#Social_Media : आज चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, वीडियो, कमेंट्स, वायरल...2021705

 

हिन्दुओ, सिखों की लाशों से भरी ट्रेन पाकिस्तान से आती, उस पर लिखा रहता- "ये आजादी का नजराना" 

- दंगाइयों से बचने के लिए हिंदू-सिख औरतों ने लगा दी कुएं में छलांग 
- राज्य व केंद्र सरकार ऐसा करें, तो रोजगार मिलेगा, धरोहर भी होंगी  संरक्षित  
आज़ादी के 74 साल बाद मणिपुर में पहली बार ट्रेन पहुँची...video 
किस पार्टी में किस परिवार को पूजते हैं चमचे ...! 
60 साल तक क्यों रहा नाथूराम का अंतिम भाषण प्रतिबंधित !
- पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में केवल हिन्दू सिखों के शव ही नहीं होते... 
अंत में... 

धर्म नगरी / DN News 
(वाट्सएप 8109107075 -केवल न्यूज़ कवरेज, विज्ञापन/शुभकामना सहित कॉपी भिजवाने की जानकारी व रिपोर्टर्स हेतु) Twitter / Koo- @DharmNagari 

हिन्दुओ सिखों की लाशों से भरी ट्रेन पाकिस्तान से आती, उस पर लिखा रहता- 
"ये आज़ादी का नजराना" पहली ट्रेन पाकिस्तान से (15.8.1947)

- अमृतसर का लाल इंटो वाला रेलवे स्टेशन अच्छा खासा शरणार्थियों कैम्प बना हुआ था । पंजाब के पाकिस्तानी हिस्से से भागकर आये हुए हज़ारों हिन्दुओ-सिखों को यहाँ से दूसरे ठिकानों पर भेजा जाता था ! वे धर्मशालाओं में टिकट की खिड़की के पास, प्लेट फार्मों पर भीड़ लगाये अपने खोये हुए मित्रों और रिश्तेदारों को हर आने वाली गाड़ी में खोजते थे...

- 15 अगस्त 1947 को तीसरे पहर के बाद स्टेशन मास्टर छैनी सिंह अपनी नीली टोपी और हाथ में सधी हुई लाल झंडी का सारा रौब दिखाते हुए पागलों की तरह रोती-बिलखती भीड़ को चीरकर आगे बढे...

- थोड़ी ही देर में 10 डाउन, पंजाब मेल के पहुँचने पर जो दृश्य सामने आने वाला था, उसके लिये वे पूरी तरह तैयार थे... मर्द और औरतें थर्ड क्लास के धूल से भरे पीले रंग के डिब्बों की और झपट पडेंगे और बौखलाए हुए उस भीड़ में किसी ऐसे बच्चे को खोजेंगे, जिसे भागने की जल्दी में पीछे छोड़ आये थे !

- चिल्ला चिल्ला कर लोगों के नाम पुकारेंगे और व्यथा और उन्माद से विह्वल (दुःख से पीड़ित) होकर भीड़ में एक दूसरे को ढकेलकर, रौंदकर आगे बढ़ जाने का प्रयास करेंगे ! आँखो में आँसू भरे हुए एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे तक भाग भाग कर अपने किसी खोये हुए रिश्तेदार का नाम पुकारेंगे! अपने गाँव के किसी आदमी को खोजेंगे, कि शायद कोई समाचार लाया हो ! आवश्यक सामग्री के ढेर पर बैठा कोई माँ बाप से बिछडा हुआ कोई बच्चा रो रह होगा, इस भगदड़ के दौरान पैदा होने वाले किसी बच्चे को उसकी माँ इस भीड़-भाड़ के बीच अपना ढूध पिलाने की कोशिश कर रही होगी...

- स्टेशन मास्टर ने प्लेट फार्म एक सिरे पर खड़े होकर लाल झंडी दिखा ट्रेन रुकवाई... जैसे ही वह फौलादी दैत्याकार गाड़ी रुकी, छैनी सिंह ने एक विचित्र दृश्य देखा... चार हथियार बंद सिपाही, उदास चेहरे वाले इंजन ड्राइवर के पास अपनी बंदूकें सम्भाले खड़े थे ! जब भाप की सीटी और ब्रेको के रगड़ने की कर्कश आवाज बंद हुई, तो स्टेशन मास्टर को लगा की कोई बहुत बड़ी गड़बड़ है... प्लेटफार्म पर खचाखच भरी भीड़ को मानो साँप सूंघ गया हो... उनकी आँखो के सामने जो दृश्य था उसे देखकर वह सन्नाटे में आ गये !

- स्टेशन मास्टर छेनी सिंह आठ डिब्बों की लाहौर से आई उस गाड़ी को आँखे फाड़े घूर रहे थे! हर डिब्बे की सारी खिड़कियां खुली हुई थी, लेकिन उनमें से किसी के पास कोई चेहरा झाँकता हुआ दिखाई नहीँ दे रहा था, एक भी दरवाजा नहीँ खुला... एक भी आदमी नीचे नहीँ उतरा,  उस गाड़ी में इंसान नहीँ #भूत आये थे... स्टेशन मास्टर ने आगे बढ़कर एक झटके के साथ पहले डिब्बे के द्वार खोला और अंदर गये... एक सेकिंड में उनकी समझ में आ गया कि उस रात न.10 डाउन पंजाब मेल से एक भी शरणार्थी क्यों नही उतरा था...

- वह भूतों की नहीँ बल्कि #लाशों की गाड़ी थी... उनके सामने डिब्बे के फर्श पर इंसानी कटे-फटे जिस्मों का ढेर लगा हुआ था... किसी का गला कटा हुआ था, किसी की खोपडी चकनाचूर थी ! किसी की आतें बाहर निकल आई थी...डिब्बों के आने जाने वाले रास्ते मे कटे हुए हाथ-टांगे और धड़ इधर उधर बिखरे पड़े थे... इंसानों के उस भयानक ढेर के बीच से छैनी सिंह को अचानक किसी की घुटी-घुटी आवाज सुनाई दी !

