"फ्लाइंग सिख" महान एथलीट मिल्खा सिंह नहीं रहे

पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा था-
'आज दौड़े नहीं उड़े हो' और मिल्खा सिंह बन गए 'फ्लाइंग सिख' 


(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 8109107075  
भारत के महान धावक मिल्खा सिंह का शुक्रवार देर रात निधन हो गया। कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पिछले कुछ दिनों में उनकी स्वास्थ्य में सुधार हुआ, लेकिन अचानक से ऑक्सीजन का स्तर कम होने के बाद उनको सांस लेने में समस्या हो गई। इसके बाद देर रात इस महान हस्ती के निधन का समाचार आया।

न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, शुक्रवार (18 जून) रात 11 बजकर 30 मिनट पर मिल्खा सिंह ने पीजीआई चंडीगढ़ में आखिरी सांस ली। 91 साल के मिल्खा विगत 17 मई को कोरोना संक्रमित पाए गए। भारत के इस महान धावक को दुनियाभर में "फ्लाइंग सिख" के नाम से जाना जाता है। भारत के लिए कॉमनवेल्थ में सबसे पहला गोल्ड मेडल जीतने का कमाल मिल्खा जी ने ही किया था। इसके अलावा एशियन गेम्स में इस महान धावक के नाम चार गोल्ड मेडल भी थे। ओलंपिक में भारत की तरफ से कांस्य पदक जीतने से चूके मिल्खा को भारत के सबसे महान और चमकदार एथलीट के रूप में जाना जाता है
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पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा था-
'आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो', मिल्खा सिंह बन गए 'फ्लाइंग सिख' 
मिल्खा सिंह भारत के इकलौते ऐसे एथलीट हैं जिन्होंने 400 मीटर की दौड़ में एशियाई खेलों के साथ साथ कॉमनवेल्थ खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता। 1962 में उन्होंने भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान रह चुकी निर्मल कौर से विवाह किया था. निर्मल कौर से उनकी पहली मुलाकात कोलंबो में हुई थी. उनके 4 बच्चे हैं, जिनमे 3 बेटियां और एक बेटा है. उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह एक नामी गोल्फर हैं।
1960 के रोम ओलिंपिक में पदक से चूकने का मिल्खा सिंह के मन में खासा मलाल था. इसी साल उन्हें पाकिस्तान में आयोजित इंटरनेशनल एथलीट कम्पटिशन में हिस्सा लेने का न्योता मिला।
पाकिस्तान में उस समय एथलेटिक्स में अब्दुल खालिक का नाम बहुत मशहूर था, जिसे वहां का सबसे तेज धावक माना जाता था। यहां मिल्खा सिंह का मुकाबला उन्हीं से था। 
इस दौड़ में हालात मिल्खा के खिलाफ थे और पूरा स्टेडियम अपने हीरो का जोश बढ़ा रहा था, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के सामने खालिक टिक नहीं पाए। रेस के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मिल्खा सिंह को "फ्लाइंग सिख" का नाम दिया और कहा "आज तुम दौड़े नहीं उड़े हो। इसलिए हम तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देते हैं।" इसके बाद से ही वो इस नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध हो गए। 

स्वर्गीय मिल्खा सिंह बहुत स्पष्टवादी थे।  भारत में खेलों एवं खिलाडियों की उपेक्षा, दुर्दशा को लेकर सदैव मुखर रहे, बिना किसी डर एवं किसी हानि की चिंता के देश में खेल के प्रोत्साहन को लेकर अपनी बात कहा करते थे। खेलों में उनके अमूल्य योगदान को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया। 
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"1958 के अंदर नेशनल गेम्‍स कटक के अंदर हुए। उसके अंदर जब मैंने पहली बार उस रिकॉर्ड को छुआ, जो लड़का मेलबर्न के अंदर फर्स्‍ट आया था ओलिम्‍पिक के अंदर। तो मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं यह टाइम निकाल सकता हूं और यह इतना चर्चा हुआ मिल्‍खा सिंह का सारी दुनिया के अंदर, कि ये एक नया लड़का निकला है जो कि इसने वर्ल्‍ड के मुकाबले के जो टाइमिंग हैं उनके अंदर ये आ गया है। तो मुझे ये यकीन नहीं था कि मैं यह टाइम निकाल सकता हूं।" - मिल्‍खा सिंह (मेलबर्न ओलिम्पिक में प्रथम आये एथलिट के रिकॉर्ड की बराबरी जब भारत के राष्‍ट्रीय खेलों में करने पर)  आकाशवाणी को दिये एक साक्षात्‍कार में

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ दिन पहले ही मिल्खा सिंह के बेहतर स्वास्थ की कामना की थी। उन्होंने कहा था, ओलंपिक जाने वाली टीम के आपके आशीर्वाद की जरूरत है। शुक्रवार देर रात पीएम ने इस महान हस्ति के निधन के समाचार पर शोक जताया (निम्न फोटो सहित ट्वीट करते हुए), परिवार को इस मुश्किल वक्त में हिम्मत बनाए रखने की बात कही।


In the passing away of Shri Milkha Singh Ji, we have lost a colossal sportsperson, who captured the nation’s imagination and had a special place in the hearts of countless Indians. His inspiring personality endeared himself to millions. Anguished by his passing away. 

