दान किया। है. आरएसएस से जुड़े रहे गोविंदभाई कुछ साल पहले दिवाली पर सैकड़ों कर्मचारियों और उनके परिजनों को कंपनी के खर्चे पर 10 दिन का टूर पैकेज देकर चर्चा में आए थे. महज सातवीं तक पढ़ाई के बावजूद अरबों का कारोबार खड़े करने वाले गोविंदभाई की कहानी प्रेरक है।
गोविंदभाई गोविंदभाई सूरत में हीरा के व्यापारी हैं और श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन हैं. वे वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े हुए हैं. वे एक विजनरी कारोबारी तो हैं ही काफी धार्मिक व्यक्ति भी हैं. उन्होंने ज्यादा फॉर्मल एजुकेशन प्राप्त नहीं किया, न ही उनका हीरों का कोई पारिवारिक कारोबार रहा है, इसके पश्चात वह अपने परिश्रम से हीरा कारोबार के दिग्गज बन गए।
छोटे से गांव में जन्म-
देश को आजादी मिलने के कुछ ही महीनों बाद 7 नवंबर 1947 को जन्मे ढोलकिया अब करीब 73 साल के हो चुके हैं. उनका जन्म गुजरात के एक छोटे से गांव दुधाला में एक किसान परिवार में हुआ था. उनका जीवन काफी अभावों में बीता और शायद इसीलिए ढोलकिया के मन में बचपन से ही हालात को बदलने की एक दृढ़ता-सी पैदा हो गयी.
वर्षों किया कड़ा परिश्रम-
सातवीं में ही पढ़ाई छोड़कर अपने बड़े भाई भीमजी के साथ ढोलकिया सूरत जाना पड़ा। वहां साल 1964 में उन्होंने डायमंड पॉलिश करने का काम शुरू किया. उन्होंने वहां वर्षों तक एक डायमंड पॉलिशिंग वर्कर के रूप में कड़ा परिश्रम किया। फिर अपने दो दोस्तों के साथ 12 मार्च 1970 में हीरों का अपना कारखाना शुरू किया।
हीरों का कारोबार अच्छी तरह से जमाने के बाद उन्होंने 1977 में श्री रामकृष्ण एक्सपोर्ट (SRK Export) के नाम से अपना अपना निर्यात कारोबार शुरू किया. आज यह दुनिया के कई देशों में कारोबार करने वाली एक दिग्गज कंपनी बन चुकी है।
शीर्ष हीरा कारोबारी-
आज गोविंदभाई ढोलकिया देश के शीर्ष हीरा कारोबारियों में से एक हैं। उनकी पत्नी चम्पाबेन गोविंदभाई ढोलकिया पढ़ी-लिखी नहीं हैं, लेकिन वह सूरत की सबसे अमीर महिलाओं में से हैं।
कर्मचारियों को उपहार-
चार साल पहले दिवाली पर गोविंदभाई ढोलकिया तब काफी चर्चा में आए थे, जब उन्होंने अपने कर्मचारियों को उनके परिवार के साथ 10 दिन के पेड लीव पर भेजा. इस उपहार के अंतर्गत उन्होंने पूरी एक एसी ट्रेन बुक कराई और 300 कर्मचारियों के परिजनों सहित करीब 900 लोगों को कंपनी के खर्च पर उत्तराखंड टूर पर भेजा।
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वन्देमातरम् का उद्घोष करने वाली पार्टी के विधायक नहीं गा सके...
मध्य प्रदेश के प्रोटेम स्पीकर बीजेपी विधायक रामेश्वर शर्मा व अन्य नहीं गा पाए भोपाल मंत्रालय में आयोजित वन्देमातरम्...==*==*==*==*==*==*==*==*==*==*==*==
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आप पढ़ रहे हैं- "आज के चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, कमेंट्स..." (18 जनवरी)
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सैकड़ों हिन्दू राजाओं ही नहीं, वीरांगनाओं को भी इतिहास के पन्ने से किसने किया गायब ?
