जब योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी छोड़ा !
-अनुराधा त्रिवेदी*
सेक्युलर के नाम पर पिछले सत्तर सालों से विभिन्न राजनीतिक पार्टियां एक खास वर्ग को पोषण-आहार परोसती रही हैं। आज भी ये सिलसिला चल रहा है। देश में सेक्युलर शब्द कहां से आया? इस शब्द को आधी रात के बाद संविधान में कैसे शामिल किया गया? तब तत्कालीन प्रधानमंत्री कौन थे/थी ? इस शब्द को लाने के पीछे क्या मंशाएं थीं ? ये सब बाद का विषय है।
तत्काल में इस शब्द का जिक्र मैं इसलिए कर रही हूं, कि माफिया अतीक अहमद से लेकर मुख्तार अंसारी और शाहबुद्दीन से लेकर अमानुल्लाह तक, राजा भैया से लेकर विकास दुबे तक, ये सिलसिला लंबा है। फूलपुर (इलाहाबाद) के एक तांगेवाले का बेटा अतीक अहमद, पूर्वांचल के कुख्यात माफिया के रूप में कैसे स्थापित हुआ ?
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का पोता और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी (जिनको देश के मुसलमान खतरे में लगते हैं) का भतीजा मुख्तार अंसारी पूर्वांचल का कुख्यात डॉन कैसे बना ? इन सबके पीछे ये तमाम सेक्युलरवादी नेता और राजनीतिक दल का वरद हस्त रहा है, चाहे मुलायम सिंह यादव हो, कांग्रेस हो या बसपा। इन्होंने इन तमाम माफियाओं को संरक्षण दिया और पोषण भी दिया।
हैरत करने वाली बात है, कि सेना के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली स्टेन मशीनगन जैसे कई सैन्य हथियार मुख्तार अंसारी के घर से बरामद किया। शैलेन्द्र सिंह ने मुख्तार पर पोटा भी लगा दिया, लेकिन तत्कालीन समाजवादी सरकार ने शैलेन्द्र सिंह की कार्यवाही पर जो पुरस्कार दिया, उनकी नौकरी से उन्हें हाथ धोना पड़ा और फर्जी मुकदमें लादकर उन्हें जेल भेज दिया गया। ये कृपा एक कुख्यात अपराधी को सजा दिलाने के एवज में समाजवादी पार्टी द्वारा डीएसपी शैलेन्द्र सिंह को दिया गया पुरस्कार था। आतंकवादियों के लिए रात तीन बजे अदालत खोलने वाली न्यायपालिका के 15 न्यायधीशों ने मुख्तार अंसारी का केस "नॉट बिफोर मी" कहकर खत्म कर दिया।
मुख्तार जब जेल गया, तो समाजवादी सरकार का एक चाटुकार कलेक्टर उसके साथ जेल में बैडमिन्टन खेलता था। 2017 में उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई, जिसने इन जैसे अपराधियों के काले कारनामों की फाइलें खोलना शुरू किया। नतीजे में अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी जैसे लोग थर-थर कांपना शुरू हुए। पंजाब की कांग्रेस सरकार, जिसने अभी तक सेक्युलरिज्म को जिन्दा रखा हुआ है, मुख्तार अंसारी को पंजाब की जेल में दामाद बनाकर रखा। अब सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई के बाद, मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश की जेल में ट्रांसफर हो गया।
बात अक्टूबर 2005 की है। यूपी में मुख्तार अंसारी खुली जीप में हथियार लहराते हुए मऊ में सांप्रदायिक दंगों को हवा दे रहा था।
तीन दिन बीत चुके थे, दंगे के उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे, जो कहते थे, कि उत्तर प्रदेश में मुझसे बड़ा गुंडा कोई नहीं है। ये योगी को इशारा करके कही हुई बात थी। जब दंगे का तीसरा दिन था, तब प्रशासन और उप्र के सीएम इस दंगे पर कोई कार्रवाई करने के बजाय चुप करके बैठे हुए थे।
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योगी जी ने राजनाथ जी को चुनौती दे दी, तब मऊ से 64 किमी. दूर गोरखपुर में बैठे योगीजी को यह दंगा बर्दाश्त नहीं हुआ और वो बीजेपी के सारे बड़े नेता, अटलजी, आडवाणीजी, जोशीजी और राजनाथजी को चुनौती दी, कि अगर बीजेपी के कार्यकर्ता मेरे साथ मऊ नहीं गए तो परिणाम बहुत बुरा होगा। दंगा तो मैं अपने बल पर भी रोक लूंगा, लेकिन अगर ऐसे हत्याओं को बीजेपी देखकर चुप रहेगी, तो मैं बर्दाश्त नहीं करुंगा और बीजेपी छोड़ दूंगा।
बीजेपी के सारे बड़े नेताओं के पसीने छूट गए।