- यह सोचकर की उनमें से शायद कोई जिन्दा बच गया हो, उन्होने जोर से आवाज़ लगाई... "अमृतसर आ गया है यहाँ सब हिंदू और सिख है. पुलिस मौजूद है, डरो नहीँ..." उनके ये शब्द सुनकर कुछ मुरदे हिलने-डुलने लगे... इसके बाद छैनी सिंह ने जो दृश्य देखा वह उनके दिमाग पर एक भयानक स्वप्न की तरह हमेशा के लिये अंकित हो गया... एक स्त्री ने अपने पास पड़ा हुआ अपने पति का 'कटा सर' उठाया और उसे अपने सीने से दबोच कर चीखें मारकर रोने लगी...

- उन्होंने बच्चों को अपनी मरी हुई माओ के सीने से चिपट्कर रोते बिलखते देखा... कोई मर्द लाशों के ढेर में से किसी बच्चे की लाश निकालकर उसे फटी-फटी आँखों से देख रहा था... जब प्लेटफार्म पर जमा भीड़ को आभास हुआ, कि हुआ क्या है तो उन्माद की लहर दौड़ गयी...

- स्टेशन मास्टर का सारा शरीर सुन्न पड़ गया था. वह लाशों की कतारो के बीच गुजर रहा था...हर डिब्बे में यही दृश्य था. अंतिम डिब्बे तक पहुँचते-पहुँचते उसे मतली होने लगी और जब वह ट्रेन से उतरा तो उसका सर चकरा रहा था उनकी नाक में मौत की बदबू बसी हुई थी और वह सोच रहे थे की रब ने यह सब कुछ होने कैसे दिया ?

- जिहादी कौम इतनी निर्दयी हो सकती है कोई सोच भी नहीँ सकता था....उन्होने पीछे मुड़कर एक बार फ़िर ट्रेन पर नज़र डाली...हत्यारों ने अपना परिचय देने के लिये अंतिम डिब्बे पर मोटे मोटे सफेद अक्षरों से लिखा था....."यह गाँधी और नेहरू को हमारी ओर से आज़ादी का नज़राना है !"

हिन्दुओ और सिखों की लाखों लाशों पर बनी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर नेहरू ने इस देश पर शासन किया
#साभार- भीष्म साहनी के उपन्यास से एक अंश

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बंटवारे की क्रूरता या हैवानियत का सबसे बड़ा शिकार पंजाब की बेटियों, बहनों और माताओं को होना पड़ा। मुसलमानो की ऐसी भयानक क्रूरता, जिसे लिखते हुए हाथ कांपने लगते है, बोलते हैं तो जीभ हिलना बंद कर देती है। नंगी औरतों के जुलुस निकालने और कइयों के स्तन काट देने जैसी अमानवीय घटनाएं हुईं। यह सब कुछ सिख गुरुओं की भूमि- पंजाब की जमीन पर हुआ, उस जमीन पर जहां पर सदियों से सिक्ख गुरुओं और सूफी संतों ने मज़हबी सहनशीलता, इंसानियत और दोस्ती की शिक्षा दी थी।

औरतों पर ऐसी हैवानियत की शुरुआत मार्च 1947 के रावलपिंडी के दंगों से शुरू हो गई थी। थोहा खालसा के गांव में हिंदू सिक्ख औरतें दंगाइंयों से अपनी इज़्जत बचाने के लिए कुएं में छलांग लगाकर मर गई थीं। इसके बाद नेहरू ने इस इलाके का दौरा किया और संत गुलाब सिंह की हवेली में लाशों से भरे इस कुएं को भी देखा।  

जितना जुल्म इन औरतों ने अपने जिस्म पर बर्दाश्त किया, उससे ज्यादा मानसिक तौर पर। रेप की शिकार औरतों ने ऐसे बच्चों को जन्म दिया, जिनकी हस्ती उनकी अंतरआत्मा को कचौटती रही। ऐसे ही एक बच्चे की मानसिक पीड़ा को अमृता प्रीतम ने ‘खरीड़’ कविता में बयां किया। अगवा की शिकार लड़कियों को अंग्रेजी परिकथा ‘ब्यूटी एंड बीस्ट’ की व्यथा में भी है, जिसमें अगवा हुई लड़की को अपने अगवाकार जानवर के जुल्म को ही प्रेम समझना पड़ता है। साइकोलॉजिस्ट की लैंग्वेज में इसे ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ कहते हैं।
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पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में...
1947 का गदर वो खौफनाक मंजर था, जिसे भूलना भी चाहो तो संभव नहीं। जानिए उस व्यक्ति के बारे में जो पाकिस्तान से कटी लाखों से भरी ट्रेन लेकर आया था। 13 अप्रैल को बैसाखी के मेले में अंतर्राष्ट्रीय ऐतिहासिक रेल मार्ग पर दौड़ती ट्रेन को देख बुजुर्ग बाल कृष्ण गुप्ता व सोहन सिंह की गदर की याद ताजा हो गई। वह बताते हैं,  यहीं से ट्रेन पाकिस्तान जाया करती थी और सन 1947 में दोनों देशों के बंटवारे के बाद बिगड़े हालात के दौरान दोनों देशों के कई लोग मरे थे।

रेलवे से सेवानिवृतचीफ कंट्रोलर बालकृष्ण गुप्ता ने बताया, कि दोनों देशों का जब बंटवारा हुआ, उस समय वो रेलवे में गार्ड थे। वही, पाकिस्तान से इसी रेलमार्ग से लाशों से भरी ट्रेन हुसैनीवाला रेलवे स्टेशन से होती हुई फिरोजपुर के छावनी रेलवे स्टेशन पहुंची थी। बालकृष्ण गुप्ता बताते हैं, कि उन्हें रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने आदेश दिया था कि पाकिस्तान के गंडा सिंह रेलवे स्टेशन पर भारतीय लोग फिरोजपुर आने का इंतजार कर रहे हैं। यह कहते हुए उन्हें ट्रेन लेकर पाकिस्तान भेजा गया, जब ट्रेन से भारतीयों को लेकर हुसैनीवाला रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुए तो रास्ते में पाकिस्तान के कुछ शरारती तत्वों ने उनपर हमला बोल दिया।