7 वर्षों तक औरंगजेब से लड़ाई लड़ी महान वीरांगना थी-
महारानी ताराबाई भोंसले
औरंगजेब को हराने वाली, 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक औरंगजेब को बराबर की टक्कर देने वाली महारानी ताराबाई भोसले |
ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है, कि भारतभूमि पर जन्म लेने वाली इन वीरांगनाओं के हौसले किसी भी मायने में पुरुष शासकों से कम थे। आवश्यकता पड़ने पर इन वीरांगनाओं ने वीर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाया एवं मातृभूमि की रक्षा के लिए डटी रहीं, और तो और वे अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटी। आज की गाथा है ऐसी ही एक वीरवती 'महारानी ताराबाई भोंसले' की जिन्होंने अल्प समय के लिए मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली एवं बड़ी सुदृढ़ता से मुगलों का जवाब दिया। आइए संक्षेप में पढ़ते हैं रानी बाई के नाम से विख्यात 'महारानी ताराबाई भोंसले' के बारे में।
कौन थीं महारानी ताराबाई भोंसले-
ताराबाई जी का जन्म सन 1675 में हुआ हंबीरराव मोहिते के घर में हुआ था। हंबीरराव मोहिते, छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति थे। ताराबाई बचपन में अपने हमउम्र कन्याओं से इतर खेलकूद, तीरंदाजी, तलवारबाजी के लिए समय देती थीं। हंबीरराव ने अपनी बेटी का पालन पोषण एक बेटे की तरह किया था। धीरे-धीरे उनकी ख्याति मराठों के महल तक जा पहुंचीं। उनका विवाह मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी के छोटे पुत्र राजाराम भोंसले के साथ कर दिया गया। राजाराम भोंसले, शाहूजी महाराज के सौतेले भाई थे जिन्होंने अल्पकाल के लिए सत्ता संभाली थी। इस तरह ताराबाई को मराठा साम्राज्य की महारानी होने का गौरव प्राप्त हुआ।
मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनाई गईं-
सन 1689 में मुग़ल साम्राज्य के शासक औरंगजेब के द्वारा सम्भाजी की हत्या कर दिये जाने के बाद 19 वर्षीय राजाराम मराठा साम्राज्य के तृतीय छत्रपति बने। उनका कार्यकाल लगभग 11 वर्षों तक रहा, जिसमें अधिकांश समय वह मुग़लों से युद्ध लड़ने में ही उलझे रहे। सन 1700 में राजाराम की मृत्यु हो जाने के पश्चात ताराबाई मराठा साम्राज्य कि संरक्षिका बनी। और उन्होंने शिवाजी दित्तीय को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित किया और एक संरक्षिका के रूप में मराठा साम्राज्य को चलाने लगी उस समय शिवाजी द्वितीय मात्र 4 वर्ष के थे 1700 से लेकर 1707 ईसवी तक मराठा साम्राज्य की संरक्षिका के रूप में उन्होंने औरंगजेब को बराबर की टक्कर दी और उन्होंने 7 सालों तक अकेले दम पर मुगलों से टक्कर ली और कई क्षेत्रीय सरदारों को एक करके बिखरते हुए मराठा साम्राज्य को पुनः एकजुट करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महारानी ताराबाई अपने पुत्र को गद्दी पर देखना चाहती थी। परंतु ऐसा हो ना सका, औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम ने छत्रपति शाहू जो कि उसकी कैद में थे उनको दिल्ली से छोड़ दिया और जिसके करण शाहूजी महाराज एवं महारानी ताराबाई के मध्य गद्दी के लिए संघर्ष शुरु हो गया और मराठा साम्राज्य में गृह युद्ध छिड़ गया। अंततः शाहूजी ने युद्ध में ताराबाई की सेना को पराजित कर उनके अस्तित्व को पूरी तरीके से खत्म कर दिया। किंतु शाहूजी महाराज ने महारानी ताराबाई को कोल्हापुर राज्य दे दिया और वहीं पर उनका राज्य स्थापित कर दिया और स्वयं मराठा साम्राज्य की कमान संभाल ली।
