#Emergency : 21 महीने इंदिरा की तानाशाही मनमानी सहन किया, जमकर विरोध भी किया ताकि...

 ... देश का लोकतंत्र बच जाए  
- देश पर एक कलंक की तरह था इंदिरा का आपातकाल
- पढ़ें सोशल मीडिया में नेताओं व्आ म नागरिकों की प्रतिक्रिया... 
(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप- 8109107075)
भारत में इंदिरा गांधी के लगाए  आपातकाल (इमरजेंसी) को लगभग साढ़े चार दशक हो गए, लेकिन आपातकाल में इंदिरा गाँधी की क्रूरता व तानाशाही के सैकड़ों संस्मरण हरबार मीडिया, सोशल मीडिया और अन्य कार्यक्रमों में ताजा हो ही जाती है। 1947 के बाद भारतीय इतिहास में ये पहला अवसर था, जब देश ने ऐसी तानाशाही देखा। आपातकाल की घोषणा के साथ ही देश के नागरिकों के सभी अधिकार भी खत्‍म कर दिए गए। 

25-26 जून 1975 की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दिया। वास्तव में ये सत्‍ता पक्ष और लोगों के बीच ऐसे संघर्ष का आरम्भ था, जिसमें अंत में विजय आम नागरिक व देश की हुई। आपातकाल के पीछे एक बड़ा इंदिरा में कोर्ट द्वारा सत्‍ता से बेदखल किए जाने का डर था। आपातकाल 21 मार्च 1977 तक 21 माह के लिए लगाया, जिसकी बड़ी व् महत्वपूर्ण बातें व घटना इस प्रकार रहीं- 

12 जून 1975 को आए इलाहाबाद कोर्ट के निर्णय ने इंदिरा गांधी के सियासी जमीन को हिला दिया। जज जगमोहन लाल सिन्‍हा ने उन्‍हें चुनाव में अनियमितताओं का दोषी पाते हुए उनकी संसद सदस्‍यता छह वर्षों के लिए रद कर दी थी। इतना ही नहीं कोर्ट ने उन्‍हें छह साल तक चुनाव लड़ने से भी रोक दिया था। इंदिरा गांधी के राजनीतिक जीवन में ये किसी सियासी भूचाल की ही तरह था।

कोर्ट के आदेश के बाद इंदिरा गांधी काफी दुखी थीं। माना जाता है कि उस वक्‍त इंदिरा गांधी ने भी इस्‍तीफा देने का मन बना लिया था। उस वक्‍त कांग्रेस के अध्‍यक्ष देवकांत बरुआ हुआ करते थे। उन्‍होंने इंदिरा को सलाह दी थी कि वो खुद कांग्रेस की कमान संभाल लें और उन्‍हें पीएम बना दें।

इन दोनों ही बातों से इंदिरा गांधी का मन बदलने का काम संजय गांधी ने किया था। उन्‍होंने ही इंदिरा गांधी को सलाह दी थी वो आपातकाल की घोषणा कर इस समस्‍या से बच सकती हैं। उस वक्‍त तक संजय गांधी इंदिरा गांधी के सबसे बड़े सलाहकार भी थे। इंदिरा गांधी उनकी बातों पर आंख बंद करके विश्‍वास करती थीं। उनकी सलाह को मानते हुए ही इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। हालाकि 24 जून को कोर्ट के फैसले पर इंदिरा गांधी को स्‍टे मिल चुका था, इसके बाद भी उन्‍होंने आपातकाल की घोषणा की थी।

इस घोषणा के साथ ही इंदिरा गांधी के बंगले से एक नारा भी निकला था, जो इंदिरा इज इंडिया का था। इसको कांग्रेसियों ने हाथों हाथ लिया था। इस दौर में पूरा देश कांग्रेस बनाम विपक्ष हो गया था। आपातकाल की घोषणा के साथ ही इंदिरा गांधी के इस फैसले के खिलाफ सबसे पहले बिगुल लोकनायक जय प्रकाश ने फूंका था। उन्‍होंने दिल्‍ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली की और लोगों को इस फैसले के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया। उन्‍होंने सीधेतौर पर इंदिरा गांधी को ललकारा था और लोगों से इंदिरा गांधी को सत्‍ता से बेदखल करने की अपील की थी।

जय प्रकाश की अपील देश भर में एक आग की तरह फैल गई थी। देश भर में इंदिरा गांधी के खिलाफ लोग एकजुट हो गए थे। जगह जगह प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया था। साथ ही सरकार ने अपनी तरफ से इन प्रदर्शनों को कुचलने की भी तैयारी बड़े ही जोर-शोर तरीके से की थी। हजारों की संख्‍या में लोगों को गिरफ्तार किया गया और उन्‍हें जेलों में बंद कर दिया गया था। आनंदमार्ग के अंतर्गत आने वाले करीब सौ से अधिक संगठनों को भी सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।

