बीजेपी की हार में ही खुशी तलाशने वाली कांग्रेस पार्टी में बढ़ेंगी मुश्किलें !

क्या एकबार फिर उठेगी पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की मांग और शीघ्र ही फूटेगा पत्र-बम ?


अनुराधा त्रिवेदी / राजेश पाठक** 
(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 6261868110
क्या कांग्रेस के लिए खुशी अब सिर्फ बीजेपी की हार में ही है, न कि अपनी जीत से ? चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा, लेकिन पार्टी के सदाबहार युवराज ने एकबार फिर कोई सीख नहीं ली। अपने ट्वीट में राहुल गांधी ने ममताजी को दिए बधाई में उन्होंने बीजेपी को हराने के लिए राज्य की जनता को बधाई दी। ऐसे में ये प्रश्न उठना स्वभाविक है, क्या बंगाल में कांग्रेस का सफाया होने और केरल, असम और पुडुच्चेरी में भी निराशा हाथ लगने के बावजूद कांग्रेस पार्टी, इसपर पीढ़ी दर पीढ़ी बागडोर संभालने वाले दूसरों की हार में अपनी खुशी तलाशने को मजबूर हैं ? फिर से अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने में नाकाम रहे और आगे भी ऐसा चलता रहेगा और क्या एकबार फिर से पार्टी के नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठेगी, शीघ्र ही पत्र-बम फूटेगा ?

कभी देश की शक्तिशाली पार्टी आज वेंटिलेटर पर पहुंच गई। वह पार्टी जिसकी सर्वाधिक शक्तिशाली नेता स्वर्गीय इंदिरा गांधी, जिनके गले मे हमेशा रुद्राक्ष की माला और कभी दुर्गा स्वरूपा होने का अहसास शायद उनके प्रति पब्लिक में विश्वास पैदा करता था, वो प्रभाव कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व कभी नही हासिल कर पाया। आज देश स्पष्ट तौर पर कांग्रेस को देश की बहुसंख्यक आबादी के विरोध के तौर पर देखता है। पिछले कुछ सालों में एक के बाद एक चुनावी हार से उबरने की कोशिश में लगी कांग्रेस को इस बार चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनावों, खासकर असम और केरल में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी। लेकिन जो नतीजे आए, उससे पार्टी की दिक्कतें कम होने के बजाय बढऩे के आसार बन रहे हैं।

कांग्रेस 294 विधानसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ गठबंधन के बाद भी पार्टी नहीं खोल पाई। केरल और असम में सत्ता में आने की उम्मीद भी नतीजों के साथ हुई ध्वस्त, पुडुचेरी भी हाथ से निकल गया। अब बीजेपी की हार में ही अपने लिए खुशी तलाश रही है। इसीलिए शायद राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा था- आइ एम हैप्पी टू कांग्रेचुलेट ममताजी एंड द पीपुल ऑफ वेस्ट बंगाल फॉर साउंड डिफीटिंग द बीजेपी। राहुल के इस ट्वीट के 51 मिनट बाद पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक ने लिखा- यदि हम (कांग्रेसी) मोदी की हार में ही अपनी खुशी ढूंढते रहेंगे, तो अपनी हार पर आत्म-मंथन कैसे करेंगे ?

