आषाढ़ गुप्त नवरात्रि आज से, प्रत्यक्ष फलदायी है गुप्त नवरात्र, किस राशि के लोग क्या करें...


पूजा विधि, दस महाविद्या-पूजा, राशि अनुसार घट स्थापना का फल 


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आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि आषाढ़ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा (11 जुलाई) से आरम्भ होकर 18 जुलाई तक रहेगी। अर्थात गुप्त नवरात्रि-पर्व आठ दिन का होगा। पौराणिक मान्यतानुसार गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की 10 महाविद्याओं की पूजा की जाती है। वर्ष में 4 नवरात्रि आती हैं, दो प्रत्यक्ष और दो अप्रत्यक्ष। अप्रत्यक्ष नवरात्रि को ही गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। प्रत्यक्ष रूप पर चैत्र एवं आश्विन माह में मनाई जाती हैं और अप्रत्यक्ष यानी कि गुप्त आषाढ़ और माघ मास में मनाई जाती हैं।

गुप्त नवरात्रि में साधक गुप्त साधनाएं करने शमशान व गुप्त स्थान पर जाते हैं। नवरात्र में लोग अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने अनेक प्रकार के उपवास, संयम, नियम, भजन, पूजन योग साधना आदि करते हैं। सभी नवरात्रों में माता के सभी 51पीठों पर भक्त विशेष रुप से माता के दर्शनों के लिये एकत्रित होते हैं। माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व शक्ति की उपासना की जाती है
 जबकि चैत्र व शारदीय नवरात्रि में सार्वजिनक रूप में माता की भक्ति करने का विधान है। आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में जहां वामाचार उपासना की जाती है। वहीं, माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। ग्रंथों के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है।

जयन्ती  मङ्गला काली  भद्रकाली  कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते


सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो  मत्प्रसादेन  भविष्यति  न संशय:॥

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गुप्त नवरात्र पूजा विधि-
घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्ज्‍वलित करना व जवारे स्थापित करना-श्रद्धालुगण अपने सामर्थ्य के अनुसार उपर्युक्त तीनों ही कार्यों से नवरात्रि का प्रारंभ कर सकते हैं अथवा क्रमश: एक या दो कार्यों से भी प्रारम्भ किया जा सकता है। यदि यह भी संभव न हो, तो केवल घट स्थापना से देवी पूजा का प्रारंभ किया जा सकता है।

मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की भांति ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

लश स्थापना मुहूर्त-
कलश या घट स्थापना मुहूर्त प्रातः 5:32 से 7:45 तक एवं इसके बाद लाभ और अमृत का चौघड़िये में कलश स्थापना प्रातः काल 9.07 मिनट से 12.31 मिनट तक की जा सकती है।
अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापना दिन 12.05 मिनट से 12.57 मिनट तक कर सकेंगे।

गुप्त-नवरात्री पूजा तिथि-
प्रतिपदा 11 जुलाई 2021 (रविवार)- माँ काली और माँ शैलपुत्री पूजा घटस्थापना।
द्वितीया 12 जुलाई (सोमवार)- चंद्रदर्शन, माँ तारा, माँ ब्रह्मचारिणी पूजन, श्रीजगन्नाथ यात्रा पुरी।
तृतीया 13 जुलाई (मंगलवार)- माँ त्रिपुरसुंदरी और माँ चंद्रघंटा पूजा, वरद विनायक अंगारक चतुर्थी।
चतुर्थी 14 जुलाई (बुधवार)- माँ भुवनेश्वरी, माँ कुष्मांडा पूजन।
पंचमी 15 जुलाई (गुरुवार)- माँ छिन्नमस्ता और माँ स्कन्द की पूजा स्कन्द कुमार षष्ठी।
षष्ठी 16 जुलाई (शुक्रवार)- मां त्रिपुर भैरवी, माँ कात्यायनी पूजन, सप्तमी तिथि क्षय, माँ धूमावतीमां, माँ कालरात्रि पूजन, संक्रान्ति।
अष्टमी 17 जुलाई (शनिवार)- मां बगलामुखी और मां महागौरी पूजन।
नवमी 18 जुलाई (रविवार)- मां मतांगी और मां सिद्धिदात्री पूजन, गुप्त नवरात्रि पूर्ण, नवरात्रि पारण।
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नवरात्रि में दस महाविद्या पूजा-
पहला दिन- मां काली, गुप्त नवरात्रि के पहले दिन मां काली की पूजा के समय उत्तर दिशा की ओर मुंह करके काली हकीक माला से पूजा करनी है। इस दिन काली माता के साथ आप भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से आपकी किस्मत चमक जाएगी. शनि के प्रकोप से भी छुटकारा मिल जाएगा। नवरात्रि में पहले दिन दिन मां काली को अर्पित होते हैं वहीं बीच के तीन दिन मां लक्ष्मी को अर्पित होते हैं। अंत के तीन दिन मां सरस्वति को अर्पित होते हैं।
मां काली की पूजा में मंत्रों का उच्चारण करना है-
मंत्र- क्रीं ह्रीं काली ह्रीं क्रीं स्वाहा
ऊँ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा

दूसरी महाविद्या- दूसरे दिन मां तारा की पूजा की जाती है। इस पूजा को बुद्धि और संतान के लिये किया जाता है। इस दिन एमसथिस्ट व नीले रंग की माला का जप करना हैं।
मंत्र- ऊँ ह्रीं स्त्रीं हूं फट।

तीसरी महाविद्या- मां त्रिपुरसुंदरी और मां शोडषी पूजा- अच्छे व्यक्ति व निखरे हुए रूप के लिये इस दिन मां त्रिपुरसुंदरी की पूजा की जाती है. इस दिन बुध ग्रह के लिये पूजा की जाती है. इस दिन रूद्राक्ष की माला का जप करना चाहिए।
मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीये नम:।

चौथी महाविद्या- मां भुवनेश्वरी पूजा- इस दिन मोक्ष और दान के लिए पूजा की जाती है. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करना काफी शुभ होगा। चंद्रमा ग्रह संबंधी समस्या के लिये यह पूजा की जाती है।
मंत्र- ह्रीं भुवनेश्वरीय ह्रीं नम:
ऊं ऐं ह्रीं श्रीं नम:

पांचवी महाविद्या- माँ छिन्नमस्ता- नवरात्रि के पांचवे दिन माँ छिन्नमस्ता की पूजा होती है. इस दिन पूजा करने से शत्रुओं और रोगों का नाश होता है. इस दिन रूद्राक्ष माला का जप करना चाहिए. अगर किसी का वशीकरण करना है तो उस दौरान इस पूजा करना होता है. राहू से संबंधी किसी भी परेशानी से छुटकारा मिलता है. इस दिन मां को पलाश के फूल चढ़ाएं।
मंत्र- श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैररोचनिए हूं हूं फट स्वाहा।

छठी महाविद्या- मां त्रिपुर भैरवी पूजा- इस दिन नजर दोष व भूत प्रेत संबंधी परेशानी को दूर करने के लिए पूजा करनी होती है. मूंगे की माला से पूजा करें. मां के साथ बालभद्र की पूजा करना और भी शुभ होगा. इस दिन जन्मकुंडली में लगन में अगर कोई दोष है तो वो सभ दूर होता है।
मंत्र- ऊँ ह्रीं भैरवी क्लौं ह्रीं स्वाहा

सातवी महाविद्या- मां धूमावती पूजा- इस दिन पूजा करने से दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन हकीक की माला का पूजा करें।
मंत्र- धूं धूं धूमावती दैव्ये स्वाहा।

आंठवी महाविद्या- माँ बगलामुखी की पूजा करने से कोर्ट-कचहरी और नौकरी संबंधी समस्या दूर हो जाती है
 इस दिन पीले कपड़े पहनकर हल्दी माला का जप करना है। अगर आपकी कुंडली में मंगल संबंधी कोई समस्या है, तो माँ बगलामुखी की कृपा जल्द ठीक हो जाएगा।
मंत्र- ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं, पदम् स्तम्भय जिव्हा कीलय, शत्रु बुद्धिं विनाशाय ह्रलीं ऊँ स्वाहा।

नौवीं महाविद्या- मां मतांगी की पूजा धरती की ओर और मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुंह करके पूजा करनी चाहिए. इस दिन पूजा करने से प्रेम संबंधी परेशानी का नाश होता है। बुद्धि संबंधी के लिये भी मां मातंगी पूजा की जाती है।
मंत्र- क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा।

दसवी महाविद्या- मां कमला की पूजा आकाश की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए. दरअसल गुप्त नवरात्रि के नौंवे दिन दो देवियों की पूजा करनी होती है।
मंत्र- क्रीं ह्रीं कमला ह्रीं क्रीं स्वाहा

नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व का समापन पूर्णाहुति हवन एवं कन्याभोज कराकर किया जाना चाहिए। पूर्णाहुति हवन दुर्गा सप्तशती के मन्त्रों से किए जाने का विधान है किन्तु यदि यह संभव ना हो तो देवी के 'नवार्ण मंत्र', 'सिद्ध कुंजिका स्तोत्र' अथवा 'दुर्गाअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र' से हवन संपन्न करना श्रेयस्कर रहता है।