कोई भी बीजेपी का नेता जाकर इस दंगे को रोकने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। कारण था मुलायम सिंह यादव, जिन्होंने अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलवा दी थीं। सारे बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने कन्नी काट ली और ये सोचकर बैठ गए, कि योगी बिना बीजेपी कार्यकर्ताओं के वहां जा ही नहीं सकता। मुख्तार अंसारी के टारगेट पर योगी भी थे। योगीजी भी कम जिद्दी नहीं थे। अपने आश्रम से तीन गाडिय़ां लेकर मऊ की ओर रवाना हो गए। योगीजी मऊ जा रहे दंगा रुकवाने, जैसे ही ये खबर गोरखपुर में फैली, सारा गोरखपुर योगीजी के साथ हो गया। मऊ पहुंचते-पहुंचते तीन गाडिय़ां 160 गाडिय़ों के काफिले में बदल गई।
योगीजी के काफिले के अंतिम आठ गाडिय़ों पर पेट्रोल बम फेका गया, जो सिर्फ दो गाडिय़ों पर पड़ा। फिर जब सारे लोग गाडिय़ों से उतरने लगे, तो पेट्रोल बम फेंकने वालों को मौत का खौफ लगने लगा। इसी बीच मुलायम का बयान आया, कि अगर योगी मऊ पहुंचेंगे, तो उन्हें अरेस्ट कर लिया जाएगा। प्रशासन भागा-भागा योगीजी के काफिले की ओर पहुंचा।
प्रशासन के भी हाथ-पांव फूलने लगे इतना बड़ा काफिला देखकर। प्रशासन की हिम्मत नहीं हुई, कि योगीजी को अरेस्ट कर ले। उसी दिन मऊ का दंगा तत्काल खत्म हो गया। दंगा खत्म होते ही योगीजी ने बीजेपी छोड़ दिया, लेकिन बीजेपी उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रही थी। बड़ी मान-मनुहार की गई। राजनाथ सिंह लगातार फोन करते रहे, कि मैं गोरखपुर आ रहा हूँ, आकर बात करता हूं। तब योगीजी ने राजनाथ सिंह को सीधा कहा, गोरखपुर में कदम भी न रखना।
योगी के इस्तीफे से अटलजी बहुत विचलित थे। वो जानते थे, कि पूर्वांचल में एक ही बड़ा नेता है। अगर वह बीजेपी छोड़ देगा, तो कैसे चलेगा? तब आडवाणीजी गोरखपुर पहुंचे। योगीजी को बहुत मनाया। दो दिन बाद अंतत: योगी मान गए। यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार में अपराधियों के गुनाहों का पूरा हिसाब करने का मन बना लिया है। इसीलिए शायद मीर तकी मीर ने लिखा था, इब्तदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे आगे देखिये होता है क्या !
पूर्वांचल में अपराध की दुनिया का बादशाह-
अपराध की दुनिया के बेताज बादशाह मुख्तार अंसारी मऊ, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर में कुख्तार अपराधी के तौर पर जाने जाते थे। लेकिन अपराध की दुनिया के साथ ही उन्होंने 1995 में राजनीति की दुनिया में भी कदम रखा और 1996 मे विधायक बनें। इस दौरान भी अंसारी और बृजेश सिंह की आपसी तकरार बनी रही, अंसारी की एक रैली पर बृजेश सिंह धावा भी बोल दिया था। इस दौरान गोलीबारी में अंसारी के तीन लोगों की मौत हो गई थी, बृजेश सिंह बुरी तरह से घायल हो गया और माना जा रहा था कि उसकी मौत हो गई है।
अंसारी की राजनैतिक दावेदारी के प्रभाव को कम करने के लिए बृजेश सिंह ने भाजपा के कृष्णानंद राय का प्रचार करना शुरु कर दिया। राय ने अंसारी के भाई अफजाल जोकि पांच बार के विधायक थे को मोहम्मदाबाद से हरा दिया। मुख्तार अंसारी ने राय पर आरोप लगाया कि बतौर विधायक उन्होंने बृजेश सिंह को कई ठेके दिए और दोनों ने मिलकर उनका सफाया करने का भी षड़यंत्र रचा था।
मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति शुरु की-
राजनीति में अपनी पैठ को मजबूत करने के लिए मुख़्तार अंसारी ने एक बार फिर से दांव चलना शुरु किया और मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी दावेदारी शुरु कर दी। गाजीपुर-मऊ एक तरफ जहां अंसारी के विरोधी हिंदू वोट बैंक साध रहे थे तो अंसारी ने मुस्लिम वोट बैंक को साधना शुरु कर दिया। जिसके चलते इस क्षेत्र में कई दंगे और हिंसात्मक घटनाएं भी हुई, जिसके बाद अंसारी को दंगे कराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।
कई हत्याओं का मास्टरमाइंड-
जिस समय मुख़्तार अंसारी जेल में था, उस वक्त कृष्णानंद राय और उसके छह सहयोगियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हमलावरों ने एके-47 से 400 राउंड गोलियां चलाई थी। सात शव से 67 गोलियां मिली थी। इस मामले में मुख्य गवाह शशिकांत राय की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। हालांकि पुलिस ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार कर दिया। इस हत्याकांड के बाद बृजेश सिंह फरार हो गया।