ट्रेन में कई लोगों को तेजधार हथियार से काट दिया गया। ट्रेन खून से लथपथ थी। किसी तरह कुछ लोगों को बचाकर फिरोजपुर छावनी रेलवे स्टेशन पहुंचे। जब भी उन्हें ये दिन याद आता है, उनकी आंखों से आंसू छलक उठते हैं। बुजुर्ग किसान सोहन सिंह ने बताया कि सन 1947 के गदर में इसी ट्रैक पर दौड़ने वाली ट्रेन पर पाकिस्तान की तरफ से कटी हुई लाशें भारत आई थी। ट्रेन तो खून से लथपथ थी ही इस ट्रैक पर भी लोगों का खून बहा है। इसलिए यह ऐतिहासिक ट्रैक है।

दंगाइयों से बचने हिंदू-सिख औरतों ने कुएं में छलांग लगा दी
उन्नीस सौ 47 के बटवारे के समय जहां भारत में मुसलमानों को सुरक्षा दी जा रही थी, गांधीजी मुसलमानों के लिए धरना दे रहे थे, अनशन पर बैठ जाते। वहीं, पाकिस्तान में हिन्दुओं की हत्या हो रही थी, महिलाओं, लड़कियों के रेप हो रहे थे, हिन्दू और गैर-मुसलमान लूटे जा रहे थे। 15 मार्च को रावलपिंडी में दंगों की जो शुरु हुआ, उसने लाखों हिन्दुओं और गैर लोगों को अपना घर-द्वार छोड़कर भागने को मजबूर कर दिया, लेकिन सर्वाधिक जुल्म हिन्दू / अल्पसंख्यक महिलाओं को सहना पड़ा

(विशेष- महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता नहीं थे / नहीं हैं। 2013 में लखनऊ की छात्रा ऐश्वर्या RTI का लिखित उत्तर देते हुए तत्कालीन कांग्रेस नीत केंद्र सरकार ने दिया था। कांग्रेस सरकार ने लिखा- किसी सरकारी दस्तावेज या गजेट या शासकीय अभिलेख में कहीं कोई प्रमाण नहीं है, जिससे ये साबित हो सके की गाँधी राष्ट्रपिता हैं/थे। तो प्रश्न उठता है कैसे और कब सदैव मुसलमानों का पक्ष लेने वाले, तुष्टिकरण का नेहरू सदैव समर्थन करने वाले और हिन्दुओं के मनोबल, उत्साह और अन्याय के प्रति समय-समय पर विरोध को दबाने वाले (अपने बयान, धरने पर बैठकर, स्वतंत्रता के लिए सबकुछ गवाने वाले क्रांतिकारियों एवं फांसी पर झूलने वालों के कार्यों की प्रशंसा के बजाय गलत बताने वाले आदि के द्वारा) गाँधी को जबरदस्ती इतना  किसने बना दिया ? ये झूठा प्रचार किसने और किस लालच से किया ? उत्तर है- ये झूठ और फर्जीबाड़ा उन लोगों का हैं, जिन्होंने देश में सारे हिन्दू विरोधी कानून बनाए, शासन करते हुए जमकर तुष्टिकरण किया और हिन्दुओं में मन में, सोच में "डर बैठाया।"   

1947 में भारत विभाजन के साथ पूरे देश ने जो देखा, वो आज भी इतिहास के पन्नों पर काले अक्षरों में लिखी हुई है. लाखों लोगों के कत्ल, अपहरण और बलात्कार हुए. सबसे बड़ा जख्म पंजाब के लोगों को मिला, जिनकी गलती ये थी, कि वे रेडक्लिफ लाइन के दूसरी ओर यानी वर्तमान पाकिस्तान में थे। मार्च 1947 में ही तथाकथित आजादी (पढ़ें Indian Independence Act-1947) और बंटवारे से कई महीने पहले पंजाब के दूसरे हिस्से में कत्लेआम हो रहा था. जिसकी शुरुआत 15 मार्च से हुई। 

पाकिस्तान के हिस्से गई उत्तरी पंजाब और NWFP (अब खैबर पख्तूनख्वा) में अल्पसंख्यकों पर हुई इस हिंसा का जिक्र “Muslim League Attack on Sikhs and Hindus in the Punjab 1947” नाम की रिपोर्ट में हुआ था. इस रिपोर्ट को कंपाइल करने में कई दशक लग गए और आखिरकार साल 1991 में ये पाकिस्तान में रिलीज हुई. हालांकि तुरंत ही इसे दबा दिया गया। (नीचे फोटो देखें, कैसे लोगों के शव पड़े हैं और चील-गिद्धों का झुंड दिख रहें हैं). 

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राज्य व केंद्र सरकार ऐसा करें,  रोजगार मिलेगा, धरोहर भी होंगे संरक्षित
देश में सबसे ज्यादा किले (Fort) महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश में हैं...उसके बाद राजस्थान में...संसार का अकेला रेगिस्तानी प्रदेश हैं जहां 1100 से अधिक छोटे-बड़े किले हैं..वरना किले चट्टानी-पहाड़ी प्रदेशों में ही ज्यादा होते हैं...700 से अधिक किले यूँ ही धूल धुसरित हो रहे हैं...क्या सरकार इन किलों को थोड़ा सा साफ सुथरा करवाकर रंग रोगन करवा कर रईसों को 5-10 दिन के हिसाब से किराए पर नहीं दे सकती...?
आज तो कोई रह भी नहीं रहा इनमें...सरकार को भी आय होगी और क्षेत्रीय लोगों को भी...लगभग सभी किलों के आसपास कोई ना कोई सरोवर, तालाब, मंदिर, जंगल, नदी, पहाड़, रेगिस्तान है...सूरज चांद तारों के दृश्य हैं...सुहानी तारों भरी रातें हैं...सिन्दूरी शामें हैं और खिलखिलाती सुबह हैं...नहीं हैं तो बस कद्र नहीं... #पवन प्रकाश गुर्जर, राजस्थान 

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आज़ादी के 74 साल बाद मणिपुर में पहली बार ट्रेन पहुँची...74 साल !

