घंटाकर्ण देवता को क्यों कहते हैं बदरीनाथ का रक्षक ? कैलाश देवता की जाती मेले की यात्रा...


कैसे घंटाकर्ण देवता बदरीनाथ धाम के रक्षक बने ?
-देखें कैसे जा वसुधारा के नीचे भरी ग्लेशियर में  यात्रा 

(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप- 8109107075)

बीते दिनॉन घंटाकर्ण कैलाश देवता की जाती मेले की यात्रा सम्पन्न हुई। 12 साल बाद महाकुंभ की भाँति यह यात्रा आयोजित होती है।

उत्तराखण्ड अर्थात  देवभूमि। वह देवभूमि जिसके कण-कण में देवों का वास है। पग-पग पर आपको यहां ऐसे मंदिर, धरोहर दिखेंगी, जिनका इतिहास से बहुत रोचक संबंध है। इनमें घंटाकर्ण यानी घंडियाल देवता भी हैं। घंडियाल देवता को बद्रीनाथ धाम का रक्षक कहा जाता है। जिस तरह से भैरवनाथ जी को केदारनाथ का रक्षक कहा जाता है, उसी प्रकार घंडियाल देवता भी बद्रीनाथ धाम की रक्षा करते हैं। घंटाकर्ण बचपन से एक राक्षस था और साथ ही शिव का अनन्य भक्त भी था। इतना अनन्य, कि उसे किसी अन्य के मुख से शिव का नाम सुनना भी पसंद ना था इसलिए उसने अपने कानों में बड़े-बड़े घंटे धारण किए हुए थे,जिस कारण नाम घंटाकर्ण पड़ा।घंटाकर्ण की भक्ति से भगवान शिव अति प्रसन्न हुए और इन्हें स्वयं दर्शन दिए तथा वर मांगने को कहा। वरदान स्वरूप घंटाकर्ण ने अपनी मुक्ति की इच्छा रखी।

यथार्थ में, घंटाकर्ण अपने राक्षसी जीवन से खुश नहीं था। वरदान सुनकर भगवान शिव ने कहा- तुम्हे अगर कोई मुक्ति दे सकता है तो वो हैं भगवान विष्णु। तुम्हे उनकी शरण में जाना होगा। ये सुनकर घंटाकर्ण उदास हो गया, क्यूंकि वो भगवान शिव के अलावा किसी अन्य देव की उपासना नहीं करता था इसलिए भगवान विष्णु का नाम भी नहीं सुनना चाहता था। उसकी परिस्थिति समझकर भगवान शिव ने उसे एक उपाय सुझाया और द्वारिका जाने को कहा जहां भगवान विष्णु, कृष्ण के रुप में अवतरित होकर रह रहे थे।

शिव जी के आदेश के अनुसार घंटाकर्ण जब द्वारिका पहुंचा, तो वहां उन्हें पता चला कि भगवान कृष्ण कैलाश गए हुए हैं, जहां वे पुत्र प्राप्ति हेतु भगवान शिव की तपस्या कर रहे हैं। यह सुनकर घंटाकर्ण भी कैलाश की ओर चल पड़ा।

वो जब बद्रिकाश्रम पहुंचा तो देखा कि वहां श्रीकृष्ण समाधि में लीन हैं। वो वहीं बैठ कर जोर-जोर से नारायण-नारायण का जाप करने लगा जिस कारण श्रीकृष्ण का ध्यान टूटा और उन्होंने घंटाकर्ण से वहां आने का कारण पूछा। घंटाकर्ण ने उन्हें सारा वृत्तान्त कह सुनाया और उनसे मुक्ति की प्रार्थना की। कृष्ण उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने नारायण के रूप में अवतरित होकर घंटाकर्ण को राक्षस योनि से मुक्त किया और साथ उन्हें बद्रीनाथ का द्वारपाल भी नियुक्त किया।तभी से घंटाकर्ण या घंडियाल देवता को बद्रीनाथ का क्षेत्रपाल भी माना जाता है। साथ ही उत्तराखंड के गांव गांव में घंडियाल देव स्थानीय देवता के रूप में भी विराजमान हैं। जय घंडियाल देव....  
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इस मात्र 26 सेकेंड की वीडियो क्लिप देखें किस प्रकार पाण्डुकेश्वर - बामनी बद्रीनाथ गांव के देवता के पशवा ग्रामीण भारी बर्फ में भगवान घण्टाकर्ण की "देवरा यात्रा" में वसुधारा के नीचे भरी ग्लेशियर में जा रहे है. साथ में भगवान कुबेरजी, कैलाशजी नंदा माता और माना घनियालजी के देवता भी इस यात्रा में सम्मिलित थे