पूर्व गाज़ीपुर (यूपी) से भाजपा विधायक स्व. कृष्णानंद राय की 14वीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उनके साथियों एवं भाजपा नेताओं, जिसमे विशेषरूप से पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री एवं वर्तमान में राज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्रद्धांजली देते हुए उम्मीद जताया था, कि बहुत जल्द न्याय मिलेगा। न्याय की इस लड़ाई में किसी प्रकार की कोताही नही बरती जाएगी। |
फैसले से पिछले 14 सालों से इंसाफ की जंग लड़ रहीं कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय और उनके परिवार को झटका लगा। अदालत के इस फैसले के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि फिर कृष्णानंद राय की हत्या फिर किसने की? अगर मुख्तार अंसारी गिरोह ने गोलियां नहीं बरसाईं तो वो कौन थे जिन्होंने 29 नवंबर 2005 को भांवरकोल इलाके में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इस हत्याकांड में एके-47 से सैकड़ों राउंड फायरिंग की गयी थी।
गवाहों को जान से मरवा देता था-
बृजेश सिंह को 2008 में ओड़िशा से गिरफ्तार किया गया था, बाद में उसने प्रगतिशील मानव समाज पार्टी की ओर से राजनीति में कदम रखा। 2008 में मुख्तार अंसारी के खिलाफ धर्मेंद्र सिंह पर हमला कराने का मामला दर्ज किया गया। धर्मेंद्र सिंह हत्या का चश्मदीद था। हालांकि, बाद में धर्मेंद्र सिंह के परिजनों ने अंसारी के खिलाफ मामला वापस लेने की अर्जी दे दी थी।
2009 में पुलिस ने अंसारी का नाम चार्जशीट में कपिल देव सिंह की हत्या के मामले में दर्ज किया। पुलिस ने अपनी चार्जशीट में अंसारी को अजय प्रकाश सिंह की ह्ताय का भी आरोपी माना। 2010 में अंसारी राम सिंह मौर्या की हत्या के मामले में बुक किए गए। यहां गौर करने वाली बात यह है कि मौर्या भी मन्नत सिंह की हत्या का गवाह था। मन्नत सिंह स्थानीय ठेकेदार था और उसकी अंसारी के गैंग के लोगों ने हत्या कर दी थी।
मायावती ने बताया था गरीबों का मसीहा-
मुख्तार अंसारी 2007 में पहली बार बसपा विधायक बने, अंसारी ने खुद को तमाम मामलों में निर्दोष बताया जिसके बाद मायावती ने उन्हें गरीबों का मसीहा बताया। यह वही दौर था जब अंसारी की छवि रॉबिन हुड के तौर पर स्थापित हुई थी। अंसारी ने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा, उस वक्त भी वह जेल में थे, लेकिन वह भाजपा के मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ हार गया।
2010 में बनाई अपनी पार्टी-
बसपा ने 2010 में मुख्तार अंसारी और अफजाल अंसारी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। जिसके बाद मुख्तार, अफजाल और सिबकतिल्लाह ने कौमी एकता दल का 2010 में गठन किया। 2014 में अंसारी ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में उसने अपनी दावेदारी वापस ले ली थी।
पारिवारिक पृष्ठभूमि-
मुख्तार अंसारी की छवि कुख्यात आरोपी के तौर पर हैं और उसके पास अकूत संपत्ति भी है। उनकी पत्नी के पास तकरीबन 12 करोड़ रुपए की संपत्ति है। यही नहीं, अंसारी का बड़ा बेटा अंतर्राष्ट्रीय स्तर का शूटर है। अंसारी के पास कुल 2 करोड़ 54 लाख 38 हजार रुपए की चल संपत्ति है। जबकि उनके पास 2 करोड़ रुपए की जमीन और आवास है। उनके पास एक लाख 90 हजार रु की एलआईसी भी है। अंसारी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान जो एफिडेविट भरा था उसके अनुसार उनके पास ढाई करोड़ रुपए हैं जबकि उनकी पत्नी आफशा के पास 12 करोड़ रुपए की संपत्ति है।
पत्नी के पास है रिवाल्वर-
अपने एफिडेविट में अंसारी ने उनके उपर दर्जनभर से अधिक आपराधिक मामलों का जिक्र किया है। जो जानकारी उन्होंने मुहैया कराई है उसके अनुसार उनकी शैक्षिक योग्यता स्नातक है। अंसारी की बीबी आफशा के नाम 12 करोड़ 34 लाख 30 हजार रु की चल संपत्ति भी है। उनके पास 50 लाख रु के जवाहरात हैं। इसके अलावा 10 करोड़ 59 लाख व 850 रु का भवन है। आफशा के पास एक लाइसेंसी रिवाल्वर भी है।
एंटी माफिया अभियान के तहत कार्रवाई-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्तार के बेटों अब्बास व उमर अंसारी के खिलाफ जमीन का "फर्जी बैनामा कराकर होटल बनाने के मामले" में राहत देते हुए उनकी (9 फरवरी 2021 को) अग्रिम जमानत मंजूर की थी। |
पढ़ें/ देखें- ☟
http://www.dharmnagari.com/2021/01/Aaj-ke-selected-Posts-Tweets-Comments-Tuesday-19-Jan-2021.html
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