गायक, जिनके नशे में गाए गाने मौत के 73 साल बाद भी हैं जीवंत


"मैं देवदास जैसा गया गुजरा नहीं हूं" 



सहगल वो फंकार, जो नशे में गाकर गाने में जान दे देते थे। बेमिसाल गायकी के कोहिनूर कुन्दन लाल सहगल भारतीय सिनेमा के इतिहास के बेमिसाल गायक और अभिनेता थे। संगीत सम्राट के रूप में रेडियो सिलोन ने प्रतिदिन सुबह 7 से साढ़े 7 बजे तक बजने वाला भूले-बिसरे गीत कार्यक्रम का समापन केएल सहगल के गाने से होता था। बचपन से उसे सुनते हुए आज हम बड़े हो गए। जिस समय फिल्म देवदास आई, उस जमाने के युवा उनकी कॉपी करने लगे थे। 

अपने चहेतों के बीच केएल सहगल के नाम से पहचाने जाने वाले सहगल साहब 185 गीत गाकर अमर हो गए। अपनी दिलकश आवाज से सिने-प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले सहगल 18 जनवरी 1947 को संसार को विदा कर गए। उनके पिता अमरचंद्र सहगल जम्मू में तहसीलदार थे। जम्मू के नवा शहर में कुंदनलाल सहगल का जन्म हुआ। उनकी मां केसरी बाई संगीत में काफी रुचि रखती थी। 

-----------------------------------------------
"...मेरे चाहने वाले सिनेमा फैन मुझे देखकर खुश होते है, इससे मुझे भी खुशी मिलती है लेकिन वह मुझे इस तरह से जानने लगें तो बेहद दु:ख नहीं होगा ? मैं देवदास जैसा गया गुजरा नहीं हूं। परदे के देवदास की तरह मैं जिंदगी को जुआ मानकर नहीं चलता, ना ही उसकी तरह अनिश्चित और अस्थिर जिंदगी जीता हूं। औरों की तरह मैं भी एक गृहस्थ हंू। अपनी बीवी और बाल बच्चों के साथ सुख चैन से जिंदगी बिताता हूं। स्टूडियो से बाहर निकलने के बाद और किसी चीज के बारे में सोचता नहीं। फिर भी लोग जब मुझ पे ऐसा इल्जाम लगाएं तो मुझे दु:ख नहीं होगा ?..." -79 वर्ष पहले प्रकाशित सम्भवत: एकमात्र विशेष वार्तालाप से, जो 23 अप्रैल 1939 के गुजराती साप्ताहिक 'बे घड़ी मोज' में छपा था   
-----------------------------------------------


सहगल शहर में हो रही रामलीला में हिस्सा लिया करते थे। सहगल ने वैसे तो संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन एक सूफी संत सलमान यूसुफ से संगीत के गुर सीखे थे। किसी भी गीत को एकबार सुनकर बारीकी से पकड़ लेना और उसे गा लेना सहगल की विशेषता। जीवन यापन के लिए इन्होंने टाइम कीपर की छोटी सी नौकरी की। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइप राइटर मशीन की कंपनी सेल्समैन की नौकरी भी की, लेकिन एक कलाकार का भावुक हृदय रखने वाले सहगल का मन संगीत और अभिनय में उलझा हुआ रहा और 1930 में न्यू थिएटर कलकत्ता के बीएन सरकार ने उन्हें 200 महीने पर अपने यहां काम पर रख लिया। वहीं सहगल ताक आरसी बोटाल मिलें, जिन्होंने सहगल की प्रतिभा को परखा। इसी न्यू थिएटर ने सहगल को पहचान दी।
-----------------------------------------------
बेटे के वियोग में दर्जनों सुपरहिट गीत लिखे, जिसे आज भी आप सुनते हैं, 
ये सच्ची घटना है... Link-
   
http://www.dharmnagari.com/2021/01/Bete-ke-khone-par-etane-superhit-filimi-gane-likhe-jise-aap-sunate-hai.html
-----------------------------------------------
 