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अपील हिन्दुओं से- तथ्य व् तथ्यों से पूर्ण, एक बहुत ही साफ़-सुधरी, स्तरीय, पठनीय राष्ट्रवादी साप्ताहिक राजनीतिक मैगजीन प्रारम्भ करना हैं, जिसे लिए हमे इन्वेस्टर (निवेशक) या "भामाशाह"  चाहिए। जिले स्तर पर भी पार्टनर-कम-ब्यूरो चीफ चाहिए। तुरंत संपर्क करें- 6261868110, वाट्सएप-8109107075  ट्वीटर / Koo- @DharmNagari  
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किस पार्टी में किस परिवार को पूजते हैं चमचे... !
1- कांग्रेस 
में नेहरू गांधी परिवार को पूजा जाता है
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2- समाजवादी पार्टी   
में मुलायम परिवार को
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3- बसपा 
में मायावती परिवार के भाई आनंद, भतीजा आकाश को
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4- RJD 
में लालू परिवार को
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5- TMC 
में ममता परिवार के भतीजे अभिषेक बनर्जी को
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6- शिवसेना 
में ठाकरे परिवार को
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7- NCP 
में पवार परिवार को
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8- JDS 
में देवगौड़ा परिवार को
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9- TRS तेलंगाना राष्ट्र समिति
में चंद्रशेखर राव परिवार को
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10- TDP  तेलगु देशम पार्टी
में चंद्रबाबू नायडू परिवार को
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11- अकाली दल 
में बादल परिवार को
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12- NC नेशनल कांफ्रेंस
में फारूख अब्दुल्ला परिवार को

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13- PDP 
में मुफ्ती परिवार को
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14- YSRCP 
में राजशेखर रेड्डी परिवार को
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15-BJD 
में बीजू पटनायक परिवार को
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16- LJP 
में रामविलास पासवान परिवार को
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17- JMM 
में शिबू सोरेन परिवार को
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18- RLD 
में अजीत सिंह परिवार को
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19- INLD में चौटाला परिवार को
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20- DMK 
में करूणानिधि परिवार को पूरा जा जाता है। 
                     और
🕉️- BJP 
में - - - - - - - - - - - को पूजा जाता है
इसे आप बताइए  इस खाली जगह में किस परिवार का नाम लिखा जाए ? ...क्या BJP में भी देश की उक्त सभी राजीनीतिक पार्टियों की तरह परिवार की पूजा होती है ?
हम ये नहीं कहते या लिखते, कि बीजेपी के सारे नेता, संगठन-सत्ता से जुड़े व पद-सरकारी विभाग के मुखिया दूध के धुले हैं, उन्होंने (देश की अन्य राजनितिक पार्टियों की तरह) अपने वोटर्स-सपोर्टर्स हिन्दुओं को अन्य संगठित व आर्थिक रूप से सशक्त बनाने मई 2014 से आज दिनांक तक उल्लेखनीय या विशेष कार्य भी नहीं किया, क्योंकि बीजेपी को सबका विकास करना हैं, देश पर बोझ बने लोगों का, फ्री में सारी सरकारी योजनाओं का हमेशा से मजा लेने वाले (चाहे सामान्य जाति से अधिक संपन्न हों)... बहुसंख्यक हिन्दू समाज ने भी सबकुछ "राम भरोसे" छोड़ दिया है. कभी बीजेपी से, अपने क्षेत्र के जन-प्रतिनिधि से कुछ नहीं कहता, सब कुछ सहन कर...! इस बहुसंख्यक हिन्दू को ये समझ नहीं कि भूख लगने पर गोद का 3-4 माह के बच्चे को भी दूध नहीं मिलता। फिर अपने ही देश में (1947 में मुसलमानों को पूरा पाकिस्तान नेहरू-गाँधी ने मजहब के आधार पर दिलवा दिया)  क्यों हिन्दू उपेक्षित हैं, उनसे ज्यादा उन लोगों को मिल रहा है, जिनको पाकिस्तान दे दिया गया...! 
ठीक है, मानता हूँ भाजपा को छोड़,
अन्य अधिकांश राजनितिक पार्टियों को अपने "परिवार की चिंता"  है या देश की !
इस बात का किसी चमचे, गुलाम, जातिवादी व क्षेत्रवादी के पास जवाब हो तो बताने की अवश्य कृपा करें!...
तो ये दो लाइन सही है क्या ? (नीचे कमेंट बॉक्स में अपने विचार लिखें)- 
भाजपा ही पूर्ण रूप से "लोकतांत्रिक पार्टी"  है✔️
बाकी सब परिवारवादी,जातिवादी क्षेत्रवादी पार्टी हैं। 
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10 साल तक देश ने केवल प्रगति की, नहीं हुआ कोई भ्रष्टाचार !  
दो हजार चार में अटल सरकार के जाने के बाद अगले 10 साल तक देश ने केवल प्रगति ही की, कोई घोटाला नहीं हुआ, कोई तुष्टिकरण नहीं हुआ, हर दिन रोजगार और नौकरी की बारिश हो रही थी, भारत दुनिया का सबसे ईमानदार देश बन गया था, सत्ता में रहने वाले नेताओं ने फूटी कौड़ी नहीं कमाया, भ्रस्टाचार करना क्या, भ्रष्ट लोगों से मिलते भी नहीं थे, कमीशन-घूसखोरी का धन को हाथों से छुवा भी नहीं... ! 