देश की सबसे पुरानी पार्टी इन दिनों कई आंतरिक मुद्दों का सामना कर रही है। असम में एआईयूडीएफ (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट) और पश्चिम बंगाल में आईएसएफ (इंडियन सेक्युलर फ्रंट) के साथ गठबंधन को लेकर भी सवाल उठे हैं। ये सब साफ नजर आया जब भारत विरोधी बदरुल जमाली की पार्टी से कांग्रेस ने आसाम में साझेदारी की। तब भाजपा वहां पर जनता को भारतीय बनाम विदेशी घुसपैठिये का संदेश देने में सफल हुई। वहीं, कांग्रेस के राहुल गांधी के केरल के बयान, जो खुलकर हिन्दू विरोध कर रहे थे, वहां यदि भाजपा नही तो हिन्दू वोट वामपंथ के पक्ष में गया। राहुल गांधी के लिए ये नतीजे इस मायने में बड़ा झटका हैं, क्योंकि उन्होंने केरल में  पूरी ताकत झोंक दी थी। वह कई गुटों में बंटी नजर आने वाली राज्य इकाई को एक छतरी के नीचे नहीं ला सके। इसकी पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि लोकसभा चुनाव में केरल से कांग्रेस अधिकतम सीटें जीती थीं। खुद राहुल गांधी भी प्रदेश से वायनाड लोकसभा सीट से निर्वाचित हैं। इसके अलावा कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने असम और केरल में धुआंधार चुनाव प्रचार किया था।

जाहिर है, दो मई को आए पूरे चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर एक बार फिर से बहस छिड़ सकती है। गांधी परिवार का नेतृत्व पार्टी के असंतुष्ट धड़े के निशाने पर एकबार फिर आ सकता है। वैसे भी जनवरी, 2021 में कांग्रेस कार्य समिति ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि इस साल जून में ‘किसी भी कीमत पर नया अध्यक्ष चुन लिया जाएगा।’ मतलब कांग्रेस के लिए आगे मुश्किलें और भी बढ़ सकती है। माना जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी वाला ‘जी 23’ समूह अपना अगला कदम उठाने का इंतजार कर रहा है।

आज वास्तव में कोंग्रेस को गम्भीर आत्मचिंतन की जरूरत है। गांधी परिवार का नेतृत्व क्या अब कांग्रेस को गर्त में ले जा रहा ? सबसे बड़ी विडंबना ये कि गांधी परिवार से इतर जब भी कोई बाहरी व्यक्ति पार्टी का अध्यक्ष बना, तो उसकी दुर्दशा देश ने देखी। चाहे वह सीताराम केसरी का मामला क्यों न हो, जिन्हें सोनिया गांधी की मौजूदगी में उठाकर बाहर फेंक दिया गया था। स्वर्गीय नरसिम्हाराव की मृत्यु के बीस साल बाद जब सोनियाजी ने उन्हें याद किया, तो नरसिम्हा राव के बेटे ने कांग्रेस को उनके पिता के प्रति पार्टी के दुव्र्यवहार की स्मृति ताजा हो गई और उन्होंने कांग्रेस को खुलकर आईना दिखा दिया।

आज ज्योतिरादित्य, जो राहुल के घनिष्ट मित्र भी रहे है, क्या वजह के वो कांग्रेस को देखना भी नही चाहते ? आज वाकई कांग्रेस को देश की बहुसंख्यक आबादी नकार चुकी है। तब क्या अपनी इस जमीन को खो चुकी कांग्रेस अपना आत्मवलोकन करेगी ? कांग्रेस के वफादार और निष्ठावान नेता, जो कोंग्रेस की गिरती साख ओर खत्म होते जनाधार को लेकर चिंतित है, उनमें वरिष्ठम नेता कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस के संगठन में आमूलचूल परिवर्तन कर, नए सिरे से संगठन के स्वरूप का निर्माण करने हेतु शीर्ष नेतृत्व को पत्र लिखा। कांग्रेस के साथ बड़ी दिक्कत ये भी है, कि जब भी किसी ने नेतृत्व को कोई सुझाव या प्रस्ताव पार्टी के हित में दिया, तो शीर्ष नेतृत्व और उनके चापलूसों ने इसे तत्काल पार्टी विरोधी बताकर भाजपा का एजेंट बता दिया और पार्टी ने उनको किनारे लगा दिया गया।