घटस्थापना का फल-
देवी-पूजा में शुद्ध मुहूर्त एवं सही व शास्त्रोक्त पूजन विधि का बहुत महत्व है। शास्त्रों में विभिन्न लग्नानुसार घट स्थापना का फल बताया गया है-
1. मेष- धन लाभ
2. वृष- कष्ट
3. मिथुन- संतान को कष्ट
4. कर्क- सिद्धि
5. सिंह- बुद्धि नाश
6. कन्या- लक्ष्मी प्राप्ति
7. तुला- ऐश्वर्य प्राप्ति
8. वृश्चिक- धन लाभ
9. धनु- मान भंग
10. मकर- पुण्यप्रद
11. कुंभ- धन-समृद्धि की प्राप्ति
12. मीन- हानि एवं दुःख की प्राप्ति होती है।

किस राशि के लोग क्या करें ?
मेष राशि- स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
वृषभ राशि- देवी के महागौरी स्वरुप की पूजा करें व ललिता सहस्त्रनाम का पाठ करें।
मिथुन राशि- देवी यंत्र स्थापित कर 
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। इससे इन्हें लाभ होगा।
कर्क राशि- 
माँ शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ भी करें।
सिंह राशि- 
माँ कूष्मांडा की पूजा विशेष फल देने वाली है। दुर्गा मन्त्रों का जाप करें।
कन्या राशि- 
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। लक्ष्मी मंत्रो का विधि-विधानपूर्वक जाप करें।
तुला राशि- 
माँ महागौरी की पूजा से लाभ होता है। काली चालीसा का पाठ करें।
वृश्चिक राशि- माँ स्कंदमाता की पूजा से शुभ फल मिलेंगे। श्रीदुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
धनु राशि- 
माँ चंद्रघंटा की आराधना करें। साथ ही उनके मन्त्रों का विधि-विधान से जाप करें।
मकर राशि- 
माँ काली की पूजा शुभ मानी गई है। नर्वाण मन्त्रों का जाप करें।
कुंभ राशि- 
माँ कालरात्रि की पूजा करें। नवरात्रि अवधि रोज़ देवी कवच का पाठ करें।
मीन राशि- 
माँ चंद्रघंटा की पूजा करें। हल्दी की माला से बगलामुखी मंत्रो का जाप भी करें।

गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष से प्रारंभ हो रहे हैं (11 जुलाई 2021 रविवार से 19 जुलाई सोमवार 2021 तक)
गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।

गुप्त नवरात्रि पर्व में माँ दुर्गा जी के दस महाविद्या के सरूप में आराधना की जाती है, समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए माँ की गुप्त रूप से साधना होती है, बर्ष में 2 गुप्त नवरात्रि आती है जिनमे साधक तांत्रिक पूजन से भी माँ भगवती की आराधना करके प्रसन्न करते है।
कुछ वैदिक अनुष्ठान से यह कार्य भी लाभदायक रहते हैं जैसे-
पति प्राप्ति हेतु मन्त्र-
कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि !
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:!!
यह मंत्र दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राहमण से करवाऐ माता से प्रार्थना करें हे माँ मै आपकी शरण में आ गयी मुझे शीघ्र अति शीघ्र सौभाग्य की प्राप्ति हो और मेरी मनोकामना शीघ्र पुरी हो माँ भगवती कि कृपा से अवश्य सफलता प्राप्त होगी।
मनोकूल पत्नी प्राप्ति का मंत्र-
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानु सारिणीम्।
तारिणींदुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम.!!
माँ दुर्गा सप्तशती का संपुटित पाठ किसी योग्य ब्राह्मण से करवाऐ आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी.!!
शत्रु पर विजय व शांति प्राप्ति हेतु-
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्दैरिविनाशनम्.!!
बाधा से मुक्ति व धन-पुत्रादि प्राप्ति हेतु- 
सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय..!!
शत्रु का नाश, भय से शांति और धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए बगलामुखी अनुष्ठान-
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय। जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।।

प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र-

गुप्त नवरात्र में दश महाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है, कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने गुप्त नवरात्र में साधना की थी। शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था, गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है

गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी है
एक समय ऋषि श्रृंगी भक्तों को दर्शन दे रहे थे, अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली- मेरे पति दुर्व्यसनों से सदा घिरे रहते हैं। जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती, धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक, ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं, जुआरी है, लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं।

ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा, वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है, लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं । जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है । इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वेश्वकारिणी देवी है।

गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा-साधना करता है, तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं। लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है, तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई
उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर आ गया और जीवन माता की कृपा से खिल उठा। यदि आप भी एक या कई प्रकार के दुर्व्यसनों से ग्रस्त हैं आपकी इच्छा है, कि माता की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आए, तो गुप्त नवरात्र की साधना अवश्य करें। तंत्र और शाक्त मतावलंबी साधना के दृष्टि से गुप्त-नवरात्रों के कालखंड को बहुत सिद्धिदायी मानते हैं।

मां वैष्णो देवी, पराम्बा देवी और कामाख्या देवी का का अहम् पर्व माना जाता है। हिंगलाज देवी की सिद्धि के लिए भी इस समय को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए ऋषि विश्वामित्र और ऋषि वशिष्ठ ने बहुत प्रयास किए, लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी। वृहद काल गणना और ध्यान की स्थिति में उन्हें यह ज्ञान हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। 