ऐसा ही कभी कभी मुझे लगता है, जब भी (नहीं, नहीं लगातार) कांग्रेस के राहुल --- (गांधी) को मोदी सरकार पर भ्रस्टाचार के आरोप लगते हैं... आरोपों की ये बौछार सम्भवतः उस दिन से तेज हुई या आरोप लगाना राहुल गाँधी की आदत या शायद दिनचर्या बन गई, जब उन्होंने PM नरेंद्र मोदी के लिए ‘चौकीदार चोर है’ बोला, उसके बाद कैसे-कैसे अपमानजनक टिप्पड़ी या बयान या ट्वीट्स (पता नहीं वो स्वयं करते हैं, या कितने लोग इससे लिए रख रखा है ? हमे नहीं पता, इसलिए मेरा इस पर No Comment)... कितनी बार संसद में बहस के लिए उन्होंने PM मोदी को चुनौती दी, लेकिन पता नहीं क्यों राहुल-मोदीजी के बीच संसद में उस "बहस को देखने, सुनने को" हुई, पता नहीं वो कौन सा दिन होगा, जब इन दोनों की बहस हम देख-सुन पाएंगे ? खैर, छोड़िए उस दिन का हमें नहीं पता, तो उस पर आगे क्या लिखूं ! -संपादक (रा.पाठक 6261868110) 

अब आप इस लेख को पढ़ें... #साभार है, आज से लगभग सवा दो साल पहले देश की तत्कालीन स्थिति-परिस्थितियों के समय लिखे इस लेख के इसके लेखक प्रसार भारती के तत्कालीन चेयरमैन एवं स्तम्भकार भूपेंद्र सिंह जी हैं, इस लेख को उन्होंने लोकसभा चुनाव-2019 के पहले लिखा था...

हम आज तक हमला बोलते हैं, तो इससे राजनीतिक विमर्श की दिशा भी और गर्त में चली जाती है। ऐसा करते हुए वह परिवार की उसी परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं जिसमें इस परिवार ने अपने से इतर लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए नेताओं का अपमान किया। राफेल के बहाने कांग्र्रेस ने भ्रष्टाचार के जिस मुद्दे को छेड़ा है, उस पर बात करने का नेहरू-गांधी परिवार को कोई नैतिक अधिकार नहीं। आज इस पर एक नजर डालना जरूरी है कि आखिर नेहरू-गांधी परिवार ने अपनी राजनीति के लिए पैसों का बंदोबस्त कैसे किया ?

नेहरू के दौर में कांग्रेस उद्योगपतियों और कारोबारियों से पैसे लेती थी
 इसकी वजह से सरकार कभी-कभार मुश्किलों में भी फंस जाती थी। कई कंपनियों के मालिक मूंदड़ा की ही मिसाल लें जिन्होंने 1950 के दशक में कांग्रेस को भारी चंदा दिया। इससे वह वित्तीय रूप से बदहाल होते गए। फिर उन्होंने कांग्रेस को संकेत किया, कि अब सरकार को उनका अहसान चुकाने का वक्त आ गया है। नेहरू सरकार ने उन्हें उपकृत करने में देर नहीं की और भारतीय जीवन बीमा निगम को उनकी कंपनियों के शेयर ऊंची कीमत पर खरीदने के निर्देश दिए। वित्तमंत्री टीटी कृष्णमचारी आलाकमान के निर्देश पर काम कर रहे थे, लेकिन जब इसकी पोल LIC-मूंदड़ा घोटाले के रूप में खुली तो वही बलि के बकरे बनाए गए।

1969 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का विभाजन कर दिया। इसके बाद हालात बदल गए। विभाजन के बाद श्रीमती गांधी ने कम्युनिस्टों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करना शुरू कर दिया और इस तरह सोवियत संघ स्वाभाविक रूप से उनके बचाव में आया। केजीबी आर्काइव्स के प्रभारी रहे वासिली मित्रोखिन ने रूसी खुफिया एजेंसी की गतिविधियों से जुड़े सनसनीखेज खुलासे किए। उन्होंने बताया कि केजीबी ने कैसे 1971 के चुनाव में कांग्रेस को वित्तीय मदद पहुंचाई और कैसे उनके भेदिये कैबिनेट तक पहुंच गए थे ? देश के कई सम्मानित नागरिकों और राजनीति, सरकार, नौकरशाही और उद्योग जगत से जुड़े कई दिग्गजों ने 1970 के बाद अपने अनुभव साझा किए हैं जिसमें उन्होंने चुनाव अभियानों के लिए उद्योगपतियों और कांग्र्रेस की सांठगांठ की परतें खोली हैं। उस दौर के साक्षी ये लोग बताते हैं कि पैसे जुटाने का कांग्रेस ने एक नया तरीका ही ईजाद कर लिया था। इसके तहत विदेशों से होने वाले बड़े अनुबंधों और रक्षा सौदों में दलाली ली जाने लगी। इस लिहाज से 1986-89 के बीच कैबिनेट सचिव रहे बीजी देशमुख की आत्मकथा ‘ए कैबिनेट सेक्रेटरी लुक्स बैक’ खासी उपयोगी है।

देशमुख कहते हैं, ‘बोफोर्स मामले की जड़ें उस चलन से जुड़ी हैं जो इंदिरा गांधी के दौर में शुरू हुआ जिसे उनके बेटे संजय गांधी ने और मजबूत किया। इससे कांग्रेस के लिए पैसे इकट्ठे किए जाते थे।’ 1960 के दशक के मध्य तक पंडित नेहरू के दौर में पार्टी के लिए चंदा जुटाने की प्रक्रिया इससे कहीं अधिक पारदर्शी बनी हुई थी जिसमें कारोबारियों से खुला चंदा लिया जाता था। वह कहते हैं कि खुद को कांग्रेस पार्टी की निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित करने और चुनाव लड़ने के लिए इंदिरा गांधी को पैसों की शिद्दत से जरूरत थी। इसके लिए वह रजनी पटेल और वसंतराव नाइक जैसे अपने वफादारों पर आश्रित थीं। वह लिखते हैं, ‘जब वह भारतीय राजनीति के शीर्ष पर स्थापित हो गईं तो उन्होंने विदेशी सौदों के माध्यम से पैसे जुटाने का बेहतर तरीका ईजाद कर लिया जिसे संजय गांधी ने और तराशा।’

वर्ष 1980 में जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तब देशमुख गृह मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव थे। उन्होंने लिखा, ‘मेरे सहकर्मियों ने जनवरी 1980 में मुझे बताया कि संजय गांधी ने कुछ मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर उन्हें कुछ सौदे करने का आदेश दिया है और साथ ही यह भी समझाया कि वे कैसे किए जाने चाहिए। इसके लिए भरोसेमंद अधिकारियों को रक्षा मंत्रालय एवं रक्षा उत्पादन विभाग जैसे महकमों में नियुक्त किया गया। यहां तक कि संजय गांधी के निधन के बाद भी कांग्रेस में यह सिलसिला कायम रहा।’