कुछ असफल फिल्में- मुहब्बत के आंसू, सुबह का सितारा, जिन्दा लाश से इन्हें कोई विशेष पहचान नहीं मिली, लेकिन 1935 में पुराण भगत की सफलता के बाद एक गायक के रूप में सहगल फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इसी साल शरद चंद्र चटर्जी के लोकप्रिय उपन्यास पर आधारित पीसी बरुआ के निर्देशन में बनी फिल्म देवदास ने सफलता के झंडे गाड़ दिए, जिसमें केएल सहगल गायक और अभिनेता के रूप में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंचे। उनके गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए। बंग्ला फिल्मों के साथ-साथ न्यू थिएटर के लिए उन्होंने 1937 में पे्रसिडेंट, 1938 में साथी और स्ट्रीट सिंगर, 1940 में जिन्दगी जैसी कई सफल फिल्मों को अपनी गायकी और अदाकारी से सजाया। 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। 1942 में फिल्म सूरदास और 1943 में तानसेन ने बॉक्स ऑफिस के सारे रिकॉर्ड तोड़़कर एक नया इतिहास रचा। 

केएल सहगल फ़िल्म "मेरी बहन" में  
मेरी बहन
 फिल्म का गाना- दो नयना मतवारे... आज भी ऐसा लगता है, मानो अभी का गीत हो। 1946 में संगीतकार नौशाद के निर्देशन में फिल्म शाहजहां में गम दिए मुस्तकिल, कितना नाजुक है दिल... और जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे... आज भी अपनी विशिष्ट पहचान के साथ दिल और दिमाग पर राज करते हैं। 

सहगल ने अपने संपूर्ण सिने कैरियल के काल में लगभग 185 गीत गाए, जिनके 142 फिल्मी और 43 गैर-फिल्मी हैं। सहगल के बारे में मशहूर था, कि शराब के नशे में जितने भी गाने गाए, उनकी मृत्यु के 73 साल बाद उतने ही जीवंत हैं, जितने उस समय थे। भले ही आप 40-50 के दशक में रिलीज होने वाली फिल्मों से कोई वास्ता रखते हों या नहीं, मगर बीते जमाने के एक्टर और सिंगर केएल सहगल का गाना एक बंगला बने न्यारा... बालम आए बसो मोरे मन में... मैं क्या जानूं क्या जादू है... दो नयना मतवारे हम पर जुलुम करे... जब दिल ही टूट गया... कहीं भी इनकी मद्दम आवाज कानों में पड़ती है, कदम रुक जाते हैं। कानों में रस घुल जाता है।


-अनुराधा त्रिवेदी, 
सलाहकार सम्पादक - धर्म नगरी, DN News भोपाल 
------------------------------------------------
पढ़ें "आज के चुनिंदा पोस्ट, ट्वीट्स, कमेंट्स..."
आज के कॉलम का - Link-
http://www.dharmnagari.com/2021/01/Aaj-ke-selected-Posts-Tweets-Comments-Monday-18-Jan-2021.html
-----------------------------------------------
16 जनवरी के कॉलम का - Link-
http://www.dharmnagari.com/2021/01/Aaj-ke-selected-Posts-Tweets-Comments-Saturday-16-Jan-2021.html
-----------------------------------------------
15 जनवरी का कॉलम पढ़ने हेतु  Link-
http://www.dharmnagari.com/2021/01/Aaj-ke-selected-Posts-Tweets-Comments-Friday-15-Jan-2021.html

REQUIRES-
"Dharm Nagari" is being expanded in urban as well as rural area along with appointment of local "part time representative." We have also planned result-oriented, phase-wise religious/spiritual seminars, symposiums, discourse etc at district level in order to make active & unite Hindus at local level. For all these, we are searching for "Patrons" (NRI, Saint, Spiritual person, Hindutva-loving people) who may support all the activities (after knowing the plan). Please, contact 
use +91-6261868110 emaildharm.nagari@gmail.com Twitter- @DharmNagari.

No comments