इंदिरा गांधी के लगाए आपातकाल में मीडिया की भी आजादी छीन ली गई थी। अखबारों में जाने वाली हर खबर को पहले देखा जाता था और उसके बाद ही इसको छपने की इजाजत दी जाती थी। मनमानी करने वाले अखबारों को रातों-रात बंद करने की सरकार ने मुहिम शुरू कर दी थी। दूसरी तरफ जेपी के आंदोलन के साथ सारा देश एकजुट हो गया था। देश के हर कोने में सरकार विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए थे। इनका मकसद केवल इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व वाली सरकार को हटाना था।

देश के कोने कोने में राजनेताओं की धरपकड़ की जा रही थी। जनसंध के कई बड़े और छोटे नेताओं को जेलों में ठूंस दिया गया था। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी इस दौर में जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया था। जेल में रहते हुए ही उन्‍होंने इंदिरा गांधी की हुकूमत के खिलाफ एक कविता रच डाली थी, जिसको बाद में काफी लोकप्रियता हासिल हुई। इस कविता में बरुआ को भी निशाने पर लिया गया था।

आपातकाल का वो समय ऐसा था, जिसमें कई सारे नारे देश में गूंज रहे थे। इनमें से एक नारा पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज ने भी दिया-  जेल का ताला टूटेगा, जॉर्ज हमारा छूटेगा। जिस वक्‍त पूरे देशा में इंदिरा गांधी के विरुद्ध  प्रदर्शन हो रहे थे उसी वक्‍त सुषमा और जॉर्ज फर्नांडिस भी इस मुहिम को आगे बढ़ाने में लगे थे। उस वक्‍त वो एक ट्रेड यूनियन के बड़े नेता था। गिरफ्तारी से बचने के लिए वो लगातार वेश और अपना ठिकाना बदल रहे थे। उन्‍होंने भी इंदिरा गांधी के खिलाफ लोगों को उठ खड़े होने का आहृवान किया था। जब उन्‍हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया तो सुषमा ने ये नारा दिया था। उस वक्‍त सुषमा ने आपातकाल के खिलाफ न सिर्फ लोगों को जागरुक किया बल्कि इस मुहिम को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा इसका भी खाका तैयार किया था।

आपातकाल और इसके विरुद्ध लगातार हुए विरोध-प्रदर्शन के कारण 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी अपनी ही सीट हार गई। फिर उन्‍हें पीएम हाउस छोड़ना पड़ा।  
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@DharmNagari 
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आज ही के दिन 25 जून 1975 को ही लोकतंत्र की हत्या कर आपातकाल लगाया गया था.... 21 माह बाद 21 मार्च 1977 को खत्म हुआ और देश ने खुली हवा में सांस ली-

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1975 में आज ही के दिन कांग्रेस ने सत्ता के स्वार्थ व अंहकार में देश पर आपातकाल थोपकर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की हत्या कर दी। असंख्य सत्याग्रहियों को रातों रात जेल की कालकोठरी में कैदकर प्रेस पर ताले जड़ दिए। नागरिकों के मौलिक अधिकार छीनकर संसद व न्यायालय को मूकदर्शक बना दिया। 
एक परिवार के विरोध में उठने वाले स्वरों को कुचलने के लिए थोपा गया आपातकाल आजाद भारत के इतिहास का एक काला अध्याय है। 21 महीनों तक निर्दयी शासन की क्रूर यातनाएं सहते हुए देश के संविधान व लोकतंत्र की रक्षा के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले सभी देशवासियों के त्याग व बलिदान को नमन। -@AmitShah (Union Home Minister)
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25 जून 1975 का दिन देश के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला दिन था, इस दिन देश में इमर्जेन्सी लगा दी गयी थी। लोकतंत्र की रक्षा के लिए देश के करोड़ों लोगों ने अपना सर्वस्व लगाकर संघर्ष किया। उन्होंने यातनाएँ झेली और जेल गए।उन सभी लोकतंत्र के रक्षकों को मेरा नमन। #DarkDaysOfEmergency -@nitn_gadkari (Union Minister

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25 जून 1975 भारतीय लोकतंत्र और राजनीति के सबसे काले अध्याय आपातकाल,
अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून,
भंग कर दिया संघ को, कैसा चढ़ा जुनून,
कैसा चढ़ा जुनून, मात् पूजा प्रतिबंधित,
कुटिल कर रहे केशव ‌‌ कुल की कीर्ति कलंकित।
कह कैदी कविराय तोड़ कानूनी कारा,
गूंजेगा भारत माता की जय का नारा।
लोकतंत्र पर कुठाराघात में उन सभी पुण्य आत्मा सत्याग्रही यो ने यातनाओं को सहकर भी देश में लोकतंत्र पुनर्स्थापना में अपने प्राणों की बलिदानी दे दी उन सभी सत्याग्रही पुण्य आत्मा को सादर नमन विनम्र श्रद्धांजलि -मनीष अग्रवाल
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