खूब लड़ी मर्दानी वो तो..., जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी, यह...


...तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी

(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप- 08109107075)

सिंहासन हिल उठे राजवंषों ने भृकुटी तनी थी,
बूढ़े  भारत में  आई फिर  से नयी  जवानी थी,

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सब ने मन में ठनी थी।

चमक उठी सन सत्तावन में, यह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने  सुनी  कहानी थी,
                          ...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


कानपुर के नाना की मुह बोली बहन छब्बिली थी,
लक्ष्मीबाई  नाम, पिता की  वो  संतान अकेली थी,

नाना  के  सॅंग पढ़ती  थी  वो नाना  के सॅंग खेली थी
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी, उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथाएँ उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने सुनी  कहानी थी,
                          
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वो स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,

नकली युध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना यह थे उसके प्रिय खिलवाड़।

महाराष्‍ट्रा-कुल-देवी उसकी भी आराध्या भवानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह हमने  सुनी  कहानी  थी,
                          
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....

हुई  वीरता की  वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ बन आई रानी लक्ष्मी बाई झाँसी में,

राजमहल में बाजी बधाई खुशियाँ छायी झाँसी में,
सुघत बुंडेलों की विरूदावली-सी वो आई झाँसी में।

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले  हरबोलों   के  मुँह    हमने  सुनी  कहानी थी,
                                ...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....

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 ये है रानी लक्ष्मीबाई की एकमात्र वास्तविक फोटो
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का यह दुर्लभ चित्र (Pic) 171 साल पहले अर्थात वर्ष 1850 में कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज फोटोग्राफर जॉनस्टोन एंड हॉटमैन ने खींचा था। इस चित्र को 19 अगस्त, 2009 को भोपाल में आयोजित विश्व फोटोग्राफी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। यह चित्र अहमदाबाद के एक पुरातत्व महत्व की वस्तुओं के संग्रहकर्ता अमित अम्बालाल ने भेजा था। माना जाता है, कि रानी लक्ष्मीबाई का यही एकमात्र फोटोग्राफ उपलब्ध है ! -अवैतनिक संपादक राजेशपाठक (6261868110) 
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उदित हुआ सौभाग्या, मुदित महलों में उजियली छाई,
किंतु  कालगती  चुपके-चुपके  काली  घटा  घेर  लाई,

तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई है, विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मारे राजाजी, रानी शोक-सामानी थी,
बुंदेले  हरबोलों के  मुँह  हमने सुनी कहानी थी,
                         
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


बुझा दीप झाँसी का तब डॅल्लूसियी मान में हरसाया,
ऱाज्य हड़प करने का यह उसने अच्छा अवसर पाया,

फ़ौरन  फौज  भेज  दुर्ग  पर  अपना  झंडा  फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज झाँसी आया।

अश्रुपुर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई वीरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                     
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की मॅयैया,
व्यापारी  बन  दया चाहता  था  जब  वो  भारत आया,

डल्हौजी ने पैर पसारे, अब तो पलट गयी काया
राजाओं  नव्वाबों  को  भी  उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने  सुनी कहानी थी,
                            
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


छीनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
क़ैद  पेशवा था  बिठुर में, हुआ  नागपुर  का  भी  घाट,

ऊदैपुर,  तंजोर,  सतारा,  कर्नाटक की कौन बिसात ?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों  के  मुँह  हमने सुनी कहानी थी,
                         
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


रानी रोई रनवासों में, बेगम गुम सी थी बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,

सरे आम नीलाम छपते थे अँग्रेज़ों के अख़बार,
"नागपुर के ज़ेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार"।

यों पर्दे की इज़्ज़त परदेसी के हाथ बिकानी थी
बुंदेले हरबोलों  के मुँह  हमने सुनी कहानी थी,
                        
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मान में था अपने पुरखों का अभिमान,

नाना धूंधूपंत पेशवा जूटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चंडी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञा प्रारंभ उन्हे तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                          
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी,

झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले   हरबोलों  के   मुँह  हमने  सुनी  कहानी  थी,
                                 
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


इस स्वतंत्रता महायज्ञ में काई वीरवर आए काम,
नाना धूंधूपंत, तांतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,

अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुंवर सिंह, सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो क़ुर्बानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                        
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ  खड़ी  है  लक्ष्मीबाई  मर्द बनी  मर्दनों में,

