#KisanAndolan : सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार और किसानों को क्या मिला ?


SC ने गठित की कृषि विशेषज्ञों की एक समिति
किसान संगठनों ने कहा, हम समिति के विरुद्ध  

(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110 
उच्चतम न्यायालय ने तीनों नए कृषि कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। न्‍यायालय ने किसान संगठनों और सरकार के बीच बने गतिरोध को समाप्‍त करने और बातचीत का रास्ता निकालने के लिए कृषि विशेषज्ञों की एक समिति का भी गठन किया है। शीर्ष न्‍यायालय ने कहा कि वह समस्‍या का उचित समाधान निकालने का प्रयास कर रहा है और न्‍यायालय के पास कानूनों को निलंबित करने की शक्ति है।

उच्चतम न्यायालय की यह पीठ संसद द्वारा पारित तीन नए कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि हम इन कानूनों की वैधता के बारे में चिंतित हैं तथा प्रदर्शनों के कारण नागरिकों के जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए भी गंभीर हैं। मुख्य न्यायाधीश (CJI) एस. ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, कि जो लोग इस गतिरोध को दूर करने के लिए वास्तव में इच्छुक हैं, वे समिति के समक्ष अवश्य उपस्थित होंगे। 

CJI  ने कहा,  गठित की गई समिति कोई आदेश पारित नहीं करेगी और न ही किसी को दंड देगी, बल्कि वह अपनी रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत करेगी। उन्होंने कहा कि इस मामले में समिति न्यायिक प्रक्रिया का एक हिस्सा है।

लगभग दो महीने से दिल्ली की सीमाओं पर डटे आंदोलनकारी किसानों को लेकर आज (12 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय दिया। सरकार-किसान संगठनों में कोई समझौता न होने पर कोर्ट ने ये निर्णय लिया। ये कमेटी अपनी कोर्ट को देगी, जिसपर आगे का निर्णय होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सख्ती बरती और कभी केंद्र, तो कभी किसानों को फटकार लगाई। 

उल्लेखीनय है, किसानों द्वारा तीनों कृषि कानूनों का विरोध किया जा रहा है. इनमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, एमएसपी समेत अन्य कई मुद्दों पर विरोध शामिल था. हालांकि, सरकार ने कई मसलों पर संशोधन करने की बात स्वीकार की थी. लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल पाया था.

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संगठनों ने कहा, हम समिति के खिलाफ  
किसान नेता ने कहा कि संगठनों ने कभी मांग नहीं की कि उच्चतम न्यायालय कानून पर जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए समिति का गठन करे और आरोप लगाया कि इसके पीछे केंद्र सरकार का हाथ है. उन्होंने कहा, ‘‘हम सिद्धांत तौर पर समिति के खिलाफ हैं. प्रदर्शन से ध्यान भटकाने के लिए यह सरकार का तरीका है. ’’
किसान नेताओं ने कहा कि उच्चतम न्यायालय स्वत: संज्ञान लेकर कृषि कानूनों को वापस ले सकता है।

एक अन्य किसान नेता दर्शन सिंह ने कहा कि वे किसी समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि संसद को मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘हम कोई बाहरी समिति नहीं चाहते हैं।’’ सम्प्रति, किसान नेताओं ने कहा कि वे 15 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली बैठक में शामिल होंगे। ये हैं समिति के सदस्य- उच्चतम न्यायालय की तरफ से बनाई गई चार सदस्यों की समिति में बीकेयू के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनावत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी हैं।

सरकार को मिली राहत 
• किसानों और सरकार के बीच करीब आठ राउंड की बात हो चुकी है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका. साथ ही कई मौकों पर दोनों पक्षों में सख्ती देखी गई, ऐसे में अब जब सुप्रीम कोर्ट की कमेटी बनी है तो सरकार-किसानों के बीच बना हुआ गतिरोध टूटेगा और किसी निर्णय की ओर आगे बढ़ते दिखेंगे।

• अदालत द्वारा बनाई गई कमेटी सभी पक्षों से बात करेगी, चाहे कानून समर्थक हो या विरोधी. ऐसे में अगर कमेटी द्वारा दी गई रिपोर्ट कानून के समर्थन में आती है, तो सरकार का पक्ष मजबूत होगा।

• सरकार को बड़ा लाभ ये भी हुआ है कि अभी कृषि कानून वापस नहीं लेना होगा. क्योंकि कमेटी अब लागू किए गए कानून पर विस्तार से मंथन करेगी, हर क्लॉज पर अपनी राय देगी. ऐसे में सरकार जिन संशोधनों की बात कर रही थी, उससे भी काम चल सकता है।

सरकार की कहां हुई आलोचना- 
• कृषि कानून का विरोध जबसे शुरू हुआ है, सरकार इसका काउंटर करने में लगी रही. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मौकों पर सीधे किसानों को संबोधित किया। इन कानूनों को कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा सुधार बताया. पीएम मोदी ने किसानों को विपक्ष की बातों में ना आने को कहा, लेकिन सरकार की दलील कोर्ट में ना चली और आखिरकार कानूनों पर रोक लग गई।

• सरकार ने किसानों को मनाने की कई कोशिशें की, लेकिन बात नहीं बन सकी. अदालत ने भी माना कि सरकार इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रही है, ऐसे में मोदी सरकार अपने दम पर आंदोलन को समाप्त नहीं कर सकी. अब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही हाथ में ले लिया है.

• कोर्ट द्वारा बनाई कमेटी हर पक्ष से बात करने के बाद अपनी राय रखेगी. ऐसे में अगर कृषि कानून में खामियां गिनाई जाती हैं, तो केंद्र पर इन्हें वापस लेने का दबाव बन सकता है.

किसानों को मिली राहत- 
• किसान लंबे वक्त से सरकार के साथ बात कर रहे थे, लेकिन नतीजा नहीं निकल रहा था. साथ ही किसान ऐसा संदेश नहीं देना चाहते थे कि वो सरकार के सामने झुक गए हैं. अब जब अदालत ने इसमें दखल दिया है तो कमेटी की रिपोर्ट और अदालत के आदेश के हिसाब से आंदोलन अंत की ओर बढ़ सकता है. ऐसे में सरकार के दबाव में आए बिना भी किसान अपना आंदोलन खत्म कर सकते हैं.

• जिस कमेटी का गठन किया गया है, वो मुख्य रूप से किसान संगठनों से बात करेगी. इनमें पक्ष और विपक्ष दोनों ही साथ होंगे, ऐसे में मुख्य रूप से किसानों की बात सुनी जाएगी जिनपर सीधे रूप से इन कानूनों का असर पड़ना है. सुप्रीम कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि अबतक कानूनों के पक्ष में उनके सामने कोई याचिका नहीं आई है।

किसानों की कहाँ हुई आलोचना 
• किसान संगठन लंबे वक्त से कानून वापसी की अपील कर रहे हैं, सरकार के संशोधन और कमेटी के प्रस्ताव को वो ठुकरा चुके थे. लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कमेटी बनाने और हल निकालने की बात कही है तो किसान संगठनों को अपनी जिद छोड़कर कमेटी के सामने जाना ही होगा।

• कमेटी के सामने किसान पेश होंगे या नहीं, इसको लेकर किसान संगठनों में अभी एकमत नहीं है. ऐसे में अगर बड़े स्तर पर किसान संगठन कमेटी के साथ चर्चा करने में असहयोग करते हैं, तो ये सरकार के पक्ष में जा सकता है. क्योंकि इसे निर्णय को टालने और अदालत का आदेश ना मानने के तौर पर देखा जाएगा।
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