I had spoken to Shri Milkha Singh Ji just a few days ago. Little did I know that it would be our last conversation. Several budding athletes will derive strength from his life journey. My condolences to his family and many admirers all over the world. -@narendramodi Prime Minister (12:26 AM · Jun 19, 2021)
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चार बार प्रयास के बाद 1951 में सेना में हुए भर्ती- 
साल 1951 में चार बार प्रयास करने के बाद मिल्खा सिंह सेना में भर्ती हुए. भर्ती के दौरान हुई क्रॉस-कंट्री रेस में वो छठे स्थान पर आये थे, इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था. इस दौरान सिकंदराबाद के EME सेंटर में ही उन्हें धावक के तौर पर अपने टैलेंट के बारे में पता चला और वही से उनके करियर की शुरुआत हुई. मिल्खा पर एथलीट बनने का जुनून इस कदर हावी हो गया था कि वो अभ्यास के लिए चलती ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे। इस दौरान कई बार उनका खून भी बह जाता और सांस भी नहीं ली जाती थी, लेकिन फिर भी वो दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे।

मेलबर्न ओलंपिक-1956 में उन्होंने पहली बार 200 मीटर और 400 मीटर की रेस में भाग लिया। एक एथलीट के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका ये पहला अनुभव भले ही अच्छा न रहा हो, लेकिन ये टूर उनके लिए आगे चलकर अत्यंत लाभदायक रहा. उस समय विश्व चैंपियन एथलीट चार्ल्स जेनकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उनके लिए भविष्य में बहुत बड़ी प्रेरणा का काम किया।

कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण जीतने वाले पहले भारतीय-
कटक में आयोजित नेशनल गेम्स-1958 में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर स्पर्धा में रिकॉर्ड बनाए. इसके बाद उसी साल टोक्यो में एशियन गेम्स में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर रेस में भी स्वर्ण पदक जीता। इंग्लैंड के कार्डिफ में कॉमनवेल्थ गेम्स-1958 में मिल्खा ने पुनः 400 मीटर की रेस में स्वर्ण पदक जीता। उस समय स्वतंत्र भारत में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।

एशियाई खेलो में 1958 में सफलता के बाद मिल्खा सिंह को आर्मी में जूनियर कमीशन का पद मिला. साल 1960 में रोम में आयोजित ओलंपिक खेलों में उन्होंने 400 मीटर की रेस में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन अंतिम पलों में वे जर्मनी के एथलीट कार्ल कूफमैन से सेकेंड के सौवें हिस्से से पिछड़ गए और कांस्य पदक जीतने से नाममात्र के अंतर से चूक गए  इस दौरान उन्होंने इस रेस में पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान भी तोड़ा और 400 मीटर की दौड़ 45.73 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड भी बनाया. 400 मीटर की रेस में उनका ये रिकॉर्ड 40 साल बाद जाकर टूटा।

 रोम ओलंपिक-1960 और टोक्यो ओलंपिक-1964 में मिल्खा सिंह अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए लगातार भारत के सबसे महान ओलंपियन बने रहे. जकार्ता एशियाई खेल-1962 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर और चार गुना 400 मीटर रिले दौड़ में भी गोल्ड मेडल हासिल किया था।
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Nation condoles demise of "Flying Sikh" Milkha Singh
Indian sprint legend "flying Sikh" Milkha Singh passed away last night after a month-long battle with covid. He was 91. The Padma Shri awardee is survived by his golfer son Jeev Milkha Singh and three daughters. His wife Nirmal Kaur lost her life recently to the Corona virus infection.

Honorary Captain Milkha Singh was an Indian track and field sprinter who was introduced to the sport while serving in the Indian Army. He was the only athlete to win gold in 400 meters race at the Asian Games as well the Commonwealth Games. He also won gold medals in the 1958 and 1962 Asian Games.

The "Flying Sikh" represented India in the Summer Olympics-1956  in Melbourne, the Summer Olympics-1960 in Rome and the Summer Olympics-1964 in Tokyo. He was awarded the Padma Shri, India's fourth-highest civilian honour, in recognition of his sporting achievements.
President Ram Nath Kovind, Vice President M. Venkaiah Naidu, PM and Home Minister Amit Shah have expressed grief over the demise of sporting icon Milkha Singh. They also expressed their deepest condolences to his family and countless followers.

Information and Broadcasting Minister Prakash Javadekar has expressed sadness over the demise of legendary Indian sprinter Milkha Singh. In a tweet, Mr Javadekar said, he will always remain an inspiration for all. Minister of Youth Affairs and Sports Kiren Rijiju has expressed grief over the death of Milkha Singh. In a tweet, Mr Rijiju said, India has lost it's star. He said, Milkha Singh Ji has left us but he will continue to inspire every Indian to shine for India. Mr Rijiju expressed his deepest condolences to his family.
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#Social_Media में प्रतिक्रिया-
#FlyingSikh Legend Milkha Singh जी, आपको ये दुनिया, भारत और हम सब आपको सदैव याद रखेगा  
सतनाम श्री वाहेगुरू -@DharmNagari 
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... Above news / Coloum will be updated shortly 
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