कांग्रेस के पास दूसरी बड़ी दिक्कत यह है, कि उनका नेता एक सभा में गलत बयानी, गलत आंकड़े प्रस्तुत करता है, वहीं दूसरी सभा में कुछ और ही बयान देता हैं। राहुल और प्रियंका  की राजनीतिक अपरिपक्वता भी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुई। केरल में कहना, कि हमारे पूर्वज मुस्लिम है और साउथ में जाकर दत्तात्रेय गोत्र बताना लोगों के बीच परिहास का विषय हो गया। बेहतर होता कि कांग्रेस देश के मुद्दे उठाती। देश मे कोरोना को लेकर जो अफरातफरी मची है, बेरोजगारी महंगाई जैसे बड़े मुद्दे थे, यदि इनको गंभीरता से उठातीतो निश्चित जनता उनको सुनती पर ऐसा नही हुआ।
   
कांग्रेस CWC बैठक (फाइल फोटो)

अब कांग्रेस में फिर से जोर-शोर से नेतृत्व को घेरने की कोशिश होगी। नेतृत्व परिवर्तन की मांग भी उठेगी। पुन: पत्र बम फोड़े जाएंगे। ये याद रखिये कि 2014 के बाद से राजनीति का स्वभाव से बदला है। अब गोत्र बताने, जनेऊ दिखाने से काम नही चलेगा। अब बहुसंख्यक को दरकिनार कर कोई भी राजनीतिक पार्टी इस देश में राज नहीं कर सकती। हिन्दू जो इस देश मे बहुसंख्यक है, अब अपनी उपेक्षा बर्दाश्त करने तैयार नही। भाजपा हिन्दुओं को लामबंद करने में जितना सफल हुई, कांग्रेस से उतनी ही तेजी से हिन्दू मतदाता से दूर हुई। आज राजनीति तुष्टिकरण और हिंदुत्व के बीच सिमट के रह गई। नफरत का कारोबार राजनीति में भी छा चुका है। बेहतर हो देश हित ओर जन मुद्दों पर बात हो और इसी आधार पर चुनाव भी हो।

हाल ही में राहुल गांधी की नई टीम जो पूरी तरह अपरिपक्व और राजनीतिक समझ से दूर है, वह अस्तित्व में आई। उसकी चर्चा है। इस टीम ने न केवल पुराने निष्ठावान कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोला, बल्कि उनको बाहर रखने में अपनी भूमिका भी निभाई। कांग्रेस को अब आत्मवलोकन कर पुराने अनुभवी और निष्ठावान नेताओं को न केवल सम्मान सहित वापस बुलाना चाहिए, बल्कि उनके अनुभवों का लाभ लेकर कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का जिम्मा भी देना चाहिए। जो लोग अपने बुजुर्गों का मान नही करते, वो नष्ट हो जाते हैं।  
   कांग्रेस के जितने जमीनी संगठन हैं- जैसे सेवादल, छात्र संगठन और अन्य जो इनके संगठन है, उनमें योग्य काबिल लोगों को बिठाकर, जमीनी स्तर से शीर्ष तक परिवर्तन कर कोंग्रेस की दोबारा संरचना करना होगा, वर्ना देश की सबसे पुरानी पार्टी और खानदानी कुर्सी पकड़े हुए लोगों का शायद कहीं नामोनिशां भी न होगा।
-वरिष्ठ पत्रकार मप्र व सलाहकार सम्पादक /  संपादक** 
-----------------------------------------------
"धर्म नगरी" व DN News का विस्तार प्रत्येक जिले के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में (जहां प्रतिनिधि/रिपोर्टर/एजेंट नहीं हैं) में हो रहा है. प्रतियों को निशुल्क देशभर में धर्मनिष्ठ संतो आश्रम को भेजने हेतु हमें दानदाताओं एवं धर्म नगरी व DN News के विस्तार हेतु बिजनेस पार्टनर की खोज है। सुरक्षित निवेश कर निश्चित आय, समाचार पत्र व मैगजीन में निःशुल्क स्पेस व अन्य सुविधा के साथ. संपर्क- 06261868110 
------------------------------------------------
 

No comments