इतिहासकार विजय राणे कहते हैं कि भले ही मराठा साम्राज्य शाहूजी के कार्यकाल में अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया, किंतु इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है इसमें महारानी ताराबाई का भी अविस्मरणीय सहयोग था। उन्होंने 7 वर्षों तक मुगलों की सेना को छकाए रखा, ये वो समय था जब औरंगजेब मरणासन्न अवस्था में था और मुग़ल दरबार में भी विद्रोह के बादल मंडराने लगे थे।
कुशल शासिका बनकर उभरी महारानी ताराबाई-
महाराज राजाराम के निधन के बाद, तारारानी ने कई कठिन परिस्थितियों में बिना रुके मुगल सेना को पीछे हटाने के लिए आक्रामक रुख अपनाया। मराठा साम्राज्य के राजनयिकों को समय की गंभीरता को समझाते हुए, वह अंत तक इन सभी के साथ एकजुट रहे और दुश्मन को बांधे रखा। महारानी की सूझबूझ एवं साहस से सेना का आत्मविश्वास बढ़ा। महारानी ने दिल्ली राजशाही में भी डर पैदा कर दिया। साथ ही मराठों की अपमानजनक आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए, उन्होंने मुगल मुलूखा पर आक्रमण करके और चौथाई और सरदेशमुखी को इकट्ठा करके अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाई । इसके बाद उन्होंने करवीर राज्य, कोल्हापुर का सिंहासन स्थापित किया।
मराठों के इतिहास में ताराबाई एक कर्तव्यपरायण राजरानी थीं। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज के पीछे मजबूती से मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। 3 मार्च, 1700 को सिंहगढ़ किले में छत्रपति राजाराम की मृत्यु के बाद, मराठी साम्राज्य की बागडोर ताराबाई के हाथों में चली गई। उनकी सेना में बालाजी विश्वनाथ , उदाजी चव्हाण, चंद्रसेन जाधव, कान्होजी आंग्रे और अन्य शामिल थे। उन्होंने मुगलों को खदेड़ दिया।
सन 1705 में, उन्होंने पन्हाला में मुगल किले पर विजय प्राप्त की और करंजा को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने राज्य, सिंहासन और समाज को मजबूत नेतृत्व दिया और सभी का मनोबल बनाए रखा। महारानी ताराबाई का 86 वर्ष की आयु में सिंहगढ़ में निधन हो गया। महारानी ताराबाई का शासन मराठों के इतिहास का एक गौरवपूर्ण काल है। इस अवधि के दौरान, उन्होंने मुगल शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी और मराठी राज्य को नेतृत्व दिया, और निर्विवाद रूप से अपने काम और उपलब्धि को साबित किया। राजाराम के बाद, जब मराठी राज्य में नेतृत्व नहीं था, तब ताराबाई ने मराठी राज्य के अस्तित्व को जीवित रखा।
टिप्पणी- जब 1707 में अहमदनगर के पास औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई तो उसके बाद, मुगलों ने शाहू को मुक्त कर दिया ताकि मराठी राज्य में सत्ता के लिए उठापटक शुरू हो सके और इस उत्तराधिकार के बोए बीज से मराठा साम्राज्य को खंडित कर सके। परिणामस्वरूप, ताराबाई और शाहू के बीच विरासत के लिए संघर्ष शुरू हुआ। इतिहासकार लिखते हैं कि 12 अक्टूबर 1707 को खेड़- कडूस में महारानी ताराबाई और शाहूजी के बीच एक लड़ाई लड़ी गई जिसमें बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के शाहूजी की जीत हुई। इस प्रकार शाहूजी को महरानी ताराबाई द्वारा स्वचालित रूप से जीते गए सभी किले मिल गए। शाहूजी का पक्ष लेकर गए बालाजी विश्वनाथ ने अपनी सूझबूझ से महारानी के पक्षधर उदाजी चव्हाण, कद्रसेना जाधव, कान्होजी जैसे लड़ाकों को शाहूजी के पक्ष में कर लिया। इससे शाहूजी महारानी के अपेक्षा और मजबूत हो गए। किंतु शाहूजी, महारानी से प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने सतारा एवं कोल्हापुर में सिंहासन की स्थापना की और महारानी ताराबाई को कोल्हापुर का शासन सौंप दिया।
ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि ताराबाई मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक थीं और जिस तरह से उन्होंने 7 वर्षों तक औरंगजेब से लड़ाई लड़ी हो उनकी महानता एवं दूरदर्शिता को दर्शाता। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि महारानी ताराबाई के बारे में अधिकांश इतिहासकारों ने कुछ भी नहीं लिखा है, और यही कारण है कि हम इस वीरवती के बारे में न के बराबर ही जानते हैं। जबकि क्रूर इस्लामिक शासकों के बारे में हमें असंख्य लेख पढ़ाए गए हैं। हम नमन करते हैं महारानी ताराबाई को जिन्होंने अद्भुत साहस एवं सूझबूझ का परिचय देते हुए मराठा साम्राज्य को संभाला एवं शिवाजी महाराज की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक मज़बूत नींव रखी।
जब औरंगज़ेब की मृत्यु हो गई तो उसके बाद, मुगलों ने शाहू को मुक्त कर दिया ताकि मराठी राज्य में सत्ता के लिए उठापटक शुरू हो सके और इस उत्तराधिकार के बोए बीज से मराठा साम्राज्य को खंडित कर सके। परिणामस्वरूप, ताराबाई और शाहू के बीच विरासत के लिए संघर्ष शुरू हुआ। इतिहासकार लिखते हैं कि 12 अक्टूबर 1707 को खेड़- कडूस में महारानी ताराबाई और शाहूजी के बीच एक लड़ाई लड़ी गई जिसमें बिना किसी अतिरिक्त मेहनत के शाहूजी की जीत हुई। इस प्रकार शाहूजी को महरानी ताराबाई द्वारा स्वचालित रूप से जीते गए सभी किले मिल गए।
शाहूजी का पक्ष लेकर गए बालाजी विश्वनाथ ने अपनी सूझबूझ से महारानी के पक्षधर उदाजी चव्हाण, कद्रसेना जाधव, कान्होजी जैसे लड़ाकों को शाहूजी के पक्ष में कर लिया। इससे शाहूजी महारानी के अपेक्षा और मजबूत हो गए। किंतु शाहूजी, महारानी से प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने सतारा एवं कोल्हापुर में सिंहासन की स्थापना की और महारानी ताराबाई को कोल्हापुर का शासन सौंप दिया। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि ताराबाई मराठा साम्राज्य की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक थीं और जिस तरह से उन्होंने 7 वर्षों तक औरंगजेब से लड़ाई लड़ी हो उनकी महानता एवं दूरदर्शिता को दर्शाता।
ये दुर्भाग्यपूर्ण है, कि महारानी ताराबाई के बारे में अधिकांश इतिहासकारों ने कुछ भी नहीं लिखा है। यही कारण है, कि हम इस वीरवती के बारे में न के बराबर ही जानते हैं। जबकि क्रूर इस्लामिक शासकों के बारे में हमें असंख्य लेख पढ़ाए गए हैं। हम नमन करते हैं महारानी ताराबाई को जिन्होंने अद्भुत साहस एवं सूझबूझ का परिचय देते हुए मराठा साम्राज्य को संभाला एवं शिवाजी महाराज की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक मज़बूत नींव रखी। - शीघ्र प्रकाशित पुस्तक "इतिहास के गायब पन्ने" -राजेश पाठक (अवैतनिक संपादक- "धर्म नगरी" / DN News)
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पुराने हिन्दी फिल्मी गानों में
जो मिठास थी, है, सदैव रहेगी...
ऐसे ही एक गाने पर देखें प्रस्तुति ( 57 सेकेंड)-
3 मिनट 53 सेकेंड में सुने विदेशियों द्वारा गाए
ये रात भीगी भीगी... ये...