लेफ्टिनेंट वॉकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्ध आसमानों में।

ज़ख़्मी होकर वॉकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                         
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार,

यमुना तट पर अँग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अँग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                     
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


विजय मिली, पर अँग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुंहकी खाई थी,

काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
यूद्ध क्षेत्र में ऊन दोनो ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने  सुनी  कहानी  थी,
                          ...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किंतु सामने नाला आया, था वो संकट विषम अपार,

घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी, उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह हमने सुनी कहानी थी,
                          
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


रानी गयी सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वो सच्ची अधिकारी थी,

अभी उम्र कुल तेईस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गयी पथ, सीखा गयी हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने सुनी कहानी  थी,
                         
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....


जाओ  रानी  याद  रखेंगे  ये  कृतज्ञ  भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जागावेगा स्वतंत्रता अविनासी,

होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले  हरबोलों  के  मुँह  हमने  सुनी कहानी थी,
                          
...खूब लड़ी मर्दानी वो तो....
- सुभद्रा कुमारी चौहान
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1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वीरांगना थीं रानी
जन्म: 19 नवम्बर 1828 
बलिदान : 18 जून 1858 

रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना (प्रथम शहीद वीरांगना रानी अवन्ति बाई लोधी 20 मार्च 1858) थीं। उन्होंने केवल 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं। बताया जाता है कि सिर पर तलवार के वार से शहीद हुई थी लक्ष्मीबाई।

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में 19 नवम्बर 1828 को हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, लेकिन प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी माँ का नाम भागीरथीबाई और पिता का नाम मोरोपंत तांबे था। मोरोपंत एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। माता भागीरथीबाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ स्वभाव की थी तब उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। क्योंकि घर में मनु की देखभाल के लिये कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे। जहाँ चंचल और सुन्दर मनु को सब लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे। 

मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्र की शिक्षा भी ली। सन् 1842 में उनका विवाह झाँसी के मराठा शासित राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ और वे झाँसी की रानी बनीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सितंबर 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया। परन्तु चार महीने की उम्र में ही उसकी मृत्यु हो गयी। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गयी। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी। दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।

ब्रितानी राज ने अपनी राज्य हड़प नीति के तहत बालक दामोदर राव के ख़िलाफ़ अदालत में मुक़दमा दायर कर दिया। हालांकि मुक़दमे में बहुत बहस हुई, परन्तु इसे ख़ारिज कर दिया गया। ब्रितानी अधिकारियों ने राज्य का ख़ज़ाना ज़ब्त कर लिया और उनके पति के कर्ज़ को रानी के सालाना ख़र्च में से काटने का फ़रमान जारी कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप रानी को झाँसी का क़िला छोड़कर झाँसी के रानीमहल में जाना पड़ा। पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होनें हर हाल में झाँसी राज्य की रक्षा करने का निश्चय किया।

झाँसी का युद्ध-
झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया, जहाँ हिंसा भड़क उठी। रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करना शुरू कर दिया और एक स्वयंसेवक सेना का गठन प्रारम्भ किया। इस सेना में महिलाओं की भर्ती की गयी और उन्हें युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया। साधारण जनता ने भी इस संग्राम में सहयोग दिया। झलकारी बाई जो लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थी को उसने अपनी सेना में प्रमुख स्थान दिया।

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर के महीनों में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने सफलतापूर्वक इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रितानी सेना ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया। दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद ब्रितानी सेना ने शहर पर क़ब्ज़ा कर लिया। परन्तु रानी दामोदर राव के साथ अंग्रेज़ों से बच कर भाग निकलने में सफल हो गयी। रानी झाँसी से भाग कर कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली।

तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। बाजीराव प्रथम के वंशज अली बहादुर द्वतीय ने भी रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया और रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें राखी भेजी थी इसलिए वह भी इस युद्ध में उनके साथ शामिल हुए। 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रितानी सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई की वीरगति को प्राप्त हो गई। लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रितानी जनरल ह्यूरोज़ ने टिप्पणी की कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुन्दरता, चालाकी और दृढ़ता के लिये उल्लेखनीय तो थी ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक ख़तरनाक भी थी।
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ये गलत फोटो है रानी लक्ष्मीबाई। ये रानी लक्ष्मीबाई नहीं हैं. इस गलत चित्र को एक दैनिक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था, उसके बाद लोगों को भ्रम हो गया -"धर्म नगरी"
ऐसा कहा जाता है कि सन 1850 में एक ब्रिटिश फ़ोटोग्राफ़र ने झांसी की रानी की एक फोटो ली। उस समय रानी की आयु मात्र 15 वर्ष की थी। फ़ोटोग्राफ़र ने अपना नाम “हॉफ़मैन” बताया और कहा, कि वह जर्मन है। ऐसा उसने शायद इसलिए किया, क्योंकि किसी ब्रिटिश व्यक्ति का रानी के आस-पास फटकना भी संभव नहीं था।  
"हॉफ़मैन"द्वारा ली गई झांसी की रानी की यह फोटो अहमदाबाद के एक चित्रकार अमीत अम्बालाल के पास है। उन्होनें इसे 49 वर्ष पहले जयपुर से करीब डेढ़ लाख रुपए में खरीदा था। अम्बालाल ने इसे अपने फ़ोटोग्राफ़र मित्र वामन ठाकरे को दे दिया और वामन ठाकरे ने इसे भोपाल में एक प्रदर्शनी के दौरान जनता के सामने रखा। इस तरह दै.भा. की खबर बनी जिसमें ग़लत फ़ोटो को छाप दिया गया। मुझे नहीं पता कि अखबार में छपी ग़लत फोटो में जो महिला दिख रही हैं – वे कौन हैं। अपनी प्रतिक्रिया नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य दें -धर्म नगरी 
रानी महल, रानी लक्ष्मी बाई के महल ने अपनी दीवारों और छत पर बहु ​​रंगीन कला और चित्रकला के साथ सजाया। वर्तमान में यह महल एक संग्रहालय में परिवर्तित हो गया है। इसमें 9वीं और 12 वीं शताब्दी के बीच की अवधि की मूर्तियों का विशाल संग्रह है, जो यहां भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा आयोजित किया गया है।
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अंग्रेज़ों की तरफ़ से कैप्टन रॉड्रिक ब्रिग्स पहला व्यक्ति था, जिसने रानी लक्ष्मीबाई को अपनी आँखों से लड़ाई के मैदान में लड़ते हुए देखा उन्होंने घोड़े की रस्सी अपने दाँतों से दबाई हुई थी वो दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं और एक साथ दोनों तरफ़ वार कर रही थीं उनसे पहले एक और अंग्रेज़ जॉन लैंग को रानी लक्ष्मीबाई को निकट से देखने का अवसर मिला, लेकिन लड़ाई के मैदान में नहीं, उनकी हवेली में
जब दामोदर के गोद लिए जाने को अंग्रेज़ों ने अवैध घोषित किया, तो रानी लक्ष्मीबाई को झाँसी का अपना महल छोड़ना पड़ा था उन्होंने एक तीन मंज़िल की साधारण सी हवेली 'रानी महल' में शरण ली थी रानी ने वकील जॉन लैंग की सेवाएं लीं, जिसने हाल ही में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ एक केस जीता था
अंतिम सांस तक लड़ी थी रानी-
ग्वालियर के पास घनघोर युद्ध हुआ. 18 जून 1858 को जख्मी हो जाने के बाद कुछ सैनिकों ने रानी को बाबा गंगादास की कुटिया (आश्रम) में पहुंचाया। 

कुटिया के वर्तमान महंतजी ने "धर्म नगरी" को बताया, कि रानी की रक्षा के लिए अनेकों साधु लड़े और लड़ते-लड़ते मारे गए, क्योंकि महारानी चाहती थीं कि उनके मरने के बाद अंग्रेज उनके शव को हाथ न लगाएं,  बाद में कुटिया में जल पीने के बाद महारानी लक्ष्मी बाई ने नश्वर शरीर त्याग दिया और वीरगति को प्राप्त हो गई। उनके अनुसार, मध्य प्रदेश की सरकार महारानी की स्मृति में उस स्थान पर भव्य "स्मृति स्थल" बनाने को कहा था, जो दुर्भाग्य से अब तक नहीं बना। 

#सोशल_मीडिया में प्रतिक्रिया 
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1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाक टिकट जिसमें लक्ष्मीबाई का चित्र है।




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