घंटाकर्ण कैलाश देवता की मेले की यात्रा-  
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह पैदल यात्रा पॉडुकेश्वर से वसुधारा तक पहुंचती है साथ ही पांडुकेश्वर के घटाकर्ण भगवान माणा अपने भाई धन्याल से मिलने पहुंचते है 12 वर्ष बाद प्रथम दिवस पांडुकेश्वर से यात्रा शुरू करने के बाद हनुमान चट्टी में ओथ गांव में मां भगवती से भेंट कर आशीर्वाद एवं बदरीनाथ यात्रा की अनुमति लेने पहुंचते हैं द्वितीय दिवस यात्रा माणा गांव पहुंचती है माणा गांव में विश्राम के बाद तृतीय दिवस यात्रा वसुधारा पहुंचती है।

वसुधारा से लौटने के बाद माणा के घनयाल व पांडुकेश्वर के घंटाकर्ण कैलाश वह कुबेर जी के अवतरित पास्वा द्वारा माना गांव में गाडू लेकर सभी क्षेत्रीय भक्तों को खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं चतुर्थ दिवसबामणी गांव में लौटने के बाद यहां भी पशुओं द्वारा गाडू लिया जाता है। बामणी गांव में गाडू के अवसर पर बद्रीश पंचायत में विराजमान कुबेर जी को चतुर्थ दिन बामणी गांव लाया जाता है वह पांचवें व अंतिम दिन यात्रा पुन अपने स्थान पांडुकेश्वर पहुंचने के साथ ही यात्रा का समापन किया जाता है।


घंटाकर्ण देवता करते हैं मनोकामना पूरी-
टिहरी जिले की घनसाली तहसील और भिलंगना विकासखंड में पड़ने वाले द्वारी गांव स्थित प्रसिद्ध घंडियाल देवता (घंटाकर्ण देवता) मंदिर है, जहाँ जो भी भक्त सच्चे मन से कोई मन्नत मांगता है, वह अवश्य पूरी होती है। घंडियाल देवता के मन्नत मांगने और दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर.दूर से यहां आते हैं। अब यह मंदिर सड़क मार्ग से जुड़ चुका है। इस मंदिर में पिलखी.द्वारी मोटर मार्ग, घनसाली, द्वारी पैदल मार्ग और मुयाल गांव, द्वारी पैदल मार्ग से पहुंचा जाता है। जहां घंडियाल देवता का यह मंदिर स्थित है वह बहुत ही दर्शनीय और मनोरम स्थान है। 

घंटाकर्ण देवता के मंदिर के पास ही नागरजा देवता का मंदिर भी स्थित है।ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से नैलचामी पट्टी के कई गांव दिखते हैं। यहां हर तीसरे वर्ष घंडियाल जात (जात्रा) का आयोजन होता है, जिसमें शामिल होने के लिए और घंडियाल देवता से मन्नत मांगने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। घंडियाल जात में मुंबई, दिल्ली, देहरादून, टिहरी आदि क्षेत्रों में रहने वाले प्रवासी भी बड़ी संख्या में गांव पहुंचते हैं। जिस जगह पर घंडियाल देवता का यह मंदिर स्थित है वह मोलखा नाम से जाना जाता है। यह दर्शनीय व मनोरम स्थान अभी राज्य के पर्यटन मानचित्र में स्थान नहीं पा सका है। सरकार को इस स्थल को विकसित करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है।

इस गांव के लोग आधारभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन भी कर चुके, लेकिन उनकी घंटाकर्ण देवता के प्रति उनकी जो श्रद्धा व आस्था है, वह गांव में खींच लाती है। यहां से पलायन कर चुके लोग भी वर्ष में एक या दो बार अपने ग्राम व ईष्ट देवता के दर्शन के लिए अवश्य गांव पहुंचते हैं। जो भी लोग यहां घंटाकर्ण देवता के दर्शन के लिए आते हैं वे यहां डांडा में आस.पास स्थित गुमनाम बुग्यालों के दर्शन करके भी जाते हैं। आछरी खंणदा बुग्याल लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां से डागर पट्टी को जाने वाले पैदल मार्ग पर चाकी सैंणए टोपल्या सैंण और मुयालगांव जाने वाले मार्ग पर कांडा पाणी जैसे सुंदर स्थल स्थित हैं। ये स्थान बेहद रमणीक हैं।
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