चंद्र ग्रहण आज, पर केवल पूर्वोत्तर क्षेत्र, प. बंगाल के कुछ इलाकों में दिखेगा

चंद्र ग्रहण  (Lunar eclipse) : प्रतीकात्मक फोटो 
(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110

इस वर्ष का पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण बुधवार (26 मई) को होगा। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा पर बुधवार (26 मई) को पड़ने वाला चंद्र ग्रहण केवल पूर्वोत्तर क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में कुछ समय के लिए दिखेगा। ज्योतिष मठ संस्थान भोपाल के पं. विनोद गौतम के अनुसार, चंद्र ग्रहण अनुराधा नक्षत्र और वृश्चिक राशि पर होगा। मध्य प्रदेश में यह नहीं दिखेगा, इसलिए इसका सूतक नहीं माना जायेगा, न तो इसका कोई प्रभाव होगा। ग्रहण का मोक्ष सायं 6 बजकर 23 मिंट पर होगा। इसलिए जहां इससे पहले चंद्रोदय होगा, वहाँ यह ग्रहण देखा जा सकेगा। 

मौसम विभाग के अनुसार भारत में केवल आंशिक चंद्र ग्रहण चंद्रोदय के ठीक बाद दिखाई देगा। यह चंद्र ग्रहण का अंतिम चरण होगा। इसे सिक्किम, पश्चिमबंगाल के कुछ भागों, ओडिसा और अण्‍डमान निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर पूर्वोत्‍तर भारत में कुछ देर के लिए देखा जा सकेगा। अगला चंद्र ग्रहण 19 नवम्‍बर को होगा, जो भारत में दिखाई देगा। पूर्ण चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन होता है जब धरती सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है और ये तीनों एक सीध में होते हैं।

प्रस्तुत है "धर्म नगरी" के सहयोगी प्रकाशन पं. अयोध्या प्रसाद गौतम पंचांग-2021 (ज्योतिष मठ संस्थान भोपाल द्वारा प्रकाशित) में प्रकाशित 2021 में भारत में दिखाई देने वाले अल्पकालीन ग्रहण-


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The fully-eclipsed moon is seen over a mountain range in eastern California this morning. A stunning sight. -@johnkrausphotos
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TOTAL LUNAR ECLIPSE ON A SUPERMOON  LOOK: Earth casts a shadow on a supermoon during total lunar eclipse on Wednesday evening. The moon reached its greatest eclipse at 7:18 PM, according to PAGASA. -@PhilippineStar




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चंद्र ग्रहण को लेकर प्रचलित पौराणिक कथा-

समुद्र मंथन के समय स्वर्भानु नामक एक दैत्य ने छल से अमृत पान करने का प्रयास किया। तब चंद्रमा और सूर्य ने उसे देख लिया। इसके बाद दैत्य की हरकत के बारे में चंद्रमा और सूर्य ने भगवान विष्णु को जानकारी दे दी। भगवान विष्णु ने अपने सुर्दशन चक्र से इस दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत की कुछ बंदू गले से नीचे उतरने के कारण ये दो दैत्य बन गए और अमर हो गए।

सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ केतु के नाम से जाना गया। माना जाता है, कि राहु और केतु इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए समय-समय पर चंद्रमा और सूर्य पर हमला करते हैं। जब ये दोनों क्रूर ग्रह चंद्रमा और सूर्य को जकड़ते लेते हैं, तो ग्रहण लगता है। इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है एवं दोनों ही ग्रह कमजोर पड़ जाते हैं। इसलिए ग्रहण काल में शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। 


  


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