आज है गंगा दशहरा, क्या है स्नान-दान का महत्व, पूजन-विधि

 

पतित-पावनि मोक्ष-दायिनी जीवन-दायिनी माँ गंगा, हरिद्वार @DharmNagari 
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राजा भागीरथ के तपस्या के कारण सृष्टि के निर्माता ब्रह्माजी के कमंडल निकल कर माँ गंगा जिस दिन इस पृथ्वी पर आईं, उसी दिन को गंगा दशहरा कहते है। धरती पर अवतार से पूर्व माँ गंगा नदी स्वर्ग में थीं। गंगा दशहरा के दिन भक्त देवी गंगा की पूजा करते हैं, गंगाजी में डुबकी लगाते हैं,  दान-पुण्य, उपवास, भजन और गंगा आरती करते हैं। प्राचीन मान्यता है, इस दिन मां गंगा की पूजा करने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है। हिन्दू धर्म में तो गंगा को देवी मां का स्थान  है।

जेष्ठ शुक्ल दशमी है गंगाजी का जन्मदिन-
माँ गंगा का पृथ्वी पर अवतरण या जन्मदिन जेष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाते है। इस दशमी तिथि को गंगा दशहरा कहा जाता है। इसी दिन महाराज भागीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर गंगा जी स्वर्ग से पृथ्वी पर आईं। इस बार गंगा दशहरा 20 जून दिन रविवार को मनाया जा रहा है। जेष्ठ शुक्ल दशमी को रविवार एवं चित्रा नक्षत्र होने पर यह तिथि घोर पापों को नष्ट करने वाली मानी गई है। इस दिन गंगा स्नान करके दूध, बताशा, जल, रोली, नारियल, धूप, दीप से पूजन करके दान करने का विधान है। इसके साथ गंगा, शिव, ब्रह्मा, सूर्य, भागीरथी तथा हिमालय की प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
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दान का है विशेष महत्व-
गंगा दशहरा के दिन दशाश्वमेध में दस बार स्नान करके शिवलिंग का दस संख्या के गंध,पुष्प,दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करने से अनंत फल प्राप्त होता है।इसी दिन गंगा पूजन का भी विशिष्ट महत्व है।इस दिन विधि-विधान से गंगाजी का पूजन करके दस सेर तिल, दस सेर जौ और दस सेर गेहूं दस ब्राह्मणों को दान दें।ऐसा करने से समस्त पापों का समूल नाश हो जाता है और दुर्लभ सम्पत्ति प्राप्त होती है। इसके अलावा यह मौसम बेहद गर्मी का होता है, अतः छतरी,वस्त्र,जूते-चप्पल आदि दान में दिए जाते हैं। इसके अलावा आज के दिन आम खाने और आम दान करने का भी विशिष्ट महत्व है।

गंगा जी की पौराणिक कथा-
प्राचीन काल में अयोध्या के राजा महाराज सेंगर ने एक बार विशाल यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ की सुरक्षा का भार उन्होंने अपने पौत्र अंशुमान को सौंपा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवराज इंद्र ने राजा सगर के यगीय अश्व का अपहरण कर लिया,तो यज्ञ के कार्य में रुकावट हो गई।इंद्र ने घोड़े का अपहरण कर उसे कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। घोड़े को खोजते हुए राजा सगर के पुत्र जब कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे।कोलाहल सुनकर कपिल मुनि के क्रोध से राजा के हजारों पुत्र भस्म हो गए। महात्मा गरुड़ ने राजा सगर को उसके हजारों पुत्रों के भस्म होने की सुचना दी। उनकी मुक्ति का मार्ग उन्होंने स्वर्ग से गंगाजी को पृथ्वी पर लाना भी बताया। चूंकि पहले यज्ञ आरम्भ करवाना आवश्यक था। अतः अंशुमान ने घोड़े को यज्ञ मंडप पहुंचाया और यज्ञ करवाया। उधर राजा सगर का देहांत हो गया।
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गंगाजी का नाम भागीरथी हो गया- 
गंगा जी को पृथ्वी पर लाने का बीड़ा अंशुमान और उसके पुत्र दिलीप ने जीवन पर्यन्त तपस्या करके उठाया, परन्तु सफल नहीं हो सके। दिलीप के पुत्र भगीरथ ने जब के वर्षों तक कठोर तपस्या की,तब कहीं जाकर ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और उन्होंने भगीरथ से वर मांगने को कहा। भगीरथ ने गंगाजी को पृथ्वी पर भेजने के लिए निवेदन किया। गंगाजी का वेग सभांलने हेतु भगीरथ जी ने भगवान शंकर को प्रसन्न किया,भगवान शंकर की जटाओं से होती हुई देवी गंगा का अवतरण भूमि पर हुआ।बहता हुआ गंगा का जल ऋषि कपिल के आश्रम में पहुंचा और इस प्रकार उनके सभी पुत्र श्राप से मुक्त हुए। ब्रह्माजी ने पुनः प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप से प्रभावित होकर, गंगा जी को भागीरथी नाम से संबोधित किया था।
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