आक्सीजन ट्यूब लगाए सितार के किंवदंती पुरुष पं. रविशंकर की मंच पर अंतिम प्रस्तुति...


रूपहले परदे पर "रवि" का राग
आयु की अंतिम अवस्था में पंडित जी को आक्सीजन ट्यूब लगी स्पष्ट दिख रही है। वे व्हील चेयर पर हैं। उनके साथ हैं उनकी सुपुत्री अनुष्का।



(धर्म नगरी / DN News) वाट्सएप- 8109107075  
अपार प्रसिद्धि एवं सफलता के शिखर पर सितार की ध्वजा थामे मानवता का मधुर संदेश देने वाले अद्वितीय संगीतकार पंडित रविशंकर का यह जन्मशती वर्ष है। स्मरण के पटल खोलकर उन स्मृतियों को खोजने का समय भी यही है, जहाँ एक अत्यंत लोकप्रिय संगीतज्ञ से नया परिचय होता है।
अद्वितीय संगीतकार पंडित रविशंकर जी, प्रस्तुति व् उसके पश्चात उनके भाव देखें...
ऐसा आभास होता है, कि पहचान की अनेक परतों के नीचे से वो नए सिरे से पुकार रहा है। अर्थात एक बार फिर उनको लेकर एक नई दृश्य दिखाई देता प्रतीत होता है। किसी संगीत सभा में सितार बजाते पंडित रविशंकर की तमाम छवियों से पूर्णतः अलग ये दृश्य संगीत का जादुई रोमांच रचने वाले संगीतगए की है। निःसंदेह इसे स्मरण किया जाना चाहिए।

.... यह पचास का दशक था। हिन्दुस्तान में सिनेमा नई तकनीक, नए सांचे और प्रयोग में ढलकर मनोरंजन की नई दुनिया रच रहा था। मुंबई कलाकारों की छावनी बन गया था।

नई चाल-ढाल का सिनेमा उन प्रयोगों से भी होकर आगे बढ़ रहा था, जिनमें शास्त्रीय संगीतकारों की कल्पनाशीलता राग-रस की छौंक से दृश्य-छवियों के मर्म को उद्घाटित कर रही थी। इस संदर्भ में रविशंकर सहित अनेक पंडित-उस्तादों की सूचि बनायी जा सकती है, लेकिन दुनिया के मानपटल पर बड़े स्वीकार और प्रसिद्धि के साथ दमकते इस सूर्य (रवि) की, छाया-माया के रूपहले आंगन में आगमन की कहानी बहुत ही रोचक है।
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संगीत प्रेमी रंजनदास से अपनी आखि़री अनौपचारिक भेंटवार्ता में उन्होंने स्पष्ट किया था, कि 1946 में बनी फि़ल्म 'नीचानगर' उनके संगीत जीवन का नया प्रवेश द्वार था। उस ज़माने के जाने-माने फि़ल्मकार चेतन आनंद जो स्वयं भी संगीत की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह जानते थे, इस फि़ल्म के निर्देशक थे। क्लाइमेक्स के दृश्य में बाँसुरी और सितार की जुगलबंदी जिसमें धीमे-धीमे घुल रहा था ऑगन का स्वर...। चेतन द्वारा रचे गये उस डाइलेक्टिकल मोंटाज़ के साथ रविशंकर की इस संरचना ने दृश्य में ऐसा असर पैदा किया कि चेतन की आँखों में खु़शी के आँसू छलक उठे!

चेतन की ही फि़ल्म 'आँधियाँ' के लिए रविशंकर ने उस्ताद अली अकबर खाँ के सरोद और पन्नालाल घोष की बाँसुरी के साथ सितार बजाया था। सत्यजीत रे के साथ 'अपूर संसार', 'पाथेर पांचाली', 'अपराजिता', 'पारस पत्थर', 'अनुराधा' और 'गोदान' का संगीत, रविशंकर के लिए नई रचनात्मक कसौटी था। इसलिए कि कम बोलने वाले सत्यजित रे, भारतीय और पश्चिम के संगीत के प्रति गहरी रूचि और ज्ञान से भरे थे।
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एक घटना "ओ सजना बरखा बहार आयी" गीत से भी जुड़ा है। सलिल चौधरी ने धुन तैयार की थी, लेकिन इसमें बजते सितार को रविशंकर ने अवांछित और असंगत बताया था। इस चर्च ने काफी तूल पकड़ा था जिसमें एस.डी. बर्मन और मदन मोहन भी सम्मिलित थे। एक विवाद रिचर्ड एटनबरो की फि़ल्म 'गांधी' से भी जुड़ा है, जिसका संगीत रविशंकर ने रचा। बताते है, एटनबरो ने रविशंकर से राशुमारी किये बगैर ही लंदन फिलहार्मोनिक आर्केस्ट्रा का प्रयोग फि़ल्म में कर लिया। इस बात से पंडि़तजी बहुत रुष्ट हुए थे। विचित्र संयोग है, कि यही फि़ल्म ऑस्कर अवार्ड के लिए नामांकित हुई थी। गुलज़ार की 'मीरा' और मृणाल सेन की 'जेनेसिस' भी रविशंकर के लिए कुछ नया और लीक से हटकर सोचने-रचने का मानक बनीं।

पंडित रविशंकर जी विनम्रता से स्वीकारते रहे- "निश्चय ही मैं सलिल चौधरी, एस.डी. बर्मन, मदन मोहन या शंकर-जयकिशन की तरह का संगीतकार नहीं हूँ। अपनी सीमाएँ खूब जानता हूँ। पर मुझे इन सभी से मधुर मगर विचारोत्तेजक संगीत रचने की प्रेरणा मिलती रही।"

पंडित रविशंकर जी की सुपुत्री अनुष्का अपने पिता के साथ सितार पर प्रस्तुति देते हुए (केलीफोर्निया) 
उक्त वीडियो क्लिप में नब्बे पार की उम्र में पंडित रविशंकर जी ने केलीफोर्निया के लाँग बीच पर बेटी अनुष्का के साथ आखि़री बार सितार बजाया था। तारीख़ 4 नवंबर और साल था 2012। मुँह पर ऑक्सिजन मास्क लगाए पंडितजी व्हील चेयर पर थे। वह बहुत अस्वस्थ्य थे, पर साज़ को फ़नकार ने और फ़नकार को साज़ ने थाम रखा था। दोनों की रूहें धड़क रही थीं।
-विनय उपाध्याय, वरिष्ठ कला समीक्षक एवं पत्रकार, भोपाल। 

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