प्रतिष्ठित लोकसेवक, राजदूत एवं राज्यपाल रहे बीके नेहरू संजय और राजीव के रिश्तेदार भी थे। अपनी आत्मकथा ‘नाइस गाइज फिनिश्ड सेकंड’ के अनुसार संजय गांधी की अंत्येष्टि के मौके पर उन्होंने राजीव गांधी से पूछा, ‘संजय ने कांग्रेस के लिए कथित रूप से जो रकम जुटाई, क्या वह सुरक्षित है?’ इस पर राजीव ने कहा, ‘उन्हें कांग्रेस कार्यालय की अलमारी में 20 लाख रुपये ही मिले।’ फिर नेहरू ने पूछा कि संजय के पास आखिर कितनी रकम थी? इस पर राजीव ने अपने सिर को हाथों से ढंकते हुए कहा कि करोड़ों रुपये जिनका कोई हिसाब ही नहीं है। उस दौर के दो और प्रतिष्ठित एवं महत्वपूर्ण गवाह थे पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकटरामण और उद्योगपति जेआरडी टाटा।

अपनी आत्मकथा ‘माई प्रेसिडेंशियल ईयर्स’ में वेंकटरामण ने एक वाकये का उल्लेख किया। यह अगस्त 1987 की बात है जब टाटा को राष्ट्रपति ने मिलने के लिए बुलाया। वेंकटरामण ने कहा कि उनकी बातचीत कुछ दिन पहले संसद में बोफोर्स रिश्वत कांड को लेकर राजीव गांधी के संसद में दिए बयान पर केंद्रित हो गई। किताब के अनुसार, ‘टाटा ने कहा कि यह काफी हद तक संभव है कि राजीव और उनके परिवार के किसी सदस्य ने इसमें या किसी अन्य मामले में कोई दलाली न खाई हो, लेकिन कांग्रेस पार्टी द्वारा कमीशनखोरी से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसके पीछे टाटा ने यही दलील दी कि 1980 के बाद से राजनीतिक चंदे को लेकर उद्योगपतियों से पार्टी ने कोई संपर्क नहीं किया और उद्योगपतियों में यह आम धारणा है कि पार्टी सौदों की आड़ में पैसे बना रही है।’

जब रकम जुटाने का यही दस्तूर बन गया हो तब बोफोर्स जैसा कांड तो होना ही था। भारतीय सेना के लिए स्वीडिश कंपनी से तोप खरीदने के मामले में राजीव गांधी और अन्य लोगों पर दलाली के आरोप लगे जिन्हें राजीव ने संसद में सिरे से नकार दिया। हालांकि नेहरू-गांधी परिवार यह नहीं बता पाया कि भारत द्वारा सौदे की पहली किस्त चुकाने के तुरंत बाद ही बोफोर्स ने मारिया और ओत्तावियो क्वात्रोची के खाते में 73 लाख डॉलर क्यों हस्तांतरित किए? बाद में यह रकम कई जगहों से घूमते हुए आखिर में यूके के चैनल आईलैंड में पाई गई।

वाजपेयी सरकार ने ब्रिटिश सरकार से उस खाते को फ्रीज करा दिया, लेकिन मनमोहन सरकार ने ब्रिटिश सरकार से उस खाते पर लगी रोक हटवा दी और क्वात्रोची लूट की रकम लेकर चलता बना। इस इतालवी को आखिर दलाली क्यों मिली? सोनिया ने मनमोहन सरकार से उसके खाते पर पाबंदी क्यों हटवाई? ये सवाल गांधी-नेहरू परिवार का लगातार पीछा करते रहेंगे। मानों इतना ही काफी नहीं था। इराक के साथ तेल के बदले अनाज वाले संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम पर वॉल्कर कमेटी की जांच में यह सामने आया कि इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन से भी कांग्रेस को वित्तीय मदद मिलती रही। क्या कुछ और कहने की जरूरत बाकी है ?

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...जब लद्दाख के इस युवा सांसद ने देश सबकी बोलती बंद कर दिया, अपने पहले ही (10 अगस्त, 2019) भाषण में...! फिर कैसा माहौल बना था संसद में, आप भी सुने-
https://www.youtube.com/watch?v=qMhejm_hIyY&t=7s
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60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण !

“मैंने गांधी को क्यों मारा”
👉 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या /वध कर दिया, लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ, बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया

नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया
 इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी, जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह Court परिसर तक ही सीमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया
“मैंने गांधी को क्यों मारा”
नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत किया।  
“नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के कुछ मुख्य अंश”

🔸1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी
 कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे नाथूराम गोड़से को भय था गांधीजी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे

🔸2. 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पूरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था
। भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधीजी के पास गयी लेकिन गांधीजी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया

🔸3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके l

🔸4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |

🔸5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया l

🔸6. गांधीजी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है, अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए
 अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़कर काशी जाकर प्रायश्चित करने जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधीजी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |

🔸7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया l

🔸8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |

🔸9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |

🔸10. 14 जून 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, लेकिन गांधी जी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि गांधी जी ने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा। न सिर्फ देश का विभाजन हुआ बल्कि लाखों निर्दोष लोगों का कत्लेआम भी हुआ लेकिन गांधी जी ने कुछ नहीं किया |

🔸11. धर्म-निरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के जन्मदाता महात्मा गाँधी ही थे | जब मुसलमानों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाये जाने का विरोध किया तो महात्मा गांधी ने सहर्ष ही इसे स्वीकार कर लिया और हिंदी की जगह हिन्दुस्तानी (हिंदी + उर्दू की खिचड़ी) को बढ़ावा देने लगे | बादशाह राम और बेगम सीता जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ |

🔸12. कुछ एक मुसलमान द्वारा वंदेमातरम् गाने का विरोध करने पर महात्मा गांधी झुक गये और इस पावन गीत को भारत का राष्ट्र गान नहीं बनने दिया |

🔸13. गांधी जी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा। वही दूसरी ओर गांधी जी मोहम्मद अली जिन्ना को क़ायदे-आजम कहकर पुकारते थे |

🔸14. कांग्रेस ने 1931 में स्वतंत्र भारत के राष्ट्र ध्वज बनाने के लिए एक समिति का गठन किया था इस समिति ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र को भारत का राष्ट्र ध्वज के डिजाइन को मान्यता दी किन्तु गांधी जी की जिद के कारण उसे बदल कर तिरंगा कर दिया गया l

🔸15. जब सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया तब गांधी जी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला l

🔸16. भारत को स्वतंत्रता के बाद पाकिस्तान को एक समझौते के तहत 75 करोड़ रूपये देने थे भारत ने 20 करोड़ रूपये दे भी दिए थे लेकिन इसी बीच 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया | केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण से क्षुब्ध होकर 55 करोड़ की राशि न देने का निर्णय लिया | जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया और आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप 55 करोड़ की राशि भारत ने पाकिस्तान दे दी।

महात्मा गांधी भारत के नहीं अपितु पाकिस्तान के राष्ट्रपिता थे जो हर कदम पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े रहे, फिर चाहे पाकिस्तान की मांग जायज हो या नाजायज | गांधी जी ने कदाचित इसकी परवाह नहीं की |

👉 उपरोक्त घटनाओं को देशविरोधी मानते हुए नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की हत्या को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया |
नाथूराम ने न्यायालय में स्वीकार किया कि माहात्मा गांधी बहुत बड़े देशभक्त थे उन्होंने निस्वार्थ भाव से देश सेवा की

मैं उनका बहुत आदर करता हूँ, लेकिन किसी भी देशभक्त को देश के टुकड़े करने के, एक समप्रदाय के साथ पक्षपात करने की अनुमति नहीं दे सकता हूँ | गांधी जी की हत्या के सिवा मेरे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था

नाथूराम गोड़से द्वारा अदालत में दिए बयान के मुख्य अंश...
मैने गांधी को नहीं मारा
मैने गांधी का वध किया है
गांधी वध...
वो मेरे दुश्मन नहीं थे परन्तु उनके निर्णय राष्ट्र के लिए घातक साबित हो रहे थे...
जब व्यक्ति के पास कोई रास्ता न बचे तब वह मज़बूरी में सही कार्य के लिए गलत रास्ता अपनाता है...
मुस्लिम लीग और पाकिस्तान निर्माण की गलत नीति के प्रति गांधीजी की सकारात्मक प्रतिक्रिया ने ही मुझे मजबूर किया...
पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुकतान करने की गैर-वाजिब मांग को लेकर गांधी जी अनशन पर बैठे...

बटवारे में पाकिस्तान से आ रहे हिन्दुओ की दुर्दशा ने मुझे हिला के रख दिया था...

अखंड हिन्दू राष्ट्र
गांधीजी के कारण मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक रहा था..
बेटो के सामने माँ का खंडित होकर टुकड़ो में बटना... विभाजित होना असहनीय था...

अपनी ही धरती पर हम परदेशी बन गए थे..
मुस्लिम लीग की सारी गलत मांगो को गांधीजी मानते जा रहे थे...

मैने ये निर्णय किया के भारत माँ को अब और विखंडित और दयनीय स्थिति में नहीं होने देना है तो मुझे गांधी को मारना ही होगा...
और मैने इसलिए गांधी को मारा...!!


मुझे पता है इसके लिए मुझे फ़ासी होगी
मैं इसके लिए भी तैयार हूं...
और हां यदि मातृभूमि की रक्षा करना अपराध हे तो मै यह अपराध बार बार करूँगा
हर बार करूँगा...
और जब तक सिन्ध नदी पुनः अखंड हिन्द में न बहने लगे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन नहीं करना !

मुझे फ़ासी देते वक्त मेरे एक हाथ में केसरिया ध्वज
और दूसरे हाथ में अखंड भारत का नक्शा हो !
मै फ़ासी चढ़ते वक्त अखंड भारत की जय जय बोलना चाहूँगा !
हे भारत माँ !
मुझे दुःख हे मै तेरी इतनी ही सेवा कर पाया...
-नाथूराम गोडसे...
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गांधी जी की हत्या / वध को लेकर दिल्ली के लाल किले में चले मुकदमे में जज आत्मचरण की कोर्ट ने नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नाथूराम गोडसे महात्मा गांधी की हत्या में अकेले शामिल नहीं थे। उनके अलावा इसमें पांच लोग और थे। पांच लोगों में- मदनलाल पाहवा, शंकर किस्तैया, विष्णु करकरे, गोपाल गोडसे और दत्तारिह परचुरे को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। बाद में हाईकोर्ट ने शंकर किस्तैया और दत्तारिह परचुरे को हत्या के आरोप से बरी कर दिया था। बताया जाता है, कोर्ट में चल रहे ट्रायल के दौरान नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की बात को स्वीकार करते हुए उन्होंने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए गांधीजी की हत्या के कारण भी बताए।
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Disclaimer : इस कालम (आज के चुनिंदा पोस्ट्स, ट्वीट्स, वीडियो, कमेंट्स...) में लेख, पोस्ट आदि सोशल मीडिया से लिया गया है, या लेखकों के अपने स्वयं के हैं. इसमें व्यक्त समस्त मत, विचार, तथ्य या घटना सत्य ही हों, ऐसा दावा हम नहीं करते -संपादक 
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वर्ष 1947 में भारत का बंटवारा हो गया था. पाकिस्तान से बड़ी संख्या में पलायन करके हिंदू भारत आ रहे थे. पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में न केवल हिंदुओं की लाशे आ रही थी, बल्कि वहां से महिलाओं का शील भंग कर भारत भेजा जा रहा था।