गुप्त नवरात्रों में दश महाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है, कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्र में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुल देवी निकुम्बाला कि साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है मेघनाद ने ऐसा ही किया और शक्तियां हासिल की राम, रावण युद्ध के समय केवल मेघनाद ने ही भगवान राम सहित लक्ष्मण जी को नागपाश मे बांध कर मृत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया 
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नवरात्रि के दिन अत्यंत पवित्र होते हैं, इसलिए इनका रखें ध्यान-
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"सिद्ध कुंजिका स्तोत्र" चमत्कारी है, इसके पाठ से दूर होती हैं बड़ी समस्याएं
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ऐसी मान्यता है, यदि नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र-साधना कर ले, तो उसका भी फल सफलता के रूप में अवश्य मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है यदि आप मंत्र-साधना, शक्ति साधना करना चाहते हैं और काम-काज की उलझनों के कारण साधना के नियमों का पालन नहीं कर पाते, तो यह समय आपके लिए माता की कृपा ले कर आता है।

गुप्त नवरात्रों में साधना के लिए आवश्यक न्यूनतम नियमों का पालन करते हुए मां शक्ति की मंत्र साधना कीजिए। गुप्त नवरात्र की साधना सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं
 गुप्त नवरात्र के बारे में यह कहा जाता है, कि इस कालखंड में की गई साधना निश्चित ही फलवती होती है। इस समय की जाने वाली साधना की गुप्त बनाए रखना बहुत आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरुप गुप्त बनाए रखें। 

गुप्त नवरात्र में शक्ति साधना का संपादन आसानी से घर में ही किया जा सकता है। इस महाविद्याओं की साधना के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है गुप्त व चामत्कारिक शक्तियां प्राप्त करने का यह श्रेष्ठ अवसर होता है। धार्मिक दृष्टि से हम सभी जानते हैं कि नवरात्र देवी स्मरण से शक्ति साधना की शुभ घड़ी है। इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है, कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस परिवर्तन से जहां शरीर में वात, पित्त, कफ में दोष पैदा होते हैं वहीं, बाहरी वातावरण में रोगाणु जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं, सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत आवश्यक है नवरात्र के विशेष काल में देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण में अपनाने गए संयम और अनुशासन तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं, जिससे इंसान निरोगी होकर लंबी आयु और सुख प्राप्त करता है धर्म-ग्रंथों के अनुसार, गुप्त नवरात्र में प्रमुख रूप से भगवान शंकर व देवी शक्ति की आराधना की जाती है।

देवी दुर्गा शक्ति का साक्षात स्वरूप है दुर्गा शक्ति में दमन का भाव भी जुड़ा है । यह दमन या अंत होता है शत्रु रूपी दुर्गुण, दुर्जनता, दोष, रोग या विकारों का ये सभी जीवन में अड़चनें पैदा कर सुख-चैन छीन लेते हैं । यही कारण है, देवी दुर्गा के कुछ विशेष और शक्तिशाली मंत्रों का देवी उपासना के विशेष-काल में जाप शत्रु, रोग, दरिद्रता रूपी, भय बाधा का नाश करने वाला माना गया है
सभी नवरात्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक किए जाने वाले पूजन, जाप और उपवास का प्रतीक है- "नव शक्ति समायुक्तां नवरात्रं तदुच्यते।" देवी पुराण के अनुसार, एक वर्ष में चार माह नवरात्र के लिए निश्चित हैं।

नवरात्र के नौ दिनों तक समूचा परिवेश श्रद्धा व भक्ति, संगीत के रंग से सराबोर हो उठता है। धार्मिक आस्था के साथ नवरात्र भक्तों को एकता, सौहार्द, भाईचारे के सूत्र में बांधकर उनमें सद्भावना पैदा करता है
 शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्रों का बड़ा ही माहात्म्य गाया गया है। मानव के समस्त रोग-दोष व कष्टों के निवारण के लिए गुप्त नवरात्र से बढ़कर कोई साधनाकाल नहीं हैं। श्री, वर्चस्व, आयु, आरोग्य और धन प्राप्ति के साथ ही शत्रु संहार के लिए गुप्त नवरात्र में अनेक प्रकार के अनुष्ठान व व्रत-उपवास के विधान शास्त्रों में मिलते हैं। इन अनुष्ठानों के प्रभाव से मानव को सहज ही सुख व अक्षय ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है 

"दुर्गावरिवस्या" नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पड़ने वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं । "शिवसंहिता" के अनुसार, ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप-तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं।

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥
देवी भागवत के अनुसार, जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है । इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं। मान्यता है, कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई। इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया है। संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुद्ध है।
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