और
विज्ञापन की धुन के साथ (1 मिनट 31 सेकेंड) इस प्रस्तुति को...
निरमा से लेकर हमारा बजाज...
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हिंदू लड़कियां #सावधान ! एक सच्ची घटना...
अपनी डी.पी. में सलोनी ने #जिज्ञासावश उसके बारे मे पता करने के लिये उसकी प्रोफाइल खोल कर देखी तो वहाँ पर उसने एक से बढ़कर एक रोमान्टिक शेरो शायरी और कवितायेँ पोस्ट की हुई थीं, उन्हें पढ़कर वो इम्प्रेस हुए बिना नहीं रह पाई, और फिर उसने राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्टकर ली। अभी उसे राज की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट किये हुए कुछ ही देर हुई होगी की उसके #मैसेंजर नोटिफिकेशन के बज उठा। चेक करा तो वो राज का मैसेज था, लिखा था " थैंक यू वैरी मच
वो समझ तो गई थी की वो क्यों थैंक्स कह रहा है फिर भी उससे मज़े लेने के लिये उसने रिप्लाई करा "थैंक्स किसलिये ?"
उधर से तुरंत जवाब आया " मेरी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के लिये "।
सलोनी ने कोई जवाब नहीं दिया बस एक #स्माइली वाला स्टीकर पोस्ट कर दिया और फिर मैसेंजर बंद कर दिया, वो नहीं चाहती थी की एक ही दिन मे किसी अनजान से ज्यादा खुल जाये और फिर वो घर के कामों मे व्यस्त हो गयी।
अगले दिन उसने अपना फेसबुक खोला तो उसे राज के मैसेज नज़र आये, राज ने उसे कई #रोमान्टिक_कवितायेँ भेज रखीं थीं। उन्हें पढ़ कर उसे बड़ा अच्छा लगा, उसने जवाब मे फिर से स्माइली वाला स्टीकर सेंड कर दिया। थोड़ी देर मे ही राज का रिप्लाई आ गया। वो उससे उसके उसकी होबिज़ के बारे मे पूँछ रहा था। उसने राज को अपना #संछिप्त_परिचय दे दिया। उसका परिचय जानने के बाद राज ने भी उसे अपने बारे मे बताया कि वो MBA कर रहा है और जल्दी ही उसकी जॉब लग जायेगी। और फिर इस तरह से दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल निकला।
दोस्ती हुए अब तक डेढ़ महीना हो चुका था। सलोनी को अब उसके मेसेज का इंतज़ार रहने लगा था। जिस दिन उसकी राज से बात नहीं हो पाती थी तो उसे लगता जैसे कुछ #अधूरापन सा है। राज उसकी ज़िन्दगी की आदत बनता जा रहा था। आज रात फिर सलोनी राज से चैटिंग कर रही थी, इधर-उधर की बात होने के बाद राज ने सलोनी से कहायार हम कब तक यूंहीं सिर्फ फेसबुक पर बाते करते रहेंगे, यार मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ, प्लीज कल मिलने का प्रोग्राम बनाओ ना
सलोनी खुद भी उससे #मिलना चाहती थी और एक तरह से उसने उसके दिल की ही बात कह दी थी लेकिन पता नहीं क्यों वो उससे मिलने से डर रही थी, शायद अंजान होने का डर था वो। सलोनी ने यही बात राज से कह दी," अरे यार इसीलिये तो कह रहा हूँ की हमें मिलना चाहिये, जब हम मिलेंगे तभी तो एक दूसरे को जानेंगे
राज ने उसे समझाते हुए मिलने की जिद्द की," अच्छा ठीक है बोलो कहाँ मिलना है, लेकिन मैं ज्यादा देर नहीं रुकुंगी वहाँ " सलोनी ने बड़ी मुश्किल से उसे हाँ की," ठीक है तुम जितनी देर रुकना चाहो रुक जाना " राज ने अपनी खुशी छिपाते हुए उसे कहा, और फिर वो सलोनी को उस जगह के बारे मे बताने लगा जहाँ उसे आना था।
