केवल प्रयागराज में है माघ मास में कल्पवास का विधान...

माघ मास आरम्भ, पूरे माघ मास पर्यन्त चलेगा, 27 फरवरी को पूर्ण 

- पहली बार कल्पवासियों की लिस्ट वेबसाइट पर होगी 

संगम क्षेत्र, प्रयागराज में टेन्टों की आध्यात्मिक नगरी- "माघ मेला" 

राजेश पाठक 
(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110
तीर्थराज प्रयाग में माघ मास में संगम क्षेत्र में कल्पवास का विधान है, प्राचीन परंपरा है. मान्यता है, कल्पवास से कल्पवासी (कल्पवास करने वाले) का  शरीर और आत्मा से नया  हो जाता है. इस माह स्नान, दान, और जप-तप करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. माघ मास पौष पूर्णिमा (28 जनवरी) के स्नान के साथ आरम्भ हो गया है, जो पूरे माघ मास चलेगा एवं 27 फरवरी को पूर्ण होगा। पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन गुरुवार और पुष्य नक्षत्र का संयोग होने से गुरु-पुष्य का पुण्यदायी योग बना है।   

इस बार माघ मेले में आने वाले कल्पवासियों की लिस्ट मेले की वेबसाइट पर अपलोड होगी। जिला प्रशासन के अनुसार, यह सूची ठीक वैसे ही तैयार होगी जैसे विदेश से आने वाले लोगों की तैयार होती है। इसका उद्देश्य है कि प्रयागराज में आने वाले कल्पवासी जब लौटें तो उनकी सूची वहां के स्वास्थ्य विभाग को दी जा सके।

हिंदू पंचांग (कैलेंडर) के ग्यारहवें माह- माघ महीने का धार्मिक-आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसका बहुत महत्व है. माघ शब्द माध से  से बना है जिसका संबंध श्रीकृष्ण के माधव स्वरूप से है, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है एवं इस माह में गंगा स्नान करने से सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है

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माघ का पौराणिक महत्व-
माघ मास में संगम पर कल्पवास करने की परंपरा है. मान्यता है, जो भी व्यक्ति इस माह स्नान, दान, और जप,तप करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. पद्मपुराण के अनुसार पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है. अगर आप पवित्र नदियों में स्नान नही कर सकते हैं तो इस महीने सुबह जल्दी उठकर स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर उससे स्नान करें. माघ के महीने में भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा से विशेष  लाभ होता है


माघ में संयम, 
32 प्रकार के नियम- 
माघ मेले में संतों का प्रवचन के साथ आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी सर्वत्र होते रहते हैं. कल्पवासी एक माह तक जमीन पर सोने के साथ चूल्हे पर बना भोजन ग्रहण कर पूरी तरह से सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं. संगम की रेती कोई भी सनातनी कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास कर सकता है. कल्पवास करने के लिए कल्पवासियों को 32 प्रकार के नियमों का पालन करना होता है. लेकिन चार ऐसे सख्त नियम भी हैं जिसका पालन हर कल्पवासी को करना अनिवार्य है. अर्थात, माघ मेले में कल्पवासी, श्रद्धालु-तीर्थयात्री सामान्य जल से स्नान करते हैं. पूरे महीने भारी भोजन छोड़कर सादा भोजन करना चाहिए. माघ में तिल और गुड़ का प्रयोग विशेष लाभकारी होता है. इस माह में सिर्फ एक समय भोजन करने से आरोग्य और एकाग्रता की प्राप्ति होती है। 
 
वैसे तो माघ का पूरा माह पवित्र नदियों में स्नान, दान, पुण्य के लिए शुभ होता है, परन्तु तीर्थराज प्रयाग में माघ स्नान का बड़ा महत्व धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से शास्त्रों में बड़ा महत्व बताया है। माघ स्नान को मोक्ष-प्रदाता कहा गया है।  

माघ मास में प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर स्नान करने से दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने के बराबर फल प्राप्त होता है। माघ मास में प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में जागकर गंगा, नर्मदा, यमुना, क्षिप्रा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का क्षय होता है। इस माह में दान-पुण्य, रोगियों, निशक्तों की सेवा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। 

मकर संक्रांति के पर्व स्नान के साथ हरिद्वार में कुंभ भी चल रहा है. हलांकि, कोरोना संक्रमण के कारण मेले की तैयारियां, वास्तविक मेला-अवधि को लेकर सबकुछ स्पष्ट है. वहीं, जिसमें एक बार डुबकी लगाने से समस्त पापों का नाश होता है और व्यक्ति की आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है। कहा जाता है माघ स्नान के फलस्वरूप ही प्रतिष्ठानपुरी के राजा पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी और उन्होंने दैदीप्यमान काया प्राप्त की थी। इसी स्नान के प्रताप से गौतम ऋषि द्वारा शापित इंद्र भी श्राप मुक्त हुए थे। 

माघ में गुप्त नवरात्रि- 
माघ माह में स्नान, जप, तप का फल इस वर्ष माघ माह में कृष्ण पक्ष में सूर्य मकर राशि में और शुक्ल पक्ष में कुंभ राशि में गोचर करेगा। माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 12 फरवरी से गुप्त नवरात्रि भी प्रारंभ होगी। इसलिए इस माह का पुण्य कई गुना है। इस माह के दौरान हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, इलाहाबाद इत्यादि में स्नान से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। 

माघ माह में स्नान के बाद दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए। इस माह में अपने गुरु या ईष्ट के मंत्रों का जाप करने से आत्मसंयम की प्राप्ति होती है। इस माह में पवित्र नदियों के तट पर निवास करने का भी बड़ा महत्व है। इसे कल्पवास कहा जाता है। पुराणों में कल्पवास का वर्णन मिलता है, जिसमें स्पष्ट कहा गया है, कि माघ माह में पवित्र नदियों के तट पर कल्पवास करना चाहिए। कल्पवास करते हुए संयम, धैर्य और मौन रहते हुए सात्विक जीवन जीना चाहिए। पवित्र नदियों का जल डालकर करें स्नान सभी मनुष्यों के लिए पवित्र नदियों के तट पर जाकर स्नान करना संभव नहीं है, इसलिए अपने घर में ही पवित्र नदियों के स्नान का पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए पूर्ण श्रद्धा होना आवश्यक है। 

यदि आपके आसपास कोई पवित्र नदी ना हो या पवित्र नदियों में स्नान के लिए जाने की आपकी क्षमता ना हो तो घर में भी माघ स्नान के बराबर पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए आपके मन में पवित्रता, शुद्धता और श्रद्धा होना आवश्यक है। आप प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में जागकर पवित्र नदियों का जल (गंगाजल लगभग सभी घरों में होता है) डालकर उससे स्नान करें। शुद्ध वस्त्र धारण करके घर के देवी-देवताओं की पूजा करें और यथाशक्ति गरीबों को भोजन करवाएं। गायों को हरा चारा खिलाएं। पक्षियों को दाना डालें। इससे आपको पुण्य फलों की प्राप्ति होगी। इस दिन शिवार्चन और विष्णुपूजा करना पुण्यदायी होता है। 
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