गुरु दत्त, जिनकी बनाई "प्यासा", "काग़ज़ के फूल" को टाइम पत्रिका ने 100 सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूचि में लिया
मात्र 39 साल की आयु में अत्यधिक एल्कोहाल के सेवन के कारण दुनिया को छोड़कर चले गए
(धर्म नगरी / DN News वाट्सएप 8109107075 -न्यूज़, कवरेज, विज्ञापन/शुभकामना व रिपोर्टर्स हेतु)
आज 9 जुलाई है, जन्मदिन है हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्देशक और फ़िल्म निर्माता गुरु दत्त का। भारतीय सिनेमा के वो महान एक्टर और डायरेक्टर गुरु दत्त, जिन्होंने 1950 और 1960 के दशक में प्यासा, कागज़ के फूल, साहिब बीबी और ग़ुलाम और चौदहवीं का चाँद जैसी फिल्मों का उपहार देकर देश-विदेश के दर्शकों के दिलों को जीत लिया था। उनकी बनाई फिल्मों प्यासा और काग़ज़ के फूल को टाइम पत्रिका की एक सौ सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों की सूचि में शामिल किया गया।
गुरुदत्त-गीता दत्त (फोटो : सोशल मीडिया) |
गुरुदत्त की पत्नी गीता दत्त फिल्म प्यासा में कई तरह के बदलाव करना चाहती थीं, पर अंत तक गुरुदत्त ने फिल्म की कहानी में किसी भी तरह के बदलाव पर सहमति नहीं भरी। फिर "प्यासा" वैसी ही बनी जैसा गुरुदत्त चाहते थे, लेकिन उन्होंने फिल्म में अभिनेता के चयन पर पत्नी गीता की बात का जरूर माना, गीता चाहती थीं कि फिल्म में अभिनेता रोल गुरुदत्त स्वयं करें।
गुरु दत्त ने संघर्ष का लंबा काल देखा। जो सफलता उन्हें बाद में मिली, उसके पीछे की कहानी बहुत उतार-चढ़ाव से भरी है। वह ‘प्यासा’ पर फिल्म बनाना चाहते थे। छोटी-मोटी सफलताएं मिलने लगी थीं, लेकिन यह उनकी बौद्धिक भूख को शांत करने के लिए अपर्याप्त थी। ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट लेकर वह निर्माताओं के पास जाया करते, पर हर जगह से "न" मिलता। कहते हैं, एक निर्माता ने ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट को गुरु दत्त के सामने ही उठाकर फेंक दिया था। इस बात की सच्चाई तो नहीं पता, पर शायद अवहेलना की यही तड़प इस फिल्म में दिखाई देती है। जो हर उस व्यक्ति के दिल को छू जाती है, जिसने कभी न कभी अवहेलना और सामाजिक उपेक्षा का प्याला पिया है।
गुरु दत्त का वास्तविक नाम वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे था। उनका जन्म 9 जुलाई, 1925 को बैंगलौर में हुआ था। गुरु दत्त की माँ वसन्ती घर पर प्राइवेट ट्यूशन के अलावा लघुकथाएँ लिखतीं थीं और बंगाली उपन्यासों का कन्नड़ भाषा में अनुवाद भी करती थीं। उन पर बंगाली संस्कृति की इतनी गहरी छाप पड़ी कि उन्होंने अपना नाम गुरु दत्त रख लिया।
टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी के बाद लौटे बम्बई-
गुरु दत्त ने पहले कुछ समय कलकत्ता जाकर टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की लेकिन 1944 में बम्बई लौट आये। उनके चाचा ने उन्हें प्रभात फ़िल्म कम्पनी पूना भेज दिया। उन्हें पूना में सबसे पहले चाँद नामक फ़िल्म में श्रीकृष्ण की एक छोटी सी भूमिका मिली। यह अनुबन्ध 1947 में खत्म हो गया। उनके संघर्ष का यही वह समय था जब उन्होंने प्यासा फ़िल्म की पटकथा लिखी। गुरु दत्त को प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने एक कोरियोग्राफर के रूप में काम पर रखा था, लेकिन उन पर जल्द ही एक अभिनेता के रूप में काम करने का दवाव डाला गया।
1947 में प्रभात के विफल हो जाने के बाद गुरु दत्त बम्बई आ गये। बम्बई में उन्हें देव आनन्द की पहली फ़िल्म के लिये निर्देशक के रूप में काम करने की पेशकश की गयी। देव आनन्द ने उन्हें अपनी नई कम्पनी नवकेतन में एक निर्देशक के रूप में अवसर दिया, किन्तु दुर्भाग्य से यह फ़िल्म बाजी फ्लॉप हो गयी।
यूँ ही लोगों को बना लेते अपना दीवाना-
गुरुदत्त ऐसे शानदार निर्देशक थे, जो अपने नार्मल सीन में ही लोगों को अपना दीवाना बना देते थे। उन्होंने अपने समय में सिनेमा की बारीकियों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने निर्देशन के साथ-साथ एक्टिंग में भी अपना भाग्य अजमाया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिन फिल्मों में गुरु दत्त ने अपने अभिनय से लोहा मनवाया, वास्तव में वह उन फिल्मों में एक्टिंग नहीं करना चाहते थे।
गुरुदत्त ऐसे शानदार निर्देशक थे, जो अपने नार्मल सीन में ही लोगों को अपना दीवाना बना देते थे। उन्होंने अपने समय में सिनेमा की बारीकियों को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने निर्देशन के साथ-साथ एक्टिंग में भी अपना भाग्य अजमाया, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिन फिल्मों में गुरु दत्त ने अपने अभिनय से लोहा मनवाया, वास्तव में वह उन फिल्मों में एक्टिंग नहीं करना चाहते थे।
गुरुदत्त आज अपने इस जन्मदिन पर हम सबके बीच नहीं हैं, परन्तु उनका अभिनय और अद्भुत निर्देशन वाली फिल्मों सबके हृदय में रखते हैं। अत्यधिक एल्कोहाल का सेवन करने के कारण 10 अक्टूबर 1964 में मात्र 39 साल की उम्र में वह इस दुनिया को छोड़ कर चले गए। गुरु दत्त बॉम्बे में अपने बेड रूम में मृत पाये गये और उनके चाहने वाले उन्हें पुकारते रह गए।
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