अगले दिन शाम को 6 बजे, शहर के कोने मे एक #सुनसान_जगह पर एक पार्क, जहाँ पर सिर्फ प्रेमी जोड़े ही जाना पसंद करते थे, शायद एकांत के कारण, राज ने सलोनी को वहीँ पर बुलाया था, थोड़ी देर बाद ही सलोनी वहाँ पहुँच गई, राज उसे पार्क के बाहर गेट के पास अपनी कार से पीठ लगा के खड़ा हुआ नज़र आ गया, पहली बार उसे सामने देख कर वो उसे बस देखती ही रह गई, वो अपनी फोटोज़ से ज्यादा स्मार्ट और हैंडसम था।
सलोनी को अपनी तरफ देखता हुआ देखकर उसने उसे अपने पास आने का इशारा करा, उसके इशारे को समझकर वो उसके पास आ गई और मुस्कुरा कर बोली " हाँ अब बोलो मुझे यहाँ किसलिये बुलाया है
अरे यार क्या सारी बात यहीं #सड़क पर खड़ी-2 करोगी, आओ कार मे बैठ कर बात करते हैं
और फिर राज ने उसे कार मे बैठने का इशारा करके कार का #पिछला_गेट खोल दिया, उसकी बात सुनकर सलोनी मुस्कुराते हुए कार मे बैठने के लिये बढ़ी, जैसे ही उसने कार मे बैठने के लिये अपना पैर अंदर रखा तो उसे वहाँ पर पहले से ही एक आदमी बैठा हुआ नज़र आया। शक्ल से वो आदमी कहीँ से भी शरीफ नज़र नहीं आ रहा था। सलोनी के बढ़ते कदम #ठिठक गये, वो पलट कर राज से पूँछने ही जा रही थी की ये कौन है कि तभी उस आदमी ने उसका हाँथ पकड़ कर अंदर खींच लिया और बाहर से राज ने उसे अंदर #धक्का दे दिया। ये सब कुछ इतनी तेजी से हुआ की वो संभल भी नहीं पाई, और फिर अंदर बैठे आदमी ने उसका मुँह कसकर दबा लिया ताकि वो चीख ना पाये और उसके हाँथों को राज ने पकड़ लिया। अब वो ना तो हिल सकती थी और ना ही चिल्ला सकती थी। और तभी कार से दूर खड़ा एक आदमी कार मे आ के ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और कार स्टार्ट करके तेज़ी से आगे बढ़ा दी। औरपीछे बैठा आदमी जिसने सलोनी का मुँह दबा रखा था वो हँसते हुए राज से बोला....वाह #असलम_भाई वाह...मज़ा आ गया..आज तो तुमने तगड़े माल पर हाँथ साफ़ करा है... #शबनम_बानो इसकी मोटी कीमत देगी
उसकी बात सुनकर असलम उर्फ़ राज मुँह ऊपर उठा कर ठहाके लगा के हँसा, उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई #भेड़िया अपने पँजे मे शिकार को दबोच के हँस रहा हो। और वो कार तेज़ी से शहर के #बदनाम_इलाके_जिस्म_की_मंडी की तरफ दौड़ी जा रही थी।
ये कोई कहानी नहीं बल्कि #सच्चाई_है_छत्तीसगढ़ की सलोनी। जो मुम्बई से छुड़ाई गई है। ये सलोनी की कहानी उन लड़कियो को सबक देती है जो #सोशल_मीडिया से अनजान लोगो से दोस्ती कर लेती है और अपनी जिंदगी गवां लेती है।️
शेयर जरूर करे ताकि कोई और सलोनी ऐसी #दलदल में ना फंस जाए।️
अगर हर हिन्दू भाई इसे शेयर करेंगे, तो ज्यादा लोगो तक पोस्ट जायेगा ज्यादा लड़कियों को पता चलेगा और वो #सावधान होंगी...
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आखिर क्या होता है ये 'लव जिहाद' ? ☟ जानिए आसान भाषा में
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