22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया तो दूसरी ओर पाकिस्तान से लाशे और हिंदू शरणार्थी आने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. इसी बीच माउंटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था. आक्रमण और पलायन को देखते हुए केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने उसे टालने का निर्णय लिया, लेकिन गांधीजी उसी समय यह राशि तुरन्त पाकिस्तान को दिलवाने के लिए आमरण अनशन पर बैठ गए. गोडसे जैसे-तैसे इस बात को सहन कर गए. बावजूद इसके गांधीजी से नाराज गोडसे के मन में अभी तक उनकी हत्या कोई खयाल नहीं आया था

अभी तक बंटवारे, हिंदूओं का कत्लेआम और महिलाओं के साथ बलात्कार को लेकर गोडसे का गुस्सा जिन्ना और मुस्लिमों के प्रति अधिक था, न कि गांधी जी के प्रति। दिल्ली में गोडसे पाकिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों के कैंपों घूम-घूम लोगों की सहायता के कार्य में लगा था।

इसी बीच गोडसे की नजर पुरानी दिल्ली की एक मस्जिद पर गई, जहां से पुलिस जबरदस्ती हिंदू शरणार्थी को बाहर निकाल रही थी
 विशेष उल्लेखनीय है, पाकिस्तान में अपना घर-द्वारा, सामान, सारी सम्पती छोड़कर भारत आइ शरणार्थी मंदिर और गुरूद्वारों में शरण लिए थे जब कोई जगह नहीं मिली तो बारिश और सर्दी से बचने के लिए पाकिस्तान से आए शरणार्थियों ने एक खाली पड़ी मस्जिद में शरण ले ली. जैसे ही यह बात गांधी को पता चली, वे उस मस्जिद के सामने धरने पर बैठ गए और शरणार्थियों से मस्जिद खाने करवाने के लिए सरकार पर दवाब बनाने लगे जिस वक्त पुलिस लोगों को मस्जिद से बाहर निकाल रही थी उस समय गोडसे भी वहां मौजूद थे

बारिश से भीगे और सर्दी ठिठुरते बच्चों को रोते और कांपते देखकर गोडसे का मन रोने लगा
 गोडसे  उस वक्त निर्णय लिया, कि बस बहुत हुआ अब इस महात्मा को दुनिया से जाना होगा ये शब्द गोडसे के हैं और बतौर गोडसे उन्होंने उसी वक्त प्रण किया कि वो अब गांधी का वध कर देगा

गांधी शुरू से ही मुस्लिम तुस्टीकरण की नीति के आगे झुकते रहे
 जिन्ना की जिद के आगे झुककर देश का विभाजन स्वीकार कर बैठे लाखों लोग मारे गए और बेघर हुए

गोडसे का कहना है, कि एकबार देश यहां तक भी गांधीजी के निर्णयों को स्वीकार कर लेता, लेकिन वे जिस प्रकार अपनी जिद को मानवता और देश से बड़ी साबित करने के लिए अनश्न की आड़ में ब्लैकमेल कर रहे थे. उसको देखकर उसने तय किया की हिंदू और भारत को बचाने के लिए उसे अपने जीवन में गाँधीजी की हत्या जैसे कर्म भी करना पड़ेगा


उल्लेखनीय है, कि गोडसे ने स्वतंत्रता के आंदोलन में गांधीजी के द्वारा उठाए कए कष्टों और उनके योगदान की सराहना भी की है, लेकिन गांधी द्वारा मुस्लिमों को प्रश्न करने के लिए जिस प्रकार एक पक्षीय निर्णय लिए जा रहे थे. उससे गोडसे खुश नहीं था


यही कारण है कि महात्मा गाँधीजी की हत्या को हत्या न बताकर गोडसे ने उसे वध की संज्ञा दी और अपने इस कार्य के लिए निर्णय इतिहास पर छोड़ दिया कि अगर भविष्य में तटस्थ इतिहास लिखा जाएगा तो वह जरूर इस पर न्याय करेगा
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धर्मांतरण की वैधता पर राजकीय मुहर तो उसी दिन लग गई थी,
जिस दिन 1980 में धर्म परिवर्तन करने वाली ईसाई मदर टेरेसा को भारत रत्न दिया गया था..! 
उक्त लाइन सोशल मीडिया में इस फोटो के साथ है, आपका क्या मानना है, क्योंकि टेरसा के जीवन के दूसरे पक्ष और कामों को छिपाया गया. भारत रत्न के योग्य दर्जनों भारतीयों की उपेक्षा करते एक ईसाई महिला को देश का सर्वोच्च सम्मान दे दिया गया, क्यों ? हलांकि बाद में सबकुछ सामने भी आ गया...!
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...to be updated 
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अंत में,  STD बूथ से मोबाइल व सोशल मीडिया तक
नब्बे के दशक में लैंड लाइन फोन, PCO का बहुत महत्व होता था. अपने जिले के बाहर फोन करने लोग STD बूथ जाते। पैसा अधिक न लगे, इसलिए सभी रात 11 बजे के बाद फोन करते, लोगों से सीमित बात होती, पर दिल से दिल मिले रहते, लोग साफ़ और सच बोलते। जीवन में आनंद था
उसके 5-7 साल बाद कंप्यूटर आया, फिर इंटरनेट, फिर निजी चैनल्स, चैनल्स में दर्जनों सीरियल्स... जैसे-जैसे ये चीजे हमारे जीवन में आती गई, हमारी प्रसन्नता, सामाजिकता, संबंध और भावनाओं सबकुछ  खत्म होता गया या गायब हो गया... फिर मोबाइल और सोशल मीडिया आया तो हमारा जीवन ही इनके अधीन हो गया, एक ही घर और एक ही कमरे में रहते हुए भी हम आपस में दूर हो गए... ऐसा नहीं है, कि इन सबके आने लाभ भी हुए / हैं, पर लाभ की तुलना में हानि अधिक हुई, पहली हानि ये कि हम सबका जीवन और उनका आनंद कहीं खो सा गया है... इस क्लिप को देखने के बाडी ये लिखा है... क्लिप को जिसने बनाया है, बहुत गंभीरता से चिंतन करके बनाया है, एक बहुत सार्थक संदेश दिया है, आप भी